खंड-5 बुंदेली और उसके क्षेत्रीय रूप
June 10, 2025बुंदेली की एकाक्षरी शब्द सम्पदा
आ — आओ नायं खो, आ आने का आदेश।
ऑं — क्या, दुबारा कहो।
इ — ही।
ई — इस, इसको, यहाँ, यह।
उ — वह, उस।
ऊ — मना करना, रोकना, नई, दोहराने को कहना।
ए — बगैर नाम लिए बुलाने का सम्बोधन, इस, यह।
ऐ — आश्चर्य सूचक, पुनः कहो।
ओ — बुलाना।
औ — और का संक्षिप्त रूप।
का — क्या।
कॉ — कहाँ।
की — किसको, की कीखों सुना याई, किसकी।
कु — गलत, बुरा।
कू — कान से कूका देना, कान फूँकना।
कू — कुनमुनाना, पिल्ला का स्वर।
के — के पास।
कै — कही, कितने, विकल्प कातर स्वर, विकल्प।
कै — उल्टी।
को — के लिए।
कौं — कहीं, कहूँ।
खाँ — को, के लिए, मुसलमान।
खी — दाँत निपोरना, हँसना।
खू — खून।
खें — के लिए।
खैं — खांसी।
गा — गाने का आदेश, गाओ, चला गया, बीता हुआ, गओ।
गू — मल, बर्बाद, नष्ट, गू कर दओ (बिगाड़ना)।
गे — गए, निधन।
गैं — दो कड़ियों के बीच की जगह।
गै — चली गई ध्यान, खपरिया खपड़े का गोल टुकड़ा, छप्पर की पनाली।
गैं — चली गई, खपरियां, निधन।
गों — चित्त, ध्यान, मन।
गो — इन्द्रियाँ।
गौ — गाय, सीधा-साधा, भोला, सरल, प्रकृति।
घी — घृत।
चॉ — चाय।
चि — चिरंजीव, पुत्र।
चीं — हार मानना, धनहीन होना।
चूं — चिरैया, टपकना।
चौ — चारों ओर।
छं — पायल, घुंघरू का स्वर।
छा — छाने का आदेश छाओ, प्रभाव में करना।
छि — रोकना, घृणा दर्शाना।
छी — धिक्कार, स्पर्श, छूना, दूर रहो।
छीं — छींकने का स्वर, अपशकुन।
छू — छुओ, अदृश्य होना, भाग जाना, जादू में गायब करना।
छै — इकाई का छटवाँ अंक, छाई, क्षय, हानि, रस्म।
जं — यम।
जां — जहाँ, यहाँ, प्राण।
जी — जियरा, मन, प्राण, हाँ, जिस, यह, जीवित, जी रए,
जिओ, आदर सूचक सम्बोधन।
जू — जुआँ।
जूं — ये, यह।
जे — भोजन करना।
जें — यही, जइ, जितने, जयकार, विजय, मंगलकामना।
जौ — जवा, यह, जो, काय यह क्या है।
जो — कदाचित, यह, यदि जो ऐसो हो जातो
झं — झांझन का स्वर।
झां — यहाँ, इधर, परछाई।
टूं — दुर्बल।
टें — समाप्त, घिटना (कुलरिया टे रय), शोर।
ठाँ — बंदूक चलने का स्वर, स्थान, आश्रम।
ठै — जगह, अदद (कै ठै) लगै दो ठै।
ठो — अदद, नग दो ठौ देओ।
ठें — पादना।
ढा — गिराओ, गिरा।
ढीं — कगार, किनारा, कोरा।
ढीं — माँ (ढ़ी की आँख, ढी की)।
ढूं — जोर से पादना।
तो — अब, क्या, ता-आग (ता-ता है यह कह बच्चों को
डराते हैं) अई ता-बच्चों का खेल।
तॉ — तहां।
ति — तीन, तिवाचा, तिजारी।
तू — तुम, रिस जाना या बरस जाना, कबड्डी खेल में सांस
की निरंतरता का सूचक।
ते — थे, कतते, कह रहे थे।
ती — थी, खात ती, खा रही थी।
तें — तुम, से।
तैं — वहां, उसी जगह।
तो — इस पर भी, इतने पर भी, अब, तिस पर भी।
थां — थाह, तल।
थू — निंदा, थूकना, धिक्कार।
थें — से।
दां — दंत, उरझन, दांय, उधम।
दा — दाउ, जेठा, जेठ।
दीं — दीमक, दी हुई प्रदत्त।
दु — दो।
दे — देने की आज्ञा।
दै — दई, देवता, दानी और दानव।
दी — इकाई का दूसरा अंक, देने की आज्ञा।
दो — नदी, बहाव से बना गहरा गद्वा।
धं — बैठने या गिरने का स्वर।
धी — बुद्धि।
धू — लपटां के साथ जलना।
धो — चिकने तने का वृक्ष, न धो चड़े न गिर पड़े।
धों — कदाचित्।
नाँ — नहीं, मना करना, हटकना, यहाँ, इधर, नॉ करौ, ना हुन आव।
नि — न को बोध कराना।
नीं — नीर, आधार।
ने — नहीं कारक चिन्ह, मनाही।
नै — नया।
पा — खाने का आदेश, अनुरोध, तनक पा लो, पैर पा जेब।
पॉ — पैर, पाय, पाव, पॉ लागू।
पी — पिओ, प्रीतम, पिया, पति, शराब, सेवक।
पीं — हार्न की आवाज।
पो — पिरोना।
पौं — पूर्व में भोर का प्रकाश होना, चौप खेल में एक पड़ना, नदी की बाढ़।
फु — फूंक मारना, उड़ाना गायब करना।
बा — वह, बाओ फैलाओं, खोलो।
वाह — वाह, आपत्ति दर्शाना, उस।
बी — प्रसव, बी गई।
बू — गंध।
बे — अमुक, फलाने नाम न लेकर संबोधित कराना, वह, आपत्तिजनक क्रियायें करने वाला, बड़े बे हो।
बै — वही, वही वो दी।
बो — वह।
बौ — वह, दादी, बउ।
भा — हुआ, हो चुका, पसंद आना आ गया।
भूं — धरती, भूमि।
भे — हो गये थे।
भै — हो गई, का भै, क्या हो क्या।
भों — भौंह, मुँह चलाना।
भौ — प्रसव हुआ, घटा।
मा — मार।
माँ — उधर, माता, माँ, हो जइओ माय।
मू — मुँह, चेहरा।
में — अहम्, अंदर, कुठिया में हो गुर फोरवो।
मैं — स्वयं।
मों — मुँह, चेहरा
मो — मुझ, मेरे।
मौ — मुझ मेरे।
यां — यहाँ।
या — गंदी वस्तु के लिए संकेत, अथवा यह।
यें — क्या।
ये — जे, यह।
यों — इस प्रकार, इस तरह, वैसे तो. ऐसे।
री — बिना नाम लिये संबोधित करना घरवारी, स्त्री, महिला को।
रूँ — बाघ का स्वर।
रू — प्राण, आत्मा, रू लय गई।
रें — रूदन का स्वर।
रें — बिना नाम लिये पुरुष या बालक को संबोधित करना।
रै — ठहरने, रुकने का आदेश या अनुरोध ठहर, रुक, रै
जा, ठहर, रै के, रुककर, रै गओ-गर्भ ठहरना, रैवी-रहूँगा।
रो — रोम, रूंआ।
रौ — गति में, क्रम में, झाक में, सनक में, रुक, आदेश रूप में।
ला — लाओ।
ला — प्राप्त की, क्रय की।
लू — लपट।
ले — लो, आदेश।
लै — खरीदी, ग्रहण की, ली।
लैं — साथ में लिये, गोद में लिए लें हैं।
लो — गाय, कुत्ता बुलाना, ग्रहण करो।
लौ — लगाव, लगन, के पास, उन लौ है, ज्वाला, लौ लग गई।
स — इच्छा, सहित।
सा — सामान्य, सदृश।
सी — पीड़ा होने की सूचना, सदृश, समान, जैसी।
सीं — अच्छा, सुंदर।
सू — बच्चों को पेशाब करने की याद कराने का शब्द।
सें — संबंध सूचक।
सै — सैकड़ा, सहे, पालन, पोषण किया, शह बढ़ावा सही ठीक, सच शर्त बदना,
लगाना, सहरा शतरंज में राजा पर आक्रमण।
सों — मो, से, कसम, शपथ।
सो — सोने का आदेश, जब, ताश के खेल में पत्ता खोलना,
फुक्कस रूप दिखावा।
हा — विनती, हा दइया।
हा — को सहमति।
ही — निश्चित, तुरंत।
हूं — हूंका, हामी, भरना, उलाहना भरा स्वर, गलत काम
करते पकड़ा जाना, चलो।
हे — बुलाने को संबोधन।
हें — अनादर भाव प्रगट करना।
है — अस्तित्व जताने वाली सहायक क्रिया।
हो — होकर, से रहकर, जू के स्थान पर संबोधन, उतै हो, का कर रहे।
बुंदेली के विलोम शब्द
अंगाउ — पछाउ = आगे, पीछे।
अंगीतै — पछीतै = घर में आगे-घर में पीछे।
अंगुरयावै — बताबौ = उंगली से संकेत करना बताना।
अंदयाई — संजावेरा = सुबह-संध्या।
अंदयारे — उजयारे = अंधेरे में-प्रकाश में।
अँगर — पछर = गाड़ी में आगे बोझ बढ़ना-पीछे बोझ बढ़ाना।
अँगीत — पछीत = घर के आगे वाला भाग-घर के पीछे वाला भाग, भूमि।
अंगाड़े — पिछाड़े = आगे भविष्य में, पीछे भूतकाल में।
अंदर खुक्क = अगर मगर जगमगाहट से भरा-अंधकार में डूबा हुआ।
अगरी— कमती = अधिक होना-कम होना।
अग्गू — पिच्छू = आगे-पीछे।
अजा — आजी = दादा-दादी, बब्बा, बउ।
अटकाबौ — बजड़वौ = धीरे से किबाड़ लगाना-जोर से किबाड़ लगाना।
आसरौ — बेआसरें = आश्रय-आश्रयहीन।
अतपई — पउवा = दो छटांक, आधा पाव-पाव भर (चार छटांक)।
आंतरे — दूसरे = एक दिन के अंतर से-दूसरे दिन।
अनवन — मेर = बोलचाल न होना-मेल मिलाप न होना।
अनहोनी—होनी = कल्पनातीत का घटना-नियति।
अपड़ा—पड़ो = अशिक्षित-शिक्षित।
अपुन—तुपुन = हम-तुम।
अबाई–जवाई = आगमन, प्रस्थान।
अबेर–सबेर = विलम्ब-जल्दी।
अरैवो—उलछारबो = रस्सी बांध कोई वस्तु कुए में उतारना-जल भरे पात्र को पाट से ऊपर लाने की क्रिया।
अरोंनो—रौनौ = नमक विहीन, नमक युक्त।
अलच्छ—लच्छन = दोष पूर्ण आचरण, लक्षण, आचरण।
अलफा—अल्फी = पुरुषों का कुर्ता-स्त्रियों की कुर्ती।
असगुनया — सगुनया = जिसको देखना अपशकुन हो-जिसको देखना शकुन हो।
असल—नकल = वास्तविक बनावटी।
असुद्द—सुद्द = अशुद्ध-पवित्र।
असेराक—सेरक = आधा सेर (आठ छटांक) सेर भर (पुरानी बाँट प्रणाली)।
आये—गये = आना-जाना।
ऑंसबो—रूचबौ = कष्ट होना, अच्छा लगना।
आई—गई = आ चुकी है-जा चुकी है (कई बार आ जा चुकी)।
आन—जान = आना-जाना।
आबा—गई = आना-जाना।
आबौ—जैवो = आना जन्म, जाना-मरण।
आरौ—तक्का = दीवाल में सामान रखने का स्थान-दीवाल में छेदनुमा स्थान।
आवन—जावन = आना-जाना।
आसों—पर = इस वर्ष अगली वर्ष या पिछली वर्ष।
ओड–गोड़ = सिर-पैर।
ओंदौ–सीदौ = उलटा, मुँह के बल।
औदो—सूको = गीला-सूखा।
इकतरा—तिजारी = एक दिन छोड़कर आने वाला ज्वर-हर तीसरे दिन आने वाला ज्वर।
इकलाई–धुतिया = खास अवसरों हेतु साड़ी-रोजाना की धोती।
इतराजी—राजी = असहमति-सहमति।
इतांय—उतायं = इधर-उधर, इस ओर उस ओर।
इतै—उतै = यहाँ-वहाँ, इधर-उधर।
इत्तान—उत्तान = दुबला-तन्दुरुस्त।
इने—उने = इनको उनको।
इमला–इमली = इमली का वृक्ष, इमली का फल।
इष्ट—अनिष्ट = जो/जिसे चाहा जाये-जो जिसे चाहा न जाये।
ई—ऊ = यह-वह, इस-उस।
ईतराँ—उतराँ = इस तरह–उस तरह।
ईसे—उसे = इससे–उससे।
ईहाँ—ऊहाँ = इहाँ-वहाँ।
उकतावौ—उकलावौ = किसी से बोर हो जाना, किसी से मिलने के लिए बेचैन होना।
उट्टी—मेर = बोलचाल बंद होना-दोस्ती।
उठवौ—बैठवो = उठना बैठना, सम्पर्क रखना।
उड़ौना–बिछौना = ओढ़न के वस्त्र, बिछावन।
उपटा—टकरावौ = पैर में अंगूठे उंगलियों का रास्ते के पत्थर से टकराना, शरीर या अंग को टकरा जाना।
उरजावौ—सुरजावौ = जड़ सहित पेड़ सूख जाना, ठूंठ में कोपल निकलना।
उरौतियाँ—चूअंना = खपडों की पनालियों से गिरती पानी की धार या बूदें जो कमरे के बाहर गिरें, छप्पर से टपकती बूंदे कमरे के भीतर गिरे।
उलटी—सूदी = झूठी-सही (बातें)।
ऊँचा—नीचा = ऊँची जगह-नीची जगह।
ऊचै—नेचे = ऊपर-नीचे।
ऊचो—नेंचौ = श्रेष्ठ-निकृष्ठ, अच्छा-बुरा।
एकउअल—दुबउअल = एक पर्त होना-दो पर्त का होना।
एरौ—सुनाबौ = आहट लेना-सुनाई देना।
ऐंड—बेंड = टेढ़े-टाप्टे।
ककरा—पथरा = कंकड-पत्थर।
कटसिर्री—कटान = आधा पागल-झक्की।
कड़बी—पिड़वौ = बाहर निकलना-भीतर जाना।
कनात—दिशा मैदान = शौचालय–खुले में शौच जाना।
कन्नारी—अलालिन = खूब काम करने वाली-आलसी कमजोर।
कमइया—खाउहाउ = धन अर्जित करने वाला-धन को बर्बाद करने वाला।
कमती—जास्ती = कम होना–अधिक होना।
करए—गुरीरे = कड़वे-मीठे।
करया—करयाई = कमर-कमर के पीछे का भाग।
कांप—तिल्ली = लम्बा तार छाता का, साइकिल के पहिया का।
करिया—धौरी = कालेरंग की श्वेत रंग की।
करेंके—हरां कैं = पूरी ताकत लगाकर-कम ताकत से।
करो—कोंरो = कठोर-मुलायम।
कलेवा—व्यारी = नाश्ता-रात्रि का भोजन।
कसतौ—ढिल्लो = कस रहा हो-ढीलाढाला।
कानौ—अँदरा = एक आँख फूटी हो वह-दोनों आँखें फूटी हो वह।
कुकरा—कूकर = मुर्गा-कुत्ता।
कुतकौ—मुतकौ = कुछ न देना-काफी मात्रा में।
कुतखांड—अटकर पेंडो = ज्ञान व अनुभव की अल्पता-अटकल के बल पर।
कूतां—तुलाकें = अनुमान से वजन कर क्रय करना-तराजू से तौल पश्चात् क्रय करना।
कुल्ला—मुखारी = पानी से मुँह की सफाई करना-दातौन से दाँत जीभ साफ करना।
कूंदा—फांदी = कूदना-लाँधना।
कोनें—सामूं = कोने में-समक्ष।
कौर—कौरा = ग्रास सूखी रोटी के टुकड़े।
खंसयाबौ—पुटयाबौ = गुस्सा आना, मनाना।
खटकौ—निर्दन्द = शंका, डर-निश्चिंतता (चिंता होना)।
खटांद—सडांद = खट्टे होने की गंध-सड़ जाने की गंध।
खटास—मिठास = खट्टा मीठापन, मधुरता।
खट्टी—मीठी = बुरी-अच्छी (बातें, यादें)।
खट्टौ–मिट्टां = खट्टे स्वाद वाला-मीठे स्वाद वाला।
खता—खतिया = फोड़ा-फुंसी।
खपन—झूरौ = दलदलनुमा कीचड़-सूखा।
खपबौ—जी चुराबौ = परिश्रम करना श्रम से बचना (काम चोरी)।
खरा—खरी = खरगोश, पुरुष / स्त्री।
खरीं—खोटी = चोखा शुद्ध-दागदार।
खरी—सीरी = अधिक सेंकी हुई–कम सिकी हुई।
खलाई—ऊंचाई = नीची जगह-ऊँची जगह।
खस्सी (खसुवा) = नपुंसक–पुंसत्वपूर्णता। –मर्दानगी
खांन—पियन = खाना-पानी, खाने पीने के संबंध होना।
खाबौ—सैवो = नष्ट करना-पालन पोषण करना।
खिरविरों—धनो = जिसके बीच-बीच में जगह हो, सघन।
खिर्रबिर्र—संजोबौ = अव्यवस्थित-व्यवस्थित करना।
खिसयांट—मनहार = गुस्सा-मनाना।
खीर—महेरी = दूध में चावल उबालकर मेवा डाल पकाई गई-मठा में
चावल उबालकर पकाई गई।
खुरमा—निर्दन्द = पकवान गुड़ मिले आटा के घी-तेल में सिके, चौकोर चपटे, टुकड़े आटा, मैदा के घी में पके शक्कर में पगे चौकोर चपटे टुकड़े।
खेलीं—खाई = खेल को गई बाहर, जिसने खेला हो-कई बार खेलने से अनुभवी (खा चुकी हो)।
खैबौ—पीबौ = खाना पीना-भोजन करना।
ख्वावौ—प्याबौ = खिलाना-पिलाना।
गंमइयाँ—शहरी = गाँव का निवासी, शहर का निवासी शहर संबंधी बात या वस्तु।
गतको—धौल थपरिया = मुक्का-थप्पड़।
गदा—हुश्यार = मूर्ख-चतुर।
गमयाउ—शहरू = गाँव की-शहर की।
गमराेई—महाजनी = गंवारपन-सुसंस्कृत।
गरऔ—हरऔ = वजनीकाय-कम वजन का।
गरमावौ—सिरावौ = गर्म करना-ठंडा करना।
गरेंट—अदभरी = गले तक भरी–आधी भरी।
गाड़ी—घोड़ा = सवारी गाड़ी–सवारी वाला घोड़ा (संयुत्यार्थ सवारी का साधन)।
गानो—गुरिया = आभूषण-माला जिसमें गुरिये हो।
गिंस—सीदौ = बिना पकी भोजन सामग्री काफी मात्रा में भोज हेतु बिना पकी सामग्री, एक व्यक्ति के लिए पंडित को दान देने को।
गिलयाबौ—मांडबो = कंडे आटा को पानी लगाकर नरम करना-पानी डालकर आटा सानना।
गुदगुदारो—चंदा घाई = चेचक या अन्य चिन्हों से भरा चेहरा-चन्द्रमा जैसा सुन्दर।
गुपत—जगजाहर = जिसे छिपाया गया हो, जिसे सभी जानते हों।
गुर—गुरयाई = शिक्षा, गुड़सूत्र-मिठाई।
गुर्र—गुर्राबो = मनस्थ बैर-बड़बड़ाना।
गुलगुला—मंगौरा = आटा गुड़ की पकौड़ी-पिसी दाल की पकोड़ी पकौड़े।
गुलगुलाबौ—रूआबौ = हँसाना-रुलाना।
गेरो—उथरो = गहरा-उथला।
गोड—मूंड = पैर-सिर।
गोली—गट्टा = दवा की छोटी गोलियां–बड़ी गोलियां।
घंटी—गड़ई = लघु लोटा-बड़ा लोटा।
घटिया—बढिया = निम्न प्रकृति का, उत्तम गुणों से युक्त।
घटोतरी—बढ़ोतरी = क्रमशः घटता जाना- क्रमशः बढ़ते जाना।
घनो—बिरो = सघन–दूरदूर।
घर—दोर = भीतर से–बाहर तक।
घर—बखरी = कमरा–पूर्ण मकान।
घरके—घरसे = पति-पत्नि।
घरा—आरा = वस्तु का नियत स्थान-दीवाल में बना।
घरी—घंटा = घड़ी, बजे की सूचना वाला घंटा-घंटा भर का समय।
घरीक—घंटाक = एक घड़ी तक–एक घंटे तक।
घरौट—परौस = घर के संबंध-पड़ोस।
घरू—पराई = घर की (निजी)- दूसरों की।
घलोय—मरामल्ल = लाठियां बंदूक चलना-मारपीट होना।
घूम—घुमारौ = मोड़-चक्करदार।
घाट—घटोइया = तट-प्रेत।
घामों—छांयरो = धूप-छांह।
घामौं—जुंदइया = धूप-चांदनी।
घाव—घत्ता = चोट से कटाफटा अंग स्थल-बार बार की रगड़ का निशान व स्थान।
घुड़ला— छुल्ला = पीतल या लकड़ी से बना घोड़ा-शक्कर के बने विभिन्न आकार।
घूंसा—ठूंसा = मुट्ठी बांध छिंगुरी के पास के स्थान से मारना-मुट्ठी की उंगलियों से मारना।
घेर–घौर = घेरे की लम्बाई केलों का पूर्ण गुच्छा जो पेड़ में लगता है। झूठे बोल-झूठी क्रियायें।
धैला—मटका = (दोनों मिट्टी के बर्तन) संकरे मुँह का कलश आकार का बर्तन-बड़े मुँह का बड़े पेट का बर्तन।
धोकबो—बिसराबौ = याद करना–भूलना।
चकवौ—जरवौ = अंगारे का तप्त-वस्तु से क्षण मात्र का स्पर्श, आग से जलना।
चउअर—अठउअर = चार पर्त का-आठ पर्त का।
चनकट—झापड़ा = थप्पड़-तमाचा।
चपिया—चुकरिया = मिट्टी निर्मित दूध-दही रखने की चौड़े मुँह की छोटी गागर / मिट्टी निर्मित दूध-दही रखने की घंटी के आकार की डबुलिया-घी रखने की।
चमीटवो— = पकड़ तगड़ी करना।
चल्ली—चल्लां = आटा आदि चालने की छोटे-बड़े आकार का छलना।
चानें—नईचाने = चाहिए-नहीं चाहिए।
चित्त—पट्ट = पीठ के बल होना-पेट के बल होना।
चिनार—अनचिनार = परिचित-अपरिचित।
चिरई—चिरवा = वस्तु के जोड़ में त्वचा का दब जाना-गाड़ी या अचानक धचके में पड़ना सवारी को कमर में नीचे होकर लगना।
चिरी—फटी = कागज या कपड़ा को बीच से दो भाग / कागज या वस्त्र के कई भाग हों।
चीं—जीतबो = हार जाना-जीत जाना।
चीं—चपाट—सांतयाई = हल्ला-गुल्ला-शांति।
चीर—फार = चीरना-फाड़ना, आपरेशन के अर्थ में।
चैंन—बैचेन = आराम-व्याकुल।
चोखा—दगैल = शुद्ध-मिलावटी।
चोट्टा—चौटू = चोर पूरुष/स्त्री।
छबला—टुकनियाँ = बड़ा टोकरा-टोकरी।
छल्ला–बिछिया = हाथें की उंगली के आभूषण- पैरों की उंगली के आभूषण।
छिनार—पतिव्रता = कई पुरुषों से संबंध रखने वाली स्त्री-पति परायणा पत्नि।
छिपी—छिपिन = दर्जी-दर्जी की पत्नि।
छिमा—डंडा = क्षमा-दण्ड।
छींकबौ = अपशकुन करना छींकना- अपान वायु खारिज करना।
छी—छी = निंदा करना-प्रशंसा करना।
छीप—छिपनी = शीप (जिसमें मोती होता है) छेददार शीप जो छिलनी के रूप में प्रयुक्त होती है।
छुतया—सपरें खोरें = छूत का होना-छूने योग्य न होना / स्नानादि करके पवित्र हो, छूने योग्य।
छुबवौ—बरकबौ = स्पर्श होना-स्पर्श से बचना।
छूत—अछूत = छूने योग्य अस्पृश्य।
छोंकबौ—बगार बो = सब्जी को मसालों युक्त कड़ाडी आदि में तलना-बनी
दालों को जीरा, हींग, लौंग, आदि का तड़का लगाना।
जंगला—खिरकी = बगैर किवड़ियों की खिड़की-किबरियादार खिड़की।
जड़कारौ—जेठमास = शीतऋतु / ग्रीष्मऋतु।
जनीं—जने = औरतें पुरुष, घरवाली-घरवाला।
जबर—दूबरो = मोटा-ताजा / दुबला-पतला।
जबरा—जबरू = जबरदस्ती करने वाला पुरुष-जबरदस्ती करने वाली महिला।
जमबो—उड़बो = बीज का अंकुरित होना, बीज कान जमना।
जमा—खर्च = पूंजी व्यय खाते में जमा-पूंजी खर्च करना।
जस—अपजस = यश कीर्ति नाम होना, बदनामी होना।
जां—तां = जहाँ-तहाँ।
जॉंतो—जतरिया = पहले चलन में रहे गेहूँ पीसने का पत्थर विशेष आकृति के पाटां वाला घरू साधन।
जाड़ौ—गरमी = जाड़े, ठंड के दिन–गर्मियों के दिन।
जात—कुजात = ऊँची जाति-नीची जातियाँ।
जादां—थोरौ = अधिक-कम।
जानमानके—अजाने = जानबूझकर, अनजाने में।
जानी—मुसेल = स्त्री-पुरुष।
जिमाबौ—जेंवो = भोजन कराना-भोजन करना।
जूड़ी—ताप = ठंडी का बुखार-सामान्य बुखार।
जूड़े—ताते = ठंडे, गर्म-पुराने, नये।
जेंवनार—उपास = पंगत, भोजन-ग्रहण न करना।
जेंवो—अचेबौ = भोजन करना-हाथ धोना।
जैसे—तैसे = इस प्रकार से उस प्रकार से सम्मिलित अर्थ-किसी प्रकार से।
जोग—विजोग = जुड़ना मिलना-बिछुड़ना।
जोग—कुजोग = अच्छा योग, बुरा योग, संयोग अच्छा समय-बुरा समय।
जोरबो—घटाबो = जोड़ निकालना। करना-बाकी
जोरसे—हरईहराँ = शक्ति के साथ-धीरे-धीरे।
जयोरा—ज्योरिया = रस्सा-चारपाई बुन्ने की रस्सी।
झंझरी—झंझरा = छेंदो वाली पत्थर की जाली-छोटी बड़ी जाली।
झट्टई—झेल = शीघ्रता-देरी।
झड़ास—मुतस = टट्टी करने की इच्छा-मूत्र किर्जन करने की इच्छा।
झरप—परदा = चिलमन जो पारदर्शी न हो-और जिसमें से दिखे नहीं।
झरां—झारो = सबके सब-एक भी शेष नहीं।
झामझड़प—झाड़ना = डरवाना, भयभीत करना, डाटना, फटकारना।
झुण्ड बिदार—पटरियां पारै = बाल बिखेरे-बाल संबारे हुए।
झुरपटो—झुलीपरें = सुबह का समय शाम का समय।
झेलझाल—दन्नदीना = देर का होना–तुरंत।
टंच—ढिल्यमुतान = तैयार-ढीलाढाला।
टकासौ—मौदेखी = बिना संकोच, लिहाज के कहना-सामने वाले के अनुसार कहना।
टपरा—टपरिया = खम्बों पर बना सभी ओर खुला छप्पर, अस्थायी आवास।
टिकना—टिकबौ = ठहरना- लगातार रहना।
टिरौआ—बुलौआ = भोजन के लिए टरना-बुलावा भेजना।
टींका—पटौ = तिलक करना-भेंट में वस्त्र देना।
टींका भांवर—द्वारचार = पाणिग्रहण संस्कार की रस्में बराते व दूल्हे का दरवाजे पर स्वागत।
टुंगाबौ—गहाबो = थोड़ा थोड़ा देना-पूर्ण सौंपना।
टुकयाबौ—चोट मारबौ = धीरे धीरे धक्का मारना-ठोकर देना करारी ठोकर या धक्का।
टुटपुंजया—धनीमानी = कम पूंजी वाला-अमीर।
टुलको—छिद्दो = छोटा छेद-बड़ा छेद।
टूंका—सबरी = टुकड़ा/अंश-सम्पूर्ण।
टोटी बड़त—घाटा कमी = वृद्धि-अधिकता / नुकसान, कमी।
ठक्काठाई = ठकुरसुहाती / लागलपेटी/लिहाजू, निः संकोच /सहीसही संको चपूर्ण मूँहदेखी।
ठडूला—मालपुआ = दालों के आटा को मिलाकर बना पूड़ी आटा व गुड़
के घोल को तैयार कर सेंकी गयी पूड़ी।
ठांव—कुठावं = सही स्थान-गलत स्थान।
ठांसबी—ठूसबो = दबादबाकर दबाना-बलपूर्वक भरना/थोड़ी जगह में अधिक भरना।
ठुकबौ—ठोकवौ = मार खाना-मारना पीटना।
ठेंसा—ठूँसी = दबादबाकर भरना / डालना सामर्थ्य से अधिक भरना।
ठोल—ढुक्क = पैर के पंजे के अग्र भाग से ठोकर मारना-पैर पंजे के
बगल बाले भाग से जोर से किसी को मारना।
डंडा—डंडी = तीन हाथ का बांस का टुकड़ा-छड़ी या तराजू की डंडी।
डँगरा—कलींदौ = खरबूज-तरबूज।
डेंला—साजो = कड़ाही में सेकने के बाद बचा तेल-प्रयुक्त न हुआ तेल।
डगर—मगर — ठैरी = चलायमान- स्थिर।
डिंगरा– ढ़ेला = बड़ा टुकड़ा-छोटा टुकड़ा।
डील — डौल = शरीर-आचरण।
डुकरा —डुकरिया = वृद्ध–वृद्धा।
डोला — पालकी = कहारौं द्वारा कंधो पर ढ़ोने वाली-परदा वाली स्त्री की चारों ओर से बंद पालकी /दूल्हा को या रावराजा को कहारों द्वारा कंधो पर ढोने वाली आसन युक्त साधन।
ढंडे — चढ़ाई = ढालदार मार्ग उँचाई की ओर का मार्ग।
ढडक — पैला = कभी इस पाली-कभी उस पाली में जाने वाला।
ढलाचला — चालढाल = जीवन यापन आचरण।
ढिलयाबौ — कसबो = ढीला करना-चुस्त करना।
ढूंढा — सिंगया = बिना सींग पूंछ का बड़े बड़े सींधे वाला, डम्पलाट-ठिंगू-विशालकाय छोटे कद का।
तनक — मनक = थोड़ा – मनचाहा।
तनतन — खूबखूब = थोड़ा-थोड़ा / बहुत-बहुत।
तर उपर — तरा उपर = नीचे ऊपर-संयुक्त अर्थ एक के बाद एक लगातार होना।
तरांतरां एकतरां = तरह-तरह के- एक तरह से।
तलफ — तलफना = वस्तु के भोग की इच्छा-दुख या दर्द की तीव्रता से बेहाल होना।
ताजौ — बासौ = अभी-अभी का, बीते कल का।
ताती — बासी = ताजी तुरत समय की-बीते कल की बनी।
तिगड्डा — चौगड्डा = तीन मार्गों का संगम स्थल– चार मार्गों का संगम स्थल।
तींती — सूकी = गीली-सूखी।
थार — थरिया = कोपरनुमा बड़ी थाली-भोजन करने की थाली।
थुडू — थूथू = निन्दिता होना-अपमानित होना।
थोरो बिलात /कुल्लू = थोड़ा-काफी मात्रा में पर्याप्त।
थौल — थपरिया = हल्का तमाचा-थपकीनुमा मारना।
दुदार — उसरिया = दूध देने वाली– जो अभी गाभिन हुई हो।
दुबको — निकरबो = छिपना-निकलना।
दुला — दुलैन = दुल्हा/बर दुल्हन/बधु।
दूसरा — तीसरा = दूसरी बार-तीसरी बार।
दुरिया — दौरिया = बांस की खपच्चियों की सघन बुनाई वाली मजबूत घेरे की टोकनी-तसलानुमा बांस की सीकों की बुनी दौल्ला के आकार की टोकरी।
दुक्ख — सुक्ख = दुख-सुख।
दई — दानव = देवता-राक्षस।
दई — लई = दी, ली।
दब्बू — दमंग = डरपोंक-उत्साह भरा /निडर।
दमरी — छिदाम = पुराने पैसे का आठवाँ भाग वाला सिक्का, पुराने पैसे का आधा मूल्य का सिक्का।
दरद — पीर = दर्द, पीड़ा।
दरस — परस = दर्शन/देखने को मिलना, स्पर्श छूकर देखना।
दवा — दारू = औषधि-मदिरा।
दांय — सांतई = ऊधम-शांति।
दादरे — सोहरे = बाद में आने पर खुशी भरे उत्सव के गीत-जन्मोत्सव के गीत।
दान — दायजो = पुण्य अर्जन हेतु धन देना-विवाह में दी गयी वस्तुएं
दायने — डेरे = दाहिनी ओर बांयी ओर।
दारक —घरीक = क्षण भर-घरी भर।
दिखउअल — असल = दिखावटी-असली।
दिनछिन — दिनउए = संध्या-दिन रहते।
दिनाउ — नऔ = पुराना-नया।
दिया — देउलिया = माटी का दीपक-माटी के छोटे छोटे दीपक।
दिसावरी — देसू = दूसरे देश की उसी क्षेत्र की।
दूदन — पूतन – फरौ = दूध से–पूत से सम्पन्न होना।
दैनों — देनगी = ऋण-विवाह में वरपक्ष द्वार व्ययों का भुगतान।
दैबो — लैवो = देना-लेना।
दौंचवो — दबाबो = नीचे लिटा कर ऊपर चढ़ना शक्ति भर दबाना।
दौंदरया — सीदरो/सांतो = ऊधमी-सीधासादा।
धना — धनी = पत्नि-पति।
धन्नासेठ — दरिद्र = अमीर–गरीब।
धोती — अंगोछी = परदनियाँ–तौलिया।
नुंगरौ — लांगर = चूनर-लहंगा।
नन्नै — बड़ों = कम उम्र का बालक-बड़ी उम्र का बालक।
नरवा — नरइया = नाला-नाली।
नायं — मायं = इधर-उधर।
निंगबौ — धौरबो = चलना–दौड़ना।
निकासू — मौंचायनों = विवाह हेतु वर का घर से निकलते समय महिलाओं से टीका कराकर प्रस्थान करना-विवाह के बाद बधु का घर पर प्रथम आगमन के समय महिलाओं द्वारा मुँह देखना व भेंट देना।
नीचट — पुलखर = ठोस-पोला।
नुनखरौ —गुरीरौ = नमकीन स्वाद बाला-मीठे स्वाद वाला।
नैबो — हांकबौ = बैलों के गरदन पर जुआरी रखना-पट्टा बांधना चलाना।
नोंचना — पांचो = उंगलियों से नाखूनों से नोंचना।
नौरा — नौरिया = नेवला-नेवली।
न्यारो — सोंज = बंटवारे के बाद अलग रहना, सम्मिलित इकट्ठे।
पुरानों — नओ = काफी दिन पहले-नया, सद्यः ताजापन लिए हुए।
पैलां — पिछारु = पहले-बाद में।
फटकारबौ — दुलाराबौ = डाट देना-प्यार करना।
फुसकबौ — हॅसबो = रोने की स्थिति-हँसने की स्थिति।
बजनी — हल्को = भारी भरकम-हल्कापन।
बतावौ — जताबो = बतलाना-अनुभव कराना हावभाव से।
बारे — सियाने = बचपना-समझदार।
बुद्दू — तेजरर्रार = अक्ल का मंद-बुद्धिमान।
ब्याई — कलेऊ = शाम का भोजन-प्रातःकालीन नाश्ता।
भीतरी — बाहरी = अन्दर की ओर – बाहर की ओर।
भौरई — संजा = प्रातः कालीन बेरा- शायं कालीन समय।
यारी — दुश्मनी = मित्र, शत्रु।
योटिया — बकटौ = उंगलियों में दो नाखूनों से त्वचा पकड़ना-पूरे हाथ से पकड़ना।
रेंगबो — भगवो = धीरे-धीरे चलना, तेज दौड़ना।
रोबौ — गावौ = रोना-गाना।
लम्बो – छोटो = लम्बाई लिए हुए-छोटा कदवाला।
लरका — बिटिया = बेटा पुत्र-पुत्री, लड़की।
सगुन — असगुन = शुभ संकेत मिलना-बुरे संकेत मिलना।
सिआनों — मूरख = समझदार-ज्ञानी बुद्धिहीन।
सुतंत्र — परतंत्र = स्वाधीन-पराधीन।
सुस्त — दुरुस्त = आलस पूर्ण कार्य-व्यवस्थित कार्य।
हरौ — लीलौ = हरा रंग-लाल रंग।
हाँन — लाभ = नुकसान होना-फायदा होना।
हारवौ — जीतवौ = हार, जीत-विजय होना।
बुंदेली का अपार पर्यायवाची शब्द भण्डार
- अंजली — अंजुरी, खोवा, चुल्लू, चुरूअन, चुरू, अंजुरिया।
- अंधेरा — अंदयारौ, इंदयारौ, अंदेरी, अंदरखुक्क, अंदरघुप्प, घटाटोप, सूझ न परबौ।
- अच्छा — अच्छौ, नेक, नीकौ, भलौ, उम्दा, बढ़िया, सई, साजौ, नौनौ, हीरा सौ, सुंदर, नींक।
- अधिक — ऐंन, मुल्क, खीब, खूब, खूबई, बिलात, हरक, कसकें, जमकें, मुलक, भौत, अगरौ, बेसी, मुलक्कौ, जासती, जादा, मुतकौ कुलकौ, अतकारो।
- अधोवस्त्र — परदनियां, पादनी, धोती, धुतिया, पंचा, लुंगी, तहमत, लुगुरिया, मछा, पटका।
- अन्यत्र — अंतरंग, औरजगां, कऊंऔर, औरकउं, दुसरन कें, कितऊंऔर, औरगांव।
- अव्यवस्था —भर्रो, भर्रे झाई, धांदली, धांदलगरदी, अन्धेर, अंधेरखातौ।
- अभाव — कसर, कोरकसर, कर्मी, तंगी, तंगहाली, तरसबौ, ललकबौ, ललच्याबौ, जुरो नई, न जुरवौ।
- अस्पताल — शफाखानों, दवाखानों, हस्पताल, बैदगारौ, बैदघरै, हकीमघरै, हासपिटिल।
- आटा —आटौ, चून, कनक, पिसान पिसो, पिसोभओ, ऐन महीन, पिसना।
- आडम्बर — पुमारौ, ढकोसलौ, फट्टे वगरायौ, ढोंग-धतूरौ, दिखावा, छलौ, छल, ढोंग, दिखावा।
- आतंक — डरवावौ, अत्त, अत्याचार, ज्यादती, जादती, दमचौरौ, अनाचार, डर, भय, विभचार।
- आधिक्य — ऐंनइँ, जास्ती, धचड़कें, धचेड़कें, जीभर कें, मनभर, कत्ती कौ, खूबडखूब, हद्द, हद, अतकारौ।
- आपका — रावरौ, अपनों, अपुनकौ, तुमाओ, भवदीय, श्रीमानकौ, आपकौ, तुमारौ।
- आभास — भ्यासबौ, व्यापगई, भांपवौ, अंदाजौ, भासवौ, ताड़बौ, मनबोलो, आत्मा बोलपरी, अटकर परबौ।
- आयु — उमर, आबर्दा, उम्मर, जिन्दागानी, जिन्नगानी, बय, पन, बैस, बयस, पनौं।
- आलिंगन — गोफा, गुफयाबौ, जकरबौ, भुजनकसबौ, जकड़बौ, लिपटबौ, चिपटाबो, बाहन-भरबौ, अकवार।
- आश्रित — आसरें, भरोसें, बलपै, मत्थें, माथें, भरन भरे, सैपायें, दम पै, सैपै, ठसक, ठसकौ।
- इच्छा — मंशा, मनसा, इक्छा, रूच, इच्छाया, रूचि, मनहौबौ, शौक, रूचि, ईहा, चस्का, चस्कौ साकौ।
- इधर–उधर — नाँ-ताँ, नाँय-माँय, इतॉय-उताँय, इतै-उतै, आजू-बाजू, हियाँउओं, अगल-बगल।
- ईर्षा — ईखा, जरबौ बरबौ, जरन-वरन, जरत्वाई, बैरादाव, बैरफांद, बैरभाव, बैर।
- उजाला — उजयारौ उजेरौ, रौशनी, उजास, पिरकास, जगर-मगर, निधा तरें आउन, दिखानलगबौ, प्रकास बगरबौ।
- उत्सव — समैया, परव, काज, त्यौहार, व्यावकाज, सजाधजी, रंगबरसबी, उराव कौदिना, औसर काज।
- उपाय — उपाव, उमंग, चाव, उछाव, उछाह, शौक।
- उपाय — उपाव, जुक्ती, जुगत, जुगाड़, रास्तौ, विदी, अनोय, तिकड़म, तजबीज, टिप्स, तुक्का, नटागटा, अनोपनान।
- उमदा — छट्टा के, नवेरकें, छांटे, साजे, बढ़ियाँ, अव्वल, अच्छौ, उत्तम, बड़कें, श्रेष्ठ।
- एवज में —बत्तल, कॉतीं, एवजी, पूरती, खानापूरी, ऊजगां, उनकी जांगा, बदलें।
- ओर — कोद, कुदई, कोदीं, ठाँई, तरफी, तरह ताँइँ, तइँ, तरप, तरपी, दिसा, पच्छ।
औचित्य — तुकतान, तुकतर्ज, ई में, इतिताई, बाजवी।
- कठिनाई सें — बरयाके, मसाकें, जैसे-तैसे, रामराम करकें, बरयावट कें, सांसत सें, दिग्गतन सें, कष्ट सें, कठनई सें।
- कम – ज्यादा — घटाबढ़ी, कमोवेस, घटबड़, कमाबड़ी, कमबउ, कोरकसर।
- कमर — करया, करयाई, कम्मर, कुली, पुँदेही, नितम्ब, कटि, करिआई।
- करना करबौ, कराधरी, करवौ धरवौ, करो-घरो, काम-काज, करबौ धरबौ, करत-धरत।
- कर्जा — करजौ, रिन, करजा, कडुआ, उदारी, रिहन, गानों-धरबौं, काड़बौ, काड़मूँसकें, रिण।
- कालिख —बदनाँमी, दाग, कारख कारौंच, कराा, कारिख, अपजस, तुहमत, दोष, दोख, काजर रेख।
- कितने — कितेक, कित्ते, कित्तान, कै, कैटो, कै ठड्या, कइयक, कितनउँ, कितनई।
- किन्नर — खसुआ, खस्सी, खसिया, जनखा, पिंदवा, पींदा, नचैयागौचा, बदिया, बीचवारे।
- के लिए — कों, खाँ, खातर, लानें, काजें खातिर।
- क्रोध — खुंस, खुंसयाबौ, तैश, ततोश, नकरयाबौ, चचेंड़बौ, ताव, डपटवौ, डांटबौ, नाराजी, गुस्सयाबौ, लालपीरोहोबो करेबोलबौ, फँसबी, गुर्राबौ, आँखें दिखाबौ, तेहा, गुस्सा।
- कुछ नहीं — कुतका, सिंगट्ट, सिंगट्टौ, बाबाजीकौ, कछू नइँ, तिलीलिली, ठेंगी।
- खड़ाऊ — चटपटीं, सिलीपट, खटपटियां, चटपटियां।
- खींचना — खेंचवौ, निकारवो, काड़बौ, झींकवौ, तांनबौ, तानातूनी, खेंचातानी।
- गपशप — गप्पें, हवाँई, झब्बूकीं, बेसिरपैर कीं, अवांईतवाई, हांकौ, मउआमूसर कीं, अउअल, फजली।
- गर्भ — पेटसें, पेटरैबो, पांवभारी, रैगव, टैरगओ, बालबच्चों रूकवौ।
- गर्म — तातौ, तत्ता, तताई, तप्त, ततूरी, गरम, गर्मयानौ, गर्मयानों।
- गाय — गौ, गड्या, गौमाता, गऊधन, गौधना।
- गाली — गारीं, गारियां गालियां, गरयाबौ, अनूतरें,
कोसबौ, गाली-गलोच, बदजुबानी, मन बिगार, मों गंदौ करबौ।
- गुफा — चुल, माँद, घोंघ, खोह, खोह, कंदरा।
- ग्रीष्म — गर्मी, गर्मियॅन, जेठमाँसन, जेठमाँस, लू लपट में।
- गंदा — गंदौ, घिना, दलुद्दरी, भिनका, भिनकांयदौ, मलच्छी, म्लेच्छ, अघोरी, घिनहा, घिनट्टा।
- घबराना — अखल-बखल, जी चुरवौ, अकुलाबो, उकलाबौ, आकुल-व्याकुल, उकताबौ, जी उचटवौ।
- घरोंदा — घरघूला, घरभूला, घरूला, घरगूलौ।
- चकराना — तिलमिला छूटबौ, इंदयारौ, छाबौ, अंदयारो उतरबरौ।
- चतुरता — चतुराई, हुसयारी, बुधमानी, अकलमंदी, दिमाक दौरबौ, चतुरई, बुद्धमॉनी।
- चलना — निंगबौ, चलबौ, डगरवौ, पाँव फरारे करवौ, रंगवौ, पदवौ, निगवौ, सरकबौ, खिसकबौ, रस्ता-नापबौ, चला फिरी।
- चलाना — पुरैटवौ रगेदबौ, खदेड़बौ, पदेड़बौ, पछोटी, पछेटा, रपेटबौ, खरखेटवौ, पाछौ करवौ, हाँकबौ।
- चाचा — कका, ककाजू, कक्का, काका, कक्कू ताऊ, नन्ना, चच्चा।
- चाची —कक्को, काकी, कक्की, ताई, चच्ची।
- चाँटा — धैलथपरिया, चनकट, तमाचा, रपाटा, रापटौ, तड़ाको, तड़ाका।
- चापलूसी — मों देखी, हाँ में हाँ, खुशामद, मख्खनबाजी, चिकनी-चुपरी, कैबो, हाँहजूरी, चिकनपट्टी, मिठबोलपनौ, चटकारी, चाटुकी, बढ़ा-चढ़ा के कैवो।
- चारपाई — खाट, खटिया, खटोली, चरपड्या, मचिया, माचा, खटुलिया, पलका, पलंग, सेज, सइया।
- चिढ़ाना — चिराबौ, तिनगावौ, छुड़काबौं, चिड़ावौ, चिड़कांबनी, तंगावौ, खुद्रौ, चोंटयावौ।
- चिन्ता — सोस, फिकर, धड़कौ, साँसत, चितभंग, फिकरें, सोच विचार, सोसन, सोच, सोचन।
- चुपचाप — मोंगे-मोंगे, मनइँमन, अपनेऐरें, चुपके चुपकें, सरोदे में, सरौदे, सान्ताई चूँ चपाट, बाला कालई, मसगई, मसकउं, सन्नाटे में, बालां, चुप्पी, चिमाई, चिमाकें, चिमाबौ।
- चूहा — चुखरा, चुखरिया, चौंखराँ, मूसक, चुखरवा-चुरवरियां, चुखरो।
- चोर — भँड़या, चोट्टा, नकवजन, दसनम्बरी चरचटया, बदमांस, चपैया, झड़ैया।
- चोरी —भँड्याई, अफरातफरी, चपावौं, गोलकरवौ, सटकावौ, चुरावौ, उड़ावौ, मारवौ पारकरबी, झाड़बौ, हांत साफ करबौ, चपेटबौ, झाड़बौ।
- छड़ी – लबुदिया, बेंत, सांटी, छरी, पेनिया, लटिया, टेंकनू, लट्टी, संटिया।
- छिपाना — दुकाबौ, लुकाबौ, परदा, दुरावौं।
- छेद छेदौ, छिद्दौ, छिदा, टुलबी, टुलका, तक्का, तक्कौ, तका बेदौ, टुकलो, टांका।
- जल — पानूं, नीर, वारि, पानूं, पनियां, पानी।
- जलाना — सिलगावौ, बारबौ, जरावौ, लेसबौ, सुलगाबी।
- जल्दी — उलात, उलायते, ब्यारै, सौकारूँ, झट्ट, झट्टई, झट्टफट्ट, तुरंत, तुरतई, फौरन, फटाफट, भड़भड़ी, आनन-फानन, तड़ाक-फड़ाक।
- जीवन — जियन ज्योरिया, जिनगानी, जीवौ, जिन्दगानी, जिन्नगानी, जिन्दगी।
- जूता — पनइयां, मुड्डा, बूट, पनहीं, उपानह।
- झगड़ा — तूतूमैमैं, किड़ीकोंको, बतवड्याव, न्यॉव, निआव, झगरा, झांसौ, झंझटयाई. अराझाँसौ।
- ठिगना — खुद, खुट्टबौ, खूँटवौ, टोका, टोकबौ, असगुन, खुट्ट करबौ, टोकाटोकी।
- डंडा — डँडोंका, डेंड़पा, लट्ट, लट्टी, घांटा, सोंटा।
- डरना — डरवौ, ससकवौ, अकबकाबौ, फूँद सरकबौ, मूंतयावौ, पांदफटबौ, ठाँड़े सूकवौ, सपेतपरवौ, धक्क उड़बौ, छक्के छूटकौ, रोंगटे खड़े होबो, साँस फूलबौ।
- डोरा — तागा, तागो, धागा, धागौ, डोर, डोरी, रेसा।
- तनिक — तनक, तन्नक-मलन, थोरी, थौरौ, चुटूसौ.
