बुंदेलखंड़ विष्वकोष योजना के अंतर्गत ‘बुंदेलखंड़ में प्रवासी महाराष्ट्रीयनों की भूमिका ’
भारत की हृदय-स्थली ‘बुंदेलखंड ‘ अपनी परंपरा और संस्कृति में विषेष है।मैत्री संबंधों का निर्वहन बुंदेलखंड की पहचान है। मराठों का बुंदेलखंड में प्रवेष ऐसे ही मैत्री संबंधों का अनूठा उदाहरण है। बुंदेलखंड की धरती पर एकछत्र राज्य करने वाले महाराजा छत्रसाल के जीवन में , 82 वर्षीय अवस्था में सन् 1724 में एक समय ऐसा भी आया कि उन्हें अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए दो हजार किलोमीटर दूर के अपने मित्र -गुरू बाजीराव पेषवा को बुलाना पड़ा था। तब बुंदेला छत्रसाल ने कवि भूषण से लिखवाकर संदेष भिजवाया था कि ‘‘ जो गत भई गजराज की , सो गत जानियो आज /बाजी जात बुंदेल की , बाजी राखियो लाज ।’’ फिर बाजीराव की सेना ने जबलपुर , सागर , दमोह , झांसी , ललितपुर आदि विविध मार्गों से बुंदेलखड में प्रवेष कर ,एक माह में युद्ध जीत कर छत्रसाल के राज्य की रक्षा की थी । युद्ध विजय की यह घटना ऐतिहासिक तो थी ही , मराठों के बुंदेलखंड में प्रवेष की वह अपूर्व घटना भी थी ,जिसमें बुंदेलखंड की भूमि में मराठी भाषा और संस्कृति का नवरोपण हुआ था। बाजीराव के साथ आई सेना में महाराष्ट्र से आए हुए योद्धा , ब्राह्मण ,रसोइए , सेवक आदि अनेक थे जो मराठी भाषा – संस्कृति के संवाहक थे।
युद्ध विजय के बाद छत्रसाल और बाजीराव के संबंध अधिक घनिष्ठ हुए । छत्रसाल ने बाजीराव की वीरता से प्रभावित हो कर उन्हें अपना तीसरा पुत्र माना था और अपने साम्राज्य का 1/3 भाग तथा वार्षिक दो करोड़ की खेती के उत्पादन का हकदार बनाया था। इसी भू-भाग पर बाजीराव ने राज्य व्यवस्था के लिए दमोह , सागर , जबलपुर , झांसी में छावनियां बनाकर कर वसूली के लिए अनेक अधिकारी नियुक्त किए सन् 1750 के आसपास कर व्यवस्था को अधिक दुरूस्त बनाने के लिए बाजीराव ने गोविंद पंत खेर को पूरे लाव-लष्कर के साथ महाराष्ट्र से बुंदेलखंड रवाना किया था। गोविंद पंत खेर ने कर वसूली व्यवस्थापन के लिए बुंदेलखंड के चारों ओर छोटे-छोटे सूबे तैयार कर वहां महाराष्ट्रीयन तालुकेदार , किलेदार , मालगुजार ,सूबेदार नियुक्त किए जैसे- दमोह में करमरकर , सागर में सूबेदार , गुरसराय में खेर जालौन में हर्षे आदि को ससम्मान नियुक्त किया। इसी अवधि में बुंदेलखंड में ब्राह्मणों के लगभग हजार बारह सौ परिवार बसे। कालांतर में उन्हीं की पीढ़ियां यहां की स्थायी निवासी बन गईं।
उद्देष्य –
बुंदेलखंड की रक्षा के निमित्त यहां आए हुए महाराष्ट्रीयन , आज बड़ी संख्या में बुंदेलखंड के वासी हो चुके हैं। उन्होंने यहां की भाषा संस्कृति और परंपराओं को अपने ढंग से बहुतांष में आत्मसात कर लिया है। साथ ही उन्होंने अपनी मराठी भाषा -संस्कृति अस्मिता को भी जीवित रखा है।षिक्षित और खुली सोच की प्रवृत्ति के चलते इन मराठियों ने बुंदेलखंडी संस्कृति और बुंदेली भाषा से अच्छा-खासा समन्वय स्थापित किष है। बुंदेलखंड के साहित्य ,कला ,चिकित्सा ,विज्ञान आदि क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर इन्होंने बुंदेलखंड का नाम राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोकित किया है। बुंदेलखंड की संस्कृति-परंपरा में प्रवासी महाराष्ट्रीयन , दूध में षर्करा की भांति घुलमिल गए हैं। इन्होंने यहां की सांस्कृतिक परंपरा को समृद्ध करने में बराबरी की भूमिका निभाई है। इसी संदर्भ में बुंदेलखंड विष्वकोष के अंतर्गत प्रवासी