ईश विनय

वह शक्ति हमें दो दया निधे, कर्त्तव्य मार्ग पर डट जावें।
पर सेवा, पर उपकार में हम, निज जीवन सफल बना जावें।।
हम दीन दुखी निवलों विकलों, के सेवक वन सन्ताप हरें।
जो हैं अटके भूले भटके, उनकी शुभ मार्ग बता जावें।।
छल दम्भ द्वेष पाखण्ड झूठ, अन्याय से निशि दिन दूर रहें।
जीवन हो शुद्ध सरल अपना, शुचि प्रेम सुधारस बरसावें।।
निज आन मानमर्यादा का प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे।
भारत के हम वासी हैं, बलिदान उसीं पर हो जावें।।
वह शक्ति हमें दो दया निधे, कर्तव्य मार्ग पर डट जावें।

स्वास्थ्य

स्वास्थ्य ही संसार में सारे सुखों का मूल है।
स्वास्थ्य की अवहेलना करना बड़ी ही भूल है।

सात सुख

प्रथम सुख निरोधी काया, दूसर सुख हो घर में माया।
तीसर सुख कुलवन्ती नारी, चौया सुख सुत आज्ञाकारी।
पंचम सुख हो सुन्दर वासा, छठयें सुख हो सज्जन पासा।
सप्तम सुख हो मित्र घनेरे, ऐसे नरनहिं जग बहुतेरे।।

प्रकृति का नियम

प्रकृति स्वास्थ्य के हेतु सभी को प्रथम सूचना करती है,
क्षुधा प्यास लघुशंका, निद्रा आदि ब्याधि सब हरती है।।
भोजन के उपरांत सभी को, जो डकार आ जाती है।
अब भोजन पर्याप्त हो गया, हमको यह बतलाती है।।
एक ग्रास भी फिर भोजन को जो प्राणी नहिं खायेंगा।
अपच कब्जियत आदि, पेट के रोगों से बच जायेगा।।
भूख लगे पर भोजन खावे, प्यास लगे जल पीता है।
निद्रा लघुशंका नहिं रोके, स्वास्थ्य उसी ने जीता है।।
शौच न रोके व्यर्थ न लेटे, प्रातः ऊषा पान करे।
भोजन अन्त न पानी पीवे नमक तेल का मंजन करे।।

सदैव निरोग रहे

बासी पानी जे पियें हर्र भून नित खाय।
दूध व्यारू जे करें, ता घर वैद्य न जाय।।
निघण्ट प्रातः काल की वायु नित, सेवन करे जो कोय।
कबहुं रोग ब्यापे नहीं, बुद्धिमान नर होय।।
चरक सोंठ और पीपर, मिरच कारौं नमक मिलाय।
भोजनान्त सेवन करें, ता घर वैद्य न जाय।। वैद्य चन्द्रोदय

भोजन के समय भावना

भोजन करने के समय जैसे होवे भाव,
शान्ति क्रोध चिंता खुशी तैसा बने स्वभाव।।
एहि कारण पूर्वज सभी खाते थे एकान्त।
करे मौंन धारण सदा, रहे आत्मा शान्त।।

भोजन का समय

सूर्योदय सूर्यास्त में भोजन कबहुं न खाय।
जो मनुष्य भोजन करे स्मरण शक्ति नशाय।
प्रतिदिन भोजन का समय, निश्चित कर जो खाय।
मिटे कब्जियत बल बढ़े, अरु जठराग्नि बढ़ाय।। चरक

भोजन के समय जल

स्वच्छ वस्त्र सों ढाकिये, निशदिन जल का पात्र
पात्र छानकर ही भरे, दिन हो अथवा रात्र।।
भोजनान्त या मध्य में, कबहुं पिये नहिं तोय।
एक घड़ी में जल पिये, नहिं अजीर्णता होय।।
यदि आदत जल पियन की, प्रथमहिं जल पीजाय।
घड़ी बाद भोजन करें, कछु न हानि पहुंचाय।। चरक

लाभदायक जल

सूर्योदय के प्रथम ही, ताजा जल मंगवाय।
शुद्ध वस्त्र से छानिये, ताम्र पात्र भरवाय।।
अन्य पात्र सौं पीजिये, तीन बार रुक तोय।
रोग मिटे बहुमुत्र को आगे कबहुं न होय।।
ठाड़ें हो मत पीजिये शर्वत पय अरु तोय।
अण्डकोष में लाभ हो, कब्ज अपच नहिं होय।। प्राकृ.

