देवरी नगर के विविध मंदिरों तथा आस-पास के कतिपय महत्वपूर्ण क्षेत्रों में संग्रहीत पाषाण-कलावशेषों तथा प्रतिमाओं का विवरण इस प्रकार है :-
सिद्धेश्वर मंदिर -
सिद्धेश्वर मंदिर – उमा-महेश्वर, अर्धनारीश्वर, हरिहर, नृत्य-गणेश, सर्वतोभद्रशिव, सूर्य, अग्नि, दिक्पाल, वायु, ब्रह्मा-विष्णु सहित ललटाबिंब, योगासन में अवस्थित शिव, सरस्वती, कच्छप पर आरूढ़ यमुना तथा सुर-सुन्दरी आदि।
तीर्थंकर प्रतिमा -
तीर्थंकर प्रतिमा – अलंकृत द्वार-पक्ष स्तंभ ( गंगा तथा यमुना के अंकनों सहित ) पूर्ण विकसित कमल के अंकन सहित छत की आंतरिक सज्जापटिटका, तीर्थंकर प्रतिमा ( खंडित )।
खंडेराव मंदिर -
खंडेराव मंदिर – ( बावड़ी ) हरिहर तथा स्खलितवसना सुन्दरी।
भाविया मंदिर -
भाविया मंदिर – विष्णु ( खंडित ) कलात्मक स्थापत्य खंड, जैन तीर्थंकर ( खंडित ) आदि।
निर्माण कला के आधार पर उपरोक्त प्रतिमाऍं तथा कलावशेष ई. ९वीं शती से लेकर १३वीं के मध्य के है। कतिपय महत्वपूर्ण प्रतिमाओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :-
बलराम -
बलराम की एक स्थानक द्विभंग प्रतिमा देवरी के वर्तमान राधा-कृष्ण मंदिर में संग्रहीत है। विवेच्य प्रतिमा द्विभुजी है। दाहिने हाथ में सुरापात्र तथा बायॉं हाथ कटिभाग से नीचे अवस्थित है। मुखमुद्र में सौम्य अपिुत सुरापन की मस्ती का भाव द्रष्टव्य है। केश-विन्यास, कर्णाभरण, ग्रैवेयक, कंकण, कैयूर, यज्ञोपवीत, मेखला (कटिसूत्र), मुक्तदास, वनमाला, अधोवस्त्र, पादवलय (नूपुर) आदि विविध वस्त्राभरणों से सुसज्जित है।
सिरोभाग के ऊपर शेषनाग का छत्र है। विवेच्छ प्रतिमा विशेष कलात्मक है। उनके दॉंये पार्श्व में द्विभुजी नारी प्रतिमा का अंकन है, जो बलराम की पत्नी रेवती प्रतीत होती है। उनके दाहिने हाथ में सनालकमल तथा बायें हाथ में घट है। विवेच्य प्रतिमा स्त्रियोचित विविध सुरूचिपूर्ण वस्त्राभरणों से सुसज्जित है। नारी प्रतिमा को वारूणी देवी भी माना जा सकता है, जो बलराम को मद्धपान कराते हुए द्रष्टव्य हैं।
स्त्री-प्रतिमा बलराम के दाहिने पार्श्व में है, इसीलिये इसे वारूणी देवी कहना अधिक युक्तिसंगत प्रतीत होता है। यदि बलराम के बॉंये भाग में नारी प्रतिमा का अंकन होता, तो इसे बलराम की पत्नी रेवती से अभिज्ञान किया जा सकता है। मूर्तिकला के आधार पर इसे ई. १०वीं शती लगभग का माना जा सकता है।
उमा-महेश्वर -
