धामौनी किला सागर जिले के उत्तरी धसान नदी के बायें भाग की धामौनी पहाड़ की बॉयी तलहटी में सागर से 42 कि.मी. दूरी पर स्थित है। धामौनी किला विध्याचल पर्वत श्रेणी के एक नुकीलेभाग पर बना है, जिसके दोनों ओर गहरी प्राकृतिक खाइयाँ हैं, जिनके मध्य से धसान नदी बहती है। बुन्देलखण्ड का यह महत्वपूर्ण सामरिक किला है। विभिन्न भवनों के खंडहर एवं नगर परकोटा की भग्न दीवालों के अवलोकन से आभास होता है कि मध्य युग में यह नगर सात-आठ किलोमीटर की परिधि में था,जो वैभवपूर्ण नगर रहा होगा, परंतु आज वीरान है। अबुल फजल कीजन्म स्थली भी धामौनी ही है।
धामौनी का किला गोंडवाना युग का है, जिसे गढ़ा के गौड़ महाराजा सूरज भान (खटौला) ने बनवाया था। महाराजा संग्राम शाह गौड़ के समय धामौनी गोंडवाने का एक सूबा था, जिसके अंतर्गत 750 गाँव थे। धामौनी किला नीची दलदली जलमय समतल भूमि में बना हुआ है। किले सामने औरंगजेब द्वारा सन् 1676 में बनवाई एक मस्जिद है। दरगाह एवं मस्जिद के मध्य सुंदर हौज है। धामौनी नगर निरंतर लूट-खसोट की चपेट में बने रहने, निरंतर युद्धों एवं नीची पंक भूमि में बसा होने से निर्जन और वीरान जंगल हो गया है। नगर परकोटा कहीं-कहीं दिखता ही है।
किले के सामने का मैदान परकोटा से घिरा हुआ है। किला परकोटा के बाहर चारों ओर 25 फुट गहरी एवं 15 फुट चौड़ीपक्की खाई बनी हुई है। खाई की आंतरिक दीवाल परकोटाभित्ति है। इसके दायें का विशाल दरवाजा है, जहाँ पहुँचने के लिए खाई के एक संकीर्ण पुल को पार करना पड़ता है।किले का मुख्य दरवाज़ा, हाथी दरवाज़ा कहलाता है, इस विशाल दरवाजे़ को पार कर बड़े से वर्गाकार चौक में प्रविष्ट होते है। इस चौक के पश्चिमी एवं पूर्वी भाग में भी हाथी दरवाज़े के समान दरवाज़े हैं। इस परकोटे चौक के दक्षिणी भाग में दस कक्ष, पश्चिमी भाग के दरवाजे़ के दायें-बायें पाँच-पाँच कक्ष एवं उत्तरी मुख्य दरवाजे़ के दायें पार्श्व में चार कक्ष हैं। इनक भीतरी भाग में भी लंबे ऊँचे कमरे हैं। ऐसा आभास होता है कि हाथी दरवाज़ा चौक प्राँगण शाही अस्तबल था। चौक के पूर्वी दरवाज़ा से किले के अंदर प्रथम प्राँगण के मध्य में तीन गुंबदों वाला एक खुला भव्य कचहरी भवन (दरबार हाल) है, जिसका प्राँगण दो भाग वाला है। यह भवन मोटे आठभुजा के खंभों पर खड़ा है, जिसके तीन द्वार पूर्व को तीन पश्चिम को, एवं एक-एक उत्तर-दक्षिण की ओर हैं। दरबार हाल के चारों ओर भग्न भवनों के अवशेष हैं।
कचहरी प्राँगण से पूर्व की ओर किले के दूसरे प्राँगण में राजमहल है। राजमहल के परकोटा की दीवाल 8 फुट चौड़ी एवं 10 फुट से भी अधिक ऊँची है। यह भवन तीन मंजिला है। प्रवेश द्वार की ड्योढ़ी के दायें-बायें दो कमरे हैं। इन कमरों के एक कोने से नीचे जाने को सीढि़याँ हैं, जो गुप्त रास्ते से मिली हुई हैं। इसके भीतरी भाग के विशाल चौक में पत्थरके दस खंभों पर निर्मित खुली दालान है। महल का चौक 60 फुट का वर्गाकार है, जिसके तीन ओर की पूर्व-उत्तर-दक्षिण के महल एवं दालानें गिर चुकी हैं। इस महल के झरोखे, ड्योढि़याँ और दालानों के खंभे तथा चित्रकारी राजपूत शैली में है। इनके आधारपर कहा जा सकता हैकि इसे गौड़ राजाओं ने छोटे स्वरूप में स्थापित कियाहोगा, तो अकबर तथा जहाँगीर ने खाई, परेकाटा हाथी दरवाज़ा चौक एव दरबार हाल इमारतों का निर्माण कराया होगा। ओरछा नरेश वीर सिंह देव प्रथम ने भी किले में कुछ निर्माण और जीर्णोद्धार कराया। सम्राट जहाँगीर तो धामौनी में हाथियों का मेला लगवाया करता था। महल के दक्षिणी पार्श्व में रानी की बावड़ी है। इस बावड़ी के पास से पूर्व की ओर पत्थरों का एक मार्ग परकोटा दीवाल के नीचे से एक दूसरी गुप्त बावड़ी तक जाता है, जिसे गौमुख कहा जाता है।
राजमहल प्राँगण से पूर्वी ऊपरी भाग में किले का तीसरा प्राँगण है, जिसमें तालाब से पानीआने की व्यवस्था है, जिसका जीर्णोद्धार वीरसिंह देव प्रथम ने कराया था। इसके प्रथम खंड से लगभग 20 फुट ऊँचे 10 फुट चौड़े एक दूसरे से जुड़े हुए 6 कक्ष हैं। इस भवन में पीछे खाई की तरफ भी दरवाज़े हैं। आगे-पीछे तथा तथा एक सीध में कमरों के मध्य की दीवालों में दरवाजें इस प्रकार बनाये गये हैं कि पहले कमरेसे छठवें कक्ष तक की गतिविधियाँ देखी जाती रहें। इसे देखकर ओरछा के जहाँगीर महल के द्वितीयखंड होने का आभास हो उठता है। इस भवन के ऊपर भाग में एक ऊँचा कक्ष है, जिसका एक दरवाज़ा खाई की ओर है, इसे फाँसी घर कहा जाता था।
धामौनी का किला अपनी विशेष दुर्ग वास्तु स्थापत्य कला का पंक दुर्ग है।सामरिक दृष्टि से पूर्ण सुरक्षित है। इस किले के चारों ओर टेढ़ा-मेढ़ा 3 किलोमीटर परिधिका परकोटा है। परकोटा बाहर से खाई के आधार पर तल से लगभग 75 फुट ऊँचा है, जिसकी चौड़ाई 15 फुट है। परकोटे के अंदर चारों दिशाओंकी ओर छह कमरों वाली सुरक्षा चौकियाँ हैं, परकोटा में विशाल एवं 75 फुट ऊॅंची बुर्जें हैं, किला परकोटा के ऊपर लगभग 40 फुट ऊँचे पर 10 चौंड़ा गलियारा बना हुआ है, जिस पर चढ़ने लिए सीढि़याँ हैं। परकोटा के गलियारे से बाहर मार करने हेतु तोप के छिद्र बने हुए हैं।
धामौनी सहित गोंडवाना के 10 किले चंद्रशाह गोंड से अकबर ने छीन लिये थे। ओरछा के राजा वीरसिंह देव प्रथम ने धामौनी किले पर