नाँवखों, बार-विरोबर, नाँव के लाने, नॉवचार।
- तनी — धज्जिया, धज्जी, फित्ती, फसी, पट्टी।
- तमाचा — झागड़, झापड़ौ, थापड़, थप्पड़, लपाड़ा, चनकट, थपरिया, लापड़, लापडौ, लपाड़ौ, चांटा, रांपट, रापटौ।
- तर करना — तरकैटी, चपोरवौ, चकचकौ, तरबतर, चिपचिपौ, सरबोर, सराबोर।
- तलाशी — नंगाझोरी, छछोबा, छचोबा, झरयावौ, नंगयाबौ।
- ताकत से — भरतागत, कसके, जोरसें, तानके, करें कें, जोर लगाकें।
- तोता — सुआ, सुअना, पटटू, चित्रकोटी, सुग्गा, मिटटू, गंगाराम, सुअटा।
- तौलिया — साफी, स्वाफी, स्वापी, अंगोछी, गमछा, अंगुछिया, पटकी।
- थकित — थकेमाँदे, हारे थके, थकवाय चड़बौ, थकांद, थकयाए, थकन भरे, थकौ।
- थैला — झोरा, खलता, खल्ता, झोरा, बसता।
- थोड़ा–थोड़ा — तन-तन, तनां-तनां, तनक-तनक, थोरी-थोरी, थोरो, तिलतिल।
- दया — दूसा, तरस, पसीजवौ, पिगलबौ, करूना।
- दर्पण — सीसा, तक्ता, तकता, ऐंना, आँईना, तगता, शीशा, आरसी, मुकुर।
- दबजाना — चिपलबौ, पिचलबौ, कुचरबौ, खुदबौ, दबबौ, नेंचूआबौ।
- दर्द — पीड़ा, पीरा, तड़कन, पीर, कसाली, पिरौतौ, चट चींबन, फूटन, ऐंड़न, विथा, कसकन, किलपन।
- दाँत से काटना — चबा खाओ, खकलबौ, खकलखावौ, चवाबौ, चींथबौ, चींथडारो, चगलावौ, मुरावौ, काट खाओ, काटलओ, चबड़बौ।
- दांह संस्कार – अंतिम संस्कार, नकरिया दैबौ, जरबौ, बारबौ, दाहलबगावौ, अग्निसंस्कार, किरियाकरम्, पंचतत्वन मिलाबौ, आगी छुबाबौ, माटी ठिकाने लगाबौ, पंचनकरिया, क्रियाकरम।
- दुखी — दुखयारी, दुखयारौ, दुखभरी, बिलखत दुखभरो, रूऔयदी, रीनीं, रीनैं, रूबइआं, रोनौं, रॉउन।
- दुर्बल — टिटइं, टुटउंटू, पकुआं, दूबरी, दूबरे, दूबरौ, सुकट्ट, सुकट्टा, सुकट्टू, मरियल, मारियां, मरगुल, मुरगल्ला, मरगुल्लू, मरोसो, मरीसी।
- देखना — हेरबौ, तकबौ, ताकवौ, चितवौ, निहारवौ, विसूरबौ, दीदार निधाकरबौ, निघादैबौ, नजर डारबौ, टकर टकर, नजरबौ।
- देखादेखी — चड़ाचड़ी, होड़, नकल, बिरोबरी, होड़ाहोड़ी, चुनांद, सरीगत।
- देर —झेल, अबेरा, कुबेरा, बेरा, दार, अबेर, देरी, कुल्लदा, कुल्लदेर, देसबसेर, बिलम्ब, ढील-ढाल, झेलमझेल, झेलझाला।
- दौड़ना गदबद, कुर्रु, धौरवौ, फर्राटौ, पदड़का, तिराट, रफूचक्कर, चम्पत, सरपट, उड़नछु पदौड़।
- दृष्टि — हेरन, तकन, निहारन, देखन, नजर, चितबन, निघा, निगाह, निहेरन, चितोंन, दीद।
- दु:ख — विषाद, कष्ट, पिरातौ, तकलीब, पीरा, शोक, रंज, दरद, तरफन, गम, दुक्ख।
- धरती — धरा, वसुधा, धरनी, बसुन्धरा, भूम, भू, भूमात, जनमभूम, देवभूम।
- धक्का — धका, धक्कौ, ढका, ढकौ, धक्कामुक्की, धकयाबौ, ढक्का, ढकयाबौ ढक्कौ, हुरका।
- धूल — भस, रगदा, धूरा, गर्द, गरदा, धूर, धूरि, करकट, खाक।
- धोती जनानी — धुतिया, साड़ी, इकलाई, सारी, अंगोछा, धुत्ता, साड़ी।
- निकालना — निकारबौ, काड़बौ, काढ़बौ, बायरें करबौ, निकासवौ।
- निकलना — निकसवौ, निकरवौ, कड़बौ, कड़ भगवौ, कढवौ, बांयरें करवौ, बायरें होवौ।
- नष्ट — खतम, तासनास, रनबन, नांस, बट्टठियां, सत्यानास, सम्पटस्वाहा, विनाश, खटवौ, उकठवौ, बिलाबौ, चौपट, चौपटा, चौपटौ, नामनिशान मिटबौ, वाराबाट।
- नाई — नाऊ, नउआ, खबास, छत्तीसे, नापित, बार-बनउआ, खबासजू।
- निन्दा — कुबड़ाई, बुराई, निंदरबौ, बुराई, अपजस, निरादर, अपमान, अनादर, अपकीरत।
- निवास — रहस, मुकाम, रूकबौ, टैरबौ, नसीको घर-बखरी, बसीगत, अतौपतौ, बसवौ, रहन, अतापता, रत, रहत।
- निर्वाह — नँदारौ, नदावरौ, निबावरौ, निभवौं, निवाहवौ, निबावौ, निभाव।
- निरूत्तर — झंप्पी बंदबौ, संटमुंट, मौ सिमवौ, अवाक, वाक न फटवौ, चुप, चुप्पी, नानी मरबौ, सूझ न परबौ, घिघ्घी बँधवौ, बोल ना आबौ।
- नीचे — नीचें, नैचूं नीचूं नैचें, नैचेइँ, खालेंइँ, तरेंइँ, तरें, खालें, धरती पै, तरीमें।
- निरंतरता — क्रमशः लगीतात, लैनडोर, क्रम, डोर न टूटबौ, लग्गर, लगें-लगें, जुटें जुटें, पाछे परकें।
- नौचना — नोचवौ, लोंचबौ, नरोटवौ, बकटौ, नोचिया नछीलबौ, च्योटिया, खरोंचबौ, नों मारबौ नोंचा-चोंथी।
- पंडित — बामन, बम्मन, बमना, ब्राह्मण, महाराज, पंडिज्जू, बाबाजू, पुरेत, आचारजू, पुरेत।
- पगड़ी — पाग, पगा, साफा, स्वाफा, पग्गड़, पगड़ौ, पगिया, पाग्गै, मुरैठौ।
- पत्र — चिट्ठी, पाती, पतिया, पतियां, चिठिया, पत्री।
- पता — पतौ, ठौर-ठिकानों, अतौपतौ, मुमकाम, अतापता, निवास, आबास, बसीगत, बसीकत, बास।
- पति — सइयाँ, बलमा, धनी, खसम, मुंस, भरतार, घरवारौ, लुगवा, मरद, कंत, पिउ, भर्ता, भतार, आदमी, सजन, सजना, बलम, बलमवा, बलमू, साजन, मालिक, स्वामी, प्रीतम, सरताज, सुहाग, राजा, गुसइयां, धरड्या, घर कें, घरवारे, घरैया।
- पति–पत्नि — लोग-लुगाई, खसम लुगाई, मर्द, औरत, जने-जनीं, धनांधनीं, धरनी-धरैया।
- पत्नी — धरनी, धनां, सजनी, दुलैन, दुल्लू, दुलइया, मिहरिया, निहरारू, तिरिया, तिया, जनीं, घरवारी, औरत, लुगाई, जोरू, नार, दारा, बहू, बहुरिया, सजनियां, प्रिया, प्रियतमा, व्यावता, व्याववरी, मालकिन।
- पहले — पैलां, पैलूं, आंगू सें, आँगाइँ, अगतां, पैलउं, पैलई, पैलेस, अक्तां, पैले, कौरा, मिल्लां, अक्तां, अगाऊ।
- पहाड़ — गिर, गिरी, परवत, पहार, पारबा, पारिया, टौरिया, पहड़िया, पहरिया, पहड़वा।
- पागल — सिर्री, सिर्रिन, बैकल, पगला, पगली, पगलू, पगले, पपगया, पगलो, बाउरौ, पगल्यौंनी, पगल्यांनों, दिमाग बिगरवौ, दिमाग फिरबौ, दिमाग फैल हौबौ।
- पान —पाँन, बीड़ा, बीरा, गिलौरी, ताम्बूल, नॉगबेल।
- पिता — दद्दा, दद्दू, डुकर, डुकरा, बाप, बापू, बाबू, बापू, जनक।
- पिरौना — पिरौबौ, गूंथवौ, पौबी, गोबी।
- पीटना — पीटबौ, कुटाई, मॉरवौ, मार, कूटवौ, धुनाई, सटाई, दुचलाई, दुलचबौ, उदेरबौ, ठोकबौ, धुचलबौ, पटीलबौ, धुनकबौ, धुचलाई, धौलथपरिया, लात-पनइयां थपड्याबौ, बजड़वौ, भंजड़बौ।
- पीछा करना — पुरैटवौ, रगेदबौ, खदेड़बौ, पछेटवौ, पदेड़बौ, पछेटौ, छूवौ, चरपेटवौ।
- पुत्र —पूत, बच्चा, तनय, मॉड़ा, लरका, छोकरा, टुकवा, बचकानों, बेटा, बिट्टू, लड़ांयतौ, दुरवा, लाड़लौ।
- पुत्री — कन्या, बिटिया, मोंड़ी, लरकिया, लरकी, छोकरी, बेटी, बिटिया, टुकिया, टुरिया, बिही, बिट्टा, बिन्नू, बिटयाना, बाई, लाड़ली, लड़ांयती, लाड़ौ, रानी बिटिया।
- पकड़ना — पकरबौ, गहबौ, डुरयावौ, जकरवौ, बांह गहवौ, पकड़-धकड़, पकरा-धरती।
- पुरुष —मुंसेलू, मांस, मुड्ड, लुगवा, मर्द, आदमी, जन, जनौ, जनें, नर, इंसान, मनुज, मानव।
- पुष्प — फूल, फुलवा, गुल, सुमन, फूला।
- पूजन — पूजवौ, पूजा-रचा, पूजा-पाठ, हवन-पूजन, संध्या, आरती, कीर्तन, ढारापूजी, होम-हवन, ध्यावौ, जाप, जप-तप, भजन-भूजन, इबादत, कथा-कुरान।
- पूर्णत — पूरी तौर, सबयार, जरमूर सें, पूरीतरां, झरां, इकजाई, चुमाचुम, सवरौ, पट्टाझार, पूरौ, सिगरौ, सबतरां, हरतरां, सफा।
- प्रजा—रइया, रइयत, रियाया, जनता, बनता-जरार्दन, पिरजा, परजा, लोग, लोगवाग।
- प्रनाम — परनाम, पन्नाम, डंडौत, पालागन, पालागों, पालांगू, पांवरवौ, पांवपराई, नमवौ, परवौ, चरणछूवौ, सासटांग, डण्डौत, सीसझुमायौ, मुजरा।
- प्रतीक्षा — वाटजोवौ, बाट तकवौ, ऐरौ लैबौ, रस्ता देखवी, इन्तजार, इन्तजारी, तकरए, तकवी, ठेरवी, ठैरेरये, बाट हेरवी, राह देखवौ, परतीच्छा, बाट जोहबौ, पलक पाँवड़े डारवौ, आँखें बिछावौ, बाट जोही।
- प्रथा — ढलाचला, ढर्रो, चाल, चलन, सनातनी, परम्परा, रीत, परपाटी, पिरथा, रूढ़ी, चला।
- प्रशंसा — बड़वाई, तारीफ, बढ़ाई, बडवारी, बाभा वाहवाही, स्यावासी बड़ाई, कदर।
- प्रसव —होबौ, भओ, जनवौ, ब्यावौ, व्यांन, बीवौ, जनमबौ, बीपरवौ, पजबौ, पुजे पजो।
- प्रारंभ —ऊँ, अनामासी, श्रीगणेश, शुभारंभ, शुरू, लग्गा, सड़बैठारवौ, विसमिल्ला, सुरुआत।
- प्रिय — अच्छौ, भलौ, प्यारौ, मनकौ, रूचकौ, नोनौ, प्राननप्यारौ, भावतौ, भावौ, चहेती, चाउत, पसंद।
155.पसंद — चाउत, रूच, रूचकौ, पुसावौ, सुहावौ, पुसात, सुहात, भात, भावौ, मनकौ, रूचिकर, रुचीली।
- पश्चाताप —पछताव, पूछताबौ, पसताव, अफसोस, गलतीमनाबौ, माफी मांगवी, मूलमानवौ।
- फुरसत में —सरतारे, सरतरया, सुसतई, सुसते, फुरसतया, औकास, फुर्सते, बेकाजू, बेकाम, अकाजलौ, फुरसतपाव।
- फेंकना —फेंकबौ, मेंकबौ, मिचकवौं, फिचकवौ।
- बदमाश—बदमांस, निंयतखोरा, बेईमान, चालाक, चालू, चालक बाज, चरचटया, कुनयाई, उठाईगीरा, उच्क्का, घाघ, घाती, उस्ताज, गुरू, दंदीफंदी, नम्बरी, दसनम्बरी, रूंटया, रूगंटया, बरबादअली, छाकटा।
- बदमासी —बेईमानी, बेरीमानी, कुनयाव, कुनयाई रून्टयाई, धांदली, दंदफंद, छलबौ. धांदलगरदी, उस्ताजी, धूराझोंकबौ, ठगी, ठगविद्या।
- बनावट —बन्नक, बनक, नाक-नकसौ, बनाब, बानक, छव।
- बनावटी—नकली, नकल, झूटमांट, झूंटी, लत्ता लपेड़ी।
- बदला—बदलौ, बल्दौ, गुर्र भंजावी, लग्गी भंजावी, लगी भंजाबौ, भड़ास काड़बौ, भरी निकारबौ।
- बमन—कै, उलटी, उल्टी, फटकार, मितली, उबकाई, उमछाबौ, उपकाई, बुकरवौ।
- बरसना—बरसबौ, झमाझम, बूंदाबांदी, झिर, टिमटिमाबाै, मूसलाधार, टपकबौ, छिमछिमाबौ, झला।
- बरसात—चौमासौ, बसकारौ, चौमासें, बरखा, झला झीकरौ, घिरोंगौ, बरसारित।
- वर —बना, बन्ना, बनरा, बनरौ, बनरे, दूला।
- वधू —बनी, बन्नौ, बनरी, बन्नी, दुर्लेन, दुल्लू, दुलैया बहू, बेटियाँ।
- बहरा — बैरा, बैरौ, बहरौ, बैर बलाय, सुनबहरा, ऊँचे सुनैया।
- बातचीत— बताकव, बतकहीं बतकहौ, चरवद, चरवदयाव, गुदारा, चपरकुटौ, बत्तू, चबड़, बोलाचाली बकबक, बकझक, बकर-बकर, चपठुकौ।
- बार—दार दफै, दफा, बेरा, बेरा, बेरी, दारीं, बिरिया, बिदियाँ, धाँई, दईयाँ, दॉई, बेर, मर्तवा।
- बांधना —गँठयावौ, बाँदवौ, गठरयावौ, बाँदाबूँदी, बांघाबूँधी, लेपड़वौ, लपेटवौ, बंधलगाबौ।
- बारीक —नानों, महीन, सूछम नान-नान, पीसा, पिसो, पतरी-पतरी, पतरौ।
- बहिन —बैन, बैना, बिन्ना, बिन्नू, सहुद्दरा, बिना, बड्या, बिन्नी, बहनी, बहना, बहनियाँ, बहिनी।
- विवाह —व्याव, चंदयाँ-मैइयां, भांवरें, विआव, पाणिग्रहण, निकाह, भांवरी।
- विवाहित —व्यावबारौ /री, व्याओ, व्याई, ब्याववरे/री, व्यावता, बिआवता।
- विवेक हरिता- झक्क, तुनक, सनक, पगलोई, सिर्रपनी, कटासिरंपन, तुनकमिजाज।
- विनय—बिनती, बिन्तवारी, रिरयावौ, बिनँ, बिनै, प्रार्थना निहोरे, गिगयावौ, नववौ, झुकबौ, निहुरवौ, हाहादइया।
- बीमार —रुगैल्या, बेजरया, बीमरया, दिक्क, बेजार, रोगी।
- वियोग—वियोज, बिछुरन, बिछुरवौ, बिछोह, बिछोड़, फुट्टफैल, विलग, दूर-दूर।
- विभिन्न—बन्न-बन्न, भाँत, रिकम रिकम, तरा-तरा, मेर-मेर-किसम किसम, फेर-फेर।
- बुरा मानना —मों फुलाबौ, अखरवौ, रूठवौ, चिनचिनौं, वुरवासन, तकुआ टेढ़े हौवौ, मोंवनाबो।
- बुलाना —बुलउआ, टिरउआ, बुलवाबौ, बुलापठैवौ, गुहार, टेरवौ, कहापोंचावी।
- वृद्ध —बुजरक, बुजरग, सिआने, बूड़े स्याने, बड़े-बड़े, बुढ़उ, बुजुर्ग, बड़ौ, डुकरा, डुकर।
- वृद्धावस्था—डकरयाबौ, बुड़ापौ, स्यांनपनौ, चौथौपन, बुढ़ांइँदार, बुजुर्गी, सफेतीदार।
- वृक्ष —विरछ, विरा, बिरवा, पेड़ौ, तरवर, पौदा पेड़, तरू।
- बुड़की गीत —लमटेरा, रमटेरा, बमबुतिया, भोले के गीत।
- बुरा —बुरव, खराब, रद्दी, गलत, दुष्ट, दुष्टी, दागी, दोसी, अखरत, दुराचारी, दुर्जन।
- बेश्या —पतुरिया, पातुर, रंडी, बेड़नी, नचनारी, छूत, कंजड़िया, नचनियां, जगरानी, बड़याल।
- व्यापार —बंज, बंजी, रूजगार, व्योपार, बेपार, खरीद-फरोग, बेंचवौ।
- वृद्धि—बढ़ोत्तरी, बढ़ोत्तरी, तरक्की, बढ़वौ, उन्नती, बिकसवौ, बड़वार, बढ़न, पड़पड़ाबौँ।
- बैल —बैला, बैलवा, नअवा, नंदी, नोंदिया, बरदा, बरधा।
- भइया —वीर, बीर, बिरन, वीरो, भैया, भ्रात, सहोदर, मांजायौ, राजाबेटा।
- भविष्य —आँगू, अंगाडूं, आंगें, अंगाऊँ, अग्गूं, भावी, होतव्व, भविस्स, आंगे की।
- भरोसा —बलबूतें, मत्थें, माथै, माथे, आसरौ, बल, आसरे, बलपै, भरोसैं।
- भाभी —भौजी, भुज्जी, भावज, भवज, भौजाई, भुजाई, भावी।
- भीड़ —भगदड़, रेलमपेला, रेला, घसापुसी, ठसा, भड़क्का, चरपेटी, पिचन, चौरवौर।
- भुजा —बाँह, बाँय, भुज, हाँत, बुइयाँ, हांथ, हत्ता, कर।
- भूत —अतीत, वितीत, पार्छ, पछाई, पाठू, पिच्छू, गओ।
- भोग —प्रसाद, चरनामित, परसाद, परसादी, प्रसादी, चन्नामृत।
- भोग विलास —- रमण, रमाबौ, सहवास, सम्मभोग, सैवास, रमवौ, रमाओ, रमरए।
- भोज—पंगत, पाँत, ज्योंनार, बड़ार, जैबोखावी, खावापीवी, दावत, पारटी।
- मच्छर —भगदर, बगदर, मछरा, डॉस, नाली चंद, गड्डा प्रसाद, भन्नमन्न।
- मनाकरना—आँहां, नई, ना, रांनदों, रोकवी, रनदौ, भगौमांय, बरजबौ, वस्स, डैरी, नैकरो, मानौ, हटकबौ, हटकी, नाई, मनाही, नटबौ, ना करवौ, मुकररी।
- मनचाहा —मनचाओ, मनकौ, जीचावो, मनमानां, जीभर मनमाफिक, मनमीत, मनचाई, जीकौ।
- मजबूत —सैजोर, टिकाऊ, खटाऊ, तगड़ौ, सगड़, पक्कौ, ताकतवार, नींचट, आखम।
- मनाना—मनौवा, मनुहार, मनावौ, मनामनौअल, राजीकरबौ, सैमतकरवौ, बिनै, बिनती-वीनती।
- माँ —बाप-माता पिता, बापमताई, बाईदद्दा, डुकरा-डुकरिया।
- माते —बरउआ, माते, महते, ढीमर, रैकवार, कहार, धीवर, पनभरा, पलकया।
- मार्ग —गैल, गली, कुलिया, पगडंडी, गडवांत, बाट, गलयारौ, ढर्रा, गोला, डगर, रस्ता, राह।
- महँगाई —माँगाई तेजा, तेजी, तेजाई, भाव बढ़ावौ, कीमतें चढ़वौं।
- मित्र —मेरी, मिंत, हितू, यार, हितुआ, जोड़ीदार, मीत, संगाती, संगी, सखा, मित्र, मितरा, लंगुटया दोस्त, दोस्त, यार।
- मित्रता —मिताई, यारी, मेर, रसाई, दोस्ती, मिता, दाँतकाटी।
- मिलन —भेंट मिलाप, मिलबौ, भेंटमलाई, भेंटकवार, मिलामेंटी, गरेमिलवौ, आलिंगन, बाँहन, भरवौ।
- मुक्का —घूंसा, घमूसा, घमुक्का, गतकौ, तूंसा, मुठ्ठा, गुमकौ।
- मूर्ख —ठस, बुद्ध, पोंगा, मसूरचंद, पोंगू, छिंपोगा, भोंदू, अड्डू, गचपेंदा, जाड़, बबचोद, लिपोड़ा निपोरा, मुसरया, बैवूजा, होलट, बौडम, बकलोल, वांर, लल्लू, अकल के पूरे, अक्कल के दुश्मन।
- मेंढक—मितकरवा, गूलर, मेंदरौ, टर्र-टर्र, मितकरिया।
- मोटा —मोटोताजौ, मुटल्ला, मदल्ला, मोटू, डम्प लाट, मस्त, हांती।
- यथार्थ —असलियत, निराट, निचाट जस का तस, बेलाग, बैलौस, ठक्काठाई, हुबहू, सांसीसांसी, हकीकत।
- यथावत —जथारत, निचाट, जसकोतस, ज्यों की त्यों, सर-सई।
- रक्त —रकत, खून, खूं, लोहू।
- रजाई —सुपेती, पल्ली, रजइया।
- रसिक —रसिया, छैल चिकनियां, ठेला, रंगौली, मनचलौ, रंगिया।
- रात्रि —रात, रैन, निंश, निसा, रजनी।
- रात्रि जागरण —जगनर, जग-बार, रतजगा, रतजगौ।
- रिपटना —सरकनौ, सरकबौ, खिसलबौ, फिसलबौ, रिपटबौ, रिरकबौ, रिसकबौ, रिसकौनों।
- रिस करना —रिसाबी, झुकरवौ, भुकुरवौ, मचलबौ, नखरयावौ, चोंचले, ठनगन, रूठवौ, रिसभरवौ।
- कुठन्त —रूठबौ, रिसाबौ, ठुनकबौ, रिसबौ, तिरिया, चरित, पिनकवौ, तकुआ टेड़ेकरवौ।
- रुंदन—रौबौ, रोना, अंसुआ ढारवौ, बिलाप, बिलपवौ, बिलखबौ, भपकवौ, सिसकवौ, फुसकवौ, रोबागाई।
- रौब दौब —धाक, भपकौ, चलतौ, चलता, तूती बोलवौ, बोलवालौ, दवदवौ, रूआब, रूतवा, चरचराटौ, भपका।
231.ऋणी —रिनियां, करजी, दिवार, कर्जीलौ, रिलीं।
- लकीर —डर्ड़ीच, रकील, रेखा, लेंन, लाइन, तूर, रेख।
- ललकारबौ—असीसी धरावौ, धूर, दैवौ, पुरखन तौ जैवो, जुद्ध आमंत्रण।
- ललाट —लिलार, माथी, मांथौ, मस्तक, मत्था, मत्थौ, करम, भाग्यथल, पेसानी।
- लाज —शरम, हया, लज्जा, सकोस, सकोच, संकोच, अकस, अचक, अचकवौ, उकस, सकुसवौ, झैंप, चमक।
- लाभ —प्राप्ती, फायदौ, वारौ न्यारी, पौबारा, फायदा, डप्परफटवौ, नफा, फलदया, बरक्कत, परतौ।
- लालचपन— चिखौ, लपकां, चस्कौ, चस्का, चऊ, चटपन, लारगिरावौ, ललच्यावै।
- सदृश—साई, घाई, नांई, जेसी, तैसो, सरीखो, सरीकौ, बतसाई, समान, बिरोबर, बिरोवरीकौ।
- सनक —झिक्क, झक्क, पिनक, सरौंदे, सरौदौ, अपने ऐरें, झक्कपनौ।
- सनकी— झिक्की, पिनका, मूड़ी, इनकी पिनकी, कटासिरी, अद्यगला।
- सम्बन्ध —नतैती, नातेदार, रिश्तेदारी, नातैत, घरइकें, घरकें, परवारकें, घरौट।
- सम्बन्धी —नतैत, नातेदार, रिश्तेदार, सगे, नातैती, घरौबा, मैरथये, घरके, जुड़े, परवारी, गसेंफंसे।
- सफेदी —सुपेती, झक्काटो, झक्क फक्क, उजरइ, सफेती, सफेदी, सेत।
- समय —बेरा, बिरियाँ, जोर, बेरों, टैम, दार, समै, दारक, पल, छिन, घरीक, घी, घरी, मिंट।
- समयपूर्व —व्यारें अक्तां, पैलांसे, पैलई, पैलसें, पैलउँ, अँगाउँसे।
- समाधान —- हल, निनोरा, निनवारवौ, निरवारवौ, निरोरवौ, उपाव, समाहार।
- समाना—समावौ, अमावौ, भरवौ, बनजवौ, विलावौ, भरजावौ, दूँसठाँस, दूँसवौ, धँसबौ।
- समाप्ति —खातमा, खतम, खेलखतम, समापन, समापन, बढ़ावौ, अंत, खलास, नष्ट।
- समीप —- एंर, नेंगर, लिंगा, निंगां, हतइँ, नीरें, निअरौ, ऐंगरई, नेंगरई, नगीचे, पासइ, ऐंगरें, नॅगरें।
- सर्वत्र — सबरेहार, सबकउं, जांता, सबइजंगा, जांगा-तांगा, असफेर में, चौगिरदां, सबरें, मुलकभरें में, सबरइँ।
- सलाह — सलाय, रायसलाय, मत मतौ, मसबिरा, मसविरौ, गैलबतावौ, विचार, सला।
- संकोच — सकोच, लिहाज, झिझक, शरम, लाज, अकस, झेंप, सकुचवौ, चमकवौ, लजावौ, झिझकवौ।
- संतति — संताने, लिड़धार, बाल बच्चे, लरका-बिटियां, बालगोपाल, संतत, मौड़ी मोड़ा, बंशवेल।
- संसार — सिंसार, सिंसारी, मुलक, दुनिया, लोक-लोकन, जगती, जग, जगत, भव, जहान, जहाँ।
- सहेली — सखी, आली, ओबिना, बिन्नासेरी, ओजू, यार, संगिन, साथिन, सहेलिन, सखी, अली, सखीरी।
- संध्या — संजा, गौधूरी, गंगधूरी, दिनाछित, संझा, झुलीपरें, अथय, तराउयें, दिनढलें, दिनमुदें, दोईबेरा।
- सामर्थ्य — बूतौ, बलबूतौ, सत्तया, हियाव, छमता, ह्याव, बुतौ, बस, बसकौ, विसात, विरतौ, ताव, सावकास, मुक्तास।
- सिंगार — श्रृंगार, सजनई, जसधज, सजवौ, वनवौ, संवरवौ, सजाधजी, साजसम्हार, चटकपटक, सजनोंट।
- सिर — मूंड, मुंड़ी, मुन्डी, खुपड़िया, कपाल, खपरिया, खोपरी, खोपरी, खोपड़ी, खपरी, मस्तक, चेंथी, सीस।
- सीधा — सूदो, भोरो, भोरौ, भोरोभारी, भोलौभालौ, निर्गुडौ, सरल, सही, सज्जन, सुजन, भलौ।
- सुन्दर— नोंनों, सलौनों, छबीलौ, गोरोनारौ, दिखनौसू, बांकौ, रसीलौ, छवदार, नमकीन, सुवरन, चीकनौ, चादवौ।
- सूनापन— सूनौ, सूनर, सन्नाटौ, सुन्नसांन, सनाकौ, वियावान, विहूनौ, बीहड़, वीहर, भांय-पांय, सांय-सांय।
- स्तन — दूद, आंचर, छतियां, छार्ती, दूध, चुर्ची. चिचीं, जोबन, जुबना, दुदू।
- स्त्री — औरत, महिला, जनीं नारि, नार तिरिया, त्रिया तिय, लुगाई. बाला, बाल, नारी, मिहरिया, कामिनी।
- स्वर्ग— सुरग, परलोक, देवलोक, सुरग, लोक सरग, सरगलोक, सरगधाम, जन्नत, इन्दरलोक, सुरधाम।
- स्वागत — आवभगत, आवआदर, सत्कार, खतरी, खातरदारी, बड़कें लैबौ, हांतन हांतन लैबौ, मनराखवौ।
- स्वप्न — सपनों, बरोटी, बर्रोटिन, सपनन, सपनिन, सपना।
- स्वस्थ — चंगौ, हट्टाकट्टी, मुसतंडा, संडमुसुंड रूष्टपुष्ट, हिस्टपुस्ट, चेंगारौ, टटकरौ, तंदुरूस्त, टिंच, टंच।
- स्वत: — उपतकें, अवढ़ायें, खुदईं, खुद अपनेआप, अटकापै, अटकौपै, उमज परें।
270.स्मृतिचिन्ह — चिनों, नामना, चिन्हारी, भेंट, चीनां, चीनों चिनारी, चीन्हौ, यादगार, ध्यान कों, निसानी।
- सुबह —सबेरौ, भुनसारौ, तड़कौ, अंदयाई, पौफटौ, भुकामुकौ, दिनउयें, सकारौ, म्यानों, झुटपुटौ, अंदयारी, निउयें, फजर।
- संलग्न —रत, निरत, जुड़ा, जुरो, दतबौ, दतपरबौ, नत्थी, जुरबौ, लगजाबौ, लगवौ, टिकवौ, जुटवौ, दत्तचित्त।
- सादृश्य —उनजस, अनुहार, वन्नकौ, बैसइ, ऊसई, बैसौ, ऊसौ, ओई-बनतक, समानता, एकसे, एकसौ।
- शपथ —सों, सॉह, कसम, किरिया, आंन, कौल, ध्वाई, धुनाई, धई, करार, इकवालिया।
- शानशौकत —ठाठबाट, तड़फ भड़क, भपकौ, चमक-दमक, रौबदौव, भक्काटौ, लाटसाबी, बड़प्पन, रसूक, धूम धड़कौ, ठसका।
- शिशु —गबवारौ, गन्नौ, राइभरौ, छुटका, छुटकौ, गोदी में कौ, आँचर कौ, बच्चौ, बचकानी, बचकानों।
- शीघ्र —फटाफट, चटपट तुरंत, तुरतइँ, झट्ट झट्टपट्ट, सपाटौ, तालाबेली, तुर्तफुर्त, लगीतान, सपाटे में, ईश्वर।
- शीतऋतु —जड़कारौ, जाड़ौ, जाड़े, ठंड, ठंडी, ठंडन, जाडिन, ठंडियन में, जाड़न में।
- शुभचिन्ह —स्वास्तिक, साँतिया, सुराँतू, चौक, रंगोली बन्दवार, तुलसीघरा, दीप।
- शैतान —उदमया, अनारी, चाली, ऊदमी, ऊधमी, कुपाठी, सम्पनया, दोंदरया, अठाई, ऐवी, हुरदंगा, सरारती।
- शैतानी —ऊदम, बमचक, दमचक, अनारचाल, हुरंग, सनयाव, धोंचाल, हुल्लड़, दोंदरा, शरारत।
- शोरगुल — हल्लागुल्ला, रौरौचारी, शोरशराबौ, चिल्लपों, भन्नाटौ।
- शौचजाना — टट्टी, फड़ाकत, बार जैबो, झाड़े जंगल, निस्तार, झाड़े निपटबे, फिरवे, बड़े घरै जाबौ, दिसामैदान।
- शौचालय — कनांत, संडास, पाखाना, टट्टी, पाखानौ।
- हंसीमजाक — ठिठौली, दिल्लगी, मसखरी, बुकल्यवौ, चिरवन, चौलें, चुलहें, ररियां, चटकें।
- हथेली — गदिया, गद्दी, गदेली, हांत, हंतेरी।
- हर्ष — उराव, हालफूल, चैंगमँगन, खुसयारी, खुशी, आनन्द, खुसयाली, खुसहाली।
- हृदय— हिया, जिया, जी, जिउ, हिरदै, जियरा, चित्त, मन, दिल, उर, अन्तस, अंतर।
- हानि — निकसान, हॉनी, घाटौ, हाँन नुकसान, दच्चौ, दच्चा, दच्च।
- हिम्मत — सत्तया, हिआव, तागत, सकती, जोर, दम, ताव, सामर्थ, साअस।
291.ज्ञान — ग्यान, बोद, मालूमात, जानकारी, जानबौ, आबौ, बुद्धिमान, अटहर पेंड़ौ, अनुभव।
- ज्ञानी —विद्वान, जानकार, बुद्धमान, बुझक्कर, ग्यांनवांन, सूझबूझवारौ, सिआनों समझदार।
- स्नान —सपरा-खोरी, स्नानध्यान, सपरवौ, नहावौ, अस्नान, सपरवौ, डुबकी लैबो, नहान।
- भोजन करना —- खेवौ, जेवाँ, खैवो, जीमवौ, भोग लगावौ, नरभरवौ, पेटपूजा, पावौ, जेवाखाई।
- चेहरा —शकल, शक्ल, चौखटा, थोबरा, मों, चौखटों
मुखरा, मुखड़ा, मुँह, आनन।
- निवासी —रहैया, रहबैया, बसइया, बसीकत, बसत रैबी, रिवड्या, रत हैं, स्तते।
- संकीर्ण —सकरी, संकरी, संकीरन, सकरौंदी, समरोंदा, सकरौंद, कमचैड़ी।
- मीठा —गुरीरौ, मीठौ, मीठी, मिठाई, मिष्टान्न, गुरतरी, मिठास, मधुर, गुरतरौ, मीठौ, मीठौपन, मीठपन, मीठपनौ।
- संयोग —संजोग, जोग, सायत, घड़ी, घरी स्यात, सुयोग, सुजोग।
- ईश्वर —ईसुर, पिरभू, प्रभु, विधना, जगदीस, जगपाल, परमपिता, हरी, परमात्मा, रॉम, स्याँम, भगवान, तिरलोकपति, तिरलोकी।
- शिव— भोलेबाबा, महादेव, बम-बम, विश्वनाथ, शमभू, पारवतीनाथ, बमभोला, बमभोले, तिपरारी, भोला।
- समय — असमय-टैम-कुटैम, चायजब, दोईबेरों, घरी कुघरी, बेरा-कुबेरा, जाबेरा ना वा बेरा, समै-कुसमै।
- बचना —बचवौ, बरकबौ, विचकवौ, विदरबौ, बचकें, हटकें, बजॉइंहोबो, इक ककोंदी होवौ, बाजू होबौ।
बुंदेली के शब्द युग्म
अंगड़ — खंगड़
अंजर — पंजर
अंट — शंट
अंट — संट
अंड — बंड
अंधेर — गर्दी
अखरता — बूड़त
अगड़म — बगड़म
अगर — मगर
अग्गा — पिच्छू
अच्छो — खासो
अजीबो — गरीब
अड़ी — पड़ी
अड़ो — पड़ो
अड़ोसी — पड़ोसी
अत्तू — वत्तू
अदब — कायदा
अनाप — सनाप
अपनो — पराओ
अफरा — तफरी
अमीर — उमरा
आंटौ — साटौ
आंदरौ — घूंघरी
आकाश — पाताल
आड — टेड
आन — बान
आनन — फानन
आपा — धापी
आमनो — सामनो
आये — गाये
ओंदौ — सूदौ
ओढ़बौ — बिछाबौ
ओर — छोर
औना — पौना
इक्के — दुक्के
इने — गिने
ईंधन — कंडा
उठवो — बैठबो
उन्ना — लत्ता
उलुटो — पुलटो
ऊँचो — नीचो
ऊट — पटांग
ऊदम — घौरा
ऊबड़ — खाबड़
ऊरत — अथउत
ऐरा — गेरा
ऐसो — बैसो
कच्चौ — पक्कौ
कटी — कटाई
कतर — कोंत
कर्ता — धर्ता
कनवा — लूला
कन्टा — बूचा
कहनी — सुननी
कागज — पन्ना
काट — कूट
काटा — छीलौ
काम — धाम
कुटे — मरे
कुंद — फाँद
कूरा — कर्कट
कैवे — सुनवे
कोर — कसर
खटा — खट
खरीद — फरोख्त
खवो — खवाब
खाट — पिड़ी
खाड़ी — खपरा
खाते — पीते
खून — खच्चों
खून — खराबा
खेत — खरयान
खेती — बारौ
गड्ड — मड्ड
गड़बड़ — झाला
गर्द — गुबार
गुजर — बसर
गुत्थन — गुत्था
गोड़ — गथना
गोबर — कूरा
घास — पात
घिसौ — पिटौ
छुई — मुई
घेर — घार
धैरा — घूंसा
चट्टा — बट्टा
चटक — मटक
चटाक — पटाक
चढ़ा — उतरी
चना — चबैना
चबर — चबर
चरी — चराई
चला — चली
चाक — चौबंद
चाल — ढाल
चिकनी — चुपडी
चित्त — पट्ट
ची — चपड़
चीकनों — चांदनों
चुप्पा — घुन्ना
चुम्मा — चट्टा
चूतिया — चक्कर
चेला — चांटे
चेहरा — मोहरा
चोट — चपेट
छक्का — पंजा
छपा — छपाया
छम्मा — छैया
छीना — झपटी
छू — मंतर
छेड़ — छाड़
छैल — छबीला
छोटौ — बड़ौ
जग — बीती
जगर — मगर
जड़त — बड़त
जमा — पूंजी
जल — जलौ
जी — हुजूरी
जी — तोड़
जुगल — जोड़ी
जोर — अजमास
जोरू — जाता
जोश — खरोश
झक्कू — पक्कू
झड़पा — झड़पी
झाड़ — फूँक
झूठ — मूठ
टपका — टपकी
टाँय — टाँय
टाल — मटोल
टुकुर — मुकुर
टूटौ — फूटौ
टेढ़ो — मेढो
टोना — टोटका
ठसा — ठस
ठाट — वाट
ठीकम — ठीक
ठेल — ठाल
ठेलम — ठेल
ठौर — ठिकानौ
डंडा — बेड़ी
डेरा — डंगा
डोल — डाल
ढीलौ — ढालौ
ढोर — डंगर
तड़ा — तड़
तड़क — भड़क
तड़ाकू — फड़ाकू
तत — सीरौ
तना — तनी
ताबड़ — तोड़
ताम — झाम
ताल — मेल
तिड़ी — विथार
तितर — बितर
तेज — तर्रार
तौर — तरीके
थुका — फजीहत
दंद — फंद
दबे — दबाव
दम — खम
दशरयें — दिवाई
दाँव — पेंच
दादुन — मों
दानौ — पानी
दाल — रोटी
दिखी — दिखाई
दिन — रात
दीन — दुनिया
देखा — परखी
देर — अबेर
दौड़ — धूप
धकड़ — पकड़
धक्कम — धक्का
धक्का — मुक्की
धड़ा — धड़
धमा — धम
धमा — चौंकड़ी
धींगा — मस्ती
धूप — छाँव
धूम — धड़क्का
धूल — धक्कड़
धौल — धप्पा
धौल — थपैया
नगद — नारायण
नंगा — झोरी
नंगा — लुच्चा
नाज — कनूका
नाक — नक्सा
नाज — नखरे
नास — पीटा
नोंक — झोंक
नोंन — तेल
न्योते — हकाई
पई — पावनों
पकड़ — धकड़
पड़ो — पड़ाव
पान — पत्ता
पान — बीड़ी
पीठ — पीछे
पीड़ — पौदा
फरो — फराव
फींच — काच
बक — झक
बगला — भगत
बचौ — खुचो
बारा — न्यारा
बल — बबूतौ
बहका — बहकी
बही — खातौ
बाल — भुटिया
बाल — बच्चे
बिक्री — बट्टा
बीच — बचाव
बैठे — ठाले
बैर — बाव
बोरिया — बिस्तर
बोला — चाली
भरी — भराई
भागम — भाग
भाव — ताव
भींजे — गांजे
भीड़ — भड़क्का
भूंज — भांज
भूल — चूक
भूला — भटका
भेड़ — चाल
मरो — मराव
माछी — कुची
माथा — पच्ची
मान — मनौअल
माल — टाल
मियां — मिटटू
मिली — भगत
मीन — मेख
मुक्का — मुक्की
मेला — ठेला
मैला — कुचैला
मोटा — झोटा
मोटा — ताजा
मोल — भाव
रंग — रोगन
रफा — दफा
रिम — झिम
रोक — टोक
रोजी — रोटी
लंगड़ा — लूला
लकड़ी — फाटा
लक्टम — पस्टम
लगा — लगी
लगी — बदी
लरका — बिटिया
लल्लो — चप्पो
लस्त — पस्त
लहू — लुहान
लांच — घोंच
लांत — घूंसा
लाग — लपेट
लात — थपैया
लाव — लश्कर
लिपाई — पुताई
लीपा — पोती
लुका — छिपी
लूट — पाट
लूट — खसौट
लूला — लंगड़ा
लोग — बाग
लौट — फेर
शक्ल — सूरत
शराबी — कबाबी
सनो — सनाव
सरौ — फपूंड़ौ
सांठ — गाँठ
साग — पात
साग — भाजी
साड़ौ — गाड़ौ
सिर — फिरा
सिली — सिलाई
सुख — सुभीता
सैर — सपाटा
सोज — मांज
सोट — विसवार
हँसी — ठट्टा
हँसी — खेल
हँसी — खुशी
हुक्का — पानी
हक्का — बक्का
हट्टा — कट्टा
हक्का — बक्का
हरौ — लीलौ
हलके — पतरे
हिष्ट — पुष्ट
हाहा — हूहू
हीला — हवाली
हेरा — फेरी
हेल — मेल
होड़ा — होड़ी
होशो — हवास
हौले — हौले
काल एवं समय बोधक शब्द
अंथऊ की बेराँ — जैन लोगों के भोजन का समय।
अथोली जोर — दिन के चार बजे के बाद का समय।
अबेर — विलम्ब देर होना, सामायिक संयोग के शब्द।
उगार — साफ आसमान दिखायी देना।
उमस — बारिस के पहले हवा के बंद होने से जो गर्मी होती है।
उरइयाँ — शीतकाल के प्रातः काल की धूप।
उरबतियाँ चलवो — इतना पानी बरसना कि मकान की छतों से पानी बह निकले।
कलेऊ की बेरॉ — सूर्योदय के बाद 8 बजे का समय।
कोरो धाम — प्रातः व शाम की धूप जो तेज न हो।
कौर — कुहरा दबना, बादलों के छा जाने से कुछ न दिखायी देना।
गई रातै — रात ढलती है।
घमछॅइयॉ — धूप छाँह का मिश्रण।
घमोरी — धूप जो बुरी न लगे, तेज गर्मी के कारण होने वाली बहुत छोटी फुन्सी।
घामो — धूप।
चिल्लाटे की दुपरिया — तेज और असह्य दुपहरी का समय।
झकर — लू, गरम हवा, तापमान बढ़ जाने से बहुत गरम हवा प्रवाहित होना।
झला — एक बार पानी बरस कर रुक जाये उसे झला कहते हैं।
झलाझल — खूब पानी बरसना।
झुटपटौ —सूर्योदय के बाद कुछ अंधकार हो चलता।
टीकाटीक दुफरिया — ग्रीष्म ऋतु की खरी दुपहरी का समय।
तारो ऊंगे — शुक्रतारे का उदय, जो कि सबेरा होने की सूचना देता है यह तारा ब्रहम मुहर्त में उदय होता है, प्रभात तारा कहा जाता है।
थिगरा बदरा — बादलों के टुकड़ों में टुकडों दिखाई देना।
दुफरिया — 12 बजे के बाद और 3 बजे के बीच का समय।
दुफर — दोपहर, मध्याह्न, ग्यारह बजे का समय।
दिखादिखो — भली प्रकार देखने योग्य।
दिन लौटे — तीन बजे के बाद का समय।
दिन बूड़े — सूर्यास्त का समय।
दिन चढ़े —सूर्योदय के बाद का समय लगभग आठ बजे का समय।
दिनऊंगे — सूर्योदय का समय ब्रह्म बेला या उषाकाल कहा जाता है।
दिया बत्ती बेरा — रोशनी होने का समय घरों में दीपक, प्रकाश व उजाला करने का समय।
दौंगरो — अषाढ़ से पहले जेठ में पानी।
निरबाओ — जब हवा बिल्कुल बंद हो।
पछुआ हवा — पश्चिम से बहने वाली हवा।
पीटा कौ — खूब जोर का पानी बरसना।
पीरी पंई — अरूणोदय का वह समय जब अंधकार दूर होने लगता है, आकाश में प्रकाश की हल्की पीली आभा दिखाई देने लगती है।
पुरविया हवा — सूर्य की ओर से बहने वाली हवा
पौ फटवौ — अरूणोदय के पहले का समय जब कुछ उजेला होता है, फटकौ पौ फटवो-मुहावरा है।
पौराचलबो — सड़कों व गलियों से पानी बह निकले।
बदरा घाम — बादलों में से फूटती हुई धूप।
बदरूखो — जब आकाश में बादल छाये हो
बाओ — गन्धमय वायु प्रवाहित पवन।
बादर दबावो — बदली हो आना।
बेरो — समय का बोध।
भुंसारी रातै — रात्रि के 3 बजे से सुबह तक का समय।
भुकभुको — अरूणोदय पूर्व का समय जब कुछ दूर का नजर आने लगे।
मकर चॉदनी — बादलों के कारण धुंधली चाँदनी दिखाई देना।
मछिया घुॅघरियात — अंधकार बढ़ता है, बन्दूक की मक्खी स्पष्ट नजर नहीं आती, सायं प्रातः दोनों समय का समय।
माउट — जाड़े के दिनों में पानी बरसाना
रात भीजै — रात्रि का धीरे धीरे अंधकार बढ़ना।
रिमझिमाबौ — हल्की बूंदो वाला पानी बरसना
लपट — गरम हवा का झोंका।
लू — ग्रीष्म की गर्म हवा
लौलइयाँ — सूर्यास्त के बाद अंधकार होने के कुछ पहले का समय जब आकाश में प्रकाश की हल्की सी लाली रह जाती है।
संजा — संध्या, शाम गोधूलि बेला का समय जब साँझ अपनी गेरूई लाली से सराबोर हो जाती है।
सुर्रक — बहुत ठंडी हवा चलना।
सूदी बूंदन बरस वो — हवा के रूख के बिना पानी बरसना।
बुंदेलखण्ड के लोक देवता
~ प्रकृति परक देवता :-
— वृक्ष देवता
— भूमि देवता
— पर्वत देवता
— नदी देवता
— वन देवता
— सूर्य देवता
— चन्द्र देवता
~ अनिष्टकारी देवता :-
— भूत-प्रेत
— आंधी-अंधड़
— मृत्यु देवता
— सांप
~ आदिवासियों के देवता :-
— बड़ा देवता
—ठाकुर देव
— नारायन देव
— घमसेन देव
~ स्थल परक देवता :-
— गांव की देवी
— खैरमाई
—मिड़ोइया देव
—घटौइया देव
— पौरिया बाबा
— मन्धियां देव
— खैरा देव
— सिद्धबाबा
~ मैकासुर बाबा सुहागिलें :-
— गौरइयां,
— हुर्रइयां,
— दशारानी संकटा देवी
~ जाति परक देवता :-
— कारस देव
— ग्वाल वाला
— गुरैया देव
— मसान बाबा
— भियाराने देव
— गौड़ बाबा
~ स्वास्थ्यपरक देवता :-
— सीतला माता
— मरई माता
— गंगा माई
~ विवाहपरक देवता :-
— दूल्हा देव
— हरदौल
— गौरा पारवती
— गणपति देव
~ कुल देवता :-
— गोसाई बाबू
— सप्तमातृकाएं
— खुरदे बाबा
~ संतान रक्षक देवता :-
— रक्कस बाबा
— बीजासेन
— षष्ठी देवी
— बेइया माता
— विघ्नहरण देवता
— गणेश देवता
— पितृदेव संकटा देवी
दैनिक जीवन में उपयोगी शब्द दूध–दही संबंधी शब्द
~ अछयावो — मठे को थिराकर ऊपर का पानी का अतिरिक्त अंश अलग करना।
~ आंवो — दही विलोना या भाना।
~ उफान — दूध को पकाते समय उबलकर ऊपर उठना।
~ कच्चो जाउन — दूध को जमाने के लिए कम मात्रा में अथवा खराब दिया गया जाउन जिससे दूध न जमे, जाउन देने पर जब दूध नहीं जमता तब कहते हैं जाउन कच्चा लगा।
~ कड़ेनियां — वह रस्सी जिसमें मथानी चलाते हैं।
~ कुनई — रस्सी या मूँज की बनी कुंड़री जिस पर मठा भाने की मटकी रखी जाती हैं।
~ खोआ — पकाकर गाढ़ा और लुबदी किया गया दूध जिससे पेड़ा, कलाकंद, बर्फी आदि मिठाइयाँ बनती हैं।
~ गॉजौ — मथानी की सीधी लंबी लकड़ी जिसमें फूल कसा रहता है, दे. मथानी।
~ घियाँड़ीं— घी रखने की हंडियां।
~ घुरबो— अधिक गर्मी अथवा अधिक देर तक बिलोले रहने से मक्खन का मठा में घुल जाना, इस दशा में ठंडे पानी के छींटे देकर मक्खन को उठाते हैं। इसे बिडर जाना भी कहते हैं।
~घोसिन — घोसी की स्त्री।
~ घोसी — दूध, दही और घी बेचने वाली एक पशुपालक जाति।
~ चकदही — शुद्ध दूध का ठोस जमा हुआ दही जिसमें पानी न छूटा हो।
~ छॉछ— मक्खन निकाले हुए पनीले दही या दूध का, शेष अंश, मट्ठा, मही।
~ जमना— जाउन देने से दूध का जमकर थक्का हो जाना
~ जमौनी— दूध जमाने की हंडिया, दहेड़ी।
~ जाउन — दूध जमाने के लिए डाली जाने वाली मट्ठा, दही नीबू आदि की लाग।
~ झाग— ताजे दुहे हुए दूध के ऊपर का फेन।
~ ताव तुआ घी— गरम करके साफ किया गया घी जिसमें मही का अंश न बचा हो।
~ तेली — हाल ही ब्याई हुई गाय, भैंस, बकरी का दूध जो तीन चार दिन तक कुछ विशेष गाढ़ा रहता है, इसे दूसरे दूध के साथ मिला कर तथा इच्छानुसार गुड़ या शक्कर तथा मेवा मिलाकर पकाते हैं, पकाने से सम्पूर्ण दूध, दही की तरह फटकर जम जाता है तब इसे खाते हैं, इसे बुंदेलखंड के बाहर कहीं कहीं पयो कहते हैं।
