ना बात बिरानी कैये, ना ऐंचातानी सैये।

Example 1:

न व्यर्थ दूसरे की बात किसी से कहो और न इंचे-खिचे फिरो। किसी के झगड़े में पड़ना ठीक नहीं।

Example 2:

इस पर एक कहानी है कि एक बार किसी सियार की स्त्री ने एक शेर की माँद में जाकर बच्चे दिये। उस समय शेर बाहर था। परन्तु जब वह लौट कर आया तो सियार और सियारन बड़े घबराये। अंत में कोई और उपाय न देख सियार ने सियारनी से कहा- देख, अब तू एक काम कर। किसी प्रकार बच्चों को रुला दे। मैं पूछूँगा-रानी चकचुइयाँ, बच्चे रोते क्यों हैं? तुम कहना - राजा शालवाहन - वे भूखे हैं। शेर का ताजा मांस खाने को माँगते हैं। मैं कहूँगा- अच्छी बात है। इस जंगल में शेरों की क्या कमी ? एक नहीं, अभी दस मार कर लाता हूँ। माँद के निकट आकर शेर ने उन दोनों की जो इस प्रकार की बातचीत सुनी तो डर के मारे उल्टे पैरों भाग खड़ा हुआ। रास्ते में एक दूसरे सियार से उसकी भेंट हुई। उसके पूछने पर कि भाई, तुम इस तरह तेजी से कहाँ भागे जा रहे हो, शेर ने सारा किस्सा बताया। सुन कर सियार ने हँस कर कहा- भाई तुम भी खूब हो। वह तो हमारी बिरादरी का ही एक सियार है। उसकी स्त्री ने वहाँ बच्चे दिये हैं। विश्वास न हो तो चल कर देख लो। शालवाह्न यहाँ कहाँ रखे। परन्तु शेर को इसका विश्वास नहीं हुआ।