उमा-महेश्वर :- ललितासन में पीठिका के ऊपर बैठे हुए उमामहेश्वर की चतुर्भुजी प्रतिमा उल्लेखनीय है। शिव के दाहिने दोनों के आयुध अस्पष्ट है। बॉंये उपरले हाथ में धतूरे का पुष्प तथा नीचे का बॉंया हाथ देवी पार्वंती के पृष्ठ भाग से होता हुआ बाम उरोज का स्पर्श करते हुए प्रदर्शित है। पार्वती के ऊपरी दाहिने हाथ में ललाटतीलिका तथा नीचे का हाथ शिव के कंधे पर अवस्थित है। देवी के दाहिने उपरले हाथ में दर्पण तथा नीचे के हाथ में कंघा है।
शिव के सिरोभाग पर मुक्तागुंफित जटा-मुकुट, कर्णाभरण, चौड़ी पटटी् वाला ग्रैवेयक, अंगद बलय, मेखला, यज्ञोविवीत, मुँडमाल आदि द्रष्टव्य हैं। देवी-पार्वती का केश-विन्यास, ललाटिक रत्न पटि्टका से सुसज्जित है। कर्ण-कुँडल, ग्रैवेयक, स्तनहार, कंकण, कटिसूत्र, पादवलय तथा पारदर्शी अधोवस्त्र आदि वास्त्राभरणों का रोचक अंकन है।
दोनों देशों के चरणों के मध्य नृत्यरत भृंगी का अंकन है। चरण-चौकी के वाहृ भाग में वाहन रूप में नन्दी तथा सिंह बैठे दिखाये गये हैं। चरण चौकी के नीचे तीन मानवाकृतियॉं ( रावणानुग्रह ) द्रष्टव्य हैं, जो चरण पीठिका का सिरोभाग से ऊपर उठाते हुए परिलक्षित हैं। दोनों पार्श्वों में कर्तिकेय तथा गणेश आसनस्थ हैं। पलक के ऊपरी भाग में मालाधारी विद्याधर युगल दृष्टव्य है। समय, ई: १२वीं लगभग। उमा-महेश्वर की कतिपय अन्य प्रतिमाऍं यहॉं देखने को मिली हैं ।
योगासन-शिव -
योगासन-शिव :- एक अलंकृत पाषाण सज्जा-पटि्टका के बाऍं पार्श्व में ध्यानस्थ चतुर्भुजी शिव का कलात्म अंकन है। उनके सामने के दोनों हाथों के मध्य बीजपूरक (श्रीफल) है। उपरले दोनों हाथों में क्रमश: त्रिशूल तथा सर्पफण हैं। सिरोभाग के ऊपर जटामुकुट, मुक्तायुक्त पट्टिका, कर्णाभरण, ग्रीवासूत्र, स्कंधमाल, कंठहार, यज्ञोपवीत, कंकण, मुँडमाल, पादवलय तथा विविध वस्त्राभरणों का सुरूचिपूर्ण अंकन द्रष्टव्य है।
देव के बाऍं भाग में मालाधारी विद्याधरों का रोचक अंकन है। दाहिने पार्श्व में कलात्मक वास्त्राभरणों से सुसज्जित द्विभंग मुद्रा में द्विभुजी आयुध पुरूष तथा कमलधारी देवी की स्थानक प्रदर्शित हैं। इन दोनों के मध्य एक नारी बैठी परिलक्षित है। विवेच्य कलात्मक प्रस्तर खण्ड का दाहिना भाग खंडित है, जिसमें क्रमश: ब्रह्मा तथा विष्णु का अंकन रहा होगा।
इस प्रकार विवेच्य शिल्पावशेष ‘त्रिदेवों’ (ब्रह्मा-विष्णु-महेश) से संयुक्त प्रतीत होता है। सम्भवत: इसी पाषाण पट्टिका का उपरोक्त भाग वर्तमान सिद्धेश्वर मंदिर की दीवाल में चुना हुआ है, जिसमें योग मुद्रा में त्रिमुखी ब्रह्मा, विष्णु, देव-देवी तथा गगनचारी विद्याधर द्रष्टव्य हैं। इस फलक के ऊपर चूने से पुताई हो जाने के कारण इसका कलात्मक सौंदर्य नष्ट कर दिया गया है। समय, लगभग ई. ११वीं
शताब्दी ।