~ तोर — दही का पतला पानी।
~ दई — जाउन देकर जमाया गया दूध, दही।
~ दहेंड़ी — दही जमाने का हंडिया, दे. जमौनी।
~ दूध — सफेद रंग का प्रसिद्ध तरल पदार्थ जो स्तन पायी जीवों की मादा के स्तनों में रहता है, और जिसे उनके बच्चों का बहुत दिनों तक पोषण होता है।
~ दौनियाँ — दूध दुहने की हंडिया, दुहनिया, दुधेंड़ी।
~ पिनियाँ — बिना पानी मिला हुआ, शुद्ध दूध।
~ नेंतना — मठा बिलौने का मटकी के गले में बंधी हुई वह रस्सी जिसके एक टीले में मथानी मड़ी रहती है।
~ नैनूॅ— दूध में का वह सार भाग जो दही या मठे को मथने से निकलता है और जिसको तपाने से घी बनता है, मक्खन, नवगीत
~ पखुरिया — मथानी के फूल के हिस्से, मथानी का फूल कभी-कभी तो लकड़ी के एक ही टुकड़े से बनता है और कभी कभी उसमें दो टुकड़े भी होते हैं, प्रत्येक टुकड़े को पखुरिया कहते हैं।
~ फुलकवो — दही को बिलोने से जब मक्खन निकलना शुरू हो जाता है तो मथानी को ऊपर उठाकर पनीले दही की सतह पर धीरे-धीरे चलाते हैं, उसके बाद हाथ से थपथपाते हैं, इस क्रिया को फुलकना कहते हैं. फुलकते समय सब मकान एक जगह इकट्ठा हो जाता है, मक्खन निकालने के पश्चात् बिलाये हुए दही को हाथ से बार-बार फुलकते हैं, इस प्रकार सब मक्खन निकाल लेते हैं।
~ फूल — मथानी के डंडो में नीचे लगा हुआ फूल के आकार का हिस्सा जिसमें मठा बिलायो जाता है।
~ फूलजावो — अधिक सरदी के कारण दही कभी-कभी कडा पड जाता है और मक्खन देर से निकलता है, इसे दही का फूल जाना कहते हैं दही के फूल जाने पर गरम पानी डाल कर ठीक करते हैं।
~ फेन — दूध दुहते समय उसके ऊपर एकत्र हो जाने वाला महीन बुलबुलों का गठा समूह, दे. झाग
~ बजबजावो — कई दिन के जमे हुए दही में सड़न की स्थिति पैदा होकर बुलबूले पैदा हो जाना और सख्त होकर उसका फूल उठना।
~ बाखरा दूध — बाखरी भैंस का दूध।
~ बिडरवो — दे, घुरखो।
~ मथानी — दूध या दही बिलौने और मक्खन निकालने का लकड़ी का डंठा जिसके एक सिरे पर फूल, एक सिरे डंडा होता है।
~ मैअर — घी में मिला हुआ मही का अंश जो घी के पकाने पर नीचे रह जाता है।
~ रई — दे, मथानी।
~ रबड़ी — पकाकर गाढ़ा किया गया दूध जो पककर एक तिहाई रह गया हो और जो मिश्री या शक्कर मिला कर मीठा कर लिया जाये।
~ लग जाना — दूध को पकाते समय किसी कारण वश उसका फट जाना, कच्चे या औटाए दूध का रकवे, रकवे फट जाना।
~ लच — दही का जमा हुआ थक्का।
~ लचदार दही — अच्छा मुलायम जमा हुआ दही।
~ लस्सी — दूध या दही का पानी मिलाकर बना हुआ शरबत।
~ साड़ी — दूध का वह चिकना अंश जो दूध को उबाल कर ठंडा करने पर उसकी ऊपर सतह पर पपड़ी की तरह जम जाता है मलाई
गंध संबंधी शब्द
~ अकरॉंद — एक प्रकार का कड़वापन या कड़वी गंध जो पुराने आटे में आ जाती है।
~ उन्नयाँद — कपड़ा जलने की गंध।
~ कचाँद — किसी वस्तु को विशेषकर आटा वेसन आदि को भूनते समय उसके कच्चे रहने की गंध।
~ कसयाँद — कांसे के बर्तन में रक्खे रहने के कारण खाने पीने के पदार्थो में उत्पन्न हुई गंध।
~ किल्लयाँद — ढोरों के शरीर में लगी हुई किल्ली नाम के कीड़े के जलने की दुर्गंध किल्लियों को गाय भैंस के शरीर से अलग करके प्रायः आग में जला देते हैं, जिसमें वे फिर उनके शरीर पर न चढ़ जाय उनके जलने से एक विशेष प्रकार की गंध निकलती है।
~ कुरमाँद — मिट्टी के बने कोरे घड़े की गंध।
~ खटांद — दाल तरकारी आदि के सड़ने से उत्पन्न हुई खट्टी वास।
~ गुवरयाँद — गोबर की गंध।
~ गुवांद — गू जैसी गंध।
~ घियाँद — घी अथवा घी जैसी गंध।
~ चुकरयांद — खट्टी डकार की गंध, चुकरा मंदी, खट्टी डकार।
~ छिरयांद — बकरियों के शरीर से अथवा उनको मेगनी से उत्पन हुई गंध, बकरी जिन दिनों गर्भवती होने को होती है तब उसके शरीर से एक विशेष प्रकार की गंध निकलती है और वही उसके दूध में भी व्याप्त हो जाती है।
~ छुछराँद, छिछराँद — बाल, ऊन अथवा मांस के जलने की गंध।
~ झुर्रयाँद — किसी जीव के आग में झुलस जाने की गंध।
~ ढुरयांद — ढोरों की गंध
~ तिलांद — तेल जैसी गंध।
~ पितरयांद — पीतल के बर्तन में रक्खे हुये खाने पीने के पदार्थों में उत्पन्न हुई गंध।
~ बराँद — किसी वस्तु के जलने की गंध
~ बास — गंध।
~ भुजांद — किसी वस्तु के भुजने/ भुनने की गंध।
~ मछरयांद — मछलियों की गंध, छोटे पोखरे में जिसमें पानी कम होता है प्रायः मछरयांद आती है।
~ मन्सयांद — मनुष्य के शरीर की गंध।
~ मुकराँद — बहुत दिनों तक किसी सीलदार स्थान में रक्खे हुये आटे में उत्पन्न न हो जाने वाली गंध।
~ मुतरांद — पेशाब की अथवा पेशाब जैसी गंध।
~ बसाँद — बदबू।
~ वुसाँद — खाने पीने के पदार्थों को अधिक समय तक रखे रहने के कारण जो गंध आती है उसे बुसांद कहते हैं।
~ सडाँद — किसी वस्तु के सड़ने की गंध।
~ सुदाँद — सोंधेपन की गंध।
विभिन्न आवाजों संबंधी शब्द
अर्राबो — कलारबौ
किकआबौ — किचकिचाबौ
किटकिटाबौ — किलकबौ
किलकिलाबो — किल्लाबौ
कुकक आबौ — कुड़कुड़ाबौ
कुन्नाबौ — कुलबौ
खटखटाबो — खड़खड़ाबौ
खदखदाबौ — खनखनाबौ
खन्नाबौ — खरखराबौ
खलखलाबौ — खलथर आबौ
खॅसबौ — खुंस आबौ
गटगटाबौ — गड़गड़ाबौ
गलगलाबौ — गलबलाबौ
गिगआबौ — गिड़गिड़ाबौ
गुंगाबौ — गुंजगुंजाबौ
गुड़गुड़ाबौ — गुदगुदाबौ
गुनगुनाबौ — गुरगुराबौ
गुर्राबौ — घकघकाबौ
घड़घड़ाबौ — घनघनाबौ (घन्नाबौ)
घरघराबौ (खर्राबो) — घुड़कबौ
घुरघुराबौ (खुर्राबौ)— चचेंड़बौ
चरचराबौ (चर्राबौ)— चिकचिकाबौ
चिचआबौ — चिटपिटाबौ
चिड़चिड़ाबौ — चिनकबौ
चिनचिनाबौ — चिल्लाबौ
चुकचुकाबौ — चुचआबौ
छकाकाबौ — छटपटाबौ
छनछनाबौ — छपकबौ
छपछपाबौ — छमछमाबौ
छुकछुकाबौ — झन्नाबौ
झल्लाबौ — टड़टड़ाबौ
टड़टड़ाबौ — टनटनाबौ (टन्नाबौ)
टन्नाबौ — टपटपाबौ
टर्राबौ — टिन्नाबौ
टुकटुकाबौ — ठकठकाबौ
ठनठनाबौ (ठन्नाबौ) — ठिलठिलाबौ
डड्डड़ाबौ — डिड़आबौ
ढड्डडाबौ — ढमढमाबौ
तड़मड़ाबौ — तुतलाबौ
तुलतुलबौ — दुलदुलाबौ
दडदड़ाबौ — दड़दड़ाबौ
दनदनाबौ (दन्नाबौ) — दबदबाबौ
दर्राबौ — दलांकबौ
धड़घड़ाबौ — धमधमाबौ
नर्राबौ — पक्याबौ
पिन्नाबौ — पिपआबौ
फटफटाबौ — फटफटाबौ
फदफाबौ — फननाबौ
फनफनाबौ — फरफराबौ
फसफसाबौ — फुदफुदाबौ
फुन्नाबौ — फुसफसबौ
बकबकाबौ — बड़बड़ाबौ
बर्राबौ — बलबलाबौ
बिल्लाबौ — बुदबुदाबौ
बुलबुलाबौ — बैंकबौ
भकभकाबौ — भकभकाबौ
भड़भड़ाबौ
भदभदाबौ — भन्नाबौ
भरभर्राबौ — भर्राबौ
भलभलाबौ — भल्लाबौ
भुनभुनाबौ — भौंकबौ
मचमचाबौ — मन्नाबौ
मिमआबौ — रमाबौ
सनसनाबौ — सन्नाबौ
सरसराबौ — सर्राबौ
सुरसुराबौ — सुसाबौ
हुमहुमाबौ — हिनहिनाबौ
हिलकबौ — मन्नाबौ
रमाबौ
सुनार के व्यवसाय संबंधी शब्द
~ अंजोरा — बर्तन पर बने सूत या रेखा बनाना।
~ अगयाना — धातु या गहने को आग में गर्म करना।
~ अचरी — ऐंठी के पैजना में कली के सिरे पर बना तिकोना हिस्सा।
~ अटनी — घूमते हुये कुन्दे को रोकने की लकड़ी।
~ अद्दा — घुंसी की बगल में एक फलदार पट्टी होती है।
~ अनी — नोंक।
~ अनीदार — नुकीली, नोंकदार।
~ ओटना — धातु गलाना।
~ ओटनी — धातु गलाने की प्रक्रिया व मसाला।
~ उठ गई — गल गई।
~ उमेठा — पैजाने की एक तर्ज जिसकी फली घूमदार होती है।
~ उलेचा — कड़ार करने का एक औजार कंकन-हाथ में पहनने का गहना।
~ कड़ार — पीतल के बर्तन पर लोहे की कलम से नक्काशी करना।
~ कड़े — पैर में पहनने का गहना।
~ करी — कड़िया तोड़ा व दुसी का हिस्सा।
~ कलई — गहनों व बर्तनों पर रंग व शीश मिश्रित रंग चढ़ाना।
~ कलम — कड़ार करने की लोहे की कील।
~ कली — आम की सूरत का हुक्का।
~ कीले — धुसिया में लगाने की धातु की कीलें।
~ कुचयाना — कलई करने के लिये बर्तन या जेवर को कुची से साफ करना।
~ कुची — सुअर के बालों का बुरूश।
~ कुनई — कुड़ी-बर्तन के नीचे की कुनई, पेंदी।
~ कुन्द — बर्तन खरोदने का औजार जो लकड़ी का होता है उस पर बर्तन जमा कर खराद लगाते हैं।
~ कुन्दा — पैजना अथवा अन्य गहनों में दो टुकड़े जोड़ने का साधन, किला करना, कुन्छा लगाना।
~ कुलयाना — खोदना।
~ कूटा — सुनारी भाषा में तांबे को कूट या कूटा कहते हैं।
~ खजूरा पैजना — पैजने की एक तर्ज जिसमें खजूर की टहनी के आकार की रेखायें होती हैं।
~ खराद — खरादना कुन्द पर लगाकर बर्तन को साफ करना।
~ खरादना — झूरन, बर्तन का छोलन, जो खरादने से निकलता है।
~ खरी — तेज गली हुई धातु को कहते हैं।
~ खाप — पक्की मिट्टी की छाव।
~ खुलाई — कड़ार करने का एक औजार।
~ खूट — साँचे में बची हुई धातु इसे घंट भी कहते हैं।
~ खौल— खराब, खोटी।
~ गजरा — हाथ का गहना।
~ गत्त— चाँदी, सोने का खोट, मिलवा धातु।
~ गरना — साँचे का मुँह।
~ गलगलिया — बैलों को पहनाने का पीतल का गहना।
~ गारन — गारन लगाना, मोम के ऊपर मुलायम मिट्टी चढ़ाने को गारन लगाना कहते हैं।
~ गुरी — पैजना के मिट्टी के आकार जिन पर मोम चढ़ाकर सांचे बनाते हैं।
~ गुलउवा — तोरा धातु के चूरा।
~ गुलसुम्मा — कड़ार करने का फूलदार औजार।
~ गुवाई — गोने की क्रिया।
~ गूंदना — टांकना।
~ गूजरी — पैर में पहनने का गहना।
~ गेदें— पैरों में पहनने का एक गहना
~ घंटाल — बैलों को पहनाने की घंटियां।
~ घरिया— धातु गलाने का कटोरीदार बर्तन।
~ घरिया पाटना — घरिया बनाने की क्रिया।
~ घरेंटना — घटिया बनाने का लकड़ी या मिट्टी का साधन।
~घुंसी — पैर में पहनने का पट्टीनुमा गहना।
~ घुंघरिया — पैर में पहनने का छोटी-छोटी कामदार वोरियों का बना गहना।
~ घुल्ला — धातु के हाथी घोड़े ऊँट आदि खिलौने।
~ घोंटना — बर्तन पर चमक लाना।
~ घाेंटा — बर्तन पर चमक लाने का औजार।
~ घोड़ी — खराद लगाने में हाथ रखने की लकड़ी जिस पर हाथ जमा कर खराद लगाते हैं।
~ चमीटा — पकड़ने का मन्त्र।
~ चम्पू — एक विशेष प्रकार लोटा।
~चुरिया — देखो, कुनई।
~ चुल्ला — पैर का गहना।
~ चूका — कड़ी की नौंक, चूकादारतोड़ा।
~ चूरा — हाथ में पहनने का गहना।
~ छन्नी — हाथ में पहने का गहना।
~ छला — पैर की उंगलियों का गहना।
~ छिंगुरी — पैर की छिंगुरी में पहनने का गहना।
~ छिड़ियनदार — गूजरी की एक किस्म जिसमें सीढ़ियां सी बनी रहती है।
~ छीता फली — पैजने की एक तर्ज जिसमें चौकोर छीता फल जैसे लगाते हैं।
~ पैजना — पैरों में पहनने का गहना। फल कैसे दाने बने होते हैं।
~ छेंनी — धातु काटने का लोहे का औजार।
~ जंजीरा — मोम का एंठी दार सूत (तार)।
~ जरोटे लगाना — मोम के पैजना में कुन्दा के नीचे मोम लगाने की क्रिया।
~ जार — धातु का जला हुआ भाग।
~ जुड्डा — जोड़ी मिलाना।
~ जुराई — बर्तन या जेवर में जोड़ लगाना।
~ जैर — पांव में पहनने का एक जेवर।
~ झपनी — दवात की स्याही ढकने की ढिवरी या ढ़कना।
~ झरोटी — छिपाई हुई धातु।
~ झलाई — जुराई की क्रिया।
~ झारलो— सुनारी भाषा में चुरा लो, छिपा लो।
~ झालना — जोड़ना।
~ झूरन — रेतन, धातु के बारीक कण जो रेतने से गिरते हैं।
~ टँकोरा — लोहे या पीतल की आवाजदार घंटियां।
~ टकना — चिन्ह, गूदे।
~ टिकटी — लकड़ी की तीन पायेदान तिपाई जिस पर रखकर काम बनाया जाता है।
~ टिकरिया — मोम या धातु के पत्ते का छोटा टुकड़ा।
~ टूटन — धातु के बारीक कण।
~ डांडी — पीतल की दावात का हिस्सा।
~ डार — हाथ में पहनने का एक गहना।
~ तकुवा — लोहे का नोंकदार साधन, जिससे गहनों के भीतर भरी मिट्टी खोदी जाती है।
~ तपाना — गरम करना, अगयाना।
~ तरो — किसी वस्तु का नीचे का भाग।
~ तरौटी — रांगा व कस्कुट से मिली हुई धातु जो जोड़ने के काम आती है।
~ तोड़ा — पांव का गहना, पीतल और जस्ता से बनी संकर धातु।
~ थपिया — थाप-लकड़ी का साधन जिससे पत्ता पीटते है।
~ दुरई — मोम के लंबे टुकड़े को समान भागों में बांटने का साधन।
~ दस्ता — चांदी और पीतल की बनी मिश्रित धातु जो टांका लगाने के काम आती है।
~ दिबरी — ढक्कन, दावात का ढकना।
~ दौरी — हाथ में पहनने का दानेदार गहना।
~ घुँधवा — भट्टी में हवा पहुँचाने का छेद।
~ धोंक — भट्टी में हवा पहुँचाने की क्रिया।
~ नरवा — आग फूंकने की पीतल की नली, मुँहनाल जिससे चांदी, सोना गलाने के लिये इच्छानुसार हवा पहुँचाते है।
~ नहननो — बर्तन पर धारी साफ करने का औजार।
~ निपटाई — माल तैयार करने की क्रिया।
~ निपटाई — चांदी सोना पीटने का लोहे का साधन जिस पर रखकर धातु पीटते है और बढ़ाते हैं।
~ पंची — सांचे में कड़ियों को एक सूत्र में बांधने की पत्ती।
~ पखुरिया — कली, पैजने के हिस्से।
~ पगा — मिट्टी की गुरी बनाने के दो पले, दे, गुरी।
~ पटा — लकड़ी का चौकोर साफ पटिया जिस पर रखकर मोम पीटते हैं।
~ पत्ता — मोम का पत्र, पैर में पहनने का गहना।
~ पर छांटन — कलई करते समय जो हिस्सा साफ करने में गिर जाता है, उसे पर छांटन कहते हैं।
~ परटांटन — कलई करने में कुची से साफ करने की क्रिया।
~ पांते — पैर की उंगलियों के पास पहनने का गहना।
~ पांव पोस — पैर की उंगलियों एवं पायल से जड़ा हुआ फूल दार पाँव में पहनने का गहना।
~ पायजेब — पैरों का गहना।
~ पिटार — बगल के हिस्से में कुची से साफ करने क्रिया।
~ पेंदी — तरी, नीचे का हिस्सा।
~ पेटो — पैंजना के भीतर का हिस्सा।
~ पैरिया — पांव में पहनने का गहना।
~ फुलरी — पीतल की दावात को मिलाने वाली फूलदार पत्ती।
~ बंध लगाना — साँचे में मिट्टी कटने पर दुबारा मिट्टी से जोड़ना।
~ बगेली — बघेली, कुन्द रखने की घोड़ी लकड़ी की।
~ बचरी — पैजना के सिरे पर बना तिकोना कड़ाव।
~ बरा — भुजा में पहनने का गहना।
~ बहादरा — खराद लगाने का एक साधन।
~ बांके — पंजे में पाँव पोस के ऊपर पहिनने का गहना
~ बिछिया — पैर की अंगुलियों का गहना।
~बिजौरी — धुंसी में कुन्दा पर लगने वाली फूलदार पत्ती।
~ बोता — रेतन या झूरन गलाने का घरिया।
~ बोरा — पैर में पहिनने का गहना, घुंघरू।
~ बौरा — हाथ में पहनने का गहना।
~ भभका — पीतल का बड़ा लैम्प।
~ भोगनी — डंडीदार दावात का एक हिस्सा जो दावात में लगता है।
~ मछरिया — पाँव की अंगुलियों में पहनने का गहना।
~ मजिया — तराजू के मध्य का धातु का गोल टुकड़ा।
~ मटका — तोड़ा की कड़ी टूटने पर जब तिरछी हो जाती हे तो उसे
मटका कहते है।
~ मठार — किसी बर्तन में हथौड़ी से ठोकर मारकर चिन्ह बनाना।
~ मुठयाना — गहना मुट्ठी में लेकर साफ करना।
~ मुडार — तोड़ा की कड़ी का वह मध्य भाग जो कुछ मोटा और ऊँचा होता है।
~ मुदाव — साँचे व धातु से भरी हुई धारियों को मिट्टी से जोड़ने की क्रिया।
~ मुरची — रांग और सीसा गला कर बनी हुई धातु को बारीक बनाकर कपड़े से छानते हैं उसे मुरची कहते हैं यह टांका लगाने के काम आती है।
~ मुहाल — गाड़ी की जुआरी व पालकी के डांटे के सिरे पर लाने के धातु के बने सांचे।
~ मेन — राल, तेल और मोम के मिश्रित पदार्थ को सुनार लोग मेन कहते हैं, यह हर प्रकार के गहनों के नमूने बनाने के काम आता है।
~ मेनकटा— मेन काटने का साधन।
~ मेनोटी — मेन में इच्छानुसार कली काटने का औजार।
~ मैनाई — मैन का काम करने की क्रिया।
~ मोरा होना — मुँह बन जाना, धुंसी की कड़ी टूटना।
~ मोरा — साँचा, मुँह।
~ मोरा बनाना — मुँह बनाने की क्रिया।
~ मोरी — लकड़ी का साधन जिसमें पिरोकर गहने साफ करते हैं।
~ मौथा — खरांद लगाने का दो धार वाला औजार।
~ रंग आना — धातु पिघलने पर भट्टी में कई प्रकार का रंग आना।
~ रंगाई — रंग नई-कलाई करने की क्रिया।
~ रबादार — गोल दाना।
~ रबार — गोल दाने (रबा) की पंक्ति
~ राल — कुन्द पर लगाने के लिये गेबरी और राल का मिश्रण जो कुन्द पर बर्तन जमाने के काम आता है।
~ रेत — रेतने का औजार।
~ रेतन — छीलने या साफ करने से धातु के जो बारीक कण गिरते हैं उन्हें रेतन कहते हैं।
~ रेतना — बर्तन या गहना रेती से साफ करना।
~ रौना — छोटे वोरे या रखे।
~ रूनयारो — ऐसा गहना जिसमें छोटे रोने या रखे जुड़े हों।
~ लच्छा — पैर में पहनने का चाँदी के मोटे तार से बना हुआ ऐंठदार गहना।
~ लछना— मैन जोडने का लोहे का औजार।
~ लाछना — मैन के एक हिस्से को दूसरे से मिलाना।
~ लीलाफली — खजूरी पैजना में ऊपर की पत्ती को कहते हैं जिसमें छोटे-छोटे बिन्दु होते हैं।
~ लेनी — खराद पर सफाई करने का औजार।
~वगवां —हाथ में पहनने का रबादार या ऐंठन दार पोला गहना।
~ वघिया — कुन्द घुमाने की रस्सी।
~ विंदली — पैर की अंगुलियों में पहनने का गहना।
~ वेड़ा — कुन्द लगाने की लकड़ी जिसमें कुन्द का सिरा लगाया जाता है।
~ सबरा — मठार करने का लोहे का साधन जिस पर रखकर बर्तन को ठोकते हैं।
~ संसा–संसी — गरम वस्तु को उठाने का औजार हथियार।
~ सांचौ — मोरा।
~ सिरौ — किसी वस्तु का ऊपर का हिस्सा।
~ सुम्मा — कड़ार करने का साधन जिससे बर्तन पर गोल दाने बनाते हैं।
~ सुवंज — सोने का टांका लगाने का मसाला जो सोने और तांबे से मिलकर बनता हैं।
~ सूत — तार, बर्तन पर बनी हुई रेखायें या धारियाँ।
~ सोंट — सांचे का मुँह जिससे होकर गली हुई धातु साँचे में पहुँचाते हैं।
गहने संबंधी शब्द
~ अनवट — जोडुआ, पैर में पहनने के।
~ अनोखा — पैर में पहनने का गहना।
~ उजरई, उजारनो — गहनों को तेजाब या खटाई में डालकर साफ करना।
~ एरन — कान में पहने के गहने।
~ कंठी — एक लड़ी का सोने के गुरियों का गहना।
~ ककना — हाथ में पहनने के गहने।
~ कजरिया — हाथ में पहनने का गहना।
~ कटीला— बांके हाथ में, भुजा में पहनने का गहना।
~ कठला —जिसमें ताबीज चन्दा, सूरज, हाय की पुतली और बघनखां आदि लगाते हैं।
~ कड़ा — हाथ में पहनने का गहना।
~ कर्णफूल — कन्नफूल, कान के गहने।
~ करदौनी — कमर में पहनने का गहना।
~ कील — नाक में पहनने का गहना।
~ कुंडल — कान में पहनने का गहना।
~ खंगोरिया — बड़ी हंसली, गले का गहना।
गले में पहनने का गहना।
~ खुटिया — नाक में पहनने का गहना।
~ गजरियां — हाथ में पहनने का गहना।
~ गुंज — हाथ में पहनने के गहने, सोने के तारों का गुंथा गहना गले में पहना जाता है।
~ गुच्छई–गजरा— पैर के फूलदार डिजायन के आभूषण।
~ गेद — पाँव की उंगलियों में बिछिया बिरमिदी, गहना।
~ गोफ — गले में पहनने का गहना।
~ घुंघरू — पायल में बजने वाले गोल रौने।
~ चंद्रहार — हमेल, गले का गहना।
~ चम्पो — गले में पहनने का गहना।
~ चिड़ी — बिछियों के प्रकार।
~ चुटकी — छोटी विरमिदी, छपकी।
~ चुरिया — चाँदी सोने की चूड़ियाँ।
~ चुल्ला — पाँव में पहनने के लिये गहना।
~ चूड़ी — चाँदी, सोने की डिजायनदार चूड़ी।
~ चूरा — हाथ में पहनने के गहने।
~ चूरा — हाथ में पहनने का गहना।
~ छन्नी — हाथ में पहनने के गहने।
~ छला — पैरों की उंगलियों में पहनने का चांदी का गहना।
~ छागल — पैर में पहनने के गहने।
~ छूटा — कमर में पहनने का गहना।
~ छैल चूड़ी — हाथ में पहनने का गहना।
~ छैलचूड़ी — हाथ में पहनने का गहने।
~ जुग–जुर्गा — लाल और सफेद गुरियो का
~ जोडुवा छला — पैर की उंगलियों में पहनने का गहना।
~ झांक — पैर में पहनने का गहना।
~ टकार — हमेल, गले का गहना।
~ टिकली — सिर में पहनने का गहना।
~ टीका — सिर में पहनने का गहना।
~ टोकरी — कान में पहनने का गहना।
~ ठुसी — गले में चिपकाकर पहनने का गहना।
~ डारें — हाथ में पहनने के गहने।
~ तरकी — कान में पहनने का गहना।
~ तरकी — कान में पहनने की सोने की बाली।
~ तिदाना — गले में पहनने का गहना।
~ तिदाना — गुरियों की सोने की कंठी।
~ तोड़न — पैरों में पहनने का गहना।
~ दौरी — हाथ में पहनने के गहने।
~ धुकधुकी — गले में पहनने के गहने।
~ नथ — नाक में पहनने का गहना
~ नरा — लहंगे का गुच्छा, बाँधने के लिए डोरी।
~ नौघरई — कलाई में तबजिया।
~ पचलरी — पांच लड़ी की माला।
~ पटेला — हाथ में पहनने के गहने।
~ पन्ना — कान में पहने के गहने।
~ हुंचिया — हाथ में पहनने के गहने।
~ पहुंची — छोटे बच्चों की कलाई या हाथ में पहनाने का मोती या चाँदी, सोने का गहना।
~ पांव पोश — उंगलियों और पैर के पंजे सहित पायल के साथ गहना।
~ पांसे — पैरों के गहने।
~ पातें — पैर की उंगलियों के लिए गहने।
~ पान — कान में पहने के गहने।
~ पायजेब — पैर में पहनने के गहने, पैरों में पहनने के चांदी के आभूषण।
~ पायल — पैर में पहनने के गहने।
~ पुंगरिया — नाक में पहनने का गहना, गर्रादार पुंग, डायमंड कट पुंग, एक पला की सादा, लुधयानी जड़ाऊ पुंगरिया।
~ पैजना — पैरों के गहने।
~ पैजनिया — पैरों के गहने।
~ पोला — पैर के अंगूठे का छल्ला।
~ पोले छला — पैर की उंगलियों में पहनने का गहना।
~ बंध — चाँदी की पतली रबेदार चूड़ी।
~ बखैरा — भुजा में पहनने का गहना।
~ बज्जुला — बांक, बाजबंद हाथ में पहनने का गहना।
~ बांकड़ी — पायल, झांक, पायजेब, तोडा, चूरा, पायल, झांक अनोखा, लच्छा, छैल चूड़ी, लच्छा, पैजना, गूजरी आदि गहने।
~ बाजूबंद — हाथ के बाजू में पहनने का गहना।
~ बारी — कान में पहने के गहने।
~ बाला — कान में पहनने की बडी बालियां।
~ बिंदली — पांव की अंगुलियों में पहनते हैं।
~ बिंदिया — सिर में लगाने/पहनने का गहना।
~ बिचौली — गले में पहनने का गहना।
~ बिछिया— पैर की उंगलियों का गहना।
~ बिजली — कान में पहनने की बाली में लगी हुई जड़ाऊ पत्ती।
~ बीज — सिर में पहनने का गहना।
~ बुन्दका — कान में पहने के गहने।
~ बुलाक — नाक में पहनने का गहना, नासिका के मध्य में पहनने वाला गहना।
~ बेंदा — सिर में पहनने का गहना।
~ बेनी — बालों में लगने का गहना।
~ बेल चूड़ी — हाथ में पहनने का गहना।
~ बेसर — नाक में पहनने का गहना।
~ मछरिया — बिछियों के प्रकार, पैरों के गहने।
~ माला — चौपाल दाने की सोने की माला।
~ मुंदरी — उंगली में पहनने का गहना।
~ मुरकी — कान में पहने के गहने।
~ मोनीमाला — सफेद गुरियों की मोतियों की माला।
~ मोर — बिछियों के प्रकार।
~ लच्छा — पैर में पहनने का गहना।
~ लरलरी — गले में पहनने का गहना।
~ लल्लरी — गले में पहनने का गहना।
~ लुटकी — कान की लौड़ी में पहनते हैं।
~ लोलक — झुमका, कान का गहना।
~ लौंग — नाक में पहनने का गहना।
~ वगवां — ककना, गजरा, जरिया की तरह हाथ का गहना, गलिया पटैला, दौरी आदि नाम।
~ बांके — पैर में पहनने का पांव पोस।
~ वाजूबंद — बाजू में पहनने का गहना।
~ विजोरिया –पटेला — हाथ में पहनने के गहने।
~ बीज — सिर पर बेंदी की तरह लगाने का गहना।
~ बेंदी — सिर पर बालों के ऊपर लगाकर मस्तक पर लगाने का गहना।
~ शीश फूल — सिर में पहनने का गहना।
~ सतलरी — गले में पहनने की सात लड़ियों की माला।
~ सर — गले से नाभि, तक लम्बी माला, आठ कलियों वाले लम्बे गुरियों वाली।
~ सांकर — गले में पहनने का गहना।
~ सांकर — चाँदी, सोने की ताबीज, लम्बी माला।
~ सीस फूल — सिर पर पहनने का सोने का गहना।
~ सेली — सोने के तार की एक लर की गोई हुई माला।
~ हथफूल — हाथ की पांचों उगलियों की अंगूठी व हथेली के ऊपर से कलाई में पहनने वाला आभूषण।
~ हरैया — हाथ में पहनने का गहना।
~ हाय — गले में पहनने का गहना। छोटे बच्चों को नजर न लगे, चांदी व सोने के गोल घेरे पर हाय लिखा हुआ गहना।
बर्तन व टोकरी संबंधी शब्द
~ ऊँचना— बांस का सामान बनाने के लिये बका से सीकों को साफ करना, दे. बका।
~ किरे — बांस की बनी टट्टियां जो छप्पर बनाने के काम आती है।
~ कुंडरी, कुनई — दौरिया, चंगेर आदि में नीचे तथा ऊपर के हिस्से में पड़ा हुआ पतली सींको का घेरा।
~ कुचेटबो, कुचेटना — टोकनी बन चुकने पर खपच्चियां या सीकों के शेष भाग की भीतर की ओर लौटने और दबाने की क्रिया।
~ खरौरी — दौरिया, चंगेर आदि के ऊपर का पतली सींको की बनी परत, दौरिया और चंगेर जेसे बासनों में दो परत होते हैं, बुनाई का एक प्रकार जिसमें बाँस की पतली खपच्चियों में सीकों को फंसाते चले जाते हैं, गाड़ी पर बिछाने के लिये बांस की लंबी चटाई।
~ खांची — चौड़े मुँह की टोकनी।
~ खीला — दौरिया अथवा चंगेर की किनार बांधने के लिये बांस की मुलायम पत्तियों के बंध।
~ गोट — चिकों अथवा पंखों की किनार पर लगा हुआ कपड़ा, दौरिया के सिरे पर चारों ओर लगी हुइ खपच्च।
~ गोना — पंखा, चिक आदि बनाने के लिये डोरे की सहायता से सीकों को विशेष प्रकार से बुनना।
~ चंगेर — बाँस की एक फैली हुई बड़ी टोकनी यह बच्चों के लिटाने और सुलाने के काम में आती है, ग्रामीण रस्सियों से टांग कर इसका झूला भी बनाते हैं, यह बहुधा भीतर से रंगी हुई और खूबसूरत होती है, देहातों में पुत्र जन्म के अवसर पर बुआ के घर से जो बंधाया आता है उसमें चंगेर मुख्य वस्तु होती है और बंधा भेजने को चंगेर भेजना कहते हैं।
~ चकौटी — थाल के आकार का बड़ा बासन जो बाँस की पतली खपच्चियों से बनता है, यह विवाह शादियों में मुख्यतः भोजन का सामान तथा वस्त्र आदि रखकर ले जाने के काम आता है।
~ चटाई — बाँस की पतली खपच्चियों की फर्श नुमा बिछावन जो बिछोने अथवा बरसात में पानी से बचने के लिये गाडियों पर लाने के काम आती है।
~चरिया — दे, बाँट
~ चलना — अनाज छानने के काम की बाँस की पतली सींको की बनी छन्नी।
~ चाँदी — चंगेर को आकर्षक बनाने के लिये डाली गई एक छोर से दूसरे छोर तक की आड़ी तिरछी रंगीन बुननी।
~ चिक— बाँस की सींको का पर्दा, यह सब तरह का और कीमती बनाया जाता है, सीकों को विविध प्रकार से बुनते हैं, बुनती की आकृतियों के हिसाब से अलग-अलग नाम हैं, जैसे-सिंगारेदार, लहरियादार गिलासदार इत्यादि।
~ चुलिया — बाँस का बना ढक्कनदार छोटा गोल डिब्बा
~ छबला — बाँस की कुछ मोटी सींकों की बनी बड़ी टोकनी।
~ छींटा — खपच्चियों और सीकों का बना हुआ एक छोटा और उथला बासन जो ढक्कन की भाँति इस्तेमाल होता है और बहुधा भात पसाने के काम आता है।
~ टुकनियां–टुकना — बॉंस की खपच्चियों या वृक्ष की पतली टहनियों का बना गोल और गहरा बासन, टोकनी, टुकनियां बाँस के बने बासनों का एक व्यापक नाम है, आकार प्रकार और बनावट के हिसाब से इनके अलग-अलग नाम हैं
~ पंखा— हवा करने के लिए बनाई गयी वस्तु विशेष, पंखे के बुनने को पूरन लगाना कहते हैं, पंखा बन चुकने पर डंडी जोड़ने के लिए डाट लगाते हैं।
~ पसोनिया — भात पसाने के लिए सीकों का बना बासन।
~ पाटी–पाटे — बाँस की साफ की हुई चौड़ी फंचें जो टोकनी के ढाँचे में लगती हैं और खरौरी की बुनती में काम आती है।
~ पिरिया— बाँस की मोटी फंचों की बनी टोकनी यह स्यारू नामक वृक्ष की पतली टहनियों से भी बनती हैं, कूड़ा आदि ढ़ोने के लिए इसी का अधिक व्यवहार होता है।
~ बका — बाँस को चीरने, साफ करने और उसकी पाटी सीके आदि बनाने का बसोरों का हथियार।
~ बखिया — बका से छोटी दे, बका।
~ बसेंडों— बाँस का बना सामान
~ बांध— दे. खीला
~ बिजनी — बाँस के बने बासनो की एक विशेष प्रकार की बुनायी जिसमें ताना बाना की फंचिया एक सही होती है, पंखा, सूप आदि की बुनाई इसी से होती है, चंगेर, दौरिया जैसे-दोहरी परत वाले बासनों की भीतरी परत।
~ मुगरिया— बाँस को बका से चीरने में सहायता देने के लिए लकड़ी का मोटा डंडा जो मूंठ की तरफ पतला और सिरे की ओर मोटा होता है।
~ मूढ़ा — हलवाईयों और फेरी बालों के लिए बनाया गया डमरू के आकार का बैठने का स्टूल।
~ सांक — दौरिया, चंगेर आदि में बाट के नीचे लगी गोट।
~सींक — बाँस की पतली चौकोर अथवा गोल और आवश्यकतानुसार लम्बी काटी गयी तीलियाँ।
~ सूप — अनाज फटकने और साफ करने का चौंड़ा बासन।
कुम्हार के व्यवसाय संबंधी शब्द
~ कमाई हुई मिट्टी — बर्तन बनाने के योग्य साफ की हुई और लोचदार बनाई गई मिट्टी।
~ कीला — धरती में गड़ा हुआ लकड़ी या लोहे का कीला जिस पर चाक घूमता है, इसे कहीं कहीं नेमी और कही चकोटे भी कहते हैं।
~ कुन्ना — गुलइया चाक के किनारे पर बना हुआ छोटा गड्ढा जिसमें चकलेटी फँसा कर चाक को घुमाते हैं, कहीं कहीं इसे गुल्ली और कहीं चिन्ती भी कहते हैं।
~ पाट–पटिया — पत्थर का समतल टुकड़ा जिसे जमीन पर गाड़ कर चाक घुमाने पर थपा पिंडी से पलौटते हैं, पलोट पलोट कर तब औंधा देते हैं छाया में सुखाते हैं फिर धूप में रखते हैं फिर पानी के पोता से भांजी जाती है होंठ छोड़कर पूरी गगरी ताकि राख मिट्टी में मिल जाये। अब गेवरी (छब्बीस) से रंगते है, सफेद रंग और खरिया पै, गोंदा चका पर रक्खा खौला-लम्बा लम्बा बीच में पोला खौल में मुराउट बनाते हैं। होंठ बनाकर मुराउट भांभां कर रख देते हैं धूप में जब होंठ कड़े हो जाते हैं तब अबा की राख भुरकाते हैं, फिर थपा और पिंडी (पत्थर) को रखकर डौर भांते हैं आधी गगरी बन गई, डौर जब करें हो गये तब थपा और पिड़ी से पूरी गगरी बना ली फिर घंघरों के ऊपर चित्र रख देते हैं, फिर ऊपर का हिस्सा कड़ा करते जाते हैं।
~ कुम्हरगरा — वह स्थान जहाँ की मिट्टी बर्तन बनाने के लिये बहुत उपयुक्त समझी जाती है और जहाँ से बर्तनों के लिये कुम्हार मिट्टी खोद कर लाते हैं।
~ कूंड़ौ— मिट्टी राख आदि का मिट्टी का तसला
~ खपरिया — पके हुये मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े आदि अबा ढकने के काम आते हैं।
~ खिरकाबौ— अबा के कच्चे बर्तनों को पकने के लिये सजाकर रखना।
~ खौल— चाक पर बनाये जाने वाले घड़े का प्रारम्भिक आकार दे.बासन बनावो।
~ गुंदिया — पानी में सनी हुई मिट्टी की छोटी छोटी लोई। आलेख
प्रचलित – 1. कंकना 2. लहरिया 3. झिझरी 4. मोर 5. खजुरिया 6. संतिया
~ चकौंदी चकौड़ी — बर्तन गढ़ते समय चाक पर मिट्टी चिकनाने के काम आने वाली पानी की हंडिया, इसे पुतांड़ी भी कहते हैं।
~चलना — राख और मीसन छानने के काम आने वाली बांस की खिरखिरी (झिजरीदार) टोकनी।
~ छापे— बर्तनों पर उभरे हुई आलेख बनाने के लिये मिट्टी के ठप्पे।
~ छापे— बर्तनों पर आलेख बनाने के लिए मिट्टी के ठप्पे, फिरका या फिरौती कहते हैं।
~ छीना या छैन — चाक पर तैयार किये हुए बर्तन को नीचे की मिट्टी पर से काटने का बारीक धागा।
~ छुलना — लोहे की खपच या पत्ती जो बर्तन पर से मिट्टी छीलने के काम आती है।
~ ठिनकना — टोकनी से छानना।
~ डंडा— दे. चाक
~ डंडा — लकड़ी का चकलैटी डंडा जिससे चाक घुमाते हैं, इसे कहीं-कहीं चकलैटी और कही हथिया कहते हैं।
~ डौर — चाक पर भाँकर बनाई गई अधूरी गगरी, दे. बासन बनावो।
~ ढिनकबो — टोकनी से मिट्टी को छानने की क्रिया।
~ थपा — मिट्टी के बड़े बर्तनों की गोलाई को ठीक करने और बढ़ाने की लकड़ी जिसका एक सिरा कुछ गोल और चपटा होता है।
~ थपा — मिट्टी के घड़े के आकार के बर्तनों की गोलाई को ठीक करने और बढ़ाने की लकड़ी की बनी मुठिया जिसके एक सिरा कुछ गोल और चपटा होता है।
~ थारौ — अला लगाने के लिये बर्तन बिछाई गई कंडे की पंक्ति।
~ परमावट — पानी में भीगा हुआ कपड़ा जो बर्तनों पर चिकनाई लाने के काम आता है और चकौड़ी में पड़ा रहता है परमावट करना– गीले कपड़े से बर्तन को चिकनाना।
~ परमावर — जो बर्तनों पर चिकनाई लाने के काम आता है और चकौती में पड़ा रहता है।
~ पाट — दे. चाक
~ पिन्डी या पिड़ी — पत्थर की वह चकती जिसे बर्तन गढ़ते समय उनकी गोलाई को ठीक करने के लिये भीतर जमा कर ऊपर से थपा की चोट मारते हैं।
~ पिरा — बाँस या स्यारू की पतली लकड़ियों से बनी हुई बड़ी टोकन जो कूड़ा करकट इकट्ठा करने और बर्तन ढोने के काम आती है।
~ पिरिया — पिरा से छोटी टोकनी।
~ पुतांड़ी — दे चकौती।
~ पोती — पानी से भीगा हुआ कपड़ा
~ बासन बनावो — चाक पर मिट्टी के बर्तन भांकर गगरी या घड़े के आकार के बर्तन बनाने के लिये मिट्टी का गाैंदा चॉक पर रखते हैं. चाक धुमाके पहिले लंबा खौल बनाते हैं, फिर उसे थोड़ा घड़े का आकार देकर मुराउट बनाते हैं और उसके होंठ बनाकर छीना से काट कर उठा लेते हैं, इस प्रकार मुराउट भां-भां कर उन्हें धूप में सूखने रख देते हैं जब उनके होंठ कुछ कड़े पड़ जाते हैं तब अबा की छनी हुई बारीक राख भुरक भुरक कर उन्हें थपा और पिड़ी की सहायता से डोर भाँते हैं, डोर जब कुछ करें पड़ जाते हें तब फिर थपा से पिंडी से पाटे की सहायता कर घूरी गगरी बनाते हैं, इन्हें घंघरों पर चित्र सूखने के लिये रख देते हैं, ऊपर का हिस्सा कुछ कड़ा पड़ जाने पर थपा पिंडी से पलोटते हैं, पलोट पलोट कर आँधा देते हैं और छाया में सुखाते हैं, फिर होंठ छोड़कर परी गगरी गगरी पानी के पोता से भांजते हैं जिसमें ऊपर लगी हुई राख मिट्टी में मिल जाये, अब गेवरी से रंगते है, सफेद रंग के लिये ऐलखरी का प्रयोग करते हैं।
~ भांबो — घूमते हुये चाक पर मिट्टी से बर्तन डोलाना या बनाना।
~ माटी गींजबो — (मिट्टी गीलना) पानी मे भीगी हुई मिट्टी को हाथों से मीड कर उसके कंकड़ तिनके को अलग-अलग करना और उसे अच्छी तरह साफ करना।
~ माटी सानबो — (मिट्टी सानना) खदान से मिट्टी लाकर मीसन मिलाकर पानी के साथ भिगो देना, दे. मीसन।
~ माना — घूमते हुए चाक पर मिट्टी से बर्तन डौलाना या बनाना।
~ मिट्टी कमाना — मिट्टी को साफ करके पान में डालकर गूंदना और लोचदार बनाना।
~ मिट्टी गींजना — पानी से भीगी हुई मिट्टी को हाथो से मीडकर कंकड तिनका आदि बीनना और मिट्टी को अच्छी तरह मिलाना।
~ मिट्टी सानना — माटी साधना, खदान से मिट्टी लाकर मीसन मिलाकर पान के साथ भिगो देना।
