जबलपुर की सिहोरा तहसील में, सिहोरा रोड स्टेशन से 24 किलोमीटर दूर कैमोर पहाड़ी पर, सुहार नदी के किनारे बहोरीबन्द जैन क्षेत्र विद्यमान है।
इतिहास
सम्राट अशोक से कलचुरि काल तक का पुरातत्व आस-पास के क्षेत्र में बिखरा पड़ा है। निकट स्थित अंगोवा, देवरी एवं तिगवाँ आदि गाँवों में देवालयों के अनेक अवशेष मिल जाते हैं।
जबलपुर के ही निकट संगमरमरी नर्मदा तट पर भेड़ाघाट के एक शिलालेख में राजा गयकर्णदेव के शासन काल में सं. 808 का उल्लेख मिलता है। अनेक भ्रमपूर्ण स्थितियों के बावजूद बहोरीबंद की मूर्तियों का काल शक संवत् 1070 माना जा सकता है।
पुरातत्व
बहोरीबन्द में तीर्थ एक अहाते में अवस्थित है। 40’x30′ के महामण्डप में 13’9″ ऊँची और 3’10” चौड़ी एक हजार वर्ष प्राचीन तीर्थंकर शान्तिनाथ की भव्य खड़गासन प्रतिमा दर्शनीय है। मूर्ति के ऊपरी दोनों पार्थों में शासन देवियाँ पुष्पमाल लेकर उड़ती हुई उत्कीर्ण हैं। चरणों के पास चमरेन्द्र और सौधर्म इन्द्र विनयावनत मुद्रा में दिखाये गये हैं। इस विशाल मूर्ति की आसन शिला पर-
आदि सात पंक्तियों का महत्वपूर्ण लेख उत्कीर्ण है। जो यह पुष्ट करता है कि कलचुरिकालीन गयकर्णदेव के राज्य में महासामन्त राष्ट्रकूटवंशी गोल्हण देव का शासन था।
आसपास के उत्खनन से प्राप्त 16 मूर्तियाँ तीर्थंकरों की भूरे सिलेटी रंग वाली भी यहाँ दर्शनीय हैं। मूल नायक तीर्थंकर ऋषभदेव की पद्मासन मुद्रा में श्वेत प्रतिमा मनोहारी है। समवशरण में पत्थर की और 11 धातुई प्रतिमायें दर्शनीय हैं। यह सभी 12वीं, 13वीं शदी की कलचुरिकालीन मूर्तिकला का उत्कृष्ट स्वरूप प्रदर्शित करती हैं। ग्रामीण जन इस प्रतिमा को खनुआ देव मानकर मनौतियाँ मनाते हैं। चूँकि यहाँ के राजा गायकवर्णदेव के बेटे का नाम कुनुवा देव था जो मुख-सुख से खनुआ देव में बदल गया और इसे यहाँ जन-जन में मान्यता प्राप्त होती गई।
क्षेत्र में एक बड़ी धर्मशाला है। पानी, बिजली की पर्याप्त सुविधा है। वार्षिक मेला भी आयोजित होने लगा है। वस्तुतः बहोरीबंद के आसपास अन्वेषण की महती आवश्यकता है जिससे यहाँ की कलचुरिकालीन कला को वास्तविक स्वरूप और संरक्षण मिल सके।
आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।
बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।
डॉ. उषा मिश्र
सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
नाम – डा. उषा मिश्रा पिता – डा.आर.सी अवस्थी पति – स्व. अशोक मिश्रा वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट, कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने, माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश मो.न. – 9827368244 ई मेल – usha.mishra.1953@gmail.com व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन। शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी. शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।
सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित। भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।