भोजन के बाद आवश्यक कार्य

भोजन कर मुख धोइये, गद्दी रगड़े रोज।
मुख नेत्रों पर फेरिये, बढ़े दृष्टि अरु ओज।।
दोपहरी जब भोजन करें, कछुक करोटा दायं परे।
रात्रि समय जो भोजन खाय, कछुक दूर नित घूमन जाय।।

भोजनान्त गुड़ दूध व पान का क्रम

दो घंटा उपरान्त जो, भोजनान्त गुड़ खाय।
या पौवा भर पय पिये, पाचन शक्ति बढ़ाय।। ररसाज महो.
भोजनान्त जो पान चबाय, कीड़ा दांत कबहुं नहिं खाय।
सदा थूकिये पहली पीक, यही नियम है सबसे नीक।। अमृत सागर

भोजन हजम हो

जो भोजन के प्रथम ही, अदरक लेय चबाय।
भोजनान्त में नियम सों, भुनी हर्र नित खाय।।
केवल कुल्ला ही करे, तुरत पिये नहिं तोय।
आध घड़ी में जल पिये भूख बढ़े सुख होय।।
वैद्यप्रियात्रिफला चूर्ण बनाय के, भोजनान्त निशि खाय।
बांई करवट लेटिये, देवे अन्न पचाय।। सुश्रुति

किस माह में क्या खाये

कार्तिक दूध अगहन में आलू, पूस बाजरा माघ रतालू।
फाल्गुन शक्कर घी जो पाय, चैत आंवला कच्चा खाय।।
वैसाखे जो खाय करेला, जेठै दाख अषाढै केला।
सावन निशि में जब तक खाय, भादौं ब्यारू कबहुं न पाय।।
क्वाँर कामना देय बचाय, तो शत वर्ष आयु हुंइ जाय।

किस मास में क्या न खाये

चैते गुड़ वैसाखे तेल, महुआ जेठ अषाढै वेल।
सावन साग न भादौ मही, क्वॉर करेला कार्तिक दही।
अगहन जीरा पूष धना, माघ में मिश्री फाल्ुगन चना।
इन नियमों को माने नहीं, मरे नहीं तो परे सही।।

क्या क्या मिलाकर खाने से लाभ

केला संग इलायची आम संग पय पाय।
शरबत खरबूजा सहित, ककड़ी नमक लगाय।

क्या क्या मिलाकर खाने से हानि

गरम वस्तु मधु संग तज, मट्ठा शहद बचाय।
पय खरबूजा शहद घृत, तेल दूध नहिं खाय।।
घृत संग तेल न खाइये, दधि संग आम अचार।
केला खिलड़ी संग शहद, मट्ठा शहद विकार।।
पय संग कबहुं भूल के, खट्टी वस्तु न खाय।
मूली शहद बचाइये, दधि संग गरम न पाय।।
दुग्ध संग नहिं खाइये टेंअी जामुन तेल।
अरु अचार सत्तू तथा, केला मूली बेल।।
घी मूली अरु गर्म जल, शहद संग नहिं खाय।
तथा मठा के साथ में, केला देय बचाय।। वैद्यप्रिया

वर्षा कालीन ऋतुचर्या

बहुध वर्षा ऋतु में जठराग्नि मन्द पड़ जाती है। इसलिए निम्न दिनचर्या के अनुसार चलने से पेट विकार दूर होकर जठराग्नि तीव्र रहती है और क्वांर में मलेरिया आदि फसली बुखार नहीं आता।

वर्षाकाल में क्या खावे

गेहूं दलिया गर्म पय, तथा मूंग की दाल।
पत्तीं वाले साग तज, खावे वर्षा काल।।

वर्षा काल में क्या क्या बचाये

नया अन्न अरु उर्द गुड़, अरुई मटर की दाल।
मेंदा सिमई तक को, त्यागे वर्षा काल।।
दिवस सयन मत कीजिये, अरु सरिता स्नान।
आश्वनि धूप बचाइये, नहिं तो होगी हानि।।
आश्विन कार्तिक ओस में, बाहर कबहुं न सोय।
आवे अवसि मलेरिया अथवा लकवा होय।।

वर्षा काल में लाभदायक चूर्ण

नवसादर सेंधा नमक, जीरा उज्वली स्याह।
पीपल कालीमिर्च अरु धनियां सोठ मिलाय।।
अजवायन संग पीस सब हींग भून घृत डाल।
तोला तोला डाल के करै चूर्ण तय्यार।।
दोपहरी अरु रात में भोजनान्त नित खाय।
मिटै कब्जियत अपच अरु, देवे भूख बढ़ाय।।

बागभट्टआयुर्वेद चिकित्सा में ज्योतिष, यज्ञ, हवन, औषधियों पौधों, वनों, संगीत, वाद्य यंत्रों, तंत्र-मंत्र इत्यादि अनेकों विधाओं का आदिकाल से महत्व रहा है। आज भी यह चिकित्सा ज्योतिष को सृष्टि की उत्पत्ति के साथ मान्य करती है। यह विज्ञान भी मान्य करता है। जहां जो आवश्यक होता है वहां उन विधाओं या चिकित्साओं का उपयोग होता रहा है। चूंकि आयुर्वेद अपने प्रारंभ काल से अष्टांग रूप से संपूर्ण चिकित्सा के रूप में स्थापित होकर जनमानस की भरपूर स्वाथ्य सेवाओं को लाभ पहुंचा रहा है। अधिकांश वैद्य प्रगति से जुड़कर ही इन संपूर्ण विधाओं का रखकर मानव चिकित्सा करते हैं। तभी रोगी उन पर अत्यंत विश्वास व चिकित्सा का लाभ पाते हैं। इस चिकित्सा में बुन्देलखण्ड में चिकित्सक सदा ही सम्मान प्राप्त करता रहा है। राजे-महाराजे इन्हें आश्रय देते थे, जिसका की लाभ वे जनमानस में देते थे।