~ मींसन — मिट्टी में मिलाने के लिये बारीक भुस घोड़े की लीद और छना हुआ कूड़ा करकट जिसमें मिट्टी लोचदार बनती है। इसे रकसा या पटेंटी भी कहते हैं।
~ मुरम–मुरमा — एक विशेष प्रकार की लाल कंकरीली मिटट्टी जो बर्तन बनाने के काम आती है।
~ मुराउट — खौल के बाद घड़े का दूसरा रूप, दे., बासन बनाना।
~ रंगनी — सूखे हुए बर्तन पर रंग करना।
~ रंगनी — मिट्टी के सूखे बर्तनों पर रंग करना।
~ रकसना — रकसा बनाना लीद अथवा दूसरा मींसन छानना।
~ रकसबौ — रकसा बनाना, लीद अथवा दूसरा भीसन छानना।
~ राख — कंडो की छनी हुई राख जो बर्तनों को ढकते समय उन पर भुरकने के काम आती है। — अबा की छनी हुई राख जो बर्तनों को ढकते समय उन पर भुरकने के काम आती है।
~ लत्ता — दे. पोती।
~ लिखना — बत्तनों पर बने आलेख।
~ सेलखड़ी — एक प्रकार का चिकना चमकदार मुलायम और कुछ नीलापन लिये हुये सफेद पत्थर जिसे बारीक पीस कर और सफेदी के साथ पानी में मिलाकर बर्तनों पर बेलबूटे बनाते हैं।
बड़ई के व्यवसाय संबंध शब्द
~ आरी — लकड़ी काटने के लिए, बड़ी आरी, छोटी आरी, धकाऊ आरी, खिंचाऊ आरी।
~ इंचीटेप — लकड़ी की नापतौल के लिए।
~ कचक — लकड़ी में गड्ढा करने के लिए, छेद करने के लिए।
~ कचक — निहाना लकड़ी में छिदाई के काम के लिए।
~ कीलियर फाइल — जो लकड़ी में फिनिसिंग के काम आती है।
~ गुनिया — लकड़ी की टेड़ बताता है।
~ जम्मू — जो कीले निकालने के काम आता है।
~ ड्रिल — दीवान या लकड़ी में छेद करने के काम आती है।
~ तिकोरा रेती — आरियों में धार लगाने के काम आती है।
~ दररा– फाइल — लकड़ी में मोटी फिनिसिंग के काम आती है।
~ पेंच कस — पेंच कसने के काम आता है।
~ प्लास — जो कीलें निकालने के काम आता है।
~ बर्मी–कमानी — जो लकड़ी में रिपिट कसने के काम आती है।
~ बसूला — लकड़ी छीलने के लिए.. मोटी लकड़ी छीलने के काम आता है।
~ बाक — लकड़ी कसने के काम आता है।
~ बिट–बर्मा — पेंच कसने के काम आता है।
~ ब्रेबल गुनिया — क्रेप के काम आता है।
~ राहुल– पंच — दीवाल में छेद कदने के काम आती है।
~ रूखानी — लकड़ी छीलने काम आने वाला औजार।
~ रून्दा — लकड़ी छीलने का काम करने के लिए कई-गोलाई वाला रून्दा, झिरी का रुन्दा, पाताम का रून्छा, कनी का रून्दा, बड़ा रून्दा, गुटका रून्दा
~ शिकन्जा — लकड़ी को कसने के लिए, छोटा शिकन्जा, बड़ा शिकन्जा।
~हथौड़ी — कील ठोकने के काम आती है।
दैनिक जीवन में उपयोगी शब्द
~ अंकराद — एक प्रकार का कुडुवापन जो बहुत पुराने आटे में आ जाता है।
~ आंखना — आंखी से मैदा छानना।
~ आंखी — मैदा छानने की बारीक छननी।
~ आटा — रोटी आदि बनाने के लिये पिसा हुआ अनाज, चून।
~ उपरौटा, उपरंगा — चक्की का ऊपर का पाट।
~ ऐलक — आटा छानने की बारीक छन्नी।
~ कनक — गेहूँ का पिसा आटा, चून।
~ कन्ना — गड़ार से आटा साफ करने का कपड़ा
~ किराना — अनाज में से सूप की सहायता से बारीक मिट्टी और कचरा साफ करना, प्र. गेहूं किररालो-गेहूं साफ कर लो।
~ किराबो — अनाज में से सूप की सहायता से कूड़ा करकट और मिट्टी के बारीक कणों को अलग करना, प्र. गेहूँ किरा लो गेहूँ साफ कर लो।
~ कीला — चक्की के नीचे के पाट के बीच में जड़ी हुई छोटी मेख जिस पर ऊपर का कीला घूमता है, लकड़ी का वह गोला डंडा जो गड़ार के बीचों बीच लगा रहता है और जिस पर नीचे का पाट जमाया जाता है।
~ कुची — चक्की से आटा साफ करने की खजूर की झाडू।
~ कुनई, कुंडरी — चक्की को आवश्यकतानुसार हल्का या भारी करने के लिये संजोव में पहिनाया गया मंज या कपड़े की धजी का छोटा छल्ला यह छल्ला चक्की के दोनों पाटों को एक दूसरे से अलग रखता है और उनको परस्पर जमने नहीं देता, छल्ला, जितना मोटा होता है चक्की के ऊपर का पाट नीचे के पाट से उतना ही ऊपर उठा रहता है और चक्की उतनी ही हल्की चलती है दलिया या मोटा आटा पीसने के लिये यह छल्ला बहुत आवश्यक है।
~ कौर — अनाज पीसने के लिये चक्की के मुँह में एक बार में अनाज के जितने दाने डाले जाते हैं वहएक कौर या झौंक कहलाता है।
~ गड़ार— चक्की के चारों ओर बना हुआ कुंड़े के आकार का मिट्टी का घेर जिसमें चक्की का नीचे का पाट स्थायी रूप से जमा रहता है और जिसमें चक्की से निकलता हुआ आटा पिस पिसकर गिरता रहता है इसे गड़ार और कहीं कहीं गंड भी कहते हैं।
~गरंड, गंड — दे. गड़ार।
~ गरई–चकिया — आटा पीसते समय भारीचलने वाली चक्की।
~ गरो — गला, चक्की का मुँह जिसमें पीसने के लिये अनाज डालते हैं।
~ घाट — चक्की के पाट में एक दूसरे को समकोण पर काटती हुई टांककर बनाई गई दो धारियों जिनसे आटा पिसकर शीघ्रता से नीचे गिरता है, ये धारियाँ दोनों पाटों में समान रूप से बनी होती है।
~ चकिया — चक्की अनाज इत्यादि पीसने की हाथ की कल जो पत्थर के दो गोल और आवश्यकतानुसार छोटे-बड़े पाटों का समन्वय होती है नीचे के पाट में एक छोटा छेद होता है जिसके द्वारा वह गड़ार में लगे हुए लकड़ी के कीले पर मजबूती से जमा दिया जाता है, लकड़ी के कीले में संजोव लगा रहता है जिस पर मानी की सहायता से ऊपर का पाट घूमता है।
~ चकिया ओरवो — आटा पीसने के लिये चक्की चलाना और उसमें कौर देना प्रारम्भ कर देना।
~ चक्की ओरना — आटा पीसने के लिए चक्की चलाना, शुरू कर देना।
~ चक्की टंकाई — चक्की टॉकने की मजदूरी।
~ चक्की टांगना — चक्की के पाट में लोहे की नोकदार टांकी से खुरदरे निशान बनाना।
~ चलनी — आटा छानने का लोहे का पीतल का उपकरण जिसमें बारीक छेद बने होते हैं, अथवा जाली लगी रहती है।
~ चल्लो सन — आटा अथवा दाल को छानने से बचा हुआ फोका।
~ चापर — आटे की वह भुसी जो मैदा बनाने के लिये आटे को बारीक छननी से छानने के पश्चात् बचती है, सीले हुये अनाज का फोक जिसमें दोनों का बहुत सा अंश बिना पिसा हुआ चपटा होकर मिल गया हो।
~ चुनी — दाल का छिलका और टूटे हुये बारीक कन मिली हुई छानना।
~ चून — आटा, पिसा हुआ अनाज, प्र. घर में नइयां चून, चनन कौ, ठाकुर करे बरी बनाव।
~ चोकर — अनाज या दाल के दोनों की बारीक चूरा मिली हुई भुसी। भीगी दाल के धोकर अलग किये गये छिलके।
~ चोवा दाल — छिलका लगी दाल।
~ छजना, छाज — अनाज के कूड़े कचरे को साफ करने के लिये आवश्कतानुसार छोटे बड़े छेदों वाला लोहे का उपकरण यह साधारणतः लोहे की जाली अथवा छेद की हुई लोहे की पतली चादर से बनता है जिसमें लकड़ी का चौखटा लगा रहता है, अनाज साफ करने का बांस का बना सूप।
~ छजनिया — दाल छानने का छोटा छाज।
~ छनन— अनाज को छानने से बचा हुआ कूड़ा करकट जिसमें अनाज कम बारीक दाने मिले हों।
~ जतरिया — दाल दलने की छोटी चक्की जिसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से उठाकर रक्खा जा सकता है।
~ जांत या जांती — आटा पीसने की एक विशेष प्रकार की चक्की जिसका ऊपर का पाट मिट्टी थोप कर भारी बना दिया जाता है।
~ जेरी — जांते की मानी से मिला हुआ डंडा जिसके सहारे ऊपर का पाट घूमता है।
~ झोंक — दे. कौर।
~ टक — चक्की के पाट पर बने हुये खुरदरे निशान जो लोहे की नोकदार टांको से बनाये जाते हैं और जिनसे आटा आसानी से पिसता है।
~ टकनारी — (टकनहारी) चक्की को टांकने का काम करने वाली स्त्री जो प्रायः लोहारिन होती है।
~टुटी — दली हुई दाल को छानने के पश्चात बचे हुए दाल के बारीक कन।
~ डंडा — चक्की घुमाने का डंडा जो ऊपर के पाट में उसके एक किनारे पर छेद में ठुका रहता है।
~ तरौंटा — चक्की के नीचे का पाट।
~ दन्नो — बारीक दला हुआ अनाज, गेहूँ जौ ज्वार आदि का दानेदार आटा।
~ दरबो — जांत से दलकर दाल बनाने की क्रिया, दलना, दरदरो चून-मोटा पिसा हुआ आटा।
~ दाल — नमक का पानी और घी का मोवा देकर दबाकर रखने के बाद मूसल से कूट कर छिलका निकाली गई मूंग या उर्द की दाल इसे मोवा दाल भी कहते है।
~ नुकांवनो — साफ करने के लिये अलग निकालकर रक्खा गया अनाज।
~ नुकाबो — अनाज साफ करना, अनाज में से कूड़ा करकट बीनना।
~ परोखा— अनाज को फटकने और फिर फटकन को साफ करके के पश्चात् बचा हुआ कूड़ा करकट जिसमें अनाज के कुछ बारीक दाने फिर भी मिले रहते हैं।
~ परोरना — अनाज को फटकने के पश्चात् बचे हुये कूड़ा करकट से अनाज के दानों को अलग करना।
~ पाट — चक्की के ऊपर और नीचे के पत्थर जिनके बीच के पत्थर जिनमें बीच में आटा पिसता है ये टांको से टके हुये होते हैं, नीचे के पाट में एक छेद होता है जिससे वह गरंड में कीले पर जमा रहता है। ऊपर के पाट में अपेक्षाकृत बड़ा छेद होता है जिसमें मानी लगती है, इसके अतिरिक्त ऊपर की ओर इसके एक सिरे पर एक गड्ढा होता है जिसमें चक्की घुमाने का डंडा ठोका जाता है।
~ पिडी — मूंज से बनी हुई चारपाई की तरह की एक चौकार बैठक जिस पर बैठकर चक्की पीसते।
~ पिसनारी — आटा पीसने वाली, मजदूरन, पिसनहारी।
~ पिसाई — आटा पीसने की मजदूरी।
~ फर्राडन — बिना गड़ार की चक्की जो जमीन में जमाई जाती है, इसका नीचे का पाट प्रायः मिट्टी का होता है, यह प्रायः कोदो, धान समां आदि की भुसी दूर करने के काम आती है।
~ फटकबो— अनाज को सूप से झकोल कर कूड़ा करकट साफ करना।
~ फटकन — सबसे फटक कर अलग किया गया अनाज का कूड़ा करकट।
~ फेर— चक्की के पाट का घेरा, परिधि।
~ बिर्रा — चने के साथ पिसा हुआ अथवा चने का और गेहूं का आटा।
~ बीनबो — द. नुकाबो।
~ भकरांद — भुकरांद-ऐसे पुराने आटे की गन्ध जो बहुत दिनों तक किसी सीलबन्द जगह में बंद रक्खा रहा हो।
~ भुकरांदयो चून — खराब दुर्गन्ध मय आटा।
~ भुसी — अनाज के दाने का ऊपर का छिलका जो दलने से अलग होता है, आटे का छनना।
~ मानी — चक्की के ऊपर के पाट में बीच छेद में आड़ा लगा हुआ लकड़ी का गुटका इसके बीच में एक छेद रहता है जिसके द्वारा नीचे के पाट के संजोव में ऊपर का पाट पहना दिया जात है इस छेद में लाहे की मुंदरी लगी रहती है।
~ मुंदरी— मानी के छेद में पड़ा हुआ लोहे का छल्ला जो मानी को कील की रगड से घिसने से बचाता है।
~ मैदा — गेहुओं का बहुत बारीक पिसा हुआ आटा जो आंखी से छानकर अलग किया गया है और जिसमें चोकर सा भुसका लेशमात्र न हो, मैदा बनाने के लिये गेहुंओं को पहिले पानी में थोड़ा भींगने डाल देते हैं फिर छाया में साधारण रूप से सुखाकर पीसते हैं ऐसा करने से चापर आसानी से अलग हो जाती है, पिसे हुये आटे को आंखी से छानने के पश्चात् फिर भी मोटा दानेदार आटा बचा रहता है वह रवा कहलाता है और बारीक छना हुआ आटा मैदा।
~ रवा — गेहुंओं का खसखस के दानों जैसा बना हुआ आटा जिसमें चापर का अंश न हो, इसे सूजी भी कहते हैं। मैदा बनाते समय यह आटे से निकलता है देखिये मैदा।
~ रोरबो — राई, सरसों, धनिया जैसे गोल वस्तु को थाली में धीरे-धीरे झकोल कर साफ करना।
~ विंदुवा — जाँते की लकड़ी जो जाँते के मुँह पर लगी रहती है, जाँत के ऊपर के पाट में दो कुन्दा रहते हैं जिनसे विदुवा के दोनों सिरे बंधे रहते हैं और बीच में कीला रहता है, इस उपकरण से जांज को आवश्कतानुसार हल्का व भारी करने में सहायता मिलती है, रस्सी के फंदे को गाढ़ा करने से जांत हल्का और ढीला करने से भारी चलने लगता है।
~ संजोव — चक्की के नीचे के पाट में बीचो बीच लगी हुई लोहे को मेख। यह मेख लकड़ी के उस कीले में दुकी रहती है जो पाट के बीच में फंसा रहता है, दे कीला।
~ सूजी — दे. रबा।
~ सूप — अनाज फटकने का साधन जो साधारणतः बाँस की पतली तीलियों या सिरकी का बनता है।
पशुओं के अंग/प्रत्यंग संबंधी शब्द
~ आंगलो गोड़ो — आगे का पैर
~ आंड़ी — अंडकोष।
~ ककई — आगे की वह हड्डी जिसमें पसलियां जुड़ती हैं।
~ काँख — पहली पसली और छपा के बीच की जगह।
~ काँचर— दूध देने वाली गाय के थनों का ऊपर का स्थान दुग्ध स्थली।
~ काँठो — वह स्थान जहाँ से पूंछ प्रारम्भहोती है।
~ कँदा— कंधा, गर्दन और अगले पैरों के जोड़ के बीच का स्थान।
~ काँदौर — गर्दन के ऊपर दोनों अगले पैरों के जोड़ के ऊपर का उठा हुआ हिस्सा।
~ किसवार — केसर, घोड़े की गर्दन पर के बाल।
~ कोखर — कोछा, पैरों के पास पैर और पेट के बीच का कोना बनाने वाली जगह।
~ कोहान — ऊँट की पीठ पर बीच में उठी हुई जगह, कूबड़।
~ खुरी — नाखून पैरों के नीचे का सख्त हिस्सा जो गाय, बैल, भैंस आदि में बीच से दो हिस्सों में फटा होता हैं
~ गर्दाना — कालर और कंधे के बीच का स्थान।
~गाँठ — कंधे का जोड़, छपा।
~ गिली — पूंछ का आखिरी हिस्सा, बालों के भीतर का मांसल स्थल।
~ घनी पसुरियाँ — पहली चार पसलियों के ऊपर का हिस्सा।
~ चाब — जबडा।
~ छपा — दे. गाँठ।
~ जमतपांव — आगे के पैर, कंधा और टेहुनी के बीच का हिस्सा।
~ झालर — गर्दन के नीचे लटकने वाला चमड़ा।
~ ढिलकुख — ढीली कोख अंतिम पसली तथा कूल्हे के बीच का स्थान।
~ तिरक — तिहड्डा के ऊपर की जगह, दे. तिहड्डा।
~ तिहड्डा — वह स्थान जहाँ से पूंछ प्रारम्भहोता है।
~ थन — मादा पशुओं के स्तन जिनसे दूध निकलता है, विभिन्न पशुओं में थनों की संख्या विभिन्न पायी जाती है, गाय के चार, बकरिया के दो सुअरनी के पूरे पेट में बारह, कृतियों के आठ और बिल्ली के छः थन होते है।
~ थुथरी — थूथर का स्त्री लिंग, जानवर के मोटे ओंठ, मुँह का नथनों वाला हिस्सा।
~ थूथर — दे. थुथरी।
~ पसरांडो — (पसलैड़) पसलियों का स्थान, पसलियों का समूह।
~ पिटौर— पेट का हिस्सा।
~ पुठी–पट्ठा — पैरों के ऊपर पूंछ के पास की मांसल जगह
~ पड़ — पिछले पैरों का ऊपरी हिस्सा।
~ बचखुरी — खुरियों के ऊपर पैरों में अन्दर की ओर लटकने वाली दो सख्त अंगुलियाँ सी होती हैं उन्हें बच खुरा कहते हैं।
~बड़ेरिया — गर्दन से पूछ तक ऊपर जाने वाली हड्डी, रीढ़ जिससे दोनों ओर की पसलियाँ निकलती हैं।
~ बांसो — नाक के ऊपर का हिस्सा।
~ बिर्री पसुरियां — नीचे की पसलियां।
~ गुगरिया — कान के पीछे से लेकर कंधे तक गर्दन का हिस्सा।
~ मुतान — पेशाब करने की जगह मूत्रेन्द्रिय।
~ लठिया— रीढ़ की हड्डी।
~ लिदारौ — पेट के अन्दर की मलामत।
~ सेन — मादा जानवरों की मूत्रस्थली योनि।
~ सिंगोटी — सींग, सींगों की बनावट।
~ सुम्म — घोड़े के नाखून, टाप।
~ सकरी कांख — अगले पैरों की बगल।
गाड़ी के विभिन्न भागों के नाम
~ अँधौनी — बैलों की आंखों में धूल आदि से।
~ अँडुवा — वह बैल जिसके अंडकोष न निकाले गये हो।
~ अगर — बैलगाड़ी के चलने में आगे की ओर दबे रहने की स्थिति जो गाड़ी के अगले हिस्से पर अधिक बोझ होने से उत्पन्न हो जाती है, दे. उलंज।
~ अग्गासना — गाड़ी के पीछे के हिस्से में अधिक बोझ होने के कारण गाडी का यकायक ऊपर उठ जाना। प्र. गाडी अग्गासन गई गाड़ी ऊपर उठ गई।
~ अजोता — बैल का वह नौजवान पट्ठा जो काम में न लगाया गया हो और गाड़ी या हल में जोता न गया हो।
~ अटका — गाड़ी को अग्गासने से बचने के लिए उसके पीछे लगी हुई हाथ भर लम्बी लकड़ी जो गाड़ी से लटकती रहती है इसे लड्ड्या भी कहते हैं।
~ अटाने — अटान का ब.व. लोहे या लकड़ी की दो कीलें जो गाड़ी के ढांचे को भौरे पर संभाल कर रखने के लिए बीच की पटली और भौंरा में पड़ी रहती है, दे. भौरा।
~ अरई — बैल हॉकने की लकड़ी या हंकनी के सिरे पर लगी हुई लोहे की नोंकदार कील जो बैलों की चाल तेज करने के लिये उनको कोचा जाता है।
~ अर्राई–सराई — गाड़ी के पहिए में आड़े और सीधे जड़े हुए नग। अर्र के अर्थ में वह रूढ़ हो गया है।
~ अल्हड़ — वेसधा बैल।
~आउन — पहिए की नाभि के छेद में लगा हुआ लोहे का पोला जो नाभि को धुरे की रगड़ से बचाने के लिए लगाया जाता है, इसे साम या सामा भी कहते हैं।
~ आउन बिठाना — आउन के नार के सुराख में मजबूती से फंसाना।
~ आड़ — ढाल के ऊपर खड़ी हुई गाड़ी के पहिए के नीचे लगाने की पत्थर या लकड़ी की कोई रैक जिससे गाड़ी अपने स्थान पर खड़ी रहे और आगे या पीछे न जाय।
~आसन — गाड़ीवान या गाड़ी हाँकने वाले के बैठने की जगह।
~ औंगना — गाड़ी में आँगन देना, वह बर्तन जिसमें आँगन रक्खा जाता हैं
~ औगन — वह तेल अथवा चिकना पदार्थ जो नाभि के छेद में भरा जाताहै जिससे पहिया आसानी से घूमता रहे।
~ उलंग — बैलगाड़ी के चलने पर पीछे की ओर झुकी रहने की अवस्था जो पीछे के हिस्से पर अधिक बोझ होने से उत्पन्न हो जाती हैं, पीछे अधिक बोझ रहने से आगे का हिस्सा कुछ हद तक ऊपर उठ जाता है। जिससे गाड़ी का नेउत बिगड़ जाता है और बैलों को चलने में कठिनाई पड़ती है, उलंग होने को पछर होना भी कहते हैं. उलंग होने की विपरीत दूसरी अवस्था अगर होना है जिसमें गाड़ी का बोझ आगे की ओर अधिक रहता है।
~ कबरा — चित्तीदार बैल।
~ किना — केन की तलहटी का बैल जो बुंदेलखण्ड में अपनी कष्ट सहिष्णुत्ता और बलिष्ठता के लिये प्रसिद्ध है।
~ किरौ — सिमारू की पतली लकड़ियों की बनी हुई जो गाड़ी पर लंबी बिछाने और उसके अगल-बगल लगाने के काम आती है जिसमें गाड़ी में भरी हुई मिट्टी खाद नीचे न गिर सके।
~ कैंचा — वह बैल जिसका एक सींग खड़ा और एक लटका हुआ हो।
~ कोंचर — वह बैल या लदाऊ जानवर जो चलते चलते बैठ जाय।
~ खकन — वह बैल जो खूंटे से सिर मारे असगुनिया समझा जाता है।
~ खड़ेलुआ — गाड़ी के ढांचे पर दोनों ओर लगी खड़ी लकड़ियाँ जो संख्या में तीन होती हैं।
~ खल्लर — दुबला बूढ़ा निकम्मा बैल।
~ खुटला — ऐसे खड़ेलुआ जिनमें छेद होते है और उनमें लग्गी पड़ी रहती है, दे. लग्गी।
~खुर चटक — वह बैल जिसके खुर के हिस्से कटे हुए हों और परस्पर एक दूसरे से अलग रहे। ऐसा बैल चलने का कमजोर माना जाता है।
~ खेप — किसी अनाज की विशेष मात्रा जो एक बार में लाद कर ले जायी जाये।
~ गड़वात — जमीन पर गाड़ी के पहियों के चलने के निशान। लीक
~ गहनी गाय — दे. बैलऊ
~ गाड़ी — पहिये वाली सवारी जिसे किसी साधन से खींच या ढकेल कर चलाया जाता है।
~ गाड़ी वान — बैलगाड़ी को चलाने या हॉकने वाला या चलाने वाला।
~ गाड़ी जोतना — गाड़ी को चलाने के लिये बैलों से बाँधना।
~ गाड़ी हाँकना — गाड़ी को बैल या घोड़े से खिचवाना।
~ गुँजेली गुँजील — पुठिया को जोड़ने वाली लकड़ी के मेखें जो पुठियों के बीच में पड़ी रहती है, दे. पुठी।
~ गौन — खुरजी सामान भर कर ले जाने।
~ गौनी — एक विशेष प्रकार का सिला हुआ थैला।
~ घुरकीला— पुरकील घुर को मौरे के भीतर एक स्थान पर छड़ रखने के लिये जो कील लगाई जाती है वह घुरकीला या घुरकील कहलाती है।
~घुरा — गाड़ी के ढांचे में पटनौर के नीचे लगी हुई तीन लकड़ियाँ गाड़ी की चौड़ाई के हिसाब से फैली हुई रहती है और आगे आपस में हरैना के द्वारा जुड़ी रहती है, आसपास की दो लकड़ियाँ घुरा कहलाती हैं और बीच का सींका ये घुरे ढोकर की लकड़ी के तीन छेदों में पड़े रहते हैं। ढोकर के बाद एक पटली बीच में और दूसरी घुरे के पिछले सिरों पर लगी रहती है, बीच में कम चौड़ी पटलियां पड़ी रहती हैं इन सबको मिलाकर गाडी का ढांचा बनता है।
~ घुरे — मौरा के दोनों सिरों पर लगे हुए लगभग डेढ़ हाथ लंबे लोहे के मोटे डंडे जिनमें पहिया पिरोये जाते हैं, ये घुरे के छेदों में लगभग एक बालिशत भीतर धंसे रहते हैं और मजबूती के लिये उनमें घुरे कीले लगे रहते हैं।
~ घौरा— घूसर रंग का सफेद और नीले रंग का बैल।
~ चका — पहिया, चक्र जो घुर में पड़े रहते हैं और जिनके घूमने से गाडी आगे बढ़ती है। चका में पुठी और 12 नग लगते हैं बीच में नारया नाभि होती है, पुटियों के मिलने से पहिए की परिधि बनती है जो नगों के द्वारा नार से संबंध रहता है, दे. नार, नग और पुठी।
~ चकील — चक्रकील धुर के सिरे पर छेद में लगी हुई कील जो पहिए को धुर से बाहर निकालने से बचाये रहती है।
~ चकुलिया — पहिए को भौरे के डण्डे में डालकर ऊपर से लकड़ी की एक गोल मोटी चकती डालते हैं फिर चकील लगाते हैं. इस चकाती को चकुलिया और कहीं-कहीं तुरकली या भौं चप्पा कहते हैं।
~ चलन सार — दूर तक एक सी चाल चलने वाला बैल बैल जो एक हो चाल से लंबी यात्रा करे।
~ चांदनी — ऊपर छाया के लिये डाला गया कपड़ा, बैलगाड़ी के सामने देखना है। सिरे को ऊपर उठाये रखने के लिये घुरों के सिरे पर बंधी हुई टेक, इसे घुरिया कहते हैं।
~चोटिया — नगों का पुठी में मजबूती से जमा कर रखने के लिए पुठिया की चूल और नगों के बीच में टुकी हुई पच्चड़ें, दे. नग और पुठी।
~ जुआंरी — जुओं, बैलगाड़ी के धुरों के सिरे पर लगी हुई आड़ी लकड़ी जिसके नीचे बैलों की गर्दन रहती है और जिसके सहारे बैलगाड़ी खींचते है।
~ जुआंरी रखना — बैल को गाड़ी में जोतना।
~ जुआंरी डालना — बैल की गर्दन से जुआं अलग करना, बैल का गाड़ी से अलग हो जाना, प्र. बैल ने जुआं डाल दी बैल गाड़ी से, अलग हो गये।
~ जोड़ी — बैलों की जोड़ी जो गाड़ी में साथ जोतने के लिये साधी जाय।
~ जोत — जुआंरी में लगी हुई सूत या सन की रस्सी जो बैलों को गाड़ी में जोतने के लिए उनके गले में डाली जाती है।
~ झबड़ा — वह बैल जिसके जबड़ों पर घने बाल हों।
~ झबुआ — वह बैल जिसके कान पर घने बाल हो।
~ झूमर — गाड़ीवान का वह डंडा जिसके सिरे पर जंजीरों का गुच्छा या झांझ लगी रहती है और नये बैल को हांकने के लिये जिसका उपयोग किया जाता है।
~ टिटकारना — बैल को चलाने और हांकने के लिये जीभ बजाना।
~ टिटकारी — गाड़ीवान के मुँह की विशेष आवाज जो बैल को हौंकने और चलाने का संकेत समझी जाती है।
~ डगार — बैल या साँड की क्रोध भरी आवाज।
~ डांगर — दुबला-पतला कमजोर टूटा हुआ बैल।
~ ढट्ठा — बेनाथ के बैल की थूथर पर बांधने की रस्सी या कपडा जो बाग का काम दे और उसको काबू में रक्खो। (2) वह लकड़ी जो बैल के मुँह में देकर बांध दी जाय ताकि वह चारे पर मुँह न डाले या कुछ खान सके।
~ ढलाकना — बैल या सांड का गुस्से में आवाज करना
~ ढाँच — मौरे पर रकबा हुआ गाड़ का ऊपर पूरा हिस्सा।
~ ढूंढा — बैल जिसके सींग टूटा हो।
~ ढुलनिया — बैल के गले का गहना जो ढोल के आकार का पीतल का बना होता है और जिसमें घुंघरू लगे रहते हैं।
~ ढोकर — गाड़ी के ढांच में सबसे आगे लगी हुई वह मोटी चन्द्राकार लकड़ी जिसके बीच में तीन छेद होते हैं और जिनमें होकर धुरे पड़े रहते हैं
~तरकुली — पहिये का मौरे चकुलिया के खंड में डालकर लकड़ी की एक गोल मोटी चकती डालते है उसके बाद चकील लाते है, इस चकती को तरकुली और कहीं कहीं चकुलिया कहते हैं।
~ तोबड़ा — गाड़ीवान के बैठने की जगह के नीचे फड़ में लटकी हुई मामूली सामान रखने की थैली।
~ तोबरा — गाड़ीवान के बैठने के स्थान के नीचे बांधकर लटकाई गई थैली जो मामूली सामान रखने के काम आती है।
~ दांड़ा— बूढ़ा बैल जिससे कोई काम न लिया जा सके।
~ दो दंत — दो दाँत बाला बैल।
~ धाऊ — पहिये की पुठी पर चढ़ा हुआ लोहे का पट्टा। इसे हाल भी कहते हैं
~ नग — बैलगाड़ी के पहिये की वे पटलियां जो नाभि के साथ उसकी परिधि का सम्बन्ध स्थापित करती है और दोनों के बीच में जुड़ी रहती है, ये संख्या में 12 होती है परन्तु ये जब नाभि की पिंडी के आरपार सलाकर डाली जाती है तब केवल 6 की आवश्यकता पड़ती है, मोटाईके हिसाब से इनमें सबसे मोटी दो पटलियों को केवल नग कहते हैं, उनसे कुछ कम मोटे मझोला होते है।
~ नटवा — छोटे कद का बैल
~ नद — घुरों के साथ जुवारी कसने के काम आने वाली मोटी रस्सी।
~ नागौरी — नागौर प्रान्त का बैल जो अन्य प्रान्त के बैलों की अपेक्षा देखने में खूबसूरत और मजबूती तथा चलने में तेज होता है।
~ नाटा — छोटे डील डौल का बैल जो खेती के काम का नहीं होता।
~ नाथ — वह रस्सी जो बैल की नाक के छेद में डालकर सींगों के पीछे बांध दी जाती है। नथना से नाथ शब्द बन गया है और उसका अर्थ उस रस्सी से होता है जो बैल की नाक में बंधी रहती है और उसको रखती है। कहावत आगे नाथ न पीछे पगहा उस बैल की तरह अल्हड़ और स्वतंत्र व्यक्ति जिसकी नाक में न तो नकेल पडी हो औरन पीछे पैरों में रस्सी बंधी हो।
~ नाथना — बैल की नाक के छेद में रस्सी डालना
~ नार — (स. नाभि) पहिये के मध्य में लगी हु लकड़ी की वह मोटी गोल पिंडी जिसमें घुरे डालने के लिये छेद होता है और जिसमे पुठियो के साथ जुड़ने वाले नग फंसे रहते है।
~ पखियाँ — लग्गी से बंधी लकड़ियाँ।
~ पगा — भगोड़े बैल के पिछले पैरों में बाँधने की रस्सी।
~ पचारी — जुँवारी में लगी (भीतर की ओर) लोहे की कीलें।
~ पछर — दे. उलग होना
~ पछाई — गाड़ी के पीछे का हिस्सा।
~ पटनौर — घुरों पर लगे हुये पटिये।
~ पटली — गाड़ी के घुरे पर लगी हुई दो चौड़ी पटलियाँ जिनमें से एक बीच में और दूसरी घुरों के सिरे पर लगी रहती है।
~ पटिया — टोकर और पटलियों के बीच में लगी हुए पतलें, पटिये जिनसे पटनौर बनती है।
~ पहे — नार के सिरों पर लगे हुये लोहे के मोटे से बंध, भौरा में लगे हुए।
~ पुठी — पहिये की नाभि के मुकाबले में नग के सिरे पर जड़ा हुआ लकड़ी का टुकड़ा जिससे पहिए की परिधि है।
~ बंडा — पूँछ कटा या पूँछ टूटा हुआ।
~ बघिया— वह बैल जो गाय के काम का ना रखा गया हो, अर्थात् जिसके अंडकोष निकाल लिये गये हो या मसलकर बेकार कर दिये गये हों।
~ बछड़ा — बैल का नई उम्र का बच्चा।
~ बधियाना — जो काम में लगाया गया हो। बैल के अंडकोष निकाल देना।
~ बरद — बरघा (सं. वलीवर्द) बैल।
~ बरदाना — गाय को गर्भित करने के लिये बैल से मिलाना।
~बलद — बद का दूसरा उच्चारण
~ बहली — दो पहिये की हलकी बैलगाड़ी जो केवल सवारी के काम आती है।
~ बहेड़ी — कलोर दो दाँत का बछड़ा।
~ बांगर — पटनौर के ऊपर दोनों ओर लगी हुई दो लंबी लकड़ियाँ जो घुरों को मजबूत बनाने के लिये लगायी जाती हैं।
~ बिछुआ — नार में लगी हुई आउन या स्याय को मजबूत बनाने के लिये एक कील ठोकी जाती है वह बिछुआ कहलाती है।
~ बिछुवा — गाड़ी को जोत को अटकाने के लिये जुएं के बीच में ऊपर की ओर लगा हुआ बिच्छू के डंक के आकार का लोहे या पीतल का आँकड़ा।
~ बिलैया — मौरे के ऊपर घरों में लगी हुई लगभग एक बालिश्त लंबी लकड़ी जो घरों को मजबूत बनाती है।
~ बेनाथ — वह बैल जिसकी नाक न छिदी हो।
~ बैगनसुरा — वह बैल जिसके खुर बैगन की तरह ऊपर को उभरे हुए हो। यह बैल चलने में अच्छा माना जाता है।
~ बैलऊ — ऐसी गाय जिसके बच्चा न हो।
~ बैलगाड़ी — सवारी अथवा बोझ ढोने की वह गाडी जिसमें बैल जोते जाते हैं, भारत वर्ष में बैलगाड़ी का प्रयोग अत्यन्त प्राचीन काल से होता चला आ रहा है, आर्य दो पहिए वाले रथ का व्यवहार करते थे, जिसमें घोड़ा जोता जाता था, परन्तु बैलों द्वारा खींची जाने वाली दो पहिए की गाड़ी से भी वे परिचित थे, वैदिक साहित्य में गाड़ी के विभिन्न अंगों के निम्नलिखित नाम मिलते हैं।
~ मट्ठा — आलसी और काम चोर बैल।
~ मरखाना — मरकन, सींग मारने वाला बैल।
~ भाड़ा — गाड़ी से बोझ ढोने या सवारी ले जाने का किराया।
~ मुंडा — बगैर सींगो या छोटे सींगो वाला बैल, वह बैल जिसके सींग पीछे की ओर निकले हुए हो।
~ मुकुट — वह बैल जिसका एक सींग खड़ा और एक नीचे को लटका हुआ हो देखने में एक सींग का प्रतीत हो।
~ मुखरा, मुखैरा — मक्खियों से रक्षा के लिये बैल के मुँह पर डालने की जाली या चमड़े के तस्मों की झालर।
~ मुसीका — बैल के मुँह पर बांधने की जाली जो खलिहान आदि पर काम करते समय बाँधी जाती है ताकि बैल अनाज में मुँह न डाले। बुंदेलखण्ड के बाहर इसे मुचका मुकवा या मुहेरा भी कहते हैं।
~ तूसैरया — वह बैल जिसकी पूंछ के बाल बीच में सफेद और सिरे पर काले हों।
~ मुहली — कम अवस्था का बैल जिसकी नाक न छिदी हो। अल्हड़।
~ मुहाले — जुंआरी के सिरों पर लगे हुये लोहे के बंध।
~ मुहावरा— नाथ डालना।
~ मुहेरा — बैल के मुँह का साज जिसमें मुखेरा।
~ मुहेली — जुएं के भीतर की ओर लगे हुये आंकड़े या हुक जिसमें बैल के गले के जोत के सिरे बाँध दिये जाते हैं।
~ मेड़या — वह बैल जिसके सींग मेठे से सींगो की तरह मुड़े हुये हों।
~ मोरी — इत्यादि सम्मिलित रहते है।
~ मौरा — वह लंबा लट्ठा जिसके सिरों पर गाड़ी की घुर फंसाई या जमाई जाती है।
~ रातब — बैल को देने का विशेष शक्ति बर्द्धक भोजन जो बैल को काम पर लगाने के पहले दिया जाता है। साधारण बोलचाल में बैल के नित्य प्रति के साधारण चारे को भी रातब कहते हैं।
~ लटवा — लात झाड़, लात मारने वाला।
~ लदाऊ — पीठ पर बोझ ढोकर ले जाने वाला बैल जो गाड़ी या हल में न चलता हो।
~ लांडा — दुम कटा बैल।
~ लीक— देखो गड़वाल।
~ व्हालन बैल — वह बैल जो खूटे से बंधा बराबर घूमता है ऐसे बैल को अपशकुनियां माना जाता है।
~ सांड — वह दुष्ट-पुष्ट बैल जो गायों की नस्ल को तैयार बढ़ाने के लिये विशेष किया रूप से। स्वतंत्र छोड़ दिया जाना जाय।
~ सांड छुड़वाना — सांड़ से गाय को ग्यावन कराना।
~ सिंगौटी — सींगो की बनावट इसे बैल की सिगौटी अच्छी है अर्थात सींगो की बनावट सुन्दर है। (2) सींग को नोक पर चढ़ाने की किसी धातु की कलगी है (3) किसी बढ़िया कपड़े का बना हुआ सींगों का आवरण।
~ सींक — धुरों के बीच में पड़ी हुई लम्ब लकड़ी।
~ सींगा — देखने में सुन्दर और बड़े सींगो वाला बैल।
~ सीक — धुरों के बीच में पड़ी हुई लंबी लकड़ी।
~ सैल — जुंआरी के सिरों पर लगी हुई लगभग सवा बालिश्त लंबी दो खूंटियां बाहर नहीं निकलने देती है।
~ सैल— जुंवारी के सिरों पर लगी हुई लगभग सवा बालिश्त लंबी खूटिया जो बैल की गर्दन को जुवारी से बाहर नहीं निकलने देती।
~ सोंटा — बैल को हाँकने का आरदार डंडा।
~ हंकनी — बैलों को हांकने की लकड़ी, जिसके एक सिरे पर चमड़े की लम्बी सकियां जो घुरों को मजबूत बनाती है, सोटा बैलों को हांकने की लकड़ी जिसके एक सिरे पर चमड़े की लंबी बधियां रहती हे और दूसरे पर एक कील लगी रहती है।
~ हरैना — घुरों को आपस में जोड़ने वाली उनके सिरों के छेदों में पड़ी हुई लोहे या लकड़ी की कील जो उनको एक दूसरों से जोड़ती है। घुरों के सिरों के छेदो में पड़ी हुई लोहे या लकडी का कील जो उनको एक दूसरों से जोड़ती है।
~ हारा बैल— थका मादा बैल।
गाड़ी के विभिन्न भागों के नाम
स्त्रियों के लिए प्रयुक्त होने वाली गालियाँ
हरामजादी छिनार
सौत, रांडयाल
सतजत घाट करै
सतघाट कौ पानी पिये लौंडिया
छोत देइमारी
सतुमन्स हत्यारी
भिनकू भंगिन
हुरदंगू हुरदंगिया
हुरकिनी बंगालिन
घंगरिया फाडारे घंगरिया में आग लगै
भतयान बरै भड़याल
खसमखानी पूतभुरावनी
पटा पै रांडहोवे नाश मिटावनी
कुलच्छनी बेइमानन
दारी कुतिया चटू
भडू भड़कू छटू
चुड़ैल चमरिया
भुतनी डंकनी
डाइन खोजखावनी
सत्यानासिन मुन्श को मूंड़
चामड़े में आग लगे नाश की मिटी
हरामजादी मुरूऊ
मुरयाटन सास को बाबा ले जाए
लुघरांयदी
पुरुषों के लिए प्रयुक्त
मूंछ बरे मूँछन बरौ
ठठरी बंधे डील ढड़के
धुआ देखे डाढ़ी बर जाय
नाश मिटो ठटरया
खोज मिटो छिनरा
छोगला अरामखोर
भंगी चमार
मैतर हरामी
ऐसी की तैसी ढ़ी की आंखें
कुपूत कमीन
पींदा गाँडू
हुरदंगा मलंगा
सात पैरी की झक मारै कौरया
झुकैला ठठरी बूंदे
चंडाल पापी
दुष्टी हत्यारे
लुंगया लुगरिया लगै
चूतिया कुलच्छी
बेईमान सँगरा
उच्चका ससुर के
ससुरा नठया
भँड़या लुंगरा
ढोरों के लिए प्रयुक्त गालियाँ
तोरो धनी मर जाए पूंछ कटे
बाबा खाय भौरा कडै़
माता कड़ै भुमानी परैं
मातादर्से साव खाय
थुथरी काटै तो पे मरयै परै
स्त्री पुरुष के गहने
स्त्रियों के आभूषण पैर की अंगुलियों के आभूषण
अनौटा कटीला
गुटियाँ गुच्छी
गेंदें गरगाजी
चुटकी छला
जोडुआ पाँवपोस
पॉते पोला
बाँके बिंदली
बिछिया बिरमिदी
पैर के आभूषण
अनौखा कड़ा
गूजरी और गुजरिया घुॅघरिया, घुँघरू और नुपूर
चल्ला चूरा
छड़ा छागल
छैल चूड़ी जेहर
झाँझें टोडर
पायजेब पायल
पैजना-पैजनियां
पैरियां बाँकें
महाउर रूल
लच्छा साकें
घुन्सी, रमझूले, घुमारी आदि जिनके उल्लेख मिलते हैं
झांक अनवट
बाँकड़ी
कटि (करधौनी) के आभूषण
कड्डोरा या डोरा करदौनी
छूटा हाथ की अंगुलियों के आभूषण
छला छाप
फिरमा मुँदरी
कांचा के आभूषण
कंकन, कंगन और ककना कड़ा
कौचियाँ या पौचियाँ
गजरा, गजरियाँ गूंजें
चंदौली चुरियाँ
चूरा छल्ला
तैतियाँ दस्तवंद
दौरी नौगरई या नौधरई
पछेला पटेला
बंगलियाँ
बेलचूड़ी रत्नचौक
रूनझुनियां लाखें
हथफूल हरैयाँ
बगवां
बाजू के आभूषण
अनंता और अनंतियाँ खग्गा
टाड़ियाँ बखैरियाँ
बजुल्ला बगुआँ
बरा बाकें
बाजूबंद बोंटा, बहुंटा, बोंहटा
भुजबंद
गले के गहने
कण्ठमाला और कण्ठी
कठला करसली
खगौरिया, खंगवारी गुलूबंद
चंदनहार, चन्द्रहार चम्पो, चम्पाकली
जलजकंठुका टकारटकावर
ठुसी ढुलनियाँ
तिंदाना धुक-घुकू
पटिया बिचौली
मंगलसूत्र मालाएं
लल्लरी सुतिया
सेली हॅसली
हमेल हार, सीतारामी
लरलरी
कान के आभूषण
ऐरन कनफूल
कनौती कुण्डल
खुटी, खुटियाँ, खुटिला खुभी
झुमका, झुकी झुलमुली
ढारें तरकी
तरकुला तरौना
नगफनियां फुल्ली या बैकुण्ठी
वंदनी बारी
बाला बिजली
बिचली बुंदे
मुरकी और मुरासा लाला
लोलक टोकरी
पान लुटकी
नाक के आभूषण
कील झुलनी
टिप्पो दुर
नथ-नथुनिया नकफूली
नकमोती नकबेसर या बेसर
पुंगयिा बारी
बुल्लाख सिरजा
लौंग बेसर
माथे का आभूषण
टिकली टीका
तिलक दाउनी यादावनी
बैदा-बैंदी बूँदा
सिर के आभूषण
कौकरपान झूमर
बीज रेखड़ी
शीशफूल, मांगफूल, चूड़ा मणि
बेनी के आभूषण
चुटिया या चुटीला छैलरिजौनी
झबिया बेनीपान
बेनी फूल
बुंदेली व्यंजन
सतुआ बेसन के चीला
तस्मई बिरचुन
मीठे बेर बेर नमकीन
लटा मुरका
इंदरसे मालपुआ
