
पनागर
July 26, 2024
सीरौन
July 26, 2024जबलपुर की सिहोरा तहसील में, सिहोरा रोड स्टेशन से 24 किलोमीटर दूर कैमोर पहाड़ी पर, सुहार नदी के किनारे बहोरीबन्द जैन क्षेत्र विद्यमान है।
इतिहास
सम्राट अशोक से कलचुरि काल तक का पुरातत्व आस-पास के क्षेत्र में बिखरा पड़ा है। निकट स्थित अंगोवा, देवरी एवं तिगवाँ आदि गाँवों में देवालयों के अनेक अवशेष मिल जाते हैं।
जबलपुर के ही निकट संगमरमरी नर्मदा तट पर भेड़ाघाट के एक शिलालेख में राजा गयकर्णदेव के शासन काल में सं. 808 का उल्लेख मिलता है। अनेक भ्रमपूर्ण स्थितियों के बावजूद बहोरीबंद की मूर्तियों का काल शक संवत् 1070 माना जा सकता है।
पुरातत्व
बहोरीबन्द में तीर्थ एक अहाते में अवस्थित है। 40’x30′ के महामण्डप में 13’9″ ऊँची और 3’10” चौड़ी एक हजार वर्ष प्राचीन तीर्थंकर शान्तिनाथ की भव्य खड़गासन प्रतिमा दर्शनीय है। मूर्ति के ऊपरी दोनों पार्थों में शासन देवियाँ पुष्पमाल लेकर उड़ती हुई उत्कीर्ण हैं। चरणों के पास चमरेन्द्र और सौधर्म इन्द्र विनयावनत मुद्रा में दिखाये गये हैं। इस विशाल मूर्ति की आसन शिला पर-
‘स्वस्ति संवत् १० फाल्गुन वदि १ भौमे श्रीमद् गयकर्णदेव… चिरं जयन्तु…’
आदि सात पंक्तियों का महत्वपूर्ण लेख उत्कीर्ण है। जो यह पुष्ट करता है कि कलचुरिकालीन गयकर्णदेव के राज्य में महासामन्त राष्ट्रकूटवंशी गोल्हण देव का शासन था।
आसपास के उत्खनन से प्राप्त 16 मूर्तियाँ तीर्थंकरों की भूरे सिलेटी रंग वाली भी यहाँ दर्शनीय हैं। मूल नायक तीर्थंकर ऋषभदेव की पद्मासन मुद्रा में श्वेत प्रतिमा मनोहारी है। समवशरण में पत्थर की और 11 धातुई प्रतिमायें दर्शनीय हैं। यह सभी 12वीं, 13वीं शदी की कलचुरिकालीन मूर्तिकला का उत्कृष्ट स्वरूप प्रदर्शित करती हैं। ग्रामीण जन इस प्रतिमा को खनुआ देव मानकर मनौतियाँ मनाते हैं। चूँकि यहाँ के राजा गायकवर्णदेव के बेटे का नाम कुनुवा देव था जो मुख-सुख से खनुआ देव में बदल गया और इसे यहाँ जन-जन में मान्यता प्राप्त होती गई।
क्षेत्र में एक बड़ी धर्मशाला है। पानी, बिजली की पर्याप्त सुविधा है। वार्षिक मेला भी आयोजित होने लगा है। वस्तुतः बहोरीबंद के आसपास अन्वेषण की महती आवश्यकता है जिससे यहाँ की कलचुरिकालीन कला को वास्तविक स्वरूप और संरक्षण मिल सके।