न माँयन के, न मड़वा तर के।
Example 1:
न तो माँयना लेने वालों में और न मँड़वा के नीचे बैठने वालों में ही। विवाह में माईहर, मेंहर, मातृदेवी की पूजा के लिए जो अलग रोटियाँ, पूड़ियाँ या गुलेरियाँ तैयार करके रखी जाती हैं वे माँय कहलाती हैं। ये कुटुम्ब वालों को ही प्रसाद के रूप में खाने को दी जाती है। कुटुम्ब से बाहर के लोगों को नहीं मिलतीं और न वे उस स्थान में ही जाने पाते हैं जहाँ माँय रखी रहती हैं। इसी प्रकार कुछ विशेष सगे-संबंधियों को ही विवाह में मंडप के नीचे बैठ कर भोजन करने का अधिकार होता है, दूसरे लोग नहीं बैठने पाते। अतः जिसकी कोई वकत न हो ऐसे आदमी के लिए कहावत का प्रयोग होता है।