मलाई पूड़ी चना महुआ
निगौना बरा
भंगरी धैगो
बुंदेली कूचौ बिजौरे
जुंडी शोरबा औंरिया
लस्सी ज्वार की लस्सी
सक्सा कनकउवा का साग
मीठे चीला माढ़े
महेरी कोरी
गेहूं की कौरी फुलौरी
बिड़ई श्रीकंचन
कुदवा का घोरूआ बफौरी का साग
बटौनिया झरिया की कढी
मीड़ा चौसेला
ठडूला ज्वार के पापड़
खीच डुबरी
लोल कुचइया सेव
नमकीन खुरमा खुरमी
मीठे खुरमा बेसन के लड्डू
पूड़ी को हलुवा सूजी को हलवा
कुमड़ खीर रसखीर
बिर्रा रोटी चुनी की रोटी
गकरियां कमल-ककड़ी
गारमा पुआ
गुलगुला तेली
रसयावर मंगौरा
मगौरा महुआ की सब्जी
आंवले की सब्जी
बुंदेलखण्ड के उत्सवधर्मी व्यंजन
लटा पंजीरी
सुटौरा गुजिया
पपड़िया सुरा
सुरा नमकीन लप्सी
कुमड़ खीर
लोल कुचइया भिजगजा
सिंदौरा-सिंदौरी मालपुआ
कसारवाली गुजिया मोनभोग
तिल के लड्डू खुरमा
धौंस की पपरिया ठडूला
सलौनी, मटरी
बरूला, मीठे बरूला, नमकीन
बुंदेली लोकगीतों के स्वर संदर्भ
कारसदेव की गोटे वर्षा ऋतु के सैरे
कठियाऊ गारी बौनी का रसिया
ढोला हरजू के गीत
कतकिआ गीत रावला
दिनरी बिलवारी
साजन-बाजत आवें सजन जू के बाजे
गार-‘अबकें आवन कब होय मेरे लाल’
गारी-‘मेरी भँवर कली’
हरदौल की गारी- ‘महासोर भयौ’
सावन गीत-एक चना, दो देवली, मेरी सावनी आई।
साजन-राजा जनक जू की पौर में दसरथ सुत आये।
सुआग-हँसत खेलत आजुल घर आई।
ननद भौजइया दोइ पनियां खों निकरी धर गगरी अपर लेज
झूला अरे कऊँ छिटकी जुनईया सारी रैन, धना झूलन चलीं
महाराज
साजन-दूर खेलन जिन जाओ सियावर आईयो।
सुअटा-हिमांचल की कुंअरि लड़ायती नारे सुघटा, गौरा बाई
न्यौरा तोरानाय / संपूर्ण
होरी लेद
फाग रसिया-चौकड़ियाऊ फाग
नगाडियाऊ फाग छन्दयाऊ फाग
झूला की फाग डंघाई की फाग, लंगुरिया
अकती राछरौ
मँगादा आल्ह की साखी
माता के भजन की साखी विरहा की साखी
धुवियाई की साखी विरहा वानी
विरहालाचारी राम सभा की संपूर्ण गीतियां
नारदी की साखी, आल्ह की महोबा गीति
आल्ह की दतिया गीति आल्हा की पुरबिया गीति
लावनी बरसाती
ख्याल हरदौल के गीत
स्वांग ढिमरियाई
सोहरे बनरा
बुंदेलखण्ड के लोक पर्व
जबारे चैती पूने
गनगौर पूजन आसमाई
सिडौरा अक्ती
बरा-बरसात असाढ़ी देवी-देवता
कुनघुसी पूनें हरियाली अमावस्या
सावन तीज सावन शुक्ला नवमीं
मामुलिया कजली
भुजरिया हरछट
संतान सातें नौरता और झिंझिया
महालक्ष्मी और इच्छा नौमी या टेसू पर्व
करवा चौथ तीजा
ऋषि पंचमी गढ़ोलेनी आठे
डोल ग्यारस मोराई छट
बाबू की दोज अनंत चौदस
दशहरा दीपावली
होली
बुंदेली लोक वाद्य
तंत्री वाद्य
किंगरी
तंबूरा (एकतारा)
सुषिरवाद्य
शंख तुरही
बासुरी मुरली
अवनद्ध वाद्य नगड़िया
नगाड़ा हुड़क
डफ ढ़ाक
ढोलक ढुलकिया
पकावज मृदंग
डमरू खंजरी
झांझ मंजीरा
कसारी चिमटी
चटकोला लोटा
मटका
बुंदेली कहावतें
— अँदरन में काने राजा— अंधों में काने राजा।
— अँदरा कबै पतयाय जब आँखन देखे — अंधे को किसी बात का तभी विश्वास होता है तब आँखों से देखे, मूर्ख को हर बात का प्रत्यक्ष चाहिए।
— अँदरा बाँटे रेबड़ी चीन चीन कें देय — किसी वस्तु को बाँटते समय हेर-फेर कर अपने जान-पहिचान वालों को ही देना।
— अंधे पीसें कुत्तें खायें — अँदरा बाँटे जेवरी।
— अँसुआ न मसुआ, भैंस कैसे नकुआ — व्यर्थ रूठने और नाक फुलाने वाले बच्चों के लिए कहते हैं।
— अक्कल के पाछे लट्ठ लयें फिरत— अक्ल के पीछे लट्ठ लिये फिरते हैं। बुद्धि को तिलांजलि दे रखी है।
— अक्कल बड़ी कै भैंस — बड़ा या बलवान होना ही सब कुछ नहीं, वरन् बुद्धि इन सबसे बड़ी वस्तु है।
— अक्कल बाजार में मिलै तौ कोऊ मूरख काये खां रये — अक्ल बाजार में मोल मिले तो कोई मूर्ख क्यों रहे? अर्थात् अक्ल पैसे से नहीं खरीदी जा सकती।
— अकुलाएँ खेती, सुसताएँ बंज — खेती में तुर्त-फुर्त और व्यापार में धैर्य से काम लेने पर ही सफलता मिलती है।
— अकेलो चना भार नई फोरत — अकेला आदमी कुछ नहीं कर सकता, परस्पर सहयोग से सब काम होता है।
— अगनैआ बतर पाऊँतौ गेहूँ गाय बताऊँ — अश्विनी आदि 27 नक्षत्रों में से 8वा नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, वर्षा के दिनों में धूप निकलने पर खेती के काम के लिए मिलने वाला अवकाश, किसान कहता है कि भादों के महीने में यदि मुझे जोतने-बखरने का अवकाश मिल जाए तो मैं गेहूँ की बढ़िया फसल पैदा करके बताऊँ।
— अगारी तुमाई, पछारी हमाई — आगे का हिस्सा तुम्हारा, पीछे का हमारा, ऐसे स्वार्थी व्यक्ति के लिए जो किसी वस्तु का सबसे बड़ा भाग स्वयं लेना चाहे।
— अगिया कहै पाँवर से रोय — तोरे मोरे रहे का खेती होय – फसल को हानि पहुँचाने वाली एक प्रकार की घास, एक छोटा जंगली पौधा, पँवार, जिसे खेत में अगिया और पंवार पैदा हो जाता है उसमें फसल अच्छी नहीं होती।
— अटकर पंच्चूँ डेढ़ सौ — बिना जाने समझे बात कहना, गप्प हाँकना।
— अटन की टटन में, टटन की अटन में — टटन का अनुप्रास मूल शब्द अथवा अटा, अटारी, टटा का बहुवचन, बाँस की फंचियों या पतली टहनियों की बनी टट्टी, इधर की वस्तु उधर रखना, बे सिर पैर का काम करना।
— अड़की की डुकरो टका मुड़ावनी — लाभ तो थोड़ा और खर्च अधिक, चीज तो सस्ती, पर उसकी देखभाल मरम्मत में असल से ज्यादा खर्च होना।
— अड़की की हँड़िया फूटी सो फूटी, कुत्ता की जात तौ पैंचानी — हानि हुई तो हुई, पर किसी एक व्यक्ति के स्वभाव से परिचित तो हुए।
— अडुआ नातो, पडुआ गोत — जैसा नाता वैसा ही गोत, बे पते-ठिकाने के ऐसे व्यक्ति के लिए जो जबर्दस्ती अपना रिश्ता निकालता फिरे।
— अत कौ फूलौ सोजनों डार पात से जाय — वृक्ष विशेष, सहजन, अति करने वाला नाश को प्राप्त होता है।
— अधजल गगरी छलकत जाय — औछा आदमी इतरा कर चलता है।
— अधरम से धन होत है बरस पाँच के सात — अन्याय से कमाया गया धन बहुत दिनों नहीं रहता।
— अधीरे को लेवे नई, उछीने की खावे नई — उतावले से कभी ऋण न ले, ओछे का कभी अन्न ग्रहण न करे, क्योंकि उतावला आदमी जल्दी पैसा वापिस माँगेगा, और ओछा खिलाने-पिलोने का अहसान जतायेगा।
— अनगायें खेती, बनबायें बंज — किसी गाँव में खेती और किसी दूसरे में व्यापार, यह नीति ठीक नहीं।
— अनबद खैला — बिना बँधा बछड़ा, स्वतंत्र व्यक्ति।
— अन बियानी कौ घी बांधत — जो गाय बियानी नहीं उसके घी की आशा करना।
— अनमाँगें मोती मिलें माँगे मिलै न भीख — बिना माँगे मोती मिलते हैं, माँगने से भीख नहीं मिलती, माँगना बुरा है।
— अनो चूकें हजार बरस की आरबल — अवधि, संकट की घड़ी, आयुर्बल, उम्र, सिर पर आयी विपत्ति टल जाने पर मानों हजार वर्ष की आयु मिली।
— अनोखी नान, बॉस की नहन्नी — नाइन, नाई की स्त्री, कोई नया अनोखा शौक करने पर।
—अन्न तारै, अन्नई मारै —अन्न से ही जीवन की रक्षा होती है, और अन्न ही प्राण-घातक भी होता है।
—अपनी–अपनी–ढफली, अपनो अपनो राज — मन माना काम, नियम व्यवस्था का अभाव।
— अपनी करनी पार उत्तरनी — अपने ही हाथ काम पूरा होता है।
— अपनी इज्जत अपने हाथ — ओछे के मुँह लगना चाहिए।
— अपनी जाँध, उघारो, अपनी लाजन मारो — घर वालों का कोई दोष प्रकट होने से स्वयं ही लज्जित होना पड़ता है।
— अपनी टेक भँजाई, बलमा की मूँछ कटाई — अपनी हठ को पूरा करने के लिए अपनों को हानि पहुँचाने वाले के लिए।
— अपनी डाढ़ी को मुसरका पैलें दओ जात — मलने या मसोसने की क्रिया, अपनी दाढ़ी पहिले मली जाती है, अपनी विपत्ति टालने का प्रयास पहिले किया जाता है।
— अपनी नाक कटा कें दूसरन खों असगुन करबो — अपनी नाक कटा कर दूसरों को असगुन करना, दूसरों को हानि पहुँचाने के लिए अपनी हानि कर डालना।
— अपनी मताई से कोऊ भट्टी नई कत — अपनी माँ को कोई बुरा नहीं बताता।
— अपनी लाज अपने हाथ — अपने सम्मान की रक्षा का स्वयं ही ध्यान रखना चाहिए।
— अपनी लार तौ सिमटत नइयाँ जगत्तर कौ भारौ बाँदे — अपनी लार तो सिमटती नहीं, जगत का भार उठाने को तैयार है। अपना काम तो बनता नहीं, दूसरे का करना चाहते हैं।
— अपने चना पराई पौर में नई चबाये जात — अपने चना दूसरे की पौर में ले जाकर नहीं चबाये जाते। अपना पैसा खर्च करके दूसरों को यश देना समझदारी नहीं।
— अपने दये कौ का लियत — दी हुई वस्तु क्या माँगना, जो वस्तु अपनी ही है उसका क्या लेना।
— अपने दाम खोटे तो परखैये का दोस — जब घर का ही आदमी बात न सुने अथवा खोटा काम करे तब दूसरों से क्या कहा जाय।
— अपने बाप की सौ बहोर लई — अपने बाप से सौ बार क्षमा माँगी जा सकती है, पर दूसरों के साथ ऐसा नहीं किया जा सकता।
— अपने मरे बिना सरग नई दिखात — अपने हाथ से किये काम नहीं होता।
— अपनों अपनों दुख सब रोउत — अपना-अपना दुखड़ा सब रोते हैं।
— अपनों पूत, पराओ ढटींगर — फालतू आदमी, आवारा, अपना पुत्र तो पुत्र, दूसरे का ढटीगर, अपने पुत्र को लोग जितना प्यार करते हैं उतना दूसरे के पुत्र को नहीं।
— अपनों पेट तो कुत्ता भर लेत — अपना पेट तो कुत्ता भी भर लेता है, स्वार्थी व्यक्ति के लिए।
— अपनों मों चीकनों करें फिरत — अपना मुँह चिकना किये फिरते हैं, केवल अपनी ही चिन्ता करना जानते हैं।
— अपनों लैने का, पराओ देने का — अपना लेना क्या, पराया देना क्या, दोनों में कोई आसान नहीं।
— अपनों सो अपनों, पराओ सो सपनो — समय पर अपना आदमी ही काम आता है, दूसरा नहीं।
— अपनों हाथ, जगन्नाथ को भात — अपने हाथ से बना भोजन मानों जगन्नाथ का भात, अपने हाथ का कार्य सर्वोत्तम होता है।
— अफरो भूँके की कदर का जाने — जिसका पेट भरा है वह भूखे की वेदना को क्या समझे।
— अबै तो बिटिया बापई की — अभी तो बेटी की है, अर्थात् अभी कुछ नहीं बिगड़ा, बात अब भी संभाली जा सकती है, हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार जब तक वर के साथ कन्या की पूरी सात भाँवर नहीं पड़ जातीं तब तक उसे पत्नीत्व प्राप्त नहीं होता और उस पर अपने पिता का ही अधिकार माना जाता है, उसी से कहावत बनी।
— अभागी की पतरी में छेद — भाग्यहीन को सब जगह विपत्ति भोगनी पड़ती है।
— अमरौती खाकें को आओ — अमर होकर कोई नहीं आया।
— अरे दरे खों गुपला नउआ — इधर-उधर के फालतू काम के लिए गुपला नाई, हर काम के लिए जब किसी एक ही व्यक्ति से कहा जाय तब कहते हैं।
— अल्ला देवे खाने को, तौ कौन जाय कमाने को — मुफ्त का खाने को मिले तो कमाने कौन जाय।
— असाड़ को पजो लड़इया, भादों कहै मौत बरसा भई — असाढ़ में से गीदड़ का जन्म हुआ, भादों में कहता है बहुत वर्षा हुई, ऐसे अनुभवहीन व्यक्ति के लिए प्रयुक्त जिसने दुनिया का कुछ देखा-सुना न हो, फिर भी जो बड़ी शेखी मारे।
— अस्सी की आमद चौरासी कौ खर्च — आमदनी कम और खर्च ज्यादा।
— आँखन के आँदरे, नाव नैनसुख — नाम तो अच्छा पर गुण उसके विपरीत।
— आँखन देखो चेतना, मों देखो ब्योहार — दुनिया में आँख के सामने आये का स्नेह, और मुँह देखा व्यवहार होता है, अर्थात् सच्चा प्रेम कम देखने में आता है।
— आँख मींचे भुनसारो होत — आँख मूँदे सबेरा होता है, समय जाते देर नहीं लगती।
— आँखें न साँखें, कजरौटा नौ ठउआ — व्यर्थ का आडंबर दिखाना।
— ऑंदरी घुरिया, फँफूड़े चना, चले आउन दो घना के घना — घोड़ी अंधी है, और चने भी फफूंड़े हैं, फिर क्या है उसे चाहे जितना खिलाते चले जाओ, जैसे को तैसा मिलना मूर्ख को गुण की पहिचान नहीं होती।
— आई बऊ, आओ काम, गई बऊ, गओ काम — जितने आदमी हो उतना ही काम बढ़ता है।
— आग लगा पानी खों दौरें — झगड़ा कराकर फिर मेल का उद्योग करना।
— आग लगै, मँड़वा धुँधआय, दूला — दुलैया सरगे जाय-दूसरे के नफे नुकसान की परवाह न करना, लड़ाई-झगड़े से तटस्थ रहना।
— आज इत्तै, तौ काल उतै, परों पराये देस — ससुराल जाती हुई लड़की के लिए प्रयुक्त।
— आजे न बाजे, दूला आन बिराजे — बिना साज-बाज का काम।
— आटे में नोन समा जात, पै नोन में आटो नई समात — आटे में नमक समा जाता है, पर नमक में आटा नहीं, अर्थात् झूठ अधिक नहीं बोलना चाहिए।
— आदमियन में नौआ, और पंछियन में कौआ — मनुष्यों में नाई और पक्षियों में कौआ ये बड़े चतुर होते है।
— आदमी जानिये बसें, सोनों जानिये कसें — आदमी की परख निकट संपर्क में रहने और सोने की परख कसौटी पर कसने से होती है।
— आदमी चलो जात, पै बात रै जात — आदमी चला जाता है, पर बात रह जाती है।
— आप खायँ हरक्कत, बाँट खायँ बरक्कत — अकेले खाना ठीक नहीं, बाँट कर खाने से धन-दौलत की बढ़ती होती है।
— आप न जावे सासरे औरन खाँ सिख देय — आप न करें, दूसरों को उपदेश दें, आप कहें नाहीं करे, ताको यह है हेत, आप न जावे सासरे, औरन को सिख देत।
— आपुन ठाँड़े गैल में, करें और की बात — स्वयं तो दुनिया से जाने की तैयारी में हैं दूसरों की चिन्ता करते है।
— आ बैल मोय मार — आ बैले मुझे मार, जानबूझ कर विपत्ति बुलाना।
— आम खाने कै पेडे़ गिनने — अपने काम से मतलब या इधर-उधर की बातों से।
— आय न साय चून चाल कै दै पओ — घर में तो कुछ है नहीं, फिर भी कहते हैं कि चून चाल कर रोटी बनाओ।
— आये ते हर भजन कों औंटन लगे कपास — आये थे किसी और काम को और करने लगे कुछ और।
— आलसी निगइया, असगुन की बात हेरें — आलसी चलने वाला अशकुन की प्रतीक्षा करता है कि मुझे चलना न पड़े काम न करने के लिए बहाना ढूँढ़ने पर।
— इक लख पूत सवा लख नाती, ता रावन घर दिया न बाती — धन, यौवन और बड़े कुटुम्ब का गर्व नहीं करना चाहिए, ईश्वर का कोप होने पर सब पल भर में विलीन हो जाता है जैसे रावण का हुआ।
— इकल सुंगरा — अकेला रहने वाला सुअर, स्वार्थी व्यक्ति।
— इतके बराती, न उनके न्योतार — कहीं के भी नहीं।
— इमली के पत्ता पै कुलाँट खाओ — अर्थात् मौज करो, चैन की बंसी बजाओ, अवसर चूके व्यक्ति के लिए प्रायः व्यंग्य में प्रयुक्त।
— ईट खिसकी सो खिसकी — दीवार की एक ईंट खिसक जाए तो फिर संभालना मुश्किल होता है। उसी प्रकार एक बार बिगड़ा काम फिर नहीं सँभलता।
— उँगरकटा नाव घर दओ — उँगली काट खाने वाला नाम रख दिया, व्यर्थ बदनाम कर दिया।
— उँगरिया पकर कें कौंचा पकरबो — उँगली पकड़ कर पहुँचा पकड़ना, थोड़ा सहारा पाकर गले पड़ जाना।
— उखरी में मूँड़ दओ, तौ मूसरन कौ का डर — जब कोई भला या बुरा काम करने पर उतारू ही हुए तो फिर डर किस बात का।
— उजरूऊ के संगे कपला कौ नास — उजाड़ करने वाली, चोरी से दूसरों का खेत चरने वाली गाय, कपिला-सीधी गाय, बुरे के साथ सीधे आदमी को भी कष्ट भोगना पड़ता है।
— उजरे गाँव में अरंडई रूख — जहाँ कोई वृक्ष नहीं होता वहाँ अरंड को ही लोग बड़ा वृक्ष मानते हैं।
— उठते पाँव दुनिया तकत — पदच्युत होते हुए व्यक्ति पर सबकी दृष्टि रहती है, सब उसकी संकटापन्न स्थिति से लाभ उठाना चाहते हैं।
— उठाई जीब तरूआ से दै मारी — जो मन में आया सो कह दिया।
— उठौवल चूल्हो — ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयुक्त जिसके रहने का कोई पक्का ठिकाना न हो।
— उड़त चिरइयाँ परखत — उड़ती चिड़िया परखता है अर्थात् बहुत होशियार है।
— उड़ौ चून पुरखन के नाव — चक्की पीसते समय जो चून उड़ गया या नष्ट हो गया वह पितरों को समर्पित, किसी को ऐसी वस्तु देकर अहसान करना जो अपने काम न आये।
— उधार कौ खाबौ और फूस कौ तापबौ — उधार का खाना और फूस का तापना बराबर होता है। जैसे फूस की आग अधिक देर नहीं ठहरती वैसे ही उधार लेकर खाना भी बहुत दिनों नहीं चल सकता।
— उरबतिया कौ पानी मँगरी नई चड़त — छप्पर के ढाल का आगे का हिस्सा जिससे वर्षा का जल नीचे टपकता है, ओलती, छप्पर के ऊपर का हिस्सा ओलती का पानी मेंगरी पर नहीं चढ़ता, वह तो नीचे धरती पर ही आता है, असंभव बात संभव नहीं होती।
— उल्टो चोर गुसैये डाँटे — अपराध करके स्वयं उसी मनुष्य को झिड़कना जिसका नुकसान हुआ हो।
— ऊँची दुकान फीको पकवान — दिखावट तो बहुत पर तत्व कुछ नहीं।
— ऊँट की चोरी निहुरे निहुरे — बड़े काम चोरी छिपे नहीं होता।
— ऊँट के मों में जीरो — बहुत खाने वाले को थोड़ी वस्तु देना।
— ऊँट का चूमा ऊँटई लेत — बड़ों का काम बड़ों से ही सटता है।
— ऊँटन खेती नई होत — ऊँटों से खेती नहीं होती, हर काम के लिए उपयुक्त साधन की आवश्यकता होती है।
— ऊँट पै चढ़कें सबै मलत आउत — ऊँट पर चढ़के सभी को मलकना आ जाता है, उच्च पद प्राप्त होने पर सभी को गर्व हो जाता है।
— ऊदल ब्याहन कों ना रैहें, बातें कैबे कौरे जैहे — अर्थात् किसी एक व्यक्ति विशेष के बिना काम अटका नहीं रहेगा, परन्तु कहने को रह जायगी कि अवसर पर साथ नहीं दिया।
— ऊधौ को लेन, न माधौ कौ दैन— ऐसे निश्चिन्त मनुष्य का कथन जिसे किसी का कुछ लेना-देना नहीं।
— ऊनें सो बरसेई — बादल जब घिरे हैं तब बरस कर ही रहेंगे।
— ऊमर फोरो न परखा उड़ाओ — न कोई बुरा काम करो और न उसका परिणाम भोगना पड़े।
— ऊसरा कौ बीज — ऊसर का बीज, व्यर्थ परिश्रम, ऊसर जमीन में बीज बोने से नहीं उगता।
— एक अहारी सदा व्रती — एक बार भोजन करने वाला संयमी ही माना जाता है।
— एक लठिया से सबै हाँकत — एक लाठी से सबको हाँकते हैं।
— एकई साधें सब सधे सब साधें सब जाय — एक बार में एक काम ही करना चाहिए, किसी काम के लिए एक आदमी का आश्रय ग्रहण करना ही ठीक होता है।
— एक कओ, न दो सुनो — किसी से न एक बुरी बात कहा, न दो सुनो।
— एक कान से सुनीं दूसरे से निकार दई — किसी बात पर ध्यान न देना।
— एक के पुत्र से सबरो गाँव तर जात — एक आदमी के अच्छे काम का सब पर प्रभाव पड़ता है।
— एक घड़ी कौ बुरआसन जनम भरे कौ सुक्ख — बुराई, नाहीं करने से कोई बुरा मान जाय तो मान जाय, पर हमेशा के लिए बला तो टल जाती है।
— एक जनें से दो भले — कहीं यात्रा में जाना हो तो एक से दो अच्छे।
— एक तबा की रोटी, का छोटी का मोंटी — समान वस्तुओं में छोटी-बड़ी का क्या प्रश्न।
— एक तो गड़ेरिन और लासन खायें — गड़रिया की स्त्री, गंदगी में और भी गंदगी।
— एक थैलिया के चट्टा–बट्टा — सब एक से, कोई घट-बढ़ नहीं।
— एक दाँत कौ मोल करौ, बत्तीसऊ खोल दये— व्यर्थ दाँत निकालने में प्रयुक्त।
— एक नारी सदा ब्रह्मचारी — एक स्त्री वाला भी सदा ब्रह्मचारी ही माना जाता है।
— एक पाख दो गहना, राजा मरै के सहना–शहना, शासक, कोतवाल, कर- संग्रह करने वाला। ग्रहण के संबंध में लोक-विश्वास यदि एक पखवारे में दो ग्रहण पड़ें तो राजा मरे या शासक।
— एक पै एक ग्यारा — एक स्थान पर दो आदमी मिल जायें तो बड़ा काम कर सकते हैं, संघ में बड़ी शक्ति होती है।
— एक बिछौना सोओ और आँग से आँग लगै नई — कोई काम करो भी और उसके परिणाम से भी बचना चाहो, ये दोनों संभव नहीं।
— एक बेर जोगी, दो बेर भोगी, तीन बेर रोगी — योगी दिन में एक बार, और भोगी दो बार शौच जाता है, इससे अधिक बार जाय तो उसे रोगी समझना चाहिए।
— एक म्यान में दो तरवारें नई रतीं — किसी एक ही वस्तु पर दो का अधिकार नहीं हो सकता।
— एक हात से तारी नई बजत — झगड़ा कभी एक ओर से नहीं होता। दो मनुष्यों में यदि एक लड़ाकू न हो तो कभी लड़ाई नहीं हो सकती।
— एकान्त बासा, झगड़ा न झाँसा — अकेला रहना सबसे अच्छा।
— ऐसे होते कंत तौ काय कों जाते अंत — यदि किसी योग्य होते तो घर छोड़ क्यों जाते।
— ओंधे मों डरे — परास्त हुए पड़े हैं।
— ओई पतरी में खायें, ओई में छेद करें — जिसका खायें उसी में हानि पहुँचायें।
— ओछी पूँजी खसमें खाय — थोड़ी पूँजी धनी को खा जाती है।
— ओली में गुर फोरबो — लुके-छिपे काम करने का प्रयत्न।
— ओस के चाटें प्यास नई बुझत — जहाँ अधिक की आवश्यकता है वहाँ थोड़े से काम नहीं चलता।
— आँगन बिना गाड़ी नई ढँड़कत — गाड़ी की घुरी में लगाई जाने वाली चिकनाई जिससे पहिया आसानी से फिरे, आँगन के बिना गाड़ी नहीं चलती, अर्थात् पैसा दिये लिये बिना काम नहीं चलता।
— औसर तब खाँ सेतिये, गुनें न पूँछे कोय — अवगुण से तभी काम लो जब कोई गुण को न पूछे।
— औसर के गीत औसर पै गाये जात — अवसर के अनुकूल ही काम अच्छा लगता है।
— कंडी कंडी जोरें बिटा जुरत — थोड़ा-थोड़ा इकट्ठा करके बहुत होता है।
— कऊँ की ईंट कऊ कौ रोरा, भानमती ने कुनबा जोरा — ये दक्षिण देश की एक जादूगरनी थीं, कुछ लोग इन्हें राजा भोज की पत्नी भी बतलाते हैं। इधर-उधर की वस्तु इकट्ठी करके कोई चीज तैयार करना।
— कड़ी मुराई ना मुरै, बरिन खाँ हाथ पसारें — कढ़ी, दही और बेसन से बना भोज्य पदार्थ, कढ़ी तो दाँतों से चबाते नहीं बनती, पकौड़ियों को हाथ फैलाते हैं, छोटा काम तो बनता नहीं, बड़ा काम सिर पर लेना चाहते हैं।
— कड़ेरे के लरका कुँदेरे के बधाई — बेमेल काम।
— कतन्नी गुद्द सोवें, मरजादी बैठे रोवें — मर्यादा वाले, प्रतिष्ठावान जिनके पास ओढ़ने को फटे-पुराने चिथड़े हैं वे उनमें ही सुख की नींद सोते हैं, परन्तु बड़े आदमी बैठे होते हैं, इसलिए कि उनके पास कीमती कपड़े नहीं, तात्पर्य यह कि गरीबों का काम थोड़े में चल जाता है, अथवा संतोष बड़ी चीज है।
— कथनी से करनी बड़ी — कहने की अपेक्षा काम करना अच्छा।
— कनवाँ से कनवाँ नई कई जात — काने से काना नहीं कहा जाता।
— कपड़ा पैरै जग भाता, खाना खैये मन भाता — वस्त्र दूसरे की रूचि का पहने और भोजन अपनी रूचि का करें।
— कपड़ा पैरे तीन बार, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्रवार — नया वस्त्र पहिनने के संबंध में व्यवस्था।
— कपूत से तौ निपूतेई भेले — कपूत से तो निपूते ही अच्छे।
—कफन को बैठे — कफन के लिए बैठे हैं, बिलकुल गरीब हैं, कफन के लिए भी पैसा नहीं।
— कभऊँ नाव गाड़ी पै, कभऊँ गाड़ी नाव पै — भिन्न-भिन्न प्रकार के दो मनुष्यों को भी आपस में एक दूसरे की सहायता की आवश्यकता पड़ती है, नाव जब बन कर तैयार हो जाती है तब उसे गाड़ी पर लाद कर ही नदी में ले जाते हैं और गाड़ी जब नदी पार उतारी जाती है तब नाव पर चढ़ा कर ही।
— कभऊँ सक्कर घना, कभऊँ, मुट्ठक चना — कभी खूब शक्कर और कभी केवल मुट्ठी भर चने, संसार में सब दिन एक से नहीं जाते, ईश्वर जो कुछ दे उसी में संतोष करना चाहिए।
— कमरा कमरा की गाँठ नई लगत — कम्बल कम्बल की गाँठ नहीं लगती, बड़ों में समझौता कराना कठिन होता है।
— कयें कयें धोबी गदा पै नई चढ़त — आदमी कोई काम सदैव भले ही करता रहे, पर कहने से वही काम नहीं करता।
— कयें खेत की सुनें खरयान की — कुछ कहा जाय और कुछ समझा जाय, देखति हौं ब्रज की लुगाइन भयौ धौं कहा, खेत की कहे तें खरियान की समझतीं ठाकुर।
— करता से करतार हारो — कर्मठ व्यक्ति के सामने ईश्वर भी हार मानता है।
— करमन की गत कोऊनें नई जानी — भाग्य का लिखा कोई नहीं जान पाता।
— करमहीन खेती करे, बैल मरें कै सूखा परै — कर्महीन के कोई कार्य सफल नहीं होते।
— कर लओ सो काम, भज लओ सो राम — संसार में आकर जितना काम कर लिया और भगवान का जितना नाम ले लिया उतना ही अच्छा, आलस करना ठीक नहीं।
— करिया अच्छर भैंस बरोबर — अपढ़ के लिए प्रयुक्त।
— करिये मन की, सुनिये सब की — बात सब की सुननी चाहिए, परन्तु करनी मन की चाहिए।
— करी और करकें न जानी — एक तो खोटा काम किया और फिर वह भी चतुराई से नहीं।
— करी न खेती, परे न फंद — घर घर डोलें मूसरचंद-काम में मन न लगाने वाले अल्हड़ और स्वतंत्रता प्रिय व्यक्ति के लिए प्रयुक्त।
— करील कौ काँटो, साढ़े सोरा हात लाँबो — गप्प हाँकना।
— करूआ तरें ठाँड़े — नीम का वृक्ष, एक ग्रामीण देवता, जिनका निवास अथवा आम के वृक्ष पर माना जाता है। आम, नीम करूआ बसै, ऊमर बसत मसान।
— करें न घरे सनीचर लगो — कुछ करते धरते तो है नहीं, ग्रहों को दोष देते हैं।
— करेला और नीम चढ़ो — एक तो किसी मनुष्य का स्वभाव पहले से ही खराब हो, और फिर कुसंगत में पड़ कर अथवा ऊँचा पद पाकर वह और भी खराब हो जाय तब कहते हैं।
— काँटे की तौल — बिलकुल ठीक बात।
— काँटे से काँटो निकरत — काँटे से काँटा निकलता है, जैसे को तैसा मिल जाय तभी काम चलता है।
— काँ राजा भोज, काँ डूँठा तेली — कहाँ राजा भोज, कहाँ डूँठा तेली।
— काँ राम राम काँ टेंटें — जहाँ दो बातें की कोई तुलना न की जा सके, एक अधिक अच्छी और दूसरी नितान्त बुरी हो।
— काऊ की बऊ कोऊ बरा बदलावे — टेहुनी से ऊपर हाथ में पहिनने का चाँदी या सोने का आभूषण, किसी की बहू और कोई सराफ की दुकान पर उसका बरा बदलवाने जाए जब कोई अनुचित रूप से किसी के काम में हस्तक्षेप करे, अथवा बुरी नीयत से किसी की सहायता को उद्यत हो।
— कागद होय तौ बांचिये, करम न बाँचे जायें — कागज में लिखे हुए को तो पढ़ा जा सकता है, परन्तु कर्म में लिखे को कोई नहीं पढ़ सकता, काजर लगाउतन आँख फूटी-काजल लगाते आँख फूटी, अच्छा करते बुरा हुआ।
— कानखूजरे कौ एक गोड़ो टूट जाय तौं लूलौ नई हो जात — कानखजूरे का एक पैर टूट जाय तो वह लँगडा नहीं हो जाता, बड़े आदमी का यदि थोड़ा बहुत नुकसान हो वह उसे नहीं अखरता।
— कान छिदाय सो गुर खाय — जो कष्ट उठायेगा उसे आराम भी मिलेगा।
— कान में ठेंठे लगा लये — अर्थात् किसी की बात नहीं सुनने, अथवा सब ओर से तटस्थ हैं।
— कानी अपनो टेट तौ निहारै नई, औरन की फुल पर–पर झांके — आँख पर का उभरा मांस-पिंड, आँख पर का सफेद धब्बा जो चोट लगने अथवा चेचक में आँख के नष्ट होने पर पैदा हो जाता है, कानी-अपना टेंट तो देखती नहीं, दूसरे की फुली लेट लेट कर झाँकती है, स्वयं अपना बड़ा दोष न देख कर दूसरे की साधारण त्रुटि को देखते फिरना।
— कानी के ब्याव में सौ जोखों — जिस कार्य के पूरा होने में शंका हो उसमें विघ्न भी बहुत पड़ते हैं।
— कानी खों कानोई प्यारो, रानी खों राजा प्यारो — अपना आदमी सबको प्रिय होता है।
— काबुल में का गधा नई होत — काबुल में क्या गधे नहीं होते, जानकारों में भी मूर्खों की कमी नहीं होती।
— काम परे कुछ और है काम सरे कछु और — तुलसी भाँवर के परे नदी सिरावत मौर-काम निकल जाने पर आदमी का रूख बदल जाता है।
— काम प्यारो होत, चाम प्यारो नई होत — काम प्यारा होता है, आदमी की सूरत शक्ल नहीं, प्रायः ऐसे व्यक्ति के लिए कहते हैं जो मनोनुकूल काम नहीं करता।
— कारे कोसन — काले कोसों, अर्थात् बहुत दूर-पल में परलै होत है, फिर करेगा कब-जिस काम को करना है उसे तुरंत करना ही चाहिए।
— काल के जोगी कलोंदे कौ खप्पर — जब कोई तुच्छ व्यक्ति बड़े आदमियों का अनुकरण करे।
— काल कौ भरोसा आज नइयाँ — कल क्या होगा इसका आज भी ठीक निश्चिय नहीं किया जा सकता, फिर पहिले से उसका निश्चिय तो और भी कठिन है।
— काल की कीनें जानी — कल क्या होने वाला है इसे कौन जान सकता है।
— कीनें अपनी मताई कौ दूद पिऔं — किसने अपनी माँ का दूध पिया है, कौन इतना बहादुर है।
— कीनें तुमें पीरे चाँवर दये ते — तुम्हें पीले चावल किसने दिये थे, अर्थात् तुम्हें यहाँ कौन बुलाने गया था, ब्याह आदि में पीले चावल और हल्दी की गाँठ देकर सगे-संबधियों को न्योतने की प्रथा बुंदेलखंड में प्रचलित है, उसी से कहावत बनी, जब कोई अनाधिकृत रूप से दूसरे के काम में हस्तक्षेप करने पहुंच जाय और मना करने पर भी न माने तब कहते हैं।
— कुँअन में बाँस डारबो — कुँओं में बॉस डालना, किसी वस्तु की गहरी छानबीन करना।
— कुआ की माटी कुअई खों नई होत — कुआँ खोदने पर जो मिट्टी निकलती है वह कुएँ में ही लग जाती है, जहाँ का पैसा वहीं खर्च हो जाता है।
— कुआ के मेंदरे — कुएँ का मेढक, अनुभवहीन व्यक्ति।
— कुटी दबाई और मुड़ो सन्यासी— पिसी दवा और मुड़ा सन्यासी इनको पहिचानना कठिन है।
— कुठिया धोएँ काँदो हात — अनाज रखने का मिटटी का कुठीला, कुठिया धोने से केवल कीचड़ हाथ आती है, छोटे आदमी को तंग करने से कोई लाभ नहीं होता।
— कुतियाँ प्रागै जेयँ तौ हँड़िया को चाट — कुतियाँ प्रयाग जायेंगी तो फिर हाँड़ी कौन चाटेगा, यदि छोटे आदमी बड़ा काम करने लगें तो फिर छोटों का काम कौन देखेगा।
— कुत्ता की चाल जाओ, बिलैया की चाल आओ — शीघ्र जाओ, शीघ्र आओ।
— कुत्ता की पूंछ बारा बरसें पुँगरिया में राखी, जब निकरी तब टेड़ी की टेड़ी — कुत्ते की पूँछ बारह वर्ष तक नली में रखी गयी, परन्तु जब निकली तब टेढ़ी की टेढ़ी, किसी मनुष्य की बुरी आदत कठिनाई से छूटती है।
— कुत्ता घसीटी में परबो — ऐसे काम में पड़ना जिसमें व्यर्थ की खींचातानी सहनी पड़े।
— कूकुर कौ मुंस लड़इया — गीदड़, एक के लिए दूसरा बढ़ कर।
— कैंकरे कौ जाव माटी कुकेरत— केंकड़े का बच्चा पैदा होते ही मिट्टी कुरेदता है, जिसका जो जन्मगत स्वभाव होता है वह नहीं छूटता।
— कैबे की लाज, न सुनवे की सरम — निर्लज्ज के लिए।
— कै हंसा मोती चुगे, कै लंघन मर जाय — बड़े आदमी अपनी आन-बान को नहीं छोडतें।
— कौऊकौ घर जरै कोऊ तापै — किसी की तो हानि हो और कोई दूसरा लाभ उठाये।
— कोऊ मताई के पेट से सीक के नई आऊत — कोई माँ के पेट से सीख कर नहीं आता, अर्थात् करने से ही सब काम आता है।
— कोऊ मरै काऊ कौ घर मरे — किसी की हानि से किसी को लाभ होना।
— कोठन कोठन जी दुकाउत — कोठे-कोठे जी छिपाते हैं, काम से जी चुराते हैं, जिम्मेवारी से भागते हैं।
— कोढ़ और कोढ़ में खाज — विपत्ति में और विपत्ति।
— कोरी की बिटिया केसर कौ तिलक — हैसियत के विरुद्ध काम।
— कोरी कौ सुआ का पढ़ै— तगा पौनी कोरी का तोता क्या पढ़ता है, सूत और पौनी, जो जिसका धंधा होता है उसके घर में उसी की चर्चा रहती है।
— कोस कोस पै पानी बदले, बारा कोस पै बानी — कोस-कोस पर पानी और बारह कोस पर भाषा बदल जाती है।
— कौंड़ी कौंड़ी माया जुरे — थोड़ा-थोड़ा करके बहुत इकट्ठा हो जाता है।
— कौअन के कौसे ढोर नई मरत — कौओं के कोसने से पशु नहीं मरते।
— कौआ कान लै गओ, टटोये तौ दोऊ लगे — कौआ कान ले गया, टटोले तो दोनों लगे हैं, सुनी सुनायी बात पर जब कोई दृढ़ विश्वास कर ले तब।
— कौन इतै तुमाओ नरा गड़ो — नाल, रक्त की नालियों तथा एक प्रकार के मज्जातंतु से बनी रस्सी के आकार की वह डोरी जो एक ओर तो गर्भस्थ बच्चे की नाभि से और दूसरी ओर गर्भाशय की दीवार से मिली होती है।
— कौन तुमई अकेले ने मताई को दूध पिओ — कौन तुम्हीं अकेले ने माँ का दूध पिया है, अर्थात् तुम्हीं बड़े शूरवीर नहीं हो, हममें भी कुछ बूता है।
— क्वाँर के झला, साव के लला — यकायक आ जाने वाला पानी का हलका झोंका, क्वाँर के महीने में पानी के झोंके उसी प्रकार सहसा रह रह कर आते हैं जिस प्रकार बड़े आदमी का निठल्ला लड़का गाँव की गलियों में कभी इधर से निकल जाता है, कभी उधर से।
— खटपाटी लयें परे — खटपाटी लेकर पड़े हैं, अर्थात् रूठे हुए हैं, किसी विषय पर अप्रसन्न होकर अथवा किसी से रूठ कर घर के किसी एकान्त स्थान में चारपाई पर चुपचाप करवट लेकर लेट जाने और बात न करने को खटपाटी लेकर पड़ना कहते हैं। — खता मिट जात पै गूद बनी रत — क्षत, फोड़ा, घाव फोड़ा भर जाता है परन्तु उसका चिन्ह बना रहता है, मन में चुभी बात कभी दूर नहीं होती।
— खता में खता, ढका में ढका — पीड़ा के स्थान में और भी पीड़ा आकर उत्पन्न होती है, हानि में और भी हानि होती है।
— खाँड़ बिना सब राँड़ रसोई — शक्कर के बिना भोजन किसी काम का नहीं।
— खाई गकरियाँ गाये गीत, जे चले चैतुआ मीत — हाथ की बनी छोटे आकार की मोटी रोटी, बाटी, चैत की फसल काटने वाले मजदूर, जो फसल के दिनों में झुंड के झुंड बाहर निकलते हैं, जहाँ तक काटने के लिए खड़ी फसल मिलती है आगे बढ़ते जाते हैं और कटाई का काम समाप्त हो जाने पर फिर घरों को लौट जाते हैं, स्वार्थी निर्मोही व्यक्ति के लिए प्रयुक्त।
— खाकें पर रइये, मार कें भग जइये — खाकर लेट जाय, मार के भाग जाय।
— खाबे को मौआ, पैरवे कों अमौआ — एक प्रकार का खाकी रंग जो आम के पत्तों से बनता है, आम के पत्तों से बने हुए रंग में रंगा कपड़ा, खाने को महुआ, पहिनने को अमोआ, संतोषी का कथन।
— खुसामद सें आमद है — खुशामद से ही पैदा मिलता है।
— खूंटा के बल बछरा नाचे — किसी के बल-बूते पर ही आदमी किसी बड़े काम को करने की हिम्मत करता है।
— गंगा गये मुंडायें सिद्ध — सामने आ गये काम को पूरा कर डालने में ही समझदारी है।
— गंगा नहाबो — झगड़े से छुट्टी पाना, किसी काम की जिम्मेवारी से मुक्त होना।
— गँवार की अक्कल चेंथरी में — गँवार पिटने से ही मानता है।
— गई परथन लैन, कुत्ता पींड़ लै गओ — गेंदे हुए आटे की पिंडी, एक काम करने गये तब तक दूसरा चौपट हो गया।
— गदन की बातें, लड़इयन की लातें — गधों की बातें और गीदड़ों की लातें, मूर्ख की बेतुकी बात।
— गदन खाओ खेत पाप न पुन्न — मूर्खों को खिलाना-पिलाना व्यर्थ है।
— गदा गदझ्या सें जीते नई, रेंगटा के कान मरोरे। गनेस जू खों चौक पूरो, मेंदरे जू आन बिराजे — किसी के स्थान पर कोई बैठ गया।
— गरज परे पराई मताई से मताई कने परत — गरज पड़ने पर दूसरे की माँ से माँ कहना पड़ता है।
— गरजें सो बरसें का — गरजने वाले बादल बरसते नहीं, बकवादी आदमी से काम नहीं होता।
— गरीब की लुगाई, सब की भौजाई — गरीब को सब दबाते हैं।
— गर्रानी सो अर्रानो — बहुत घमंड करने वाला नष्ट होता है।
— गाँव कौ जोगी जोगिया अनगाँव कौ सिद्ध — आदमी की अपने घर में कद्र नहीं होती, अथवा अपरिचित स्थान में पहुँचने पर गुणहीन व्यक्ति भी विद्वान मान लिया जाता है।