अर्धनारीश्वर -
अर्धनारीश्वर :- दो अंलकृत सतंभों के मध्य स्थानक अर्धनारीश्वर की प्रतिमा विशेष महत्व की है। मुख मुद्रा में सौम्य भाव परिलक्षित है। विवेच्य प्रतिमा का बॉंया अर्ध भाग उभारयुक्त स्तन सहित उमा का है। एक कान में चक्रकुंडल और दूसरे कान में सााधारण कुंडल हैं। एक ओर माणिक्ययुक्त मुकुट और दूसरी ओर जटामुकुट है। बॉंयी ओर देवी (उमा) स्वरूप है। दॉंयी ओर देव रूप शिवा का है। उनके दायें हाथों में क्रमश: त्रिशूल और अभयमुद्रा है तथा बॉंये हाथों में दर्पण और मंगलघाट है।
उपरोक्त प्रतिमा के अंग-प्रत्यंग पुरूष (शिव-उमा) के यथोचित विविध वस्त्राभरणों से सुसज्जित है। नीचे दोनों पाश्वों में वाहन रूप में नन्दी तथा सिंह का अंकन है। बॉंये पर्श्व में एक परिचारक स्थानक मुद्रा में नन्दी तथा सिंह का अंकन है। बाँये पार्श्व में एक परिचारक स्थानक मुद्रा में द्रष्टव्य है। साहित्य विवरणों से ज्ञात होता है कि प्रजा-उत्पत्ति का काम विधिवत न होने ब्रह्मा ने शिव का ध्यान किया तब अर्धनारीश्वर के रूप में शिव उनके समक्ष प्रकट हुए।
विवेच्य प्रतिमा का सुरूचिपूर्ण कलात्मक अंकन मूर्तिकला की सजीवता का दिग्दर्शन कराती है। समय, लगभग ई; १२वीं शती। देवरी से प्राप्त अर्धनारीश्वर की एक अन्य प्रतिमा में उपरोक्त प्रकार का समान अंकन है। इस प्रतिमा के वस्त्राभरण विशेष कलात्मक हैं। ऊपर की पट्टिका में शिखरयुक्त गवाक्ष का अंकन है। बॉंयें पार्श्व में मकरमुख, गजशार्दूल तथा दर्पण में रूप-लावण्य का अवलोकन करती हुई रूपगर्विता सुन्दरी का रोचक अंकन हैं। समय, ई; १२वीं शती लगभग।
सर्वतोभद्र शिव -
सर्वतोभद्र शिव :- द्विभंग परिकायक में स्थानक चतुर्भुजी शिव, मंदिर के कोणीय प्रस्तार खण्ड पर अंकित हैं। पाषाण-फलक के सामने के भाग में शिव की युगल प्रतिमाऍं हैं, जिनमें दोनों चतुर्भुजी हैं। एक प्रतिमा के उपरले दोनों हाथों में क्रमश- त्रिशूल तथा सर्पफण है। नीचे के दाहिने हाथ में धतूरे का पुष्प है तथा बॉंया हाथ कटिभाग पर अवस्थित है।
देव के सिरोभाग में जटामुकुट, कर्णकुण्डल, एकावली, यज्ञोवीत, कंकण, मुँमाल, कटिबंध, पैरों में नूपुर तथा अन्य विविध वस्त्राभरणों का रोचक समन्वय है। मुख मुद्रा में सौम्य-भाव दृष्टव्य है। नीचे दाहिने भाग पर वाहन नन्दी आसनस्थ है। पट्टिका का ऊपरी भाग कलात्मक है, समय, लगभग ई; १२वीं शती।
हरिहर -
हरिहर :- दो अलंकृत स्तम्भों के मध्य हरिहर अर्थात् विष्णु तथा शिव की समन्वित स्वरूप वाली सुन्दर प्रतिमा संग्रहीत है। विवेच्य प्रतिमा चतुर्भुजी है तथा प्रतिमा का दाहिना भाग शिव का तथा बाँया भाग विष्णु का है। दाहिने पक्ष के दोनों हाथों में क्रमश:- त्रिशूल तथा अक्षमाल सहित वरदान मुद्रा में है, जो शिव के परिचायक है।
बॉंये पक्ष के दोनों हाथों में चक्र तथा शंकर है, जो विष्णु के युद्धों से सम्बन्धित है। उपरोक्त प्रतिमा के यथोचित विविध वस्त्राभरणों का कलात्मक अंकन प्रभावोत्पादक है। नीचे दाहिने और स्थानक करबद्ध मानवाकार नन्दीश्वर तथा बॉंयी और मानवाकार नंदीश्वर तथा बायीं और मानवाकार करबद्ध गरूड् का रोचक अंकन है। ऊपरी भाग में मालाधारी विद्याधर दृष्टव्य है। समय, लगभग ई: १२वीं शती।
सूर्य -
सूर्य :- दो अलंकृत सतम्भों के मध्य स्थानक चतुर्भुजी सूर्य-प्रतिमा उल्लेखनीय है। देव के ऊपरी दोनों हाथों में सनालकमल है। दाहिना नीचे का हाथ वरद् मुद्रा में तथा बॉंया हाथ शंख से विभूषित है। सिरोभाग के ऊपर किरीट मुकुट, वर्णकुंडल, कंठहार, वक्षमाल, वनमाल, कटक, हस्तवलय, मेखला, मुक्तादाम, अथोवस्त्र तथा अन्य वस्त्राभरणों का कलात्मक अंकन है।
दोनों पैरों में उपाहन ( बूट ) धारण किये है। उभय चरणों के मध्य उषा देवी दृष्टव्य हैं। दोनों पाश्वों में दण्ड तथा पिंगल स्थानक परिलक्षित हैं। उपरोक्त सूर्य-प्रतिमा का समग्र कलात्मक अंकन विशेष महत्वपूर्ण है।
द्विभुजी सूर्य की एक अन्य प्रतिमा स्थानक मुद्रा में देखने को मिली है, जिसके दोनों हाथों में सनालपुष्प प्रदर्शित है। विवेच्य प्रतिमा के वसत्राभरणों में उपरोक्त प्रकार का समान अंकरण है। दोनों पैरों के मध्य उषा तथा पश्वों में दण्ड पिंगल का समान अंकरण है। दोनों पैरों के मध्य उषा तथा पार्श्वों में दण्ड पिंगल दृष्टव्य हैं। समय, लगभग ई; १२वीं शती।
अग्नि -
अग्नि :- अग्नि देव को अग्नेय कोण का दिग्पाल माना गया है। वैदिक देवों में उनका स्थान महत्वपूर्ण है। उन्हें धूमकेतु भी कहा जाता है। अग्नि देव की विवेच्य प्रतिमा चतुर्भुजी है। उनके दाहिने दोनों हाथों में क्रमश: अक्षमाल सहित वरद मुद्रा में तथा शूचि है। बॉंये हाथों में पोथी ( पुस्तक ) तथा घट है। विवेच्य प्रतिमा विविध वस्त्रालंकरणों से युक्त है। नीचे दॉंये पार्श्व में परिचारक तथा बायें भाग में वाहन ‘ मेष ‘ का अंकन है, जो देव की ओर आराध्य भावयुक्त उन्मुख है। समय, लगभग ई; ११वीं-१२वीं शती।
वायु -
वायु :- वायु देव वायव्य दिशा के अधिपति हैं। उन्हें महाभारत में भीम तथा रामायण में हनुमान का पिता कहा गया है। वायु-पुराण में इनके सम्बन्ध में अनेक रोचक कथानक मिलते हैं। वायु का का वाहन मृग (हरिण) है। वायु देवता की विवेच्य द्विभंग प्रतिमा स्थानक तथा चतुर्भुजी है। उनके दाहिने दोनों हाथों में क्रमश: ध्वजयुक्त दण्ड तथा अभयमुद्रा में हैं। बायीं ओर के दोनों हाथ खंडित हैं।
सिरोभाग के ऊपर किरीट मुकुट, पीछे कलात्मक चक्राकार प्रभावमण्डल, चक्रकुंडल, चन्द्रहार, केयूर, कंकण, यज्ञोपवीत, मेखला, उज्जालक, वनमाल, नूपुर तथा पादर्शी वस्त्राभरणों का सुरूचिपूर्ण अंकन है। दायें भाग में माला लिये पार्श्वचारक दृष्टव्य है। समय लगभग ई; १२वीं शती।
नृत्य-गणेश -
नृत्य-गणेश :- नर्तन मुद्रा में एक दंत चतुर्भुजी गणेश की विवेच्य प्रतिमा विशेष महत्व की है। उनके ऊपरी दोनों हाथों में परशु तथा गदा है। दाहिना ऊपरी हाथ मुडा हुआ वक्ष पर नृत्य भाव में अंकित है तथा बाँया हाथ कटिभाग पर अवस्थित है। सिरोभाग के ऊपर करंडमुकुट, वक्रतुंड, महाकाय तथा लम्बोदर है। समय लगभग ई; १३वीं शती।
सरस्वती -
सरस्वती :- देवरी से प्राप्त सरस्वती की विवेच्य प्रतिमा चतुर्भुजी है। सिरोभाग के पीछे सादा प्रभाव मण्डल है। देवी स्त्रियोचित वस्त्राभरणों तथा केश-विन्यास से अलंकृत हैं। मुख्य दोनों हाथों से वीणा वाद्य संभाले बैठी हुई दृष्टव्य हैं। दॉंया हाथ खंडित है तथा नीचे के बॉंयें हाथ में कमण्डल है। ऊपरी भाग के दोनों पाश्वों में एक-एक ध्यानस्थ्य योगी बैठे हुए दिखाये गये हैं। नीचे देवी का वाहन हंस ऊर्ध्वमुखी दृष्टव्य है। समय लगभग ई. १२वीं शती।
कलात्मक पाषाण-फलक -
कलात्मक पाषाण-फलक :- प्राचीन मंदिर के द्वार-पक्ष में प्रयुक्त कलात्मक पाषाण फलक पर कल्पबल्ली, नागबल्ली, कमल पुष्पों तथा पंखुडि़यों का प्रभावपूर्ण कलात्मक अंकन है। इन अलंकरणों के साथ मध्य भाग में प्रेमालाप करते हुए आकर्षक भाव-भंगिमाओंयुक्त मानव-युक्त दृष्टव्य हैं। पाषाण-फलक का समग्र अंकन विशेष कलात्मक तथा आकर्षक है।
एक अन्य मन्दिर-द्वार पाषाण-फलक के नीचे के भाग में मंगलघट लिये द्विभंग मुद्रा में मकरवाहिनी गंगा, दिक्पाल तथा परिचारिकाओं का रोचक अंकन है। ऊपरी भाग में क्रमश: कमलांकन, मिथुन-दृश्य, नाग-कन्या, मंगल घट सहित लता-बल्लरी का सुरूचिपूर्ण अंकन हैं। इसी प्रकार एक दूसरे कलात्मक पाषाण-खंड पर घट लिये हुये कच्छप पर आरूढ़ द्विभंग मुद्रा में यमुना का अंकन है।
उनके समीप ही छत्र लिये परिचारिकाएँ दृष्टव्य हैं। ऊपरी भाग में प्रेमालाप करते हुए मानव-युगल, भारवाहक (कीचक) तथा लताबल्लरी का कलात्मक सामंजस्य है। उपरोक्त प्रकार के अन्य कलात्मक मंदिर पाषाण-फलक विवेच्य क्षेत्र के विविध स्थलों में संग्रहित हैं।
किसी प्राचीन मंदिर की आंतरिक छत में प्रयुक्त सज्जा पट्टिका के चौकोर शिला खण्ड पर पूर्ण विकसित ( प्रफुल्ल ) कमल का कलात्मक अंकन है। इसके मध्य भाग में पुष्प-पराग आदि का जीवन्त चित्रण किया गया है, जो शिल्पियों की कार्य-कुशलता का परिचायक है। समय, लगभग ११वीं शती।
देवांगनाएँ -
देवांगनाएँ :- शिल्प-शास्त्रों में प्रमदा अथवा उन्मत्त देवांगनाओं, नृत्यांगनाओं तथा अप्सराओं के रोचक विवरण मिलते है। जिनमें इनके विवध भावों के आधार पर नामकरण किये गये है। इन अप्सराओं तथा सुर-सुन्दरियों आदि का विविध भाव-भंगिमाओं सहित चित्रण प्राचीन मंदिरों की बाह्य भित्तियों पर करने का विधान था। खजुराहों के मंदिरों में बहुसंख्यक देवांगनाओं-अप्सराओं का सुरूचिपूर्ण अंकन देखने को मिलता है।
देवरी में आलस्य भावयुक्त सुंदरी (लीलावती) की आकर्षक भाव-भंगिमाओं सहित द्विभंग मुद्रा वाली प्रतिमा उल्लेखनीय है। उसके सिरोभाग के ऊपर सुसज्जित केश-विन्यास, कर्णकुंडल, ग्रीवासूत्र, ग्रैवेयक, स्तनहान, कटिमेखला, कंकड़, नूपुर, मुक्तदाम आदि विविध वस्त्राभरणों का सुरूचिपूर्ण समन्वय है। उत्तरीय बॉंये पार्श्व से होकर नीचे तक लटकता हुआ प्रदर्शित है। उसके दोनों हाथ पीछे की ओर मुड़े हुए आलस्य भाव सहित प्रदर्शित है। विवेच्य प्रतिमा का लास्य भाव कलात्मक ढंग से रूपायित किया गया है। समय, लगभग ई, १२वीं शती।
स्खलितवासना -
स्खलितवासना :- खंडेराव बावड़ी के अन्दर चुनी गई एक प्रतिमा विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जो प्रमदा सुन्दरी की है। प्रतिमा का दाहिना हाथ ऊपर उठा हुआ सिर के ऊपर अवस्थित है तथा बॉंया हाथ कटिभाग पर है। पैरों तथा अन्य शारीरिक अंगों में आलस्यभाव दृष्टव्य है। प्रतिमा के अंग-प्रत्यंगों का दम्भ मांसलायुक्त उभार एवं समग्र शारीरिक सौष्ठव तथा विविध कलात्मक वस्त्राभरणों के अंकन में रोचक समन्वय है।
गले में कंठसूत्र, एकावली, स्तनसूत्र, ललाटपट्टिाकायुक्त कुंतल केश-सज्जा, उत्तरीय ता बेलबूटोंयुक्त अधोवस्त्र का कलात्मक अंकन है। विवेच्य प्रतिमा को कलाकार ने बड़े मनोयोग से रूपायित किया है। उसका कलात्मक पारदर्शक अधोवस्त्र नीचे की ओर स्खलित होता हुआ द्रष्टव्य है। समय, लगभग ई, ११वीं शती।
अन्य प्रतिमाऍं-बीसभुजी देवी मंदिर -
बीसभुजी देवी :- नृत्य मुद्रा में बीसभुजी देवी की आकर्षक प्रतिमा है। उनके हाथों में विविध आयुध प्रदर्शित हैं। सामने के मुख्य दोनों हाथ नृत्य-भाव में हैं। विविध अलंकरणों तथा अधोवस्त्र का कलात्मक अंकन उल्लेखनीय है। देवी एक हाथ में दैत्य (राक्षस) के केश पकडे़ हैं। वाहन सिंह, राक्षस के अधोभाग पर मुख्य से प्रहार कर रहा है।