अमरगढ़ अथवा अमरा का किला झाँसी जिले की मोंठ तहसील में स्थित है। अमरगढ़, झाँसी से 40 किलोमीटर की दूरी पर झाँसी-लखनऊ राजमार्ग पर स्थित अमरा गाँव में है। अमरा का प्राचीन नाम उमरा था, जो उमराव गिरि(गुसाईं) का साधना स्थल रहा।
यह किला एक सीधी खड़ी चट्टानी पहाड़ी पर निर्मित है। किला की पहाड़ी के चारों ओर पानी से भरी परिखा है। पश्चिमी दिशा में खाई पर 60 फुटलंबा पुल है। इसे पार कर किले के प्रथम दरवाज़ा सिंह द्वार पर पहुँचते हैं। यह सिंह दरवाज़ा लगभग 35 फुट ऊँचा और 15 फुट चौड़ा है, जो दो विशाल बुर्जों के मध्य निर्मित है। सिंह दरवाज़े से पहाड़ी ढाल चढते हुए दूसरे परकोटे में निर्मित दरवाज़े में पहुँचते हैं, इसके आगे बड़ा प्राँगण है। द्वितीय परकोटे में 10 बुर्ज हैं। इसी प्राँगण में कर्मचारियों, सुरक्षा सैनिकों के कक्ष थे। किले के अंदर की तरफ पहाड़ी के शीर्ष पर एक दो मंजिला महल निर्मित है। महल के प्रथम तल पर खुला बरामदाहै, जिसके चारों ओर अनेक आवीसीय कक्ष हैं। इसकी दूसरी मंजिल पर हवादार झरोखे हैं, जिनमें आकर्षक चित्रकारी है। इसी तल पर भव्य राजसी बैठक (दरबार) है। अमरा का किला समथर के राजा रंजीत सिंह जू देव (1800-15 ई.)में बनवाया था। उन्होंने अमरा को गुंसाई शक्ति से मुक्त करते हुए अमरा को समथर राज्य की एक तहसील बनाया था।
बुंदेलखण्ड की भूमि पहाड़ी, पथरीली मुरमयुक्त रांकड़ है। यहाँ के राजाओं ने पहाड़ी, पथरीली भूमि का उपयोग किलों-गढि़यों के निर्माण करने एवं पहाडि़यों के मध्य की नदियों, नालों वाली नीची भूमि का उपयोग तालाबों तथा झीलों के निर्माण में किया। उन्होंने किलों के साथ-साथ जल प्रबंधन की भी संपूर्ण व्यवस्था की थी। नदी, नालों एवं कंटीली झाडि़यों के जंगलों की अधिकता के कारण यहाँ खुले युद्ध मैदान नहीं हैं। यही कारण है कि यहाँ के राजाओं ने थोड़े से सैनिकों के ही सहारे आक्रमणकारियों की बडी़ सी बड़ी सेना को परेशान एवं पराजित कर उन्हें वापिस लौटने को मज़बूर किया। आज वीरान हो रहे इन किलों को यदि हम प्रमुख पर्यटन केन्द्र बनाने में सफल हो सके,तो हम काफी हद तक इस अमूल्य निधि को क्षरण होने से रोक सकते हैं, जिसके कारण यह ऐतिहासिक धरोहर शताब्दियों तक हमारी सांस्कृतिक विरासत की अविछिन्न कड़ी बने रहेंगे और सदा अपनी गौरवगाथा और कीर्ति का स्मरण दिलाएंगे।