— गुन न हिरानो, गुन गाहक हिरानो है — संसार में गुण वालों की कमी नहीं, कमी है गुणग्राहकों की।
— गुरई खों माँछी लगतीं — गुड़ के बाप कोल्हू, अर्थात् सब उपद्रवों की जड़।
— गुर खाने और पाग राखने — अच्छा खा-पीकर भी अपनी इज्जत रखनी है।
— गुर खायें पुअन कौ नेम करें — दिखावटी परहेज करना।
— गुर डिंगरियन घी उँगरियन — गुड़ तो एक-एक डली करके ग्राहकों द्वारा उठाये जाने से नष्ट होता है और घी उँगलियों में लेने से।
— गुर भरौ हँसिया — ऐसी वस्तु जिसे न तो छोड़ते ही बने और न ग्रहण करते ही।
— गुरू बिन ज्ञान भेद बिन चोरी, बहुत नहीं तो थोरी थोरी — गुरू के बिना ज्ञान और भेद के बिना चोरी नहीं होती।
— गैल कौनऊँ जायें, बैल घरई के आयँ — किसी आदमी के बैल भटक गये, उसके साथी ने कहा- देखो, तुम्हारे बैल कहाँ जा रहे हैं, इस पर उसने उत्तर दिया चिन्ता की बात नहीं, बैल घर के ही हैं, किसी रास्ते जायें, भूलेंगे नहीं, ढोरों की स्मरण शक्ति के संबंध में कहावत।
— गैल में ठाँड़े — अर्थात् संसार का सब झगड़ा छोड़ चुके है, जाने को तैयार खड़े है, हमें किसी बात से क्या मतलब।
— गोंऊअन के संगे घुन पिस गओ — गेहुओं के साथ घुन पिस गया।
— गोबर के गनेस, जी पटा पै बैठत, बई खों नई फोर पाउत — गोबर गनेस जिस पटे पर बैठते हैं, उसको ही तोड़ने की सामर्थ्य नहीं रखते।
— गोबर गनेश — बुद्ध आदमी।
— गोली कौ घाव भर जात, पै बोली कौ नई भरत — गोली का घाव भर जाता है, पर बोली का नहीं भरता।
— घर आय नाग न पूजें, बाँमी पूजन जायें — अवसर से लाभ न उठाना।
— घरई की कुरइया से आँख फूटत — छप्पर के छावन में लगने वाली लकड़ी, यह प्रायः ओलती से बाहर निकली रहती है और ओलती यदि नीची हो तो उसके आँख में लगने का डर रहता है, घर के आदमी से ही अधिक हानि पहुंचती है।
— घर की खाँड़ किरकिरी लागै, बाहर कौ गुर मीठो — घर की वस्तु की कद्र नहीं होती, घर की मुर्गी दाल बराबर।
— घर के वीरन खों गुर कौ मलीदा — घर के आदिवासियों की अपेक्षा बाहर वालों का अधिक आदर-सत्कार करना।
— घर कों उसारो, लरकै सारो — घर में आँगन चाहिए और लड़के के साला।
— घर घर मटया चूले हैं — सब घरों का एक सा हाल है, अथवा सब घरों में कुछ न कुछ भेद की बात रहती है।
— घर बरो सो बरो, चोंखरन की ऐंड़ तौ खुल गई — घर जला तो जला, चोंखरों की अकड़ तो खुल गयी, घर के जलने से वे भी जल गये अथवा भाग गये, जब कोई थोड़े से लाभ के लिए अपनी बड़ी हानि कर बैठे तब उस पर व्यंग्य।
— घरबारों मेंड़ में, मेंड — कटा खेत में खेत का मालिक तो मेंड़ पर खड़े होकर खेत की रक्षा कर रहा है, परन्तु मेंड़ पर की घास को चोरी से काट कर ले जाने वाला खेत में घुसा है और अधिक स्वच्छंदतापूर्वक चोरी कर रहा है।
— घाट घाट कौ पानी पिये हैं — बड़े अनुभवी है, दुनिया देखे हुए हैं।
— घायल की गत घायल जानें — दुखी का दुख दुखी आदमी ही समझ सकता है।
— घास — फूस की तापबो-क्षणस्थायी वस्तु का उपयोग।
— घिऊ न सिऊ, पक्की बने — घर में तो घी नहीं और पकवान खाने का मन।
— घिना लड़इया छींट कौ बागौ — घिनौना गीदड़ और छींट का जामा।
— घी के कुप्पा सें लगे — ऐसे स्थान पर पहुँच जाना जहाँ खूब खाने को मिले।
— घी देतन नर्रयात, अथवा घी देतन बामन नर्रयात — भलाई करते बुराई मानते हैं, जाड़े के दिनों में घोड़े को स्वरूप रखने के लिए घी दिया जाता है, जिसे वह आसानी से नहीं खाता।
— घुल्ला जा पार कै बा पार — घोड़ा इस पार या उस पार, परिणाम कुछ भी हो, काम करना ही है।
— घूँघट लौं की लाज — एक बार लाज-शरम टूटी सो टूटी।
— घूरन घूरन फिर हो — मारे-मारे फिरोगे।
— घोड़ा की पछारी और हाकिम की अँगारी — इनसे बचे चईये घोड़े के पीछे खड़े होने से दुलत्ती लगने का डर रहता है और हाकिम के आगे चलना घृष्टता है, इनसे बच कर चलो।
— घोड़ा की लात घोड़ई सऊत — घोड़े की लात घोड़ा ही सहन कर सकता है, बड़ी की ठोकर बड़े ही सहन करते हैं।
— घोसिया घोकत रओ, कमरिया ब्या लै गओ — घोसी तो सोच-विचार में ही पड़ा रहा और कमरिया उस स्त्री को ब्याह कर ले गया जिसके साथ घोसी विवाह करना चाहता था, काम न करके केवल मन के लड्डू खाना।
— चंग पै चढ़ावो — इधर-उधर की बात करके अपने अनुकूल बनाना, मिजाज बढ़ा देना।
— चंडाल चौकड़ी — दुष्टों की जमानत।
— चटू के ब्याव, भेंडू न्योतें आई — चटोर स्त्री के यहाँ ब्याह में चोट्टी न्योते आयी, जैसे के यहाँ तैसे ही आते हैं, अथवा जैसे को तैसे मिलते हैं।
— चट्ट राँड पट्ट ऐबाती — किसी बात के लिए उतावली मचाने पर कहते हैं।
— चतुर कों चौगुनी, मूरख कों सौगुनी — दूसरे की संपत्ति चतुर को सौगुनी और मूरख को सौगुनी प्रतीत होती है।
— चनन के धोकें कऊँ मिर्चे न चबा जइयो — चनों के धोखे कहीं मिर्चे मत खा जाना, अर्थात् काम उतना आसान नहीं जितना समझ रखा है, समझ बूझ कर हाथ डालना।
— चना चिरौंजी हो रये — चना चिरौंजी की तरह मँहगे हो रहे हैं, अथवा इतने दुष्प्राप्य है कि चिरौंजी की तरह मीठे लगते हैं, खाद्य-वस्तुओं के बहुत मँहगे होने पर कहते हैं।
— चरमाक के चार हींसा — चालाक सदैव मुनाफे में रहता है।
— चलत बैल खों अरई गुच्चत — बैल हाँकने की लकड़ी जिसमें एक नुकीली कील और चमड़े की बधियाँ लगी रहती हैं, काम करते हुए आदमी को छोड़ते हैं।
—चलती कौ नाव गाड़ी — गाड़ी जब तक चलती है तभी तक गाड़ी है, अन्यथा काठ-कबाड़ का ढेर है, ऐसे आदमी के लिए प्रयुक्त जिसकी बात लोग मानते हों अथवा जिसके हर काम आसानी से होते हों।
— चलती रोजी पै लात मारत — मूर्खतावश बँधी-बँधायी नौकरी छोड़ते हैं।
— चलनी में दूद दोयें, कपारै खोर देयें — चलनी में दूध दुहते हैं, और दोष देते हैं भाग्य को।
— चलैनयाऊ हो रई — गौने में आई हुई नववधू, बहुत सजी-बजी स्त्री के लिए।
— चाँदी कौ जूता मारबो — पैसा खर्च करके काम बनाना।
— चाँवर बेंच कुदई लई, जा अक्कल तोय कौन ने दई — कोदों, सावाँ की तरह एक मोटा अनाज।
— चार चोर, चौरासी बानिया, एक एक कें लूटे — चार चोरों ने चौरासी बनियों को एक-एक करके लूट लिया, एका नहीं होने से हानि उठानी पड़ती है।
— चार दिना तौ आयें नई भये, और सोंठ बिसाउन लगीं — अभी चार दिन तो ससुराल आये नहीं हुए, और सोंठ अभी से खरीद कर रखने लगीं, किसी अनिश्चित कार्य का पहिले से सिलसिला बाँधना।
— चाहत की चाकरी कीजे, अनचाहत कौ नाव न लीजे — जो प्रेम से रखे उसी की नौकरी करनी चाहिए।
— चिंटी कों कन, हाती खों मन — भगवान देता है।
— चिंटी होकें घुसे, मूसर होकें कड़े — बातें बना कर अधिकार जमा लेना, और फिर मुश्किल से छोड़ना।
— चिरई चौंके, न बाज फरके — घोर निस्तब्धता।
— चीकने घैला — ऐसा बेशर्म आदमी जिस पर कोई उपदेश काम ही न करें।
— चीकनों मों करें फिरत — चिकना मुँह किये फिरते हैं, केवल अपना स्वार्थ देखते हैं, अथवा छैल-चिकनियाँ बने हैं।
— चील के घेंचुआ में माँस काँ— चील में घोंसले में माँस कहाँ, उड़ाऊ खाऊ के पास पैसा कहाँ।
— चुखरियाँ दुलत्तीं खेलतीं — चूहे दुलती खेलते हैं, घर में कुछ भी खाने को नहीं है, बहुत गरीबी का होना।
— चुगल चुगली सें नई चूकत — चुगलखोर चुगली से नहीं चूकता।
— चुटैया तौ हमाये हात में तौ जैये काँ — चोटी जब हाथ में है तो जायगा कहाँ।
— चुपर कें और चार ठउआ — वस्तु अच्छी भी माँगना और अधिक भी।
— चुरियाँ लादीं पाठें परी, खाँड़ लादी दौ में परी — सब प्रकार से दुर्भाग्य।
— चून न मून, चाल कें दै पओ — झूठ भड़क दिखाना।
— चूमचाट कें खा लओ — घर साफ कर दिया, सब खा लिया।
— चूले की लकरियाँ चूलेई में जरतीं — चूल्हे की लकड़ी चूल्हे में ही जलती हैं, जहाँ की वस्तु वहीं काम आती है।
— चूले में मूँड दओ तौ लूगरन कौ का डर — उखरी में मूंड।
— चेंथरी पै आँखें चड़ीं — अंधे बन कर काम करते हैं, भला बुरा कुछ न सूझता।
— चोरन कुतिया मिल गई पहिरो कहु को देय — घर का आदमी ही यदि विरुद्ध हो जाय तो काम कैसे चले।
— चौका सो झार बैठे — सब पैसा साफ कर बैठे।
— चौमासे के रिपटे और राज के पिटे कौ का डर — चौमासे में रिपट कर गिर पड़ने और राज्य के द्वारा पिटने का डर क्या।
— छछूंदर छोड़बो — एक छोटी आतिशबाजी जो आग लगने पर बहुत तेज चक्कर काटती हुई जमीन पर भागती है, ऐसी बात कह देना जिससे दो आदमियों में बैठे-ठाले झगडा हो जाय।
— छटी कौ खाव — पिओ सब निकर गओ छटी का खाया-पिया सब निकल गया, बड़ा परिश्रम करना पड़ा।
— छाती पै पथरा घर लओ — दुःख सहने के लिए हृदय को कड़ा कर लिया।
— छाती में गमको मार लओ— दुःख को पीकर रह गये।
— छिंगुरी पकर कें कौंआ पकरबो — थोड़ा सहारा पाकर गले पड़ जाना।
— छिदाम की हँड़िया ठोक बजा कें लेत — हर चीज देखभाल कर खरीदनी चाहिए।
— छिन सीरे, छिन ताते — घड़ी–घड़ी में मिजाज बदलना।
— छिरिया के गोड़े बुकरिया में बुकरिया के गोड़े छिरिया में — बकरी का बच्चा इधर की चीज उधर मिलना, ऊट-पटाँग काम करना।
— छींकतई नाक कटी — छींकते ही नाक कटी, बिना किसी अपराध के ही कलंक लगा।
— छींके की टूटन, बिलइया की लपकन — छींके का टूटना और बिल्ली का लपकना, संयोग से कोई अच्छा काम बन जाना।
— छूँछे काऊ न पूंछे — धनहीन को कोई नहीं पूछता।
— छूछो फटको उड़ जाय — मूर्ख के पास से कोई सार की बात पल्ले नहीं पड़ती, अथवा मूर्ख बड़ा घमंडी होता है।
— छेरी अपने जी से गई, राजा कयें अरौनी भई — बकरी की तो जान गयी, और राजा कहते हैं इसमें नमक कम है, कोई आदमी किसी के लिए मर मिटे और वह उसके प्रति थोड़ा भी कृतज्ञ न हो तब कहते हैं।
— छोटे — बड़े, सब के दो कान-क्या छोटे, क्या बड़े, सब बराबर होते हैं, सबके दो कान हैं।
— छोड़े गाँव कौ नातौ का — जिस बात से कोई प्रयोजन नहीं उसकी चर्चा क्या।
— जंगी घोड़ा कों भंगी असवार — जैसे को वैसा मिलने से ही काम चलता है।
— जग दरसन कौ मेला — संसार में सबसे मिलजुल कर रहने का ही आनंद है।
— जनम के आँदरे, नाव नैनसुख — गुण के विपरीत नाम।
— जनम के कोढ़ी — सदा के रोगी, प्रायः गंदी आदतों वाले आदमी के लिए प्रयुक्त।
— जनम कौ कोड़ एक ऐंतवार में नई जात — कोई बुरी आदत एक दिन में नहीं छूटती, चर्मरोग से मुक्ति पाने के लिए सूर्य भगवान की उपासना करते हैं और इतवार का व्रत रखते हैं, उसी से अभिप्राय है।
— जब नटनी बाँसे चढ़ी तब काहे की लाज — जब कोई काम करने ही लगे तो फिर उसमें संकोच क्या।
— जब लाद लाई तौ लाज काय की — जब बेशरमी ही लाद ली तो फिर शरम किस बात की, जब ओढ लीनी लोई तो क्या करेगा कोई।
— जरे पै फोरा पारबो — दुःखी को और अधिक दुःख पहुंचाना।
— जाँ की माटी उतई ठिकाने लगत — जहाँ मरना बदा होता है अंत समय आदमी वहीं खिंच कर पहुंचता है।
— जाँ पंच ताँ परमेसुर — पंचों में परमेश्वर होते हैं।
— जाँ मुरगा नई होता ताँ का भोर नई होत— किसी के बिना किसी का काम नहीं रुका रहता।
— जाँ साठ, ताँ सत्तर — थोडे़ खर्च के लिए काम बिगड़ रहा हो तब प्रयुक्त कि और सही।
— जा कान सुनी, बा कान निकार दई — इस कान सुनी, उस कान निकाल दी, किसी बात पर ध्यान न देना।
— जाके पाँव न फटी बिंवाई, सो का जानें पीर पराई — जिसने स्वयं कभी कष्ट नहीं भोगा वह दूसरों के कष्ट का क्या अनुभव करेगा।
— जागै सो पावे सोवे सो खोवे — सावधान रहने से ही लाभ होता है।
— जाड़ों जाय रूई सें कै दुई सें — जाड़ा या तो रूई से जाता है या दो से।
— जाये की पीर मताई खों होत — माता ही प्रसव की वेदना जानती है अथवा माता को ही संतान के सुख-दुख की चिन्ता होती है।
— जित्तो गुर डारो उत्तोई मीठो होत जिये मेरो भैय्या, घर घर भौजैय्या — साधन हाे तो कार्य भी हो जाता है।
— जी के माथें परत सोई जानत — जिस पर बीतती है वही जानता है।
— जीकौ आँडू बिकै, बो बधिया काय खों करै— जिसका आँडू बैल ही बिके वह बघिया क्यों करै, जिसका काम आसानी से हो जाय, वह उसके लिए फिर अधिक कष्ट क्यों उठाते।
— जीको खाइये भतवा, ऊकौ गाइये गितवा — जिसका अन्न-जल खाय उसकी प्रशंसा करे।
— जी पतरी में खायें आई में छेद करें — कृतघ्न के लिए।
— जीभ कैसो रहबो है— जिस प्रकार दाँतों के बीच में जीभरहती है उसी प्रकार परवश होकर रहना।
— जी से जहान लगो — जान है तो जहान है।
— जेठ के भरोसे पेट — दूसरे के भरोसे काम करने पर प्रयुक्त।
— जेवरिया कौ साँप बनाउत — रस्सी का साँप बनाते हैं।
— जैसी करनी, वैसी भरनी — कर्म का फल भोगना पड़ता है।
— जैसी देखी गाँव की रीत — ऊसी उठाई अपनी भींत – लोक रीति के अनुसार काम करना पड़ता है।
— जो मोरे है सो राजा के नईयाँ — व्यर्थ गर्व करना।
— जोर जोर मर जायेंगे माल जमाई खायेंगे — कंजूस के लिए प्रयुक्त।
— जोरिया से ऐंठत — रस्सी से ऐंठते हैं, व्यर्थ अकड़ते हैं।
— जौन नीम कौ कीरा, तौनई में मानत — जिस आदमी को जैसे वातावरण में रहने का अभ्यास पड़ जाता है वह उसी में सुखी रहता है।
— झरबेरी कौ काँटा — दुष्ट प्रकृति का आदमी झरबेरी का काँटा अत्यन्त तीक्ष्ण और टेढ़ा होता है।
— झाम झंपट, घी संपट — डाँट-डपट कर किसी की वस्तु झपट लेना।
— झूँठन के बादसा — बहुत झूठा।
— झंडा गाड़बो — पूर्ण रूप से अधिकार करना, प्रभाव जमाना, अपनी बात ऊँची रखना।
— झरे में कूरा फैलाबो — गड़बड़ पैदा करना।
— झल्लन खेती हल्लन न्याव — अच्छी खेती के लिए थोड़ा-थोड़ा पानी और झगड़े के लिए शोरगुल चाहिए।
— झाम झंपट, घी संपट — डाँट-डपट कर किसी की वस्तु झपट लेना।
— झूँठइ लेना, झूँठइ देना, झूँठइ भोजन, झूठ चबैना — झूठे व्यक्ति के लिए।
— झूँठन के बादसा — बहुत झूठा।
— झूँठे ब्याव, साँचे न्याव — विवाह झूठ बोल कर होता है, न्याय में सत्य से काम लेना पड़ता है।
— टका धरौ, पइसा उठाऔ — टका रखोगे और पैसा उठाओगे, उलझन में पड़ोगे।
— टका न खरचें गाँठ कौ नित बराते जायें — मुफ्तखोरों के लिए।
— टटोबें बेटी अपनो कपार — बेटी अपना कपाल टटोलती हैं, घर का कोई छोटा आदमी लड़का या लड़की, जब अपने हाथ से अपना कोई बड़ा अनिष्ठ कर लेता है तब दुःख, क्षोभ और व्यंग्य में कहते हैं।
— टठिया में खाओ, तौ कई खपरा में खेयें — थाली में खाओ, तो कहा, खप्पर में खायेंगे, हित की कहने पर कोई उल्टा चले तब।
— टाँग तरे हो निकर जें — हार मान लेंगे, तुम्हारे चाकर बन जायेंगे।
— टाँय–टाँय फिस — आडंबर तो बहुत, परंतु अंत में काम कुछ नहीं।
— टिकली सेंदुर सें गये तौ का खाबे मेंई बज्जुरपरै — बनाव-श्रृंगार की सामग्री से गये तो क्या पेट भर भोजन भी नहीं मिलेगा।
— टेड़ी खीर है — जब कोई मामला बेढब तरीके से उलझ जाय और उसे सुलझाना बहुत कठिन हो तब कहते हैं।
— ठंडो नहाय, तातौ खाय, ताकें बैद कबहुँ ना जाय— नित्य ठंडे पानी से नहाने और गरम खाना खाने से कभी बैद्य की आवश्यकता नहीं पड़ती।
— ठठेरे ठठेरे बदलाई नई होत — एक-सा काम या व्यवसाय करने वालों में आपस में लेन-देन का झगड़ा क्या।
— डंडा सब कौ पीर है — डंडा सबसे बड़ा है।
— डरी डरी कामें आऊत — बेकार वस्तु भी पड़ी-पड़ी काम आ जाती है।
—डूँड़ा हर कौ, न बखर कौ, दायें कों टायें टायें — ऐसा बैल जिसके सींग टूट कर गिर गये हों, कटी हुई फसल का दाना निकालने के लिए उसे जमीन में बिछा कर बैलों से कुचलवाने की क्रिया।
— डूबो साद कें रै गये — डुबकी साध कर रह गये, चुप्पी साध ली ऐन मौके पर गायब हो गये।
— डूबो बंस कबीर कौ उपजे पूत कमाल — ऐसी अयोग्य संतान के संबंध में जिससे कुल को बट्टा लगे।
— ढका में ढका लगत — धक्के में और धक्का लगता है- हानि में और हानि होती है।
— ढका के सदऊँ तीन पात — सदा एक सी स्थिति रहना।
— ढ़िंगौ मातनो दूर पानी दूर मातनो ढिंगों पानी — वर्षा ऋतु में चन्द्रमा के चारों ओर बना प्रभा-मंडल यदि आकार में छोटा हो तो समझना चाहिए कि पानी देर से बरसेगा और बड़ा हो तो शीघ्र बरसेगा।
— ढिंड़वारौ मचा राखौ — व्यर्थ का झगड़ा मचा रखा है, ढिंड़वारा ढेढ़ों के मुहल्ले को कहते हैं, ढेढ़ चमारों की तरह की एक छोटी जाति है, बुंदेलखण्ड में यद्यपि ये बहुत कम है परन्तु यह शब्द यहाँ प्रचलित है और उसका अर्थ मूर्ख या गँवार लगाते हैं।
— ढेड़ ढेड़ई सें मानत — ढेढ़ ढेढ़ से ही मानता है, गँवार गँवार से ही मानता है।
— ढोंगे, काय डरे भौमें, दयें हुयें कछू गों में — चालाक और स्वार्थी के लिए कहते हैं।
— ढोर से नर्रयात — ढोर की तरह चिल्लाते हैं, किसी के बुरी तरह चिल्लाने पर।
— ढोल के भीतर पोल — बाहरी आडंबर तो बहुत पर भीतर से खोखले।
— तकदीर सूदी तौ सब कछू — भाग्य प्रबल है तो सब कुछ।
— ततैया से नचत फिरत — बर्र, बहुत व्याकुल।
— तनक सी कहानियाँ, सबरी रात — किस्सा तो थोड़ा, उसमें सारी रात बिता दी।
— तन पै नइयाँ लत्ता, पान खायें अलबत्ता — घर में खाने को न होने पर भी शौक करना।
— तपा तप रये — भीषण गर्मी पड़ रही है, जून के महीने में जेठ दशहरा से जेठ सुदी 15 पूर्णिमा के दिन तक कहलाते हैं।
— तबा की तोरी, मटेलनी की मोरी — रोटी रखने का मिट्टी का बना बासन, तवे पर जो रोटी सिंक रही है वह तुम्हारी और जो बन चुकी है वह मेरी, स्वार्थी के लिए।
— तबा कैसी बूँद — शीघ्र नष्ट हो जाने वाली वस्तु।
— तरे के दाँत तरै और ऊपर के ऊपर रै गये — तले के दाँत तले और ऊपर के ऊपर रह गये, अर्थात् कुछ बोलते नहीं बना, चुप हो गये।
— तला खूदौ नइयाँ, मगर सुसानई लगे — तालाब तो खुदा नहीं, और मगर पैर पसार कर सोने के लिए आ गये, अर्थात् कोई वस्तु बन कर तो तैयार नहीं हुई और चाहने वालों की भीड़ लग गयी।
— ताताथेई मचा दैबो — ताताथेई मचा देना, उतावली पाड़ देना, आफत कर देना।
— ताते उचेलत — तबे पर से गरम गरम उठाते हैं, किसी कार्य में जल्दी मचाने पर।
— तिरिया चरित जानें नहिं कोय, खसम मार कें सती होय — स्त्रियों के चरित्र को जानना कठिन है।
— तिरिया रोवे पुरुष बिना, खेती रोवे मेह बिना — पुरुष के बिना जैसे स्त्री का जीवन व्यर्थ है वैसे ही वर्षा के बिना खेती व्यर्थ होती है।
— तिल कौ ताड़ बनाबो — छोटी सी बात को बहुत बढ़ा कर कहना।
— तिली, तमाखू, सावनी, फिर मन समझावनी — तिली और
तमाखू सावन में ही बो देना चाहिए, बाद में बोना तो मन समझना है।
— तीतर के मों लच्छमी — तीर की वाणी सफल हो, अथवा क्या पत्ता तीतर क्या कहे।
— तीन बराती, नौ पौनया — पहुनई करने वाले, मेहमान, बराती तो केवल तीन, और उसके साथ मुफ्त की रोटियाँ तोड़ने वाले नौ!।
— तीन बुलाये तेरा आये — एक को बुलाने पर जब चार आ जायें तब कहते हैं।
— तीन में न तेरा में — ऐसा व्यक्ति जो किसी गिनती में न हो, कहावत का प्रयोग ऐसे अवसर पर होता है जब किसी आदमी की कोई वक्त न हो, परन्तु फिर भी बिना पूछे वह बीच में अपनी राय देने के लिए आ जाये।
— तीन लोक में मथुरा न्यारी — अनोखी चाल चलना।
— तीरथ गये मुड़ाये सिद्ध — बाहर जाने पर कोई ऐसा काम सामने आ पड़े कि उसे करने या फिर अवसर न मिले तो उसे कर ही डालना चाहिए, भले ही उसमें कुछ खर्च हो।
— तुम हमाई न कओ, हम तुमाई न कयें — समान व्यवहार के लिए
— तुमाओ ईमान तुमाये संगे — तुम्हारा ईमान तुम्हारे साथ, अर्थात् हम तुम्हारी बात का विश्वास करते हैं, भले ही हम धोखा खा जायें।
— तुमाये चाटे तौ रूआँ नई जमत — तुम्हारे चाटे हुए तो रोम नहीं जमते, तुम जिस पर कृपा करते हो उसका सत्यानाश ही होकर रहता है।
— तुमाये जैसे सैकरन देखे — अर्थात् हमें तुम्हारी परवाह नहीं।
— तुमाये मों में घी सक्कर — शुभ समाचार सुनाने वाले को आशीर्वाद।
— तेजाब के डूबे हैं — ऐसे आदमी के लिए प्रयुक्त जो खूब घिसा-पिसा और अनुभवी हो।
— तेते पॉव पसारिये जेती चादर होय — सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना चाहिए।
— तेल जरै, बाती जरे, नाव दिया कौ होय — कष्ट उठा कर काम कोई करे, यश किसी को मिले।
— तेल देखो, तेल की धार देखो — किसी काम में जल्दी करना ठीक नहीं, धैर्य-पूर्वक परिणाम की प्रतीक्षा करनी चाहिए।
— तेल में कारे है — कुछ गड़बड़ है।
— तेलिन से धोबिन का घट — तेलिन के पस तिली कूटने के लिए मूसल होता है और धोबिन के पास कपड़े पीटने लिए मोंगरी, कौन किस बात में कम।
— तेली कें भौत तेल होत तौ का पार चुपरत — तेली के बहुत तेल होता है तो क्या पहाड़ चुपड़त है, कोई अपना पैसा व्यर्थ खर्च नहीं करता।
— तेली कौ काम तमोली करै, बारा बरस लौं गड़ा में परै — जो काम जिसके करने का है उसे वही ठीक ढंग से कर सकता है, दूसरा करे तो हानि उठाता है।
— तेली कौ बैल मरे कुमारिन सती होय — झूठी लल्लो चप्पो करने पर।
— तेली रोवे तेल कों, मकसूदन रोवें खरी कों — सबको अपने स्वार्थ की चिंता रहती है।
— तै मोरे घूघंट की राख तौ मैं तोरी मूॅछन की राखों — तुम मेरी बदनामी न करो तो मैं तुम्हारी बदनामी भी नहीं करूंगी, परस्पर व्यवहार की बात।
— तोय बिरानी का परी, अपनी तौ निरबेर — दूसरों की फिक्र न करके अपना काम देखो।
— तोसा सो भरोसा — गाॅठ का पैसा वक्त पर काम आता है।
— थर न थराई, हरामजादी कुआई — किसी काम में एहसान की जगह व्यर्थ अपयश हाथ लगना।
— थुरमोलू और दुधार, लमथनू और नैनवार — गाय सस्ती हो और दुधार भी हो, लंबे थनों की हो, और अधिक घी वाली हो, जब कोई दम दामों में बढ़िया चीज लेना चाहे तब कहते हैं।
— थूॅककें चाटत — कह कर मुकर जाते हैं।
— थैलियों सिमा राखो — थैलियॉ सिला कर रखो, अनुचित माँग करने पर व्यंग्य में।
— थोथा चना बाजे घना — निकम्मा आदमी बकवास बहुत करता है।
— थोरी कई कबीरदास, भौत कई संतन — कबीर ने थोडे़ में ही सब कुछ कह दिया, दूसरों ने उसे और बढ़ाया।
— थोरो थोरो सब खाने आउत — थोड़ा-थोड़ा सभी चीजों का स्वाद लेना चाहिए।
— दॅतला खसम की हाॅसी, न सॉसी— जिस आदमी की मुखाकृति सदैव एक सी बनी रहे उसके मनोभाव को समझना कठिन होता है।
— दई के धोकें चूना खा गये — ठगे गये, लाभ की आशा से काम करने पर उल्टी हानि उठा गये।
— दई में मूसर पटक दओ — शुभ कार्य में विघ्न डाल दिया. बना बनाया काम चौपट कर दिया।
— दच्छया लैबो तौ आसान, पै सीदो दैबो कठिन — किसी काम की जिम्मेवारी लेना तो आसान है, पर उसका निबाहना कठिन है।
— दद्दा तुमने लाख कई, हमनें एकऊ नई मानीं — हठधर्मी करने पर।
— दबो बानिया देय उधार— दबा हुआ बनिया उधार देता है।
— दम मदार, पैले पार — लड़कों को किसी काम के लिए प्रोत्साहित करने अथवा किसी कठिन कार्य के पूरा हो जाने और उससे मुक्ति पाने पर प्रयुक्त।
— दम भाई किसके, दम लगाई खिसके — अपना मतलब गाँठ कर चल देने वालों के लिए कहते हैं।
— दमरी की धुरिया, नौ पसेरी दानों — जितने का माल नहीं, उतने से अधिक उस पर खर्च।
— दमरी की भाजी, घर भर राजी — भाजी की प्रशंसा, जो सस्ती और सुलभ होती है, कंजूस के लिए भी व्यंग्य में।
— दर्जी के काज — बटन, सुनार की खटाई, बरेदी की आई और कुरिया की पाई-दर्जी कपड़ों की सिलाई के मामले में काज-बटन का, सुनार गहनों के मामले में खटाई में पड़े होने का, बरेदी दूध के लिए गाय के आने का, और कोरी बुनाई के विषय मे ताने-बाने के तैयार होने का विलंब बता कर ग्राहकों को टरकाता है।
— दसरये के नीलकंठ — ऐसा व्यक्ति जो बहुत कम दिखायी दे, किसी प्रिय मित्र से बहुत दिनों बाद भेंट हो तब कहते हैं।
— दाँत काटी रोटी — घनिष्ठ मित्रता।
— दाँत खट्टे होबो — खूब हैरान होना, लड़ाई या प्रतिद्वंद्विता में परास्त होना।
— दाँत गिनाबो — निर्धनता या निरीहता दिखाना।
— दाँत चना बीनबो — ठोकर खाकर गिरना, दाँत टूटना, मुँह की खाना।
— दाँत तिनूका दाबबो — दया की भीख माँगना, क्षमा याचना करना, हा हा खाना।
— दाँतन पसीना आ जेय — दाँतों पसीना आ जायगा, अत्यन्त परिश्रम-साध्य कार्य के संबंध में।
— दाई मीठे, ददा मीठे, किरिया की की खाँव — असमंजस में पड़ के कोई काम न कर सकना, दाई हो मीठी, ददा हो मीठी तो सुर्ग कौन जाये।
— दाता देय भंडारी कौ पेट फटै — मालिक तो देने का हुक्म दे, परन्तु खाजांची को दुःख हो कि क्यों दिया जा रहा है, दानपुण्य के कार्य में जब कोई बाधक बने, अथवा दूसरे को देने से मना करे तब।
— दाद — खाज उर सेउना बड़भागी के होयें, परे खुजावें खाट पै, बड़ आनंदी होयँ-खाज-ग्रस्त लोगों से व्यंग्य में।
— दान की बछिया के कान नई होत — मुफ्त की चीज के विषय में क्या देखना कि कैसी है, जैसी मिले वैसी ही अच्छी।
— दाना–पानी की बात है — सब अन्न–जल के अधीन है, वह जहाँ वहाँ ले जाय।
— दार भात में मूसरचंद — दो आदमियों की बात में तीसरा व्यर्थ हस्तक्षेप करने पहुंच जाय तब।
— दिन कों बाद रात कों तारे, चलो कंत जहें जीवें बारे — वर्षाऋतु में दिन में यदि आकाश में बादल घिरे रहते हों, और रात में तारे निकल आते हों, तो फिर समझना चाहिए कि पानी नहीं बरसेगा और अकाल पड़ेगा।
— दिन तेर करबो — किसी प्रकार दिन काटना।
— दिन भर नायें मायें, रात में उलरों क्यायँ — दिन में इधर-उधर घूमें और रात में कहें कि मैं लेटू कहाँ, घर का कोई काम-धंधा न देखने वाले, आवारा और मटरगश्ती करने वाले लड़कों के लिए।
— दिया तरे अँधियारो — जहाँ विशेष प्रबंध और विचार की आशा हो वहाँ अंधेर होने पर।
— दीनदुनिया की खबर नइयाँ — किसी बात का पता न रखना, काम काज से बेखबर रहना।
— दुअन में दो कौंड़ी घरबो — कौड़ी के खेल में दो का दाव लेने वाले को दो कौड़ी और रख दी गयी, हानि की समस्या तैयार हो गयी। झगड़ों को बढ़ा देने के अर्थ में प्रयुक्त।
— दुआरे कौ चार, बीच कौ लेखो — द्वारपूजा के समय मध्य का लेखा, वे अवसर का काम।
— दुकान फैलाबे की जरूरत नइयाँ — यहाँ सामान खोलने की जरूरत नहीं, किसी आदमी से पिंड छुड़ाने के लिए कहते हैं।
— दुख सुख कौ जोड़ा है — दुःख के साथ सुख और सुख के साथ दुःख लगा रहता है।
— दुआर गइया की दो लातें सउनें परतीं — काम करने वाले आदमी की बातें भी सहनी पड़ती है।
— दूद के दाँत नई झरे — अभी तक बचपन है।
— दूद कौ जरौ, मठा फूंक–फूंक कें पियत — एक बार किसी काम में बहुत हानि हो जाने पर दूसरी बार मनुष्य उस काम को अत्यधिक सावधानी से करता है।
— दूदन अनाओ, पूतन फलो — धन और संतान की वृद्धि हो, बढ़ी-बूढ़ी स्त्रियों का सधवाओं को आशीर्वाद।
— दूबरी और दो असाड़, चरन गई दूर हार — गाय एक तो दुबली, फिर एक की जगह दो असाढ़ होने से पानी का अधिक बरसना, उस पर भी जंगल में दूर चरने के लिए जाना, तात्पर्य यह कि इस प्रकार विपत्ति पर विपत्ति कोई कहाँ तक भुगत सकता है।
— दूर के ढोल सुहावने, नीरे के ढप ढप होयँ— दूर की बातें अच्छी लगती हैं।
— देख देख कौ चार खूँट, कौन करौटा बैठे ऊँट — न जाने क्या फैसला हो, दो आदमियों में जब झगड़ा हो और लोग यह जानने को उत्सुक हो कि वह किस प्रकार तै होता है तब कहते हैं।
— देखत माछी नई खाई जात — जान-बूझ कर कोई बुरा काम नहीं किया जाता।
— देखादेख परोसन की — पास पड़ौस के लोगों के कहने में आकर जब कोई काम करे।
— देखो री आँखें, सुनो रे कान — कोई बहुत अनहोनी बात सामने आने पर।
— देरी नाँके कौ पाप लगौ — घर आने पर पाप लगा, भलाई करते बुराई हाथ आयी।
— देरी हरी बनी रये — घर हरा-भरा बना रहे।
— देवतन चढ़ी सुहारी, कुकुर खायँ चाय बिलारी — जो वस्तु घर से बाहर निकल गयी और दूसरों को दी जा चुकी, उसकी चिन्ता क्या।
— देवी दिन काटें, पंडा परचो माँगे — देवी तो किसी प्रकार दिन काट रही हैं और पंडा कहता है कि कुछ चमत्कार दिखाइए।
— देवें लाख, बतावें सवा लाख — झूठी डींग हाँकना।
— देस चोरी, परदेस भीक — जब कोई बहुत दरिद्र होकर चोरी और आवारागर्दी करने लगता है तब उसके लिए कहते हैं।
— देसी गदा, बिलायती रेंकन — देसी घोड़ी विलायती चाल।
— देह घरे के दंड भोगने— शरीर के साथ बीमारी लगी ही रहती है, जो कष्ट बदा है वह भोगना ही है, प्रायः बीमार आदमी कहता है।
— दैबो कों दमरी, बिछाने कों कमरी — कंजूस के लिए।
— दोऊ दीन सें गये पाँड़े, हलुआ मिले न माँड़े — लोभवश एक काम छोड़ कर दूसरा करने गये और वह भी न हुआ।
— दोऊ पुलीतन दै दो तेल, तुम नाँचो, हम देखें खेल — पंसाखों में लगायी जाने वाली कपड़े की बत्ती, मसाल में लपेटा गया कपड़ा।
— दोऊ हातन लडुआ हैं — दोनों हाथ लड्डू हैं, दोनों ओर से लाभ होना।
— दोज कौ बायनो, तीज कों फेर दओ — वह मिठाई जो उत्सवादि के अवसर पर सजे-संबंधियों तथा इष्ट मित्रों के यहाँ परस्पर व्यवहार के रूप में भेजते हैं।
— दौंदर बडौ, कै लाबर — दौंदरा करने वाला, जोर-जोर से बोलने वाला, उपद्रवी, झूठ बोलने वाला, निसंदेह लाबर की अपेक्षा दौंदर ही बड़ा होता है।
— घजी कौ साँप बनाबो — धजी का साँप बनाना, थोड़ी बात का बहुत विस्तार करना, झूठ बात बना कर खड़ी करना।
— घड़ी घड़ी करबो — किसी की मरम्मत करना, पीटना, बदनामी करना, घड़ी घड़ी करकें लूटौ अच्छी तरह लूटा।
— धन के अँगारूँ मक्कर नाच — धन के आगे मक्कर नाच, पैस के लिए आदमी सौ तरह की चालबाजियों करता है।
— धन के धिंगानें हैं — सब पैसे का खेल है, या सब पैसे का झगड़ा है।
— धन्नों दै कें बैठबो — कोई काम कराने के लिए किसी के पास अड़ कर बैठना, और जब तक कम न हो तब तक अन्न-जल ग्रहण न करना।
— धन्नासेठ के नाती बनें फिरत — थोड़ी पूँजी वाला जब अपने को बड़ा धनाढय समझे तब।
— धरती कोऊ की रई न रैये — धरती न तो किसी की रही, न रहेगी।
— धरती ठौर नई देत — अत्यन्त दीन और दुखी व्यक्ति के लिए।
— घरती सबकी भार सँभारें — धरती सबका भार सँभाले हुए है।
— धरम के दूने — धोखाधड़ी का व्यापार करने वाले के लिए व्यंग्य में, दूने तो किसी धंधे में नहीं होते।
— धरम की जड़ पताल में — धर्म की जड़ गहरी होती है।
— धरी की घरी रै जै ये — ऐन मौके पर कुछ करते-करते नहीं बनेगा, जो बात जहाँ है, वहीं रहेगी।
— धाओ, धाओ, धाओ करम लिखंतो पाओ — चाहे जितनी दौड़-धूप करो, जो भाग्य में लिखा है वही मिलता है।
— धान, पान, उखेरा, तीनऊँ पानी के चेरा — धान, पान और ऊख की खेती के लिए पानी की अधिक आवश्यकता होती है।
— धान–पान हो रई — धान-पान हो रही है, सुकुमार स्त्री के लिए कहते हैं कि बिना पानी के धान-पान की तरह कुम्हला रही है।
— धान सी कूटबो — किसी को डंडों से खूब पीटना।
— धावे सो पावे — परिश्रम करने वाले को उसका फल मिलता है।
— धींगे की धरती है — धींगामुश्ती करने वाला आदमी ही दुनिया में आराम से रह सकता है।
— धीरत घरें हाती नौ मन खात — धीरज धरना चाहिए-भगवान सबको आवश्यकतानुसार देता है।
— धीरा सो गंभीरा — धीरज रखने वाला आदमी ही समझिए कि गंभीर है।
— धुआँ की मोटें बाँधबो — धुएँ की गठरी बाँधना, व्यर्थ का, या असंभव काम करना।
— धूरा कों पटोरन ढाँकत — धूल को रेशमी वस्त्र से ढँकते हैं, बेमेल काम करना।
— घेला की नथनी पै इत्तो गुमान, सोने की होती तो चलतीं उतान — घेले की नाथनी पर तो इतना घमंड, सोने की होती तो चित्त होकर चलतीं।
— धोबी के घरै ब्याव, गाद ने छुट्टी पाई — मालिक के घर आनन्द-उत्सव होने से नौकर को भी छुट्टी मिली।
— धोबी कौ कुत्ता, घर कौ न घाट कौ — जब कोई आदमी इधर-उधर मारा-मारा फिरे और कोई भी एक काम ठिकाने से न कर पाये तब उसके लिए कहते हैं।
— धौर चलौ न उपटो खाओ — न दौड़ कर चलो, न उपेटा लगे, उतावली अच्छी नहीं।
— नंगा ठाँडो गैल में चोर बलैया लेय — जिसके पास कुछ है ही नहीं, उससे कोई लेगा क्या।
— नंगा सो चंगा — जिसके पास कुछ नहीं वह सदैव मजे में है।
— नंगी का सपरे और का निचोरे — जिसके पास कोई वस्तु है ही नहीं वह क्या तो स्वयं उसका उपयोग करे, और क्या दूसरों को दे।
— नंगी नाचै, पूतै खाय, बेटा की सों जेई आय — जब अपनी चाल-ढाल से कोई स्त्री स्वयं अपने को चरित्रहीन प्रकट करती फिरे तब।
— नंद के फंद नंदई जानत — नंद के फंद नंद ही जानती है, भावज का ननद के लिए कहना।
— नँद कौ नंदेऊ मेरे लगै न कोऊ — ननदोई, ननद का पति, दूर के संबंधी के लिए उपेक्षा में कहते हैं।
— नंदायरो नइयाँ — निर्वाह नहीं है, बनती या पटती नहीं है।
— नई दुकान, तिबरसी गुर माँगे — नई दुकान और तीन वर्ष का पुराना गुड़ माँगते हैं, जो कहाँ रखा।
— नई बऊ कौ पालागन — चार दिन आदर-सत्कार।
— न उनको ठौर, न उनको और — जब दो आदमी एक-दूसरे से अपना पिंड छुड़ाना चाहते हों, परन्तु एक-दूसरे के बिना उनका काम भी न चलता हो।
— नओं नौ दिना, पुरानो सब दिना — नयी वस्तु दो-चार दिन में ही पुरानी पड़ जाती है, उसके पश्चात् उस पुरानी वस्तु से ही काम पड़ता है. इसलिए नयी के आगे किसी पुरानी चीज का तिरस्कार ठीक नहीं।
— नकटा की नाक कटी, ढाई बित्ता रोज बढ़ी — निर्लज्ज पर कोई बात असर नहीं करती।
— नकल में अकल कौ का काम — नकल के लिए बुद्धि की आवश्यकता नहीं होती।
— नचबे चलीं और घूंघट घालें — जब कोई नीचा काम करने पर ही उतारू हुए तो शरम क्या।
— नछत्र बली है — भाग्य प्रबल है।
— नचनारी के कूले फरकत — नाचने वाले के कूल्हे फरकते हैं, गुणी आदमी का गुण छिपा नहीं रहता, उसकी किसी न किसी चेष्टा से वह प्रगट हो जाता है।
— नचैया के पाँव आप दिखा परत — नजर में ककरा नचत-अर्थात् बड़ा रौब दाब है।
— नदी किनारें बगुला बैठो, चुन चुन मछरी खाय– काल सबको धीरे-धीरे खाता रहता है, धूर्त आदमी को लक्ष्य करके भी कहते हैं।
