कका बुआ दईं राहरें, रै गईं असड़ा तान। किरपा भई रगवीर की, परी हलावै कान।।

Example 1:

दोनों भाइयों में कलह थी। बड़े भाई की मृत्यु के बाद छोटे भाई (चाचा) ने अपने भतीजे को अरहर (तुअर) बोने की सलाह दी जो तात्का़लिक नकदी फसले नहीं है। संयोगवश राजस्था नी बंजारों की टोली उसके अरहर के खेत से गुजरी। उसमें ऊँट, गधे, खच्च र थे। उन सभी को अरहर के खेत की छाया और नमी अच्छी लगी। एक मादा खच्चउर वही खेत में विश्राम करने लगी जिसकी खुर्जी में हीरा जवाहरात भरे थे। बंजारों की टोली बिना ध्या न दिए आगे बढ गई। भतीजा (बड़े भाई का पुत्र) जो अपनी फसल की प्रतीक्षा कर रहा था। अकस्मा त एक दिन अपने खेत पर पहुँचा उसे रेंकने की आवाज सुनाई दी उसने देखा कि मादा खच्चकर वहाँ आराम कर रही है और कान हिला रही है। आषाढ़ मास में तनी हुई अरहर रघुवीर की कृपा से उसे उस खच्च र के पास हीरे जवाहरात मिल गए। सच है भगवान की कृपा से किसी के बुरा चाहने का प्रतिकूल प्रभाव होता है अर्थात् अच्छाव ही होता है। इसी से किसी कवि ने कहा है।