नौ सौ चूहा खाकें बिलाई तप कों चली।

Example 1:

धार्मिकता या संयमशीलता का ढोंग करने वाले के लिए।

Example 2:

इस बिल्लाव्रत की एक कथा है जो महाभारत के उद्योग पर्व में इस प्रकार पढ़ने को मिलती है- एक बार एक बिलाव शक्तिहीन हो जाने के कारण गंगाजी के तट पर ऊर्ध्वबाहु होकर खड़ा हो गया और सब प्राणियों को अपना विश्वास दिलाने के लिए "मैं तप कर रहा हूँ" ऐसी घोषणा करने लगा। इस प्रकार कुछ समय बीत जाने पर पक्षियों को उस पर विश्वास हो गया और वे उसका सम्मान करने लगे। उसने भी समझा कि मेरी तपस्या सफल तो हो गयी। फिर बहुत दिनों के बाद वहाँ चूहे भी आये और उस तपस्वी को देख कर सोचने लगे कि हमारे शत्रु बहुत है, इसलिए हमारा मामा बन कर यह बिलाव हममें से जो बूढ़े और बालक हैं उनकी रक्षा किया करे। तब सबने उस बिलाव के पास जाकर कहा- आप हमारे उत्तम आश्रय और परम सुहृद हैं। अतः हम सब आपकी शरण में आये हैं। आप सर्वदा धर्म में तत्पर रहते हैं। अतः वज्रधर इन्द्र जैसे देवताओं की रक्षा करते हैं उसी प्रकार आप हमारी रक्षा करें। चूहों के इस प्रकार कहने पर उन्हें भक्षण करने वाले बिलाव ने कहा मैं तप भी करूँ और तुम सबकी रक्षा भी करूँ, ये दोनों काम होने का तो मुझे कोई ढंग नहीं दिखायी देता। फिर भी तुम्हारा हित करने के लिए मुझे तुम्हारी बात भी अवश्य माननी चाहिए।