— नदी किनारे रूखड़ा जब तब होय बिनास — जिसे हमेशा जोखिम का काम करना पड़ता हो उसके जीवन का क्या ठिकाना।
— न और चलो, न गिर परौ — उतावली अच्छी नहीं।
— नन्नां के आँगे ननयावरे की बातें — अपने से अधिक जानने वाले के सामने अपनी जानकारी बघारना।
— नन्नां छबीली ने मो लये — नन्ना को छबीली ने मोह लिया।
— नन्हें मों बड़ी बात — जब कोई छोटा बड़ों के मुँह लगे तब।
— न माँयन के, न मड़वा तर के — न तो माँय लेने वालों में और न मँड़वा के नीचे बैठने वालों में ही।
— नमें सो जमें — स्वभाव का नग्र आदमी ही फलता-फूलता है।
— नये गुंडा अंडी कौ फुलेल — जब कोई नौसिखिया कोई अनोखी या अनुपयुक्त वस्तु काम में लाये तब।
— नर जाने दिन जात है, दिन जाने नर जाय — मनुष्य समझता है कि दिन जा रहा है, परन्तु दिन के लेखे तो मनुष्य ही जाता है।
— नरदवा की बिनती कों गये, बखरी हार आये — नाबदान की प्रार्थना लेकर गये कि यह हमारा है, हमें दिलवा दिया जाय, परन्तु उल्टे घर हार कर आ गये।
— न रथ बाँस, न बजे बाँसुरी — जिस वस्तु के रहने से हानि होती हो उसे जड से नष्ट कर देना।
— न लरका दिया कै न सोने हुइये — किसी ऐसी शर्त के कारण जो पूर्ण न हो सकती हो, काम का अटक जाना।
— नाऊ नाऊ की बरात, टिपारौ को लै चलै — बुंदेलखण्ड में यह शब्द बाँस की बनी ढक्कनदार टोकनी के अर्थ में प्रयुक्त होता है।
— नाक चना बिनवाबो — किसी को खूब तंग करना, हैरान करना।
— नाक छिदाउन गई, कान छिदा कें आ गईं — गये किसी कार्य के लिए, कोई दूसरा कार्य करके आ गये।
— नाक नंगी, गरे हमेल — जब किसी स्त्री के पास नित्य प्रति के पहिनने के साधारण वस्त्राभूषणों की तो कमी हो, परन्तु जो दो एक कीमती गहने या कपडे़ उसके पास हों उनको पहिन कर ही लोगों को दिखाती फिरे तब व्यंग्य में उसके लिए प्रयोग करते हैं।
नाक पै माछी नई बैठन देत देता, ऐसा आदमी जो किसी का नाक पर मक्खी नहीं बैठने एहसान लेना पसंद न करे।
— नाच न आवे आँगन टेढ़ो — मूर्ख कारीगर साधनों को दोष देता है।
— नाठ कौ धन — निपूते का धन।
— नाती माँगे पूत मिलत — किसी से बहुत माँगो तब थोड़ा मिलता है।
— नाथ पगैया मोरे हात, बच्छा कूदे नौ नौ हात — बेल, भैंस आदि की नाक छेद कर उन्हें वश में करने के लिए डाली जाने वाली डोरी।
— नान सबके गोड़े घोउत, अपने धोउत लजावे — नाइन सबके पैर घोती है, परन्तु अपने पैर धोने में लजाती है, अपने हाथ से अपना काम करने में लोगों को प्रायः संकोच होता है।
— नान से पेट नई छिपत — किसी ऐसे मनुष्य से कोई बात नहीं छिपायी जा सकती जिसका वह सब भेद जानता हो।
— ना बोले में नौ गुन — चुप रहने अथवा कम बोलने में बहुत भलाई छिपी रहती है।
— नामी चोर मारो जाय, नामी साव कमा खाय — ख्याति से कहीं हानि और कहीं लाभ होता है।
— मायें गिरौ तौ कुआ, मायें गिरौ तौ खाई — दोनों ओर विपत्ति।
— नाम बड़े दरसन थोरे — जब कोई किसी का बड़ा नाम सुन कर आये और उसे निराश जाना पड़े तब।
— निगत बनेना, सुपेती की फेंट बाँदे — चलते तो बनता नहीं, रजाई की फेंट बाँध रखी है, सामर्थ्य से बाहर काम करने की हास्यजनक चेष्टा।
— निन्नायबे के फेर में परबो — रुपया कमाने की फिक्र सवार हो जाना, घर गृहस्थी की चिन्ता में पड़ जाना।
— निबुआ नोंन चुँखा दओ — कोरा टरका दिया।
— निबुरिया जैसी छाँयरी — नीम के छोटे वृक्ष जैसी छाया अस्थायी आश्रय।
— निमान कौ पानी निमानें जात — धरती के नीचे का पानी नीचे ही जाता है, जो वस्तु जहाँ की होती है वहीं चली जाती है।
— नियम से बरक्कत होत — नीयत को साफ रखने से अपनी मुनाफे में रहता है।
— नींद बैरन हो गई — चिन्ता के कारण नींद न आने पर।
— नीम न मीठे होयँ, खाओ गुर घी में — यह कहावत इसी रूप में प्रचलित है, परन्तु उसका शुद्ध रूप है।
— नीन निमाने, अन्न कुठारे — पानी तो निम्न स्थल का अर्थात् गहराई, का, और अन्न कुठिया में रखा निर्दोष रहता है।
— नेकी और पूँछ पूँछ — किसी भलाई करने में पूछना क्या।
— नैकी कौ फल बदी — जब कोई किसी का उपकार करे और
बदले में उल्टे बुराई हाथ लगे।
— नौ की लकरियाँ, नब्बे खर्च — नौ रुपये की लकड़ियाँ लाने में नब्बे खर्च हो गये, बेतुका खर्च।
— नौ खायें, तेरा की भूंक — लालची आदमी के लिए।
— नौ दिन चले अढ़ाई कोस — बहुत सुस्त काम करने वाले के लिए।
— नौ नगद न तेरा उधार — तेरह उधार में बचने की अपेक्षा नगर नौ में बेचना अच्छा, उधार का व्यापार ठीक नहीं।
— नौ मईना मताई के पेट में कैसे रये हुइओ — नौ महीने माँ के पेट में कैसे रहे होगे, चंचल और ऊघमी लड़कों के लिए।
— नौ मूँड़ के हो जाओ — तोऊ तुमाई बात न माने-तुम कुछ भी करो, फिर भी तुम्हारी बात नहीं मानेंगे, हठी लड़कों के लिए कहते हैं।
— नौ सौ चूहा खाकें बिलाई तप कों चली — धार्मिकता या संयमशीलता का ढोंग करने वाले के लिए।
— पंछियन के पियें समुद्र हिलोरें नई घटती — पक्षियों के पीने से समुद्र का जल कम नहीं होता।
— पँवारों गाऊत फिरत — व्यर्थ का रोना रोते हैं।
— पइसा आई, पइसा बाई, पइसा बिन ना होय सगाई — माँ पैसे से ही सब कुछ होता है।
— पइसा की डुकरो टका मुड़ाई — जितने की तौ असल वस्तु नहीं, उतने से अधिक उस पर खर्च।
— पइसा की भाजी, टका कौ बगार — बघार, मिर्च, मसाले आदि का छौंक।
— पइसा के लानें सबरे करम करनें परत — पैसे के लिए सब कर्म करने पड़ते हैं।
— पइसा के लाने सरगें थींगरा लगाउत — पैसे के लिए आकाश में थींगरा लगाते हैं, अर्थात् संभव असंभव सभी कार्य आदमी करता है।
— पइसा सें पइसा आऊत — पैसे से पैसा आता है, पैसे को पैसा खींचता है।
— पइसा हात कौ मैल है — पैसा हाथ का मैल है, उसके आने का कोई सुख या जाने का रंज नहीं करना चाहिए।
— पऊत पऊत की कच्चीं अथवा खोटीं — रोटियाँ तैयार होते-होते भी खाने को मिलेंगी इसका विश्वास नहीं।
— पऊत बरा, कै पीलऊँ तेल — बरा बनाते हो, या पी लूँ तेल, जो मिलै वही सही, अथवा मेरा काम नहीं करते हो तो जो मन में आयेगा करूँगा।
— पके पै निबौरी मिठात — पकने पर निबैरी भी मीठी लगती है।
— पक्षे चोरी, पक्षे न्याय, पक्ष बिना सो मारो जाय — दुनिया में सब काम दूसरों के बल या तरफदारी से ही होते हैं।
— पजे कपूत, कबूतर पाले, आदे गोरे, आदे कारे — निक्कमे लड़के के लिए।
— पढ़िये भैय्या सोई, जामें हँड़िया खुदबुद होई — वही पढ़ो जिसमें रोटी खाने को मिले।
— पड़े सुआ बिलइयन खाये — कोरे अक्षर-ज्ञान से क्या होता है, यदि उसके साथ बुद्धि विवेक न हो, तोता इतना पढ़ता है फिर भी उसके बिल्ली खा जाती है।
— पड़ों तौ है, पै गुनो नइयाँ — केवल किताबी ज्ञान रखने वाले के लिए प्रयुक्त।
— पतरीं चाटत फिरौ — जूँठन खाते फिरोगे, बुरी गति होगी।
— पथरा का पसीजे — पत्थर क्या पसीजेगा, अत्यन्त कठोर चित्त से दया या कंजूस से दान की आशा नहीं की जा सकती।
—पथरा कों जोंक नई लगत — इसलिए कि उससे कुछ मिलने की आशा नहीं होती।
— पथरा पै नाव चलावो — असंभव या अनहोना कार्य करना।
— पथरा सें ईंट कोंरी होत — पत्थर से ईट मुलायम होती है, दो हानिकर वस्तुओं में से जिससे कम हानि होने वाली हो, उसको ही स्वीकार कर लेना चाहिए।
— पथरा सें मूँड़ मारबो — असंभव कार्य को करने का प्रयत्न करना।
— पनइयन साँप मारबो — किसी संकट या दुष्ट से छुटकारा पाने के लिए अपर्याप्त साधन से काम लेना।
— पराये घर बूँदे मूसरचंद — बिना बुलाये किसी के यहां जाना या किसी के काम में हस्तक्षेप करना मूर्खता है।
— परदेस कलेस नरेसन कों — घर से बाहर निकलने पर राजाओं को भी कष्ट होता है।
— परसन भई भवानीं, कौरन लागीं खान — भवानी प्रसन्न हुई तौ जूठे टुकड़ों से ही पेट भरने लगीं, मौज में आकर ओछे से ओछा काम भी कर डालना।
— पराई आँखन देखबो — दूसरे के भरोसे काम करना।
— पराई आसा, मरै उपासा — दूसरों की आशा में रह कर भूखों मरना पड़ता है।
— पराई पतरी कौ बड़ौ बरा — दूसरे के हिस्से में आयी हुई वस्तु सदैव अच्छी लगती है।
पराओ मूँड़ पसेरी सो — किसी दूसरे के दुख-दर्द या पैसे की कोई परवा न करना।
— पराये कॅदा पै होकें बंदूक घालबो — दूसरों की ओट लेकर काम करना, टट्टी की ओट शिकार।
— पराये पूतन की आसा — दूसरे के लड़के से सहायता की आशा व्यर्थ है।
— परी गरज मन और है, सरी गरज मन और — गरज पड़ने पर आदमी का मन जैसा रहता है वैसा गरज पड़ने पर नहीं रहता।
— परी बिछौना फूहर सोवे, राँघो खाये कुत्ता — निक्कमी और आलसी स्त्री के लिए।
— परेवा की सोर — कबूतर की सोहर, कहते हैं कबूतर की मादा साल में बराबर अंडे देती रहती है, उसी प्रकार किसी घर में जब निरंतर बच्चे पैदा होते रहते हों, और कोई न कोई स्त्री सोहर में पड़ी रहती तो तब प्रयुक्त।
— पल में परलय होत — पल में प्रलय होती है, क्षण भर में न जाने क्या से क्या हो सकता है।
— पसीना निचोय कौ पइसा — परिश्रम की कमाई।
— पसेरी उठे ना, ब्याई कों मूँड मारें — पसेरी तो उठती नहीं, फिर भी तौलाई का ठेका लेना चाहते हैं, काम करने की सामर्थ्य न होने पर उसके लिए हठ करना।
— पसेरी भर कौ मूँड़ तौ हलाउत, पइसा भर की जीव नई हला पाउत — जब कोई आदमी, विशेषकर कोई छोटा लड़का, किसी बात के उत्तर में केवल अपना सिर हिला देता है और स्पष्ट से हाँ या ना कुछ नहीं कहता तब कहते हैं।
— पाँख कौ परेबा करबो — बात का बतंगड़ बनाना।
— पाँचऊ उँगरियाँ एक सी नई होतीं — सब मनुष्य समान नहीं होते।
— पाँचऊ घी में — पाँचों उँगली घी में, जिसके खूब छक्के पंजे उड़ रहे हों उसके लिए।
— पाँचों मित्र, पचासे ठाकुर, सौओ सगो, उर एकें चाकर — पाँच रुपय में मित्र, पचास में जमीदार, सौ में दामाद, और एक रुपये में नौकर संतुष्ट हो जाता है।
— पाँडेजू पछतेयँ, बेई चनन की खेयँ — हार कर वही काम करना जो पहिले बहुत मनाने पर भी न किया हो।
— पाँत में दुभाँत करबो — किसी समाज में लोगों से अलग अलग तरह का व्यवहार करना।
— पाँवन में का माँदी रचायें — पैरों में क्या मेंहदी रचाये हो, जो इतना सुस्त चलते हो, शीघ्र काम न करने पर प्रयुक्त।
— पाँव में भौंरी है — ऐसे आदमी के लिए कहते हैं जो किसी एक स्थान पर जम कर न बैठ सके।
— पाँव में सनीचर है — एक स्थान पर सुखपूर्वक न बैठ सकना, घूमते ही रहना।
— पाँसो परै, अनाड़ी जीते — पाँसा ठीक पड़ने से अनाड़ी भी जीतता है, अथवा पाँसा ठीक पड़ने से ही अनाड़ी जीतता है, भाग्य अनुकूल होने से ही कार्यसिद्धि होती है।
— पाई–पुरिया सो पूरत फिरत — किसी एक स्थान पर बार-बार इधर से उधर निकलने और काम में अड़चन डालने वाले ऊधमी लड़के के लिए प्रयुक्त।
— पाछलो रोटी खायें, पाछली बुद्ध होत — तवे पर जो सबसे अंत में रोटी सिंकती है वह बच्चों को खाने को नहीं दी जाती, लोक-विश्वास है कि उसके खाने से बुद्धि मंद होती है।
— पाठे की जर पाठो जानें — 1.दूर तक फैली हुई चौड़ी चट्टान, जिस आदमी की कठिनाई वही जानता है।
— पान–फूल हो रये — सुकुमार व्यक्ति के लिए।
— पानी उतर गओ — इज्जत आबरू चली गयी।
— पानी कौ डूबौ सूकौ नई कड़त — किसी बुरे काम में पड़ने से उसका कुछ न कुछ परिणाम भोगना ही पड़ता है।
— पानी धरबो — उत्तेजित करना, उकसाना।
— पानी पीजे छान कें. गुरू कीजे जान कें — पानी छान कर पीना चाहिए और गुरू देखभाल कर करना चाहिए।
— पानी पी–पी कोसबो — मन ही मन शाप देना।
— पानी में आग लगाबो — जहाँ झगड़ा संभव न हो वहाँ झगड़ा करा देना।
— पानी सें पतरो का — कहीं माँगने पर पानी भी न मिले तब प्रयुक्त।
— पाप– पुन्न कौ कोऊ भागी नई होत पाप — पुण्य का फल अपने ही को मिलता है।
— पापी कौ धन अकारथ जाय — बुरी कमाई व्यर्थ जाती है।
— पापी पेट सब कराउत — पेट के लिए सब करना पड़ता है।
— पार भये तौ पार हैं, डूब गये तौ पार — परिणाम हर हालत में अच्छा होगा, यह सोच कर किसी काम को करने का निश्चय करना।
— पारवा दूर केई सुहावने लगत — पहाड़ दूर के ही सुहावने लगते हैं।
— पारे से खटको नई होत — पारा, बर्तन ढकने की मिट्टी की तश्तरी, पूर्ण निस्तब्धता है, लड़ाई झगड़ा शान्त है।
— पावन गयें भसावन सैरो गयें बसंत — बे अवसर का काम, समय के बाद पर्व नहीं मिलता, सैरा बसंत के बाद अच्छा नहीं लगता।
— पिंजरा के पंछी नाई फरफरा रये — बहुत व्याकुल।
— पिंड में सो ब्रह्माण्ड में — मनुष्य के शरीर में जो ईश्वर निवास करता है वही ब्रह्माण्ड में व्याप्त है।
— पिठो सी बॉटबो — किसी को खूब मारना, मरम्मत करना।
— पित्त उबलबो — पित्त गरम होता, शीघ्र क्रुद्ध हो उठने की प्रवृत्ति होना।
— पीठ पाछें कछू होबे — पीठ पीछे कुछ भी होता रहे, हमें क्या।
— पीठे में लट्ठ भवानी करें, सबरो घर पूजा कों चले — आपत्ति आने पर ही लोग भगवान का स्मरण करते हैं।
— पीपरामूर की जर हो गये — कोई आत्मीयजन या घनिष्ठ मित्र जब बहुत कम दिखायी दे तब प्रयुक्त।
— पीसवे कों चल्लोसन, गावे कों सीता हरन — दिखावट तो बहुत, परन्तु सार कुछ नहीं।
— पुआ पकाबो — मन के लड्डू खाना।
— पुन चंदन, पुन पानी, सालिगराम घुर गये तब जानी — किसी काम को बार-बार करके अंत में उसे बिगाड़ देना।
— पुन्नई आड़ें आऊत — पुण्य ही समय पर मनुष्य की रक्षा करता है।
— पुन्न की जर पताल नों — पुण्य की जड़ गहरी होती है, किया हुआ सत्कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता।
— पुराने मठ पै कलई करबो — किसी पुरानी वस्तु को नयी बनाने का वृथा प्रयास करना, बुढ़ापे में जवान बनने की चेष्टा।
— पुराने पापी — ऐसा आदमी जो दुनिया के सब रंग-ढंग देख चुका हो, किसी विषय में जिसका अनुभव बहुत दिनों का हो।
— पुरूस की माया, बिरछ की छाया — संसार में पुरुष की ही माया है, पुरुष ही संसार का श्रेष्ठतम प्राणी है, अथवा उसको लेकर ही यह संसार चक्र चल रहा है।
— पूँछता नर पंडित — दूसरों से पूंछ कर काम करे वही पंडित है. पूंछने से ही आदमी का ज्ञान बढ़ता है।
— पूत के पाँव पलना में दिखा परत — लड़कपन के आचरणों से ही इसका पता चल जाता है। कि आगे चल कर लड़का कैसा निकलेगा, किसी कार्य के लक्षण पहिले ही से दिखायी पड़ जाते हैं।
— पूत के नाव पुताँड़ी भली — लड़का चाहे जैसा बुरा हो, परन्तु न होने से तो अच्छा।
— पूरब के भवन पच्छिम में उगन लगें — किसी काम को न करने अथवा किसी के आगे न झुकने की प्रतिज्ञा।
— पूरब जनम के फल भोग रये — पूर्व जन्म के फल भोग रहे हैं, प्रायः बीमार कहता है।
— पूरी बिजत्तर — विकट स्त्री।
— पूरे गुरूघंटाल — बहुत बड़ा चालाक।
— पूरौ परबो — पूरा पड़ना, कार्य पूर्ण हो जाना, सत्यानाश हो जाना।
— पूस जाड़ो न माव जाड़ो, जबै पानी तबई जाड़ो — सर्दी न तो पूस में पड़ती है और न माघ में, जब पानी बरसे तभी समझो सर्दी।
— पूस बोवे, पीस खावे — पूस में कोई अनाज बोने की अपेक्षा तो अच्छा यह है कि उसे पीस कर खा ले।
— पेट की आग पेटई जानत — पेट की आग पेट ही जानता है, भूखे का कष्ट भूखा ही जानता है।
— पेट की आसा सब करत — पेट के लिए ही सब काम किया जाता है, जब किसी नौकर या मजदूर को मेहनताना कम मिलता है तब।
— पेट में उरदा से चुर गये — पेट में उर्द से पक रहे हैं, अनिष्ट की आशंका से घबराना, बहुत चिन्तित होना।
— पेट में रई सी फिर रई — पेट में मथानी सी फिर रही है, हृदय धड़क रहा है, घबराहट हो रही है।
— पेट से होबो — गर्भ से होना।
— पेट सब कराउत — पेट के लिए अच्छे-बुरे सब कर्म करने पड़ते हैं।
— पेट सबकें लगौ — पेट की चिन्ता सबको करनी पड़ती है।
— पेट से पथरा बाँदबो — भूख सहन करना।
— पैरी ओढ़ी घन दिपै, लिपौ पुतौ घर खिलै — गहने कपड़ों से सजी स्त्री शोभा देती है, लिपा-पुता घर अच्छा लगता है।
— पैली छेरी, दूसरी गाय, तिसरी भैंस दुही न जाय — बकरी पहले ब्यान में, गाय दूसरे में, और भैंस तीसरे में अच्छा दूध देती है।
— पैलें घर, पाछे बाहर — पहिले अपना घर सँभाले, फिर बाहर।
— पैलें मार, पीछे सँभार — पहिले आगे बढ़ कर दुश्मन पर हाथ जमा देना चाहिए, बाद में अपने को सँभालना चाहिए।
— पैलेई कौर माछी परी — पहिले कौर में ही मक्खी पड़ी, कार्य के प्रारंभ में ही विघ्न हुआ।
— पैलेई चूमा गाल काट खाये — किसी अवसर से अधिक से अधिक लाभ उठाने के लिए ऐसी हड़बड़ी करना कि सारा काम ही चौपट हो जाय तब।
— पैले दिना कौ पाउनो, दूसरे दिना कौ पई, तीसरे दिना रये तौ बेसरम सई — किसी के घर एक दिन रहने वाला ही पाहुना कहलाता है, दो दिन रहे वह पथिक है और तीन दिन रहने वाले को पक्का बेशरम समझना चाहिए।
— पैलो गाहक परमेश्वर बिरोबर होत — पहिला ग्राहक परमेश्वर के समान होता है, दुकानदारों का विश्वास।
— पैलो सुक्ख निरोगी काया, दूजो सुक्ख होय घर माया, तीजो सुक्ख पुत्र अधिकारी, चौथी सुक्ख पतिव्रता नारी — पहिला सुख शरीर का नीरोग रहना, दूसरा घर में धन-संपत्ति का होना, तीसरा योग्य पुत्र का होना और चौथा पतिव्रता स्त्री का पाना है।
— पोपाबाई कौ राज —अंधेरखाता कहा जाता है कि पोपाबाई गुजरात के एक छोटे प्रदेश की रानी थीं।
— पोली भरे कोदों, मिरजापुर की हाट — छोटे काम का बड़ा आयोजन।
— पौनी सौ पेट, बऊ मार गई जेट — पेट तौ पौनी की तरह मुलायम परन्तु रोटियों का ढेर का ढेर बऊ ने खा लिया।
— पौ बारा हैं — लाभ का अवसर मिलना, जीत होना, चौपर के खेल में पौ बारा का दावें बहुत अच्छा माना जाता है।
— प्रीत करे कौ जो फल पाओ, अपुन थुके उर हमें थुकाओ — प्रेम करने का यह फल कि स्वयं भी बदनाम हुए और हमें भी बदनाम कराया।
— फट्टा लौट गओ — व्यापार में हानि हो गयी, दिवाला निकल गया।
— फरिया न सारी, बड़ी सोभा हमारी — पहिनने को न तो फरिया न साड़ी, फिर भी अपने को बहुत सुन्दर समझती है।
— फरै सो नवै — दे नमें सो भारी।
— फलाने की मताई ने मुंस करो, बुरओ करो, कई छोड़ दओ, और बुरओ करो — दे तुमाई मताई।
— फाग की फाग खेल लई और आँग बचा लओ — अपना काम बना कर चुपचाप अलग हो जाना और दूसरों को आलोचना का अवसर न देना।
— फाग के कुटे और दिवारी के लुटे कों कोऊ नई पूंछत — होली के हुल्लड़ में यदि कोई पिट जाय और दिवाली में जुए में हार जाय तो उसके लिए कौन चिन्ता करता है।
— फिकर फकीरे खाय — चिन्ता तो फकीर को भी खा जाती है।
— फिरै तौ चरै — मैदान में चलने-फिरने ही से ढोर को चरने के लिए घास मिलती है, एक जगह बैठे रहने से पेट कैसे भर सकता है।
— फूँद में हो सरक गये — किसी काम की जिम्मेवारी से अपने को होशियारी से बचा ले गये।
— फूटी तौ सयें आँजी न सयें — आँख फूट जाय वह स्वीकार, परन्तु अंजन का कष्ट सहना स्वीकार नहीं, थोड़े से खर्च या असुविधा के पीछे अपनी बड़ी हानि कर लेना।
— फूटे ढोल — बकवादी आदमी।
— फूटे बासन पै कलई करबो — पुरानी वस्तु को नयी बनाने का व्यर्थ प्रयत्न करना।
— फूस कौ तापबौ, उधार कौ खाबौ — दे उधार को खानो।
— फूहर कौ मैल फागुन में उत्तरत — फूहड़ का मैल फागुन में उतरता है, रंग पड़ने पर उसे विवश होकर नहाना पड़ता है। फेरफार चुटिया पै हात घुमा-फिरा कर फिर वही बात।
— फोकट कौ मिलै तौ हमकों ल्याइयो — हमको भी देना। मुफ्त का माल
— बँदरा बैल जेठो पूत, जौ बिर्रे कौ कड़े सपूत — भूरे रंग का बैल और जेठा लड़का जिस किसी का ही अच्छा निकलता है।
— बँदी मुठी लाख की — जब तक किसी के घर की असलियत लोगों पर प्रगट नहीं होती तब तक वह बड़ा आदमी ही माना जाता है।
— बऊ आई तौ सबनें जानीं — विशेष घटना घटित होने पर सब पर प्रकट हो जाती है।
— बऊत गंगा में हात घोलो — चलते काम में यश ले लो।
— बऊ नौमीं कै बेगर — बहू अच्छी या बेगर, पैसा खर्च करने से ही काम अच्छा बनता है, उसके लिए किसी को श्रेय देना व्यर्थ है।
— बऊ सरम की, बिटिया करम की — बहू लज्जाशील और बेटी भाग्यवान अथवा कर्मठ अच्छी होती है।
— बखत परे की बात — भाग्य की बात।
— बगलें बजाओ — बहुत आनंद मनाना।
— बचपन की बाँधी लच्छमी — लक्ष्मी सत्य के वश में है।
— बछिया के ताऊ — मूर्ख।
— बछेरू सें लगै ना, खंचारी से लगा दै — मरे हुए बछड़े की खाल का बना ढाँचा जो दूध देने वाली गाय का बछड़ा मर जाने पर उसे दुहने के लिए काम में लाया जाता है।
— बलगो नई, उचक्कन ने डेरा डार दओ — वस्तु तो तैयार नहीं, चाहने वाले पहिले से आ गये।
— बटिया खेती साँट सगाई, जामें नफा कौन ने पाई — ऐसा विवाह जिसमें कोई अपनी लड़की का संबंध किसी के यहाँ करें तो उसके बदलें में उसकी लड़की के साथ अपने या अपने किसी निकट के रिश्तेदार के लड़के का संबंध करने को तैयार हो जाय।
— बट्टे खाते परबो अथवा जावो — किये हुए प्रयत्न का व्यर्थ जाना, खटाई में पड़ना, रकम वसूल होने की उम्मीद न होने पर उसे बट्ट खाते डालना पड़ना कहते हैं।
— बड़न की बड़ी बातें — बड़े आदमियों की सब बात अलग होती है।
— बड़न की बात बड़े पहचाने — बड़ों की बात बड़े ही समझ सकते हैं, बड़े ही बड़ों की कद्र कर सकते हैं।
— बड़ी पातर कौ बड़ौ बरा — बड़े आदमी का अधिक आदर-सत्कार होता है।
— बड़े भाग सें होत है, दाद, खाज उर राज — दाद और खाज के खुजलाने से बड़ा कष्ट होता है, और एक विशेष प्रकार का आनंद भी मिलता है, इसलिए इनके रोगी के लिए व्यंग में प्रयोग करते हैं।
— बड़े सपूत करौ रुजगार, सोरा सै के करे हजार— लड़के की अनुभवहीनता से किसी काम में नुकसान हो जाने पर।
— बड़ौ लाड़ मोरी मौसी करें, छिनक छिनक दोऊकौरे भरें — मेरी मौसी ने बड़ा लाड़-प्यार किया, तो छिनक-छिनक कर घर के दोनों कोनें भर दिये, झूठा प्रेम करने पर।
— बत्तीस दाँतन में जैसें जीम — बहुत सतर्क होकर चलना बदरा धाम बड़ा तेज होता है।
— बन जाये, बनई में नईं रत — वन में पैदा हुए वन में ही नहीं रहते, आदमी के दिन सदा एक से नहीं रहते।
— बनतन देर लगत, बिगरतन देर नई लगत — बनते देर लगती है, बिगड़ते देर नहीं लगती।
— बनी बनी के सब साथी — अच्छे समय के सब साथी होते हैं. बुरे का कोई नहीं।
— बरसो राम झड़झड़ियाँ, खाये किसान मरै बनियाँ — वर्षा ऋतु आरंभ होने पर लड़के कहा करते हैं।
— बराती तौ अपने अपने घरै चले जेयँ, काम दूल्हा दुलैया सें परै — फालतू आदमी काम में अड़ंगा डाल कर अलग हो जाते हैं।
— बर्रन के छत्ता में हात डारबो — भिड़ों के छते में हाथ डालना, जान-बूझ कर विपत्ति मोल लेना।
— बसकारे के ऑंदरे कों हरोई हरो सूजत — जो वर्षाऋतु में अंध हो जाता है उसे केवल एक हरे रंग की स्मृति रह जाती है, और उसे चारों ओर हरा ही हरा समझता है।
— बसूला ज्ञान — बसूले से जितनी भी लड़की छीली जाती है वह सब उसके आगे गिरती है, उसी प्रकार का स्वार्थमय ज्ञान।
— बसूला कौ छोलन — निकक्मा आदमी।
— बाँस कौ खूँट बाँस — बाँस में से बाँस का ही अंकुर निकलता है।
—बात कौ बतंगड़ — थोड़ी बात को बढ़ा कर कहना।
— बातन में फूल झरत — बातों फूल झरते हैं, मधुरभाषी के लिए।
— बाप की कमाई पै तागड़धिन्ना — बाप की कमाई पर मौज उड़ाना।
— बाप की मरन, और काल की परन — विपत्ति पर विपत्ति।
— बाप न मारी लोखड़ी, बेटा तीरंदाज— जो लंबी चौड़ी डींग हाँके उससे व्यंग में।
— बाबा के कान — किसी एक व्यक्ति के कान में धीरे से कही गयी बात जब दूसरा सुन ले तब कहते हैं कि इसके बाबा के कान हैं।
— बाबा कौ जी बगली में — माला रखने की थैली, साधू को अपनी बगली ही प्यारी होती है।
— बाबा बैठें ई घर में, पाँव पसारे ऊ घर में — जब कोई आदमी व्यर्थ अपने लिए बहुत सी जगह धरे रखे, अथवा जबर्दस्ती दूसरे के काम में जाकर हस्तक्षेप करे तब।
— बामी ढिंगा मरे, साँप कौ नाव — साँप के बिल के पास कोई मरे तो उससे साँप का ही नाम होता है कि उसने काटा।
— बार उखारें मुरदा हलको नई होत — नाममात्र के सहारे से कोई बड़ा काम पूरा नहीं होता।
— बारा घाट कौ पानी पियें हैं — अर्थात् बहुत अनुभवी हैं, दुनिया देखे हुए हैं।
— बारा मइना की गैल चलै, छः मइना की ना चलै — बारह महीने का रास्ता चलै, छः महीने का नहीं, उतावली ठीक नहीं, सब काम धीरज से करना चाहिए।
— बाराबाट होबो — बरबाद होना।
— बालक, मूंछ उर नारी, बारे सें काय न सँवारी — बालक, मूँछ और स्त्री ये प्रारंभ से ही सँभालने पर सँभलते हैं।
— बासी बचै न कुत्ते खायें — रोज कमाना और रोज खाना।
— बासे भात में खुदा कौ का साजौ — बासी भात तो किसी प्रकार भी खाने को प्राप्त किया जा सकता है, उसमें भगवान का क्या एहसान।
— बिगनन अंसुआ नई आऊत — भेड़ियों को आँसू नहीं आते, कठोर हृदय मनुष्य को दया नहीं आती।
— बिगरी बात बनें नहीं, लाख करौ किन कोय, बिच्छू कौ काटो रोवे, साँप कौ काटो सोवे — दुष्ट की मार बुरी होती है।
— बिच्छू कौ मंतुर जानें नई, साँप के बिले में हात डारें — बिच्छू का तो मंत्र नहीं जानते साँप के बिल में हाथ डालते हैं।
— बिछौनन सें लग गये — बहुत दुर्बल हो गये है, बचना कठिन है।
— बिटिया और गैया कों जाँ दोरो मिलत ताँ जात — लड़की बिनब्याही नहीं रहती, कहीं न कहीं ठिकाने लग ही जाती है।
— बिटिया सोहे सासरें, हाती सोहे हतसार — लड़की तो ससुराल में ही शोभा देती है और हाथी हथसार में।
— बिन देखो चोर साव बिरोबर— चोर को जब तक चोरी करते पकड़ न लिया जाय तब तक वह ईमानदार ही समझा जाता है।
— बिना दूल्हा की बारात — बिना मालिक की फौज।
— बिना पेंदी के लोटा — बे सिद्धांत का आदमी।
— बियाड़े जाओ — भाड़ में जाओ, बियाड़ बीहड़, या जंगल को कहते हैं।
— बिराने धन को रोवे चोर — पराये धन को पाने के लिए हठ करना।
— बिरिया सी हला लई — बेर के वृक्ष को हिलाने से जिस प्रकार सब पके फल एक साथ नीचे गिर पड़ते हैं उसी प्रकार किसी को मारपीट कर सब कपड़े लत्ते आदि छीन लेना।
— बिलइया के भाग्गन छींको टूटो — संयोग से कोई काम बन जाना।
— बिलइया डंडौतें करबो — झूठा सम्मान करना, विवश होकर किसी के हाथ पैर जोड़ते फिरना।
— बिले में हात तुम डारौ, मंतुर हम पड़त — साँप पकड़ने के लिए बिल में हाथ तुम डालो, मंत्र हम पढ़ते हैं, स्वयं अलग रहकर दूसरों को विपत्ति में डालना।
— बिस कौ कीरा बिसई में मानत — विष का कीड़ा विष में ही प्रसन्न रहता है।
— बिसबासघात की महा पातकी — विश्वासघात से बढ़ कर पाप नहीं।
— बीदे पै सीदो देने परत — सीधा, ब्राह्मण को दक्षिणा में दिया जाने वाला आटा-दाल आदि।
— बीदो बानिया देय उदार — दबा हुआ बनिया उधार देता है।
— बूड़ी गैया बमने जाय, पुत्र होय और टरे बलाय — बूढ़ी गाय ब्राह्मण को देने से दुहरा लाभ, पुण्य का पुण्य और बला भी टले।
— बूड़ी घुरिया लाल लगाम — बेमेल काम।
— बूड़ों और बारो बिरोबर होत — वृद्ध और बालक इन दोनों की प्रकृति एक सी होती है।
— बेगार कौ काम — मुफ्त का काम।
— बेटा से बेटी भली जो कुलवंतनी होय, बेटा है तौ बउएँ भौत आ जेयँ — लड़का है तो बहुएँ आ जायेंगी, साधन है तो काम भी हो जायगा।
— बेल मँड़वे चड़ गई — बेल मंडप पर चढ़ गयी, अर्थात् किसी प्रकार काम बन गया।
— बेसरम की नाक कटी, हात भर रोज बढ़ी — निर्लज्ज के लिए।
— ब्याव न चलाव, झूँट–मूँट कौ चाव– किसी का झूठा आदर सत्कार करना।
— ब्याव — बरात कौ भर्रो, जिते चाय पर्रो ब्याह-बरात में कोई किसी को नहीं पूछता, जहाँ जगह मिले वहाँ लेटो।
— ब्याव पाछें पत्तर भारी हो जात — बयाह के बाद पत्तल का खर्च भी भारी हो जाता है, खर्च में खर्च नहीं आँसता।
— भई गत साँप छछूदर केरी — किसी काम को न करते बनता न छोड़ते।
— भगत तौ भौत बैकुंठ सकरो — जब किसी जगह लोगों के बैठने के लिए स्थान की कमी हो तब।
— भगे भूत को लंगोटी भौत — जिससे कुछ भी मिलने की आशा न हो उससे थोड़ा भी मिल जाये तो बहुत समझो।
— भड़भड़िया अच्छो, पेट पापी बुरओ — जिसके पेट में कोई भी बात न रहे वह अच्छा, परन्तु मन में कपट रखने वाला बुरा।
— भरम गओ तौ सब गओ — एक बार घर का भेद खुलने से सब इज्जत आबरू चली जाती है।
— भरी गाड़ी में सूप भारू नई होत — भरी गाड़ी में सूप भारी नहीं होता। बहुत खर्चे में थोड़ा खर्चा आसानी से समा जाता है।
— भरे समुन्दर में घोंघा प्यासो, भरोसे की भैंस पड़ा ब्यानी — मानों कोई विलक्षण बात हुई।
— भली कतन का जात— भली बात कहने में क्या खर्च होता है।
— भले कौ जमानो नइयाँ — भले का जमाना नहीं।
— भाँड़न के घोड़े, खायें भौत चलें थोड़े — बड़े आदमियों के नौकरों के लिए कहते हैं।
— भाँड़न के संग खेती करी, गा बजा के अपनी करी — लफंगों के साथ कोई काम करना मूर्खता है।
— भाँड़ी भई है तौ दो छावें और सई — बदनामी ही जब हुई है तो व्यर्थ खर्च क्यों किया जाय।
— भानुमती के बट्टा — चालाक आदमी।
— भारी ब्याज मूल कों खाये — बहुत ब्याज के लोभ में मूल भी मारा जाता है।
— भींत भीतरी, कुआ बायरो — घर की दीवाल भीतर की ओर दबी हुई और कुएँ का घेरा बाहर की ओर फैला हुआ होना चाहिए। इससे वे मजबूत रहते हैं।
— भीक छोड़ी, कुत्तन से बचे — एक हानि हुई, पर दूसरा लाभ तो हुआ।
— भुस के मोल मलीदा — अंधेर की बात।
— भुस पै कौ लीपनो, चीकनो ना चाँदनो — निरर्थक कार्य।
— भूँक में चना चिरौंची — भूख में चना भी चिराेंची जैसा स्वादिष्ट लगते हैं।
— भूँजी मछरी दौ में परी — भूँनी हुई मछली पानी में गिर गयी। हाथ में आयी चीज निकल गयी।
— भूतन के घरै बराई, (और) खसियन के घरै लुगाई — भूतों के घर ऊख और हिजड़ों के घर लुगाई। असंभव बात।
— भूल गओ राग — रंग, भूल गई छकड़ी। तीन चीज याद रई, नोंन तेल लकड़ी — गृहस्थी के चक्कर में पड़ना।
— भूल चूक लेनी देनी — हिसाब चुकता करते समय कहते हैं।
— भैंस कुठारी, बैल छतारो — भैंस तो वह अच्छी होती है जिसका पीछे का हिस्सा चौड़ा हो, और बैल वह जिसकी छाती चौड़ी हो।
— भैंस को कोदों नई पचत — ओछे आदमी के पेट में कोई बात नहीं रहती।
— भैंसा भैंसन में कै कसाई के खूँटन में — बुरी संगत में पड़े आदमी के लिए कहते हैं।
— भैय्या होय अबोलना तोऊअपनी बाँह — भाई से बोलचाल न भी हो तौ भी वह अपना भाई ही है।
— भोंदू भाव न जानें, पेट भरे में काम — मूर्ख को अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं होता। उसे तो पेट भरने से काम।
— भोजन के पिछारूँ और स्नान के अगाऊँ — भोजन के बाद और स्नान के पहिले ठंड मालूम होती है।
— भौंके ना दर्रायें, मसकऊँ काट खायँ — चुपचाप कपट का बर्ताव करने वाले के लिए।
— भौजी की थैलिया, देवरा सराफी करे — घर के ही किसी आदमी का माल अपने काबू में आ गया हो तो खर्च करते क्या लगता है।
— मंगलवारी परै दिवारी, मूँड़ पर रोवे व्यापारी — लोक-विश्वास है कि मंगलवार को दिवाली पड़े तो वह व्यापारियों के लिए शुभ नहीं होती।
— मँड़पुआ की नाक पोंछने परत — जिस आदमी से कोई काम लेना होता है उसकी सब तरह से खुशामत करनी पड़ती है।
— मँड़वा बाँदबे सब आऊत, छोरबे कोऊ नई आऊ — मडप बांधने सब आते हैं, छोरने कोई नहीं आता। बने काम में सब साथ देते हैं।
— मउअन के टपकें घरती नई फटत — किसी अत्यंत तुच्छ आदमी से बड़े काम की आशा व्यर्थ है।
— मउआ मेवा बेर कलेवा गुलगुच बड़ी मिठाई, इतनी चीजें चाहो तो गुड़ाने करौ सगाई— महुए का मेवा, बेर का कलेवा और गुलगुच की मिठाई खाना चाहते हो तो गोंडवाने में विवाह करो।
— मकर चकर की धानी, आदो तेल आदो पानी — धूर्त और कपटी व्यवसायी के लिए प्रयुक्त।
— मगरै बुड़कैया सिखाउत — मगर को डुबकी मारना सिखाते हैं। चालाक को चालाकी क्या सिखाना?।
— मघा न बरसे भरे न खेत। माता न परसे भरे न पेट — मघा में पानी बरसे बिना खेत नहीं भरते, और माता के परसे बिना पेट नहीं भरता।
— मछरी के जाये, किन तैराये — मछली के बच्चों को तैरना कौन सिखाता है? जिसका जो स्वभाव है वह अपने आप आ जाता है।
— मठा विचार का बिगरें जब बिगरें तब दूद — किसी बात की हानि तो बड़े आदमियों की ही होती है गरीबों की क्या होगी।
—मताई के पेट सें कोऊ सीक के नई आऊत — माँ के पेट से कोई सीख कर नहीं आता।
— मन की मनई में गई — जो चाहते थे वह नहीं हुआ।
— मन के लहुआ खावो — हवाई किले बाँधना।
— मन मन भावे, मूँड़ हलावे — किसी वस्तु को लेने की आंतरिक इच्छा होते हुए भी ऊपर से इंकार करना।
— मन में उठी हुलक, तौ का खंजरी का ढुलक — किसी काम को करने की उमंग मन में उठे तो उसे कर ही डालना चाहिए।
— मनायँ मनायँ खीर न खाई, जूँटी पातर चाटन आई — अंत में हार कर वही काम करना जिसके लिए पहिले इंकार कर दिया।
— मनुवाँ जंजाली, तू कौन चिरैया पाली — गृहस्थी के जंजाल के लिए प्रयुक्त।
— मरका बैल और टिमकुल जनी, इनके मारें रोवे धनी — जिस किसान का बैल मरकहा और स्त्री बनाव श्रृंगार करने वाली होती है वह सदैव कष्ट भोगता है।
— मर गई किल्ली काजर कों — किल्ली काजल को लगाने की अभिलाषा में मर गयी, जब कोई काली-कलूटी स्त्री अपने को बहुत सुंदर बनाने की चेष्टा करे तब उसके लिए कहते हैं।
— मरघटा कौ गओ को लौटत — मरघट का गया कौन लौटता है? गयी बात फिर हाथ नहीं आती।
— मरदे रोटी, बरदै काँस — मर्द का अच्छा खाना, और बैल को अच्छा घास चाहिए।
— मरबे की फुर्सत नइयाँ — अर्थात् बहुत व्यस्त हैं।
— मरबे कों का हाती — समय आया मर गये। घोड़ा जुतत-मरने का क्या ठीक?
— मरियाँ मुंस, घर में खुंस — दुबले पतले मरतुले, पति से स्त्री सदैव रुष्ट रहती है।
— मरियाँ मुंस करम ढकना, कोदों की रोटी पिट भरना — कोदों की रोटी केवल पेट भरने के लिए होती है, उसी प्रकार मरतुला पति भी केवल सौभाग्य की रक्षा के लिए होता है।
— मरी जायँ मलारैं गावैं — मरने को हो रही हैं, परन्तु मल्हार गाती हैं, घर में खाने को नहीं, गाना सूझता है।
— मरी बछिया बामन के नाव — निकम्मी वस्तु दूसरे के मत्थे मढ़ना।
— मरी मिदरियन छाले पर गये — मरी मेंढकी को छाले पड़ गये, कोई छोटा आदमी जब नजाकत दिखाये। मेढ़की को भी जुकाम।
— मरै न माँचो देय — न तो मरता है और न चारपाई छोड़ता है. बूढ़े के लिए।
— मरै बाप रोवें अजा कौं — कष्ट तो किसी बात का, रोवें किसी और बात के लिए।
— मर्द मुछारौ, बर्द पुछारौ — मर्द मूँछों वाला और बैल बड़ी पूँछ वाला अच्छा होता है।
— माँग चूँग के करी तीजा, भोरई हो गओ बीदक बीदा —जिससे पैसा उधार लिया था वह माँगने आ गया।
— माँगे की बछिया, पर दाँत निहारें — मुफ्त की चीज का क्या देखना ? उसे तो चुपचाप ले लेना चाहिए।
— माँगे के बैल, मसक के जोत लो — मँगनी के बैल उनसे खूब कस कर काम ले लो।
— माँगे कौ मठा मोल बिरोबर — माँगी हुई वस्तु सदैव महँगी पड़ती है, अव्वल तो देने वाले के सौ नखरे सहने पड़ते हैं और फिर ऊपर से एहसान अलग।
— माँगे मिलें न चार, पूरे पूरे पुन्न बिन, इक विद्या इक नार, घर संपत, सरीर सुख, माँगे मौत नई मिलत — माँगने से कोई वस्तु नहीं मिलती।
— माँछी बिडारवे बैठे, संगे जेउन लगे — मक्खियाँ भगाने बैठे, और साथ खाने लगे। काम कुछ सौपा गया, करने कुछ लगे।
माँठ को माँठ बिगरौ — मटकी, नील के रंग का खमीर, माँठ का माँठ बिगड़ा है, पूरा मामला ही गड़बड़ है।
— माँस खायँ माँस बड़े, घी खायें बल होय, साग खायँ ओझ बड़े, बल कहाँ ते होय माटी कत, मोय छू तौ देखो — मिट्टी कहती है, मुझे छूकर तो देखो, मकान की मरम्मत का काम प्रारंभ में तो थोड़ा जान पड़ता है, परन्तु शुरू करते ही बहुत बढ़ जाता है।
— माटी छुएँ सोनों होत — मिट्टी छूने से सोना होता है, भाग्यवान के लिए कहते हैं।
— माते की लगुन में लगुन — बड़े आदमी के काम के साथ अपना भी काम सट जाना।
— माते दुके पयाँर में, को कये बैरी होय — बड़े आदमियों की बात कह कर कौन उनसे बुराई मोल ले, कौन कह कि माते घर के भीतर प्यार में छिपे बैठे हैं।
— मान कौ पान भाँत होत — सम्मान के साथ दिया गया पान बड़ी चीज होती है।
— मानों तो देव, नई तौ पथरा — विश्वास से ही सब कुछ होता है।
— मान्स के कामें मान्स आऊत — मनुष्य ही मनुष्य के काम पड़ता है।
— मामा के आँगें ममयावरे की बातें — जानकार के आगे अपनी समझदारी बघारना।
— मार कें भग जइये, खाकें पर रइये — मार के भाग जाना चाहिए, खाके लेट जाना चाहिए।
— मार के आँगें भूत भगत — मार से सब डरते हैं।
— मियाँ बीबी राजी, तौ का करै काजी — छटाक, बीबी धूल फटाक-मियाँ छैल चिकनिया बने फिरते हैं, बीबी धूल फटकती है।
— मियाँ तौ छोड़त, पै बीबी नई छोड़तीं — जब कोई आदमी किसी के गले पड़ जाये।
— मियाँ मरें आफत की ठेल, बीबी कहें शिकारे खेल — मियां तो आफत के मारे मरते हैं, बीबी कहती है- यौवन का रस लूटो।
— मियाँ मरे, न रोजा टरें — गले पड़ी मुसीबत के लिए।
— मिसरी सी घुर रई — मिश्री सी घुल रही है, मन ही मन प्रसन्न होना।
— मीठे के बस जूठो खैये — मीठे के लोभ से जूठा खाना पड़ता है।
— मुंडी गैया सदा कलोर — बिना सींगों की गाय सदा बठिया ही जान पड़ती है, घर से बेफ्रिक और अल्हड़ आदमी के लिए कहते हैं।
— मुफत कौ चंदन घिस मोरे नंदन — मुफ्त का माल उड़ाने वाले के लिए कहते हैं।
— मुहर्रम की पैदाइस — मनहूस आदमी।
— मूँछन कौ झूला डारबो — मूँछों का झूला डालना, हास्यजनक काम करना।
— मूँड़ न सई कपार सई — मूँड़ न सही कपार सही, अर्थात् जो बात तुम कह रहे हो वही हमने भी कही, दोनों में कोई अंतर नहीं।
— मूरख कौ सब रैन, चतुर की एक घड़ी — मूरख के साथ घंटो रहने की अपेक्षा चतुर के साथ एक घड़ी रहना अच्छा अथवा मूरख जिस काम को घंटो में नहीं कर सकता, चतुर उसे कुछ क्षणों में निपटा देता है।
— मूरख सें दुख रोओ, रोटा सें घी खोओ — मूर्ख के सामने अपना दुखड़ा रोना उसी तरह व्यर्थ है जैसे मोटे अनाज की रोटी के साथ घी बरबाद करना।
— मूसर में मूँड़ मारबो — मूर्ख के साथ समय नष्ट करना।
— मैं दूला की मौसी, घर नेग कौ टका — जब कोई आदमी यह बताये के मैं भी कुछ हूँ तब व्यंग्य में उसके लिए कहते हैं।
— मैर कीं, न माउर कीं — न मैर में सम्मिलित होने की, और न माहुर लगवाने की, अर्थात् किसी गिनती में नहीं।
— मों कौ कौर छुड़ा लओ — किसी की रोजी छीन ली।
— मों कौ कौर नाक में नई — मुँह का कौर नाक में नहीं चला जाएगा, प्रकृति विरुद्ध कोई काम नहीं होता।
— मों चीकनो, पेट खाली — ऊपर से टीम-टाम बनाये रखने के लिए।
— मों देख के टीका करबो — अलग-अलग आदमियों से अलग-अलग तरह का बर्ताव करना, पक्षपात से काम लेना।
— मों देख के थापर मारबो — मुँह देख कर थप्पड़ मारना।
— मों देखो व्यवहार — झूठा शिष्टाचार करना।
— मों पै कछू पीठ पछारूँ कछू — मुँह पर कुछ और पीठ पीछे कुछ और कहना।
— मों माँगे दाम नई मिलत — किसी वस्तु के मुँह-माँगे दाम नहीं मिलते।
— मों में आई सो घर कई — मुँह में आया सो कह दिया, बिना सोचे-विचारे कहने पर प्रयुक्त।
— मोची के मोची रये — जैसे के तैसे रहे।
— मोय न पूँछे कोय, मैं लालन की मौसी — बीच में जबर्दस्ती आ धमकने वाले को लक्ष्य करके व्यंग्य में।
— मोरें है सो कोऊ के नइयाँ — मेरे है सो किसी के नहीं, अपनी वस्तु का अभिमान करने वाले के लिए कहते हैं।
— मोरे आँगे कौ भओ लड़इया और मोई में अब्बे–तब्बे — मेरे सामने का पैदा हुआ गीदड़ और मुझसे ही अबे-तबे।
— मोसे बची तब और न पाई — किसी वस्तु का जब कोई बाँट-बाँट कर न खाये और स्वयं सब रख ले तब व्यंग्य में।
— मौत की दबाई नइयाँ — मौत का इलाज नहीं।
— मौत के आँगें कोऊ कौ बस नई चलत — मौत के आगे किसी का वश नहीं।
— यार की यारी से काम, बाके फैलन से का काम— अपने मतलब से मतलब, कोई बुरा है तो बिना रहे।
— यारी करें बड़े फल पाये — प्रेम का परिणाम अच्छा नहीं होता।
— रंग में आई कोंसिया, कये खसम में मंसिया — लाड़ में आकर धृष्टता पूर्ण बर्ताव करना।
— रंग में भंग — शुभकार्य में विघ्न।
— रँडुआ की बिटिया और राँड़ कौ लरका जे दोऊ बिगर जात — इसलिए कि लड़की की देखभाल माँ ही कर सकती है और लड़के की पिता।
— रँधो भात — रँधा भात शीघ्र बिगड़ जाता है और एक दिन के बाद ही खाने के योग्य नहीं रहता, अतः कहावत का प्रयोग ऐसी वस्तु के लिए होता है जो बहुत दिनों तक घर में न रखी जा सके, अथवा हजम न की जा सके, जैसे विवाह के योग्य सयानी लड़की अथवा पराई थाती।
— रइये मुक्ख तौ रइये सुक्ख — पेट को थोड़ा खाली रखने से आदमी सुख में रहता है।
— रतनन के आँगे दिया नई बरत — रत्नों के आगे दीपक नहीं जलता।
— रमतूला दैबो — तुरही की तरह का एक बाजा, ढिंढोरा पीटना, घोषणा करना।
— रबा धरबो — सोने-चाँदी के आभूषणों पर छोटा गोल कण जमाने को रवा रखना कहते हैं, उत्तेजित करना, उकसाना।
— रबा पै जवा घरबो — छोटी वस्तु पर बड़ी वस्तु जमाना, किसी को और अधिक उत्तेजित करना।
— रस में बिस घोर दओ — रंग में भंग कर दिया।
— राँड़ के अँसुआ — दिखावटी रोना।
— राँड़ कौ रोबो बिरथा नई जात — राँड़ का रोना और पुरवाई का चलना व्यर्थ नहीं जाता।
— राँड़ कौ साँड़ — विधवा का लड़का, जो पिता के न होने से प्रायः उच्छृंखल बन जाता है।
— राँड़े राँड़ें जुर मिलीं को किहि देय असीस — एक से दुःखी मिले तो कौन किसका दुःख बटाये।
— राछरी कों घोड़ा माँगो, पाँव फेरें आइयो — कोई वस्तु जब मौके पर माँगने से न मिले और बहाना लेकर उसके लिए टरका दिया जाय तब कहते हैं।
— राज के लुटे और फागुन के कुटे कों कोऊ नई पूंछत — राजा के द्वारा लूट लिये गये और होली के अवसर पर पिट गये की कौन फिक्र करता है।
— राजन की राजा कयें, बाच्छन की को कये — बड़ों की बात बड़े ही कह सकते हैं परन्तु जो बहुत बड़े हैं उनकी कौन कहे।
— राज भरे की बातें — व्यर्थ की इधर-उधर की बातें।
— राजा करन की पारी — राजा कर्ण पहर, अर्थात् दान का समय, सूर्य अथवा चन्द्र ग्रहण के समय भंगी बसोर दान माँगते समय कहते हैं।
— राजा कौ जी चेरी में, चेरी कौ जी महेरी में — हर आदमी को अपनी-अपनी पड़ी रहती है।
— राजा कौ धन तीन खायें रोरा, घोरा और दंत निपोरा — राजा का धन तीन बातों में खर्च होता है, इमारतें बनवाने में, फौज फाँटा रखने में या खुशामदी दरबारियों में।
— राजा छुयें रानी होय — राजा जिस पर प्रसन्न होता है वही बड़ा आदमी बन जाता है।
— रात थोरी, स्वाँग भौत — समय थोड़ा और काम बहुत।
— रात भर पीसो पारे में उठाओ — परिश्रम बहुत, लाभ थोड़ा।
— रात रतेबा ना मिलै, छै मइना नों नोंन पूँछे चील चमार सों सो बैला है कौन — चील चमार से कहती है कि वह बैल कौन सा है जिसे रात में चारा दाना नहीं मिलता और छः-छः महीने तक नमक। अभिप्राय यह कि ऐसा बैला बहुत दिनों जीवित नहीं रह सकता, मरे तो माँस खाया जाय।
— राम भरोसें खेती है — सब राम का भरोसा है।
— राम राखे, कोऊ न चाखे — राम रक्षक है तो कोई क्या बिगाड़ सकता है।
— राम राम कर कें दिन तेर करबो — राम राम करके दिन काटना, कष्ट में रहना।
— रिपट परे पतोरन नई भरत— रीते कुए पत्तों से नहीं भरते, महत्वाकांक्षी थोड़े से संतुष्ट नहीं होता।
— रूचै सो पचै — जो वस्तु खाने में अच्छी लगे वह आसानी से पचती भी है।
— रूखी– सूखी नोंन सें, बाबाजी कयें कौन सें — रूखी-सूखी नमक से खा लेते हैं बाबाजी अपनी विपत्ति किससे कहें।
— रूप की रोवे, करम की हँसे — रूपवती लड़कियों को प्रायः अच्छा घर नहीं मिलता, और वे बैठ कर रोती हैं, परन्तु जिनका भाग्य प्रबल होता है वे अच्छे घर पहुँच कर सुख से जीवन व्यतीत करती हैं, भाग्य ही सब कुछ है, रूप कुछ नहीं।
— रेख में मेख मारबो — भाग्य से लड़ना।
— रेवन ककवारे की कुतिया — ऐसा आदमी जो बहुत दौड़ घूप करने पर भी काम में सफल न हो। न इधर का न उधर का। रेवन ककवारा ये दो गाँव झाँसी जिले में मऊसे गुरसराय जाने वाली सड़क पर पार ही पास है। कहानी है कि एक बार इन दोनों गाँवों में पंगत हुई। वहाँ एक कुतिया थी। उसने सोचा कि दोनों जगह का जूठन खाना चाहिए। पहिले रेवन गयी। जाकर देखा कि लोग अब भी भोजन कर रहे हैं। वहाँ विलम्ब देख कर विचार किया कि तब तक ककवारे में जाकर खा आऊँ। परन्तु वहाँ भी यही हाल देखा तो फिर रेवन वापिस आयी। वहाँ जाकर देखती क्या है कि लोग खाकर चले गये हैं और जूठन भी भंगी उठा वहाँ भी पंगत उठ गयी थी और जूठन का कहीं नाम नहीं था। इससे वह बड़ी निराश हुई और भूख के मारे दोनों गाँव के बीच में आकर मर गयी।
— रोई काय कई — नंद ने देख लओ रोई क्यों कहा नंद ने देख लिया, कोई स्त्री अकेले में भले ही अपने पति के हाथ से नित्य पिटती रहे, परन्तु कोई यदि देख ले, विशेषकर देखने वाली ननद हो, तो वह रो पड़ेगी, दूसरे के सामने अपमान बर्दाश्त नहीं होता।
— रोउत हतीं और सासरे में मिली — बहाना मिलने पर मन चाहा काम करना, ससुराल में यदि मायके का कोई आदमी मिल जाय तो स्त्री को रूलाई आ जाती है।
— रोटियन कों रये, बई में ओले — झोले–रोटियों पर नौकर रहे, उसमें भी झोलझाल, कम मजदूरी पर काम करना और वह भी पूरी न मिलना।
— रोटी ऊपर साग, मोरें तौ नित्तई फाग — घर में रोटी और साग खाने को हो तो क्या पूछना नित्य फाग दिवाली है।
— रोटियन पै लात मारबो — रोजी को ठुकराना।
— रोयें बनें ना गायें, मातेजू मों बायें — कुछ करते घरते न बनना, अक्क-बक्क भूल जाना।
— रो–रो डुकरियन गीत गाये, लरकन खाँ आवे हाँसी बुढ़ियों ने रो-रो कर तो गीत गाये, लड़कों को हँसी आती है, किसी के परिश्रम को न सराहना, बल्कि हँसना।
— रौल चौल होबो — चहल-पहन होना।
— लंका कों सोनों बताबो — लंका को सोना बताना, जहाँ जो वस्तु पहिले से प्रचुर मात्रा में मौजूद है वहाँ उसे ले जाने की हास्यजनक चेष्टा करना।
— लँगड़े लूले गये बराते। आगौनी में खाई लातें — कहीं जाने पर अच्छी खातिर न होना।
— लँगोटी में फाग खेलबो — थोड़ा खर्च करके अपना काम बना लेना, फाग केवल लँगोटी में नहीं खेली जाती, उसमें तो अच्छे कपड़े पहिने जाते हैं।
— लंका कैसी बोंड़ी खटकबो — एक घास का काँटा जो बहुत बारीक होता है और चुभ जाने पर कसकता है, हृदय में किसी बात का चुभ जाना और बराबर खटकना।
लंपा कैसे ऐंठत — लंपा की तरह ऐंठते हैं, बहुत अकड़ते हैं, घमंड करते हैं सीधे बात नहीं करते, लंपीले घास पर पानी डालने से वह ऐंठता है।
— लकरी बेंचत लाखन देखे घास खोदतन धनधनरा, अमर हते ते मरतन देखे, तुमई भले मोरे ठनठनरा — किसी स्त्री का अपने मूर्ख पति के प्रति कथन। यह पाली नाम सिद्धि जातक है। बुंदेली में इसकी कथा इस प्रकार है एक स्त्री के पति का नाम था ठनठनरा। उसको यह नाम पसंद नहीं था। वह पति के लिए कोई अच्छा नाम ढूंढने के लिए निकली। व्यक्ति लकड़ियों का बोझ लिए जा रहा था। उसका नाम था लाखन। दूसरा घास खोद रहा था। उसका नाम था धन-धनरा। एक व्यक्ति मर गया था और उसकी अरथी जा रही थी, उसका नाम था अमर। स्त्री ने यह सब देख सुन कर मन में सोचा कि नाम से कुछ आता जाता नहीं मेरे पति का जो नाम है वही अच्छ और उसने ऊपर की गाथा कही।
— लकीर के फकीर — पुरानी ही चाल पर चलने वाले।
— लग गओ तौ तीर नई तौ तुक्का — काम करने पर कुछ न कुछ तो होगा ही।
— लगन में बिधन — शुभकार्य में विघ्न।
— लगी बुरई होत —मन में कोई बात चुभ जाने पर चैन नहीं पड़ता।
— लटें छुटकार कें खेलबो — बेशरम बन काम करना।
— लटे पटे दिन काटिये — बुरे दिन भी जैसे बने काटना चाहिए।
— लड़इयन में गोली खोबो — लड़कों के साथ मिल कर लड़कपन करना।
— लड़आ ढँड़क रये — लड्डू लुढ़क रहे हैं, अर्थात् बड़े प्रेम की बातें हो रही हैं।
— लड़ें न भिड़ें, जिरा पैरें फिरें — व्यर्थ बहादुरी की डींग मारना।
— लड़ें साँड़ बारी कौ भुरकन — दो बड़े आदमियों की लड़ाई में बीच के छोटे आदमी मारे जाते हैं।
— लपकी गाय गुलेंदे खाय, बेर बेर महुआ तर जाय — महुआ नामक वृक्ष का पका फल जो खाने में मीठा होता है, मुफ्त का माल खाने की आदत पड़ जाने पर बार बार उसी जगह जाना जहाँ खाने को मिलता है।
— लपसी सी चाटत — किसी की बातचीत के बीच में बार-बार बोल उठने वाले के लिए कहते हैं।
— लरका के भाग्गन लरकौरी जियत — पुत्र के भाग्य से पुत्रवती जीवित रहती है, एक के भाग्य से दूसरे का भाग्य लगा रहता है।
— लरका तौ अपनो व्याउत, इतै मूँछें की पै मरोड़ते हैं — कोई आदमी निःस्वार्थ भाव से किसी के काम में सहायता कर रहा हो परन्तु वह उल्टे उस पर नाराज हो पड़े तब।
— लरका सीके नाऊ कौ, मूँड़ कटै किसान कौ — गाँव में नाई, धोबी आदि जिन लोगों के यहाँ नियमित रूप से काम करते हैं वे उनके किसान कहलाते हैं, कोई नौसिखिया जबर्दस्ती दूसरे के काम में हाथ डाल कर उसे बिगाड़ दे तब।
— लाख जाय पै साख न जाय — भले ही धन चला जाय पर इज्जत न जाय।
— लाख बात की एक बात — सारांश की बात।
— लातन की देवी बातन नई मानतीं — नीच समझाने से नहीं मानता, पीटना ही उसका इलाज है।
— लातन मारी बात फिरबो — किसी बात का तिरस्कार करना।
— लाद देओ, लादउन देओ, लादनवारो संग दो — माल लाद दो, लादने की मजदूरी भी दो और लादने वाला भी साथ दो एक के बाद एक करके जब कोई आदमी तमाम उचित अनुचित सुविधाएं माँगता है तब।
— लाबर बड़े कै दोंदर — झूठा बड़ा या उपद्रवी, निःसंदेह उपद्रवी बड़ा होता है।
— लालच बुरी बलाय — लालच बुरी बला है।
— लासुन खाओ और ब्याध न गई — अनुचित काम भी किया और कोई लाभ न हुआ।
— लासुन घाई बसात — लहसुन की तरह गंधाते हैं अर्थात् बुरे लगते हैं।
— लिपी–पुतो आँगन और पैरी औढ़ी नार — ये दोनों देखने में अच्छे लगते हैं।
— लील कौ टीका लग गओ — नीला रंग, नील, बदनाम हो गये।
— लुखरगड़े में फँस गये — लुखरगड़ा, लोमड़ी का बिल जो संकीर्ण और टेढ़ा-मेढ़ा होता है, अर्थात् चक्कर में पड़ गये।
— लुगरयाव लँगूरा बिजरी की लौंकन से डरात— जलती हुई लकड़ी दिखा कर भयभीत किया गया बंदर बिजली की चमक से डरता है, एक बार कोई कटु अनुभव हो जाने पर आदमी भविष्य में उस विषय में आवश्यकता से अधिक सावधानी बर्तता है।
— लुवा भैय्या ल्याये, पै काम तौ भौजाई अई से परै — ससुराल से कोई लड़की मायके आयी है, उससे कहा जा रहा है कि इस भरोसे मत रहना कि तुम्हें भैया लिवा लाये हैं, काम तो नित्य भावज से ही पड़ेगा। जब कोई किसी एक आदमी के बल बूते पर दूसरे खास आदमी की अवज्ञा करना चाहे तब कहते हैं।
— लूगरन भाँवरें पर रई, नेग कौ टका घरई दो — दूसरे की विपत्ति की परवाह न करके अपने ही मतलब की बात करना।
— लूट कौ मूसरई मौत — मुफ्त में जो मिला वही अच्छा।
— लैड़ा हाथी घर (अ) ई की फौज मारत — कायर, निक्म्मा, कायर आदमी घर का ही सत्यानाश करता है।
— लैन गई परथन कुत्ता पींड़ उठा लै गओ — वह सूखा आटा जिसे रोटी बेलने के समय लोई पर लपेटते हैं। गुँदे हुए आटे की पिंडी, एक काम करने गये तब तक दूसरा चौपट हो गया।
— लैना एक न देना दो — न किसी का एक लेना है न दो देना है, किसी से कोई प्रजोजन नहीं।
— लैना न देना ऊपर से तनैना — भौहें तानना, नाराज होना।
— लोग चले मोय हुमस लागी — पति, स्वामी, स्त्री जिस प्रकार अपने पति के वश में रहती हैं उसी प्रकार मनुष्य यदि किसी के वश में रहता है तो वह ऋण है।
— लोबान जरो और मुरदा चेते — स्वार्थ की बात सुन कर आदमी सजग हो जाता है।
— लोभी कौ धन लाबर खाय — लोभी का धन लफंगे खाते हैं।
— लोभी गुरू, लालची चेला, दोऊ नरक में ठेलमठेला — चाहे गुरू हों या चेला, लोभ करने से दोनों नरक में जाते हैं।
— लौटौ बराती और गुजरो गवाई — लौटा बराती और अदालत में गवाही देकर आया हुआ आदमी इन्हें फिर कोई नहीं पूछता।
— संका हूली बन में फूली, सास भरी उस नंद झडूली — एक जंगली बूटी, शंखपुष्पी, झडूले बच्चे वाली, अर्थात् पुत्रवती, जिस बच्चे का मुंडन संस्कार न हुआ हो उसे झडूला या झलरा कहते हैं, सास मरी और ननद के लड़का हुआ हिसाब फिर ज्यों का त्यों।
— सकरें देबी सुमरों तोय मुकतें खबर बिसर गई मोय — संकट में, मुक्ति होने पर, संकट से छुटकारा पाने पर, विपत्ति में सब भगवान का स्मरण करते हैं। बाद में भूल जाते हैं।
— सकरे में समदियानों — दो समधियों का समधिनों के परस्पर मिलने का दस्तूर, समधी के आगत स्वागत में होने वाला आयोजन, ज्योनार आदि समधौरा, छोटी जगह में कोई बड़ा काम फैलना।
— सत्तरा बड़ैरे करिया करे — बड़ौरा, घर के छप्पर का ऊपरी हिसा, सत्तरह बड़ैरे काले किये अर्थात् सत्तरह घर बदनाम किये, प्रायः दुश्चरित्र स्त्री के लिए कहते हैं।
— सदा बेल हस्याय — सदा बेल हरयाती रहे, ब्राह्मणों की ओर से आशीर्वाद।
— सबई किसानी हेटी, अगनइयाँ पानी जेठी — रबी की फसल को अगहन में पानी मिल जाय तो समझो बड़ा काम हुआ।
— सब एकई थैलिया के चट्टो –बट्टे — सब एक से है, चालाकी में कोई कम नहीं।
— सब धान बाईस पसेरी — जहाँ अच्छे और बुरे, मूर्ख और पंडित, न्याय और अन्याय का कोई विचार न हो वहाँ कहते हैं।
— सब बेटा के बाप — जहाँ सब अपनी अपनी हुकूमत चलायें।
— सबरी निपुर गई — सब कलई खुल गयी, बहुत चलायी पर एक नहीं चली।
— सब से भली चुप — चुप सबसे अच्छी।
— सभा बिगारें तीन जन, चुगल, चबाई चोर — बातूनी।
— समय परे की बात बाज पै झपटे बगुला — भाग्य विपरीत होने पर दुर्बल भी सबल को सताता है।
— सरग उठायें फिरत — आफत मचाना।
— सरग तरैयाँ टोरबो — आकाश के तारे तोड़ना, असंभव कार्य करना, किसी कार्य में अपनी पूरी शक्ति लगाना।
— सरग मूॅड़ पै घरें फिरत — दे0 सरग उठाये फिरत।
— सारो फफूँड़ौ एकई भाव— अंधेर की बात।
— ससरार कौ रैबो, गदा कौ चड़बो — ससुराल में बहुत दिनों रहने से अपमान होता है।
— ससुर खाँ परी हार की बऊ खाँ परी खॅगबार की — गले में पहिनने का चाँदी या सोने का आभूषण, खँगोरिया, हँसुली, ससुर को तो हल-बखर की पड़ी है और बहू को इस बात की कब मेरी हँसुली बने, सबको अपनी अपनी पड़ी रहती है।
— साँचे कौ जमानो नइयाँ — सच्चे का जमाना नहीं, जब कोई सच कहे और उसकी बात न मानी जाय जब कहते हैं।
— साँप के गोड़े साँपई कों दिखात— साँप के पैर साँप को ही दिखाई देते हैं, अपनी विपत्ति आदमी आप ही जानता है, दूसरा नहीं जान सकता।
— साँप के बिले में हात डारबो — बैठे ठाले विपत्ति मोल लेना।
— साँप मरै न लाठी टूटे — साँप मर जाय, पर लाठी न टूटे, काम बन जाये और हानि भी न हो, युक्ति से काम लेना।
— साँसी कौ रंग रूखो — सच बात रूखी होती है, सुनने में अच्छी नहीं लगती।
— साबुन सज्जी निबुआ नोंन, और दाद की ओखद कौन — साबुन, सज्जी, नीबू का रस तथा नमक इनको मिला कर लगाने से दाद अच्छी होती है।
— सारी न साराज सासई से ररी — पत्नी की बहिन, सलहज साले की स्त्री, 3.रली, हँसी मजाक साली और सलहज नहीं तो सास से ही मजाक, अपने से बड़े से हँसी मसखरी करने पर।
— सावन सूखै स्यारी, भादों सूखै उनारी — सावन में पानी न बरसने पर खरीफ और भादों में न बरसने पर रबी की फसल को हानि पहुँचती है।
— सासे न भावे सो बऊ ए टिकावे — सास को जो वस्तु अच्छी लगती वह बहू को देती है, अपने को कोई चीज पसंद न आने पर उसे दूसरों के मत्थे मढ़ना।
— सिर बड़ौ सरदार कौ, पाँव बड़ौ गॅवार कौ — सिर बड़ा सपूत का पैर बड़ा कपूत का।
— सींक होकें घुसे मूसर होकें कड़े — किसी जगह थोड़ी घुसपैठ करके पूरा अधिकार जमा लेना।
— सींग टोर बछेरूअन में मिलबों — सींग तोड़ कर बछड़ों में मिलना, जेठाई का ध्यान न रख कर लड़कों में उठना बैठना और हँसना।
— सीखासीख परोसन की घर में सीख जिठनियाँ की — दूसरों की बातों में आना।
— सुक्रवार की रात करै नई बात — लोक विश्वास है कि शुक्रवार की रात को कोई काम की बात करने से वह सफल नहीं होती।
— सुनिये सबकी करिये मन की — बात सबकी सुननी चाहिए, परन्तु करना वही चाहिए जो उचित जान पड़े।
— सूके आम पै टुइयाँ नई बैठत— तोता का बच्चा अथवा मादा तोता, सूखे आम पर टुइयाँ नहीं बैठती, क्योंकि वहाँ कुछ खाने को नहीं मिलता।
— सूत न पौनो, कोरी सें लठमलठा — बिना कारण लड़ाई।
— सूदी उँगरियन घी नई निकरत — सीधी बातों से काम नहीं निकलता।
— सूप बोलै तो बोलै, चलनी का बोलै, जीमें बहत्त छेद — जो स्वयं अवगुणों से भरा है वह भी दूसरों के दोष देखे तो यह हँसी की बात है, सूप हँसे त हँसे चलनियों भी हँस रही।
— सूप से कऊँ सूरज ढकत हैं — सूप से भी कहीं सूर्य ढकता है।
— सूरज को दिया बताउत — सूर्य को दीपक बताते हैं।
— सेंत कौ चंदन घिस मोरे लल्लू — मुफ्त का चंदन।
— सेर को सवा सेर मिलई जात — सेर को सवा सेर मिल ही जाता है, चालाक के साथ उससे अधिक चालाकी करने वाला मौजूद रहता है।
— सोंज कौ बाप लड़इयन खाओ — साझे के बाप को सियार खाते हैं. अर्थात् साझे का काम सदैव बिगड़ता है, साझे की हंडी चौराहे पर फूटे।
— सोउत नार जगाउत — सोता हुआ नाहर जगाते हैं, बैठे बिठाये विपत्ति मोल लेते हैं।
— सोउत बर्रें जगाउत — सोती बर्रें जगाते हैं।
— सोटा लँगोटा से — जैसे कोई हाथ में लकड़ी लेकर और लँगोट पहिन कर घूमता है उस तरