साँसी कयें मौसी कौ काजर।
Example 1:
सच कहने से मौसी का काजल ! सच बात कहने से कोई तुनक उठे तब।
Example 2:
इसकी एक कथा है कि कोई एक व्यक्ति बड़ा मुँहफट और स्पष्टवादी था। लोगों ने इस कारण उसका नाम 'साँचेरैया' रख छोड़ा' था। एक बार साँचेरैया अपनी मौसी के यहाँ गये। धीरे से दरवाजा खोल कर भीतर पहुँचे तो देखते क्या हैं कि मौसी बड़े टिमाक से अपना शृंगार कर रही हैं और वहीं मौसिया भी खड़े हैं। यह देख कर वे उल्टे पैरों बाहर लौट आये और चुपचाप दरवाजे पर बैठ गये। थोड़ी देर बाद मौसी बाहर निकली तो साँचरैया को बैठा देख कर पूछा- 'अरे, तू कब आया?' साँचेरैया ने तुरंत उत्तर दिया 'जब तुम काजल लगा रही थीं और मौसिया खड़े हँस रहे थे।' सुनते ही मौसी आग बबूला हो गयी और 'अरे तोरो खोज मिटे, मौसी से हँसी करत' यह कह कर उसे मारने दौड़ी। साँचेरैया वहाँ से भाग दिये। मौसी भी उनके पीछे दौड़ी। परन्तु वे हाथ नहीं आये और अपने घर वापिस लौट गये। इसके पश्चात सच बोलने के कारण जब कभी कोई विपत्ति उनके सामने आती तो उन्हें काजल वाली घटना का स्मरण हो आता और वे यही कहते कि 'लो सांसी कयें मौसी कौ काजर।'