ग्यारसपुर के बाहर पर्वत पर थोड़ा चढ़ने पर एक प्राचीन मन्दिर का अवशिष्ट भाग, अलंकृत हिण्डोला के आकार का है इसी से इस स्थल को लोग हिण्डोला कहते हैं। हिण्डोला के स्तम्भ चारों ओर कलाकृतियों से जड़ित हैं। एक स्तम्भ पर विष्णु के दशावतार भी हैं। निकट ही एक मंदिर के अवशेषों में एक पाषाण पर स. 1140 का अभिलेख है जिसके ऊपरी भाग में एक भालू द्वारा एक मनुष्य को नीचे मार गिराने का दृश्य उत्कीर्ण है। मि. कर्निघम को मिले एक भग्न शिलालेख के अनुसार यहाँ के मन्दिर 9वीं 10वीं शताब्दी के निर्मित हैं।
हिण्डोला से ऊपर एक पगडण्डी पर लगभग 2 फर्लांग चलने पर मालादेवी का प्रसिद्ध मंदिर मिलता है। पहाड़ को काटकर बनाई गई पृष्ठ भूमि में, विकसित नागर शैली का यह जिनालय तलछन्द और उर्ध्वछन्द दोनों दृष्टियों से विलक्षण है। गर्भगृह, अन्तराल, प्रदक्षिणा पथ, महामण्डप और उर्धमण्डप होने के कारण इसे पंचायतन शैली का भी माना जाता है। शिखर की चोटी पर आमलक, उसपर चन्द्रिकायें, फिर छोटा आमलक, उस पर कलश और उन्नत बीज पूरक हैं। प्रवेश हेतु सोपान निर्मित है। गृर्भगृह में 5′ 3″ की भगवान शांतिनाथ की पद्मासन मूर्ति, गन्धर्व युक्त अंकित हैं। यहाँ अन्य तीर्थंकर भी यक्ष-यक्षी सहित उत्कीर्ण हैं। मुख्य मंदिर के ऊपर चारों भागों में चैत्यालय हैं। मंदिर के ललाट पर शांतिनाथ की यक्षी महामानसी, चौखटों में मिथुन मूर्तियाँ, अधोभाग और बाह्य भित्तियों पर देवियों और यक्ष-यक्षियों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। बाहर के परिसर में चार चरण युगल, खड़गासन तीर्थंकर और एक अन्य शिला पर भी चरण युगल अंकित हैं।
मन्दिर के पृष्ठ भाग में तलहटी में 2 फर्लांग की दूरी पर बज्रमठ नामक जिनालय 9-10वीं सदी का है। इसमें एक पंक्ति में तीन गर्भगृहों में, मध्य के बाहर अर्द्ध मण्डप, ऊपर शिखर है। छतें, कोणाकार सोपान शैली की है। इसमें जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ के साथ हिन्दु देवताओं की मूर्तियाँ भी विराजमान हैं। वाह्य भित्तियों पर हिन्दू देवताओं की मूर्तियाँ हैं जिससे कुछ लोग इसे हिन्दू मंदिर भी बतलाते हैं।
नगर में दूसरे अठखंभा हैं, जो ईसा की नौंवी शदी के निर्मित किसी विशाल मंदिर का अलंकृत स्तम्भ हैं। एक पर वि. सं. 1039 का अभिलेख भी है।
आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।
बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।
डॉ. उषा मिश्र
सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
नाम – डा. उषा मिश्रा पिता – डा.आर.सी अवस्थी पति – स्व. अशोक मिश्रा वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट, कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने, माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश मो.न. – 9827368244 ई मेल – usha.mishra.1953@gmail.com व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन। शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी. शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।
सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित। भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।