किला समथर (शमशेरगढ़) उत्तरप्रदेश के झाँसी जिले में स्थित है। झाँसी से समथर की दूरी लगभग 60 कि.मी. है। सन् 1947 के पूर्व समथर एक स्वतंत्र स्टेट था, जो बेतवा एवं पहूज नदियों के मध्य था। समतल भूमि में बना-बसा होने के कारण किला एवं नगर को समथर कहा जाने लगा। 16 वीं सदी में मुगल सम्राट बाबर का सूबेदार शमशेर खाँ ऐरच में नियुक्त था। जिसने समथर में अपने नाम पर एक किला बनवाया था और उसका नाम शमशेर गढ़ रखा था।
समथर राज्य के राजा बड़गूजर अर्थात् बड़े श्रेष्ठ गुर्जर जाति के हैं। जब मुगल साम्राज्य अपने पतनावस्था में था, तभी अवसर का लाभ उठाकर दतिया के राजा दलपतराव ने एरछ शमशेरगढ़ (समथर) परिक्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया था। दतिया के राजा दलपत राव (1693-1707) के पश्चात् बुन्देला राजा इंद्रजीत सिंह ने नौनेशाह को समथर किले की किलेदारी एवंउसी के आसपास पाँच ग्रामों की जागीर से सम्मानित किया था।
नौनेशाह के पश्चात् मर्दनसिंह (1725-70), विष्णु सिंह (1770-80) एवं देवी सिंह (1780-1800) समथर के राजा हुए। यह कालांश बुन्देलखण्ड में राजनीतिक जोड़ तोड़, गैर क्षेत्रीय अतिवादी मराठों के प्रवेश एवं लूटमारी का था। राजामर्दन सिंह ने उत्तरी बुंदेलखण्ड के बुंदेलखण्ड के बेतवा से पहूज नदियों के भू-भाग पर अपना अधिकार स्थापित कर समथर का स्वतंत्र राज्य कायम कर लिया था। पेशवा ने भी समथर को स्वतंत्रराज्य स्वीकारकर लिया था। राजा देवी सिंह (1780-1800) ने मराठा लुटेरों की लूट से बचने के निमित्त शमशेरगढ़ किले का पुर्निर्माण कराया था, जो उस समय सुरक्षात्मक एवं सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था।
समथर किला का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व दिशा को है। किले के चारों ओर 60 फुट चौड़ी एवं 20 फुट गहरी खाई है। खाई के भीतर भाग में 40 फुट ऊँची दीवार है, जो 20 फुट पानी में एवं 20 फुट खाई के जल से ऊपर है। दरवाज़ो के अतिरिक्त किले में प्रवेश असंभव ही है। किलेके प्रथम दरवाज़ा के सामने खाई पर पुल निर्मित हैं, इसके पूर्वी भाग में एक किला प्राँगण है। इस मैदान के पूर्वी भाग में सामान्य चौड़ा द्वार है, जो सीधा कटरा बाजार की ओर है। किला मैदान के बाद पुल पार करते हुए परकोटा में निर्मित सिंह दरवाजा़ पर पहुँचते हैं। यह दरवाजा 50 फुट ऊँचा एवं 10 फुट चौड़ा है, जिसमें लोहे के कीला जड़े मज़बूत फाटक हैं। सिंह दरवाजे से आगे 20 फुट के गलियारे बाद दूसरा परकोटा है।
दूसरे परकोटे के बाद भी एक गलियारा है, जिसके बाद तीसरा परकोटा हैं। इस तीसरे परकोटे के ऊपर दालानें एवं खिड़कियाँ हैं, जिनसे दूर-दूर तक चौकसीकी जाती थी। दूसरी मच्छी दरवाजे में से आगे तीसरे परकोटे का हाथी दरवाज़ा है। इसमें लोहे का बहुत मज़बूत फाटक लगा है, जो सैहुड़ा की लूट का बताया जाता है। हाथी दरवाजा़ में से किले के प्रथम प्राँगण में पहुँच जाते हैं। इस प्राँगण में नौखंड़ा महल, रामजानकी मंदिर, नरसिंहमंदिर एवं फूलबाग है। इसी प्राँगण के दक्षिणी पूर्वी पार्श्व में राज कर्मचारियों के आवासीय भवन, कार्यालयीन भवन एवं सुंदर भवन महल हैं।
किले के प्रथम चौक के सामने लगभग 40 फीट ऊँचा भव्य दो मंज़िला दरबार हाल है, जो आधुनिक शैली में निर्मित है, जिसके ऊपर आकर्षक छतरियाँ हैं। इसी दरवार हाल के दायें पार्श्व से एक लगभग 60 फुट ऊँचा एवं 12 फुट चौड़ा विशाल दरवाज़ा है। इस दरवाज़े से राजनिवास चौक में राजमहल है, जिसमें वर्तमान राजा रणजीत सिंह तृतीय रहते हैं।
राजमहल के ठीक सामने उत्तरी पार्श्व में राज मंदिर है, यह मंदिर अति भव्य है। इसकी चौखट फाटक चाँदी के हैं। इसकी दीवालों, छतों में रामायण एवं महाभारत आधारित चित्रकारी है। इस किले का दरबार हाल राजमहल, राजगढ़, माती महल, राज मंदिर सभी भवन आधुनिक शैली में हैं। राजमंदिर एवं तोपखाना के पास चौक कुआँ है। राजनिवास परिसर के पीछे परकोटे के संलग्न देवी मंदिर हैं। इसी के पास से किले का दूसरा पश्चिमी दरवाज़ा है। इस दरवाज़े के बाहर खाई पर भी पुल है, परन्तु वर्तमान में यह दरवाज़ा बंद रहता है।