तीन में न तेरा में मृदंग बजावें डेरा में।
Example 1:
ऐसा व्यक्ति जो सबसे अलग हो, अथवा जिसे कोई पूछे नहीं। इस कहावत की उत्पत्ति के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं (देखिए 'सरस्वती' जनवरी, 1959 में मेरा लेख) बुन्देलखंड में प्रचलित कथा इस प्रकार है:- एक बार बानपुर के महाराज मर्दनसिंह ने यज्ञ किया। ठाकुरों में बुन्देला, पँवार और धंधेरे ये तीन कुरी वाले श्रेष्ठ माने जाते हैं। इनके अतिरिक्त तेरह कुरी के ठाकुर और होते हैं। उक्त यज्ञ में इन तीन और तेरह कुरी के ठाकुरों को छोड़ कर एक ऐसे सज्जन पधारे जो इन सबसे बाहर थे और एक साधारण कुरी के समझे जाते थे। यज्ञ के भोज में यह समस्या उपस्थित हुई कि अन्य बड़ी कुरी के ठाकुरों के साथ उनको कहाँ और किस प्रकार बिठाया जाय ? बहुत सोच-विचार और जिद्दम-जिद्दा के पश्चात अंत में निश्चय यह हुआ कि उनको डेरे पर ही रखा जाय और वहीं उनके लिए भोजन आदि की व्यवस्था कर दी जाय। ऐसा ही किया गया। तभी से उन सज्जन को लेकर कहावत चल पड़ी कि 'तीन में न तेरह में, मृदंग बजावें डेरा में।