निन्नानवे के फेर में परबो।

Example 1:

1-रुपया कमाने की फिक्र सवार हो जाना। 2-घर-गृहस्थी की चिन्ता में पड़ जाना। 3-किसी ऐसी समस्या का सामने आ जाना जिसे आसानी से हल न किया जा सके।

Example 2:

इसकी एक कथा है कि किसी गाँव में एक ब्राह्मण रहता था जो बड़ा संतोषी था और चार पैसे रोज में अपना और अपनी स्त्री की गुजर करता था। अधिक पैसे की उसे कभी इच्छा नहीं हुई। जो मिलता उसी में परम सुखी था। उसके एक पड़ोसी से उसका यह सुख नहीं देखा गया। एक दिन चुपके से एक थैली में निन्नानवे रुपये भर कर उनके घर में फेंक दिये। बेचारे गरीब तो थे ही। रुपये देख कर बड़े प्रसन्न हुए। गिने तो एक कम सौ निकले। अब उनको इस बात की चिन्ता हुई कि ये किसी प्रकार पूरे सौ हो जाय। उन्होंने अपना खर्चा घटा कर तीन पैसे रोज का कर दिया। इस प्रकार दो महीने में सौ हो गये। अब उनको इस बात की चिन्ता हुई कि ये किसी प्रकार दो सौ हो जाय। दो सौ से फिर तीन सौ की फिक हुई। इस तरह रुपया इकट्ठा करने की चिन्ता ज्यों-ज्यों बढ़ती गयी त्यों-त्यों बेचारे बड़े दुबले हो गये और वह सुख सदा के लिए तिरोहित हो गया, जिसका वे अनुभव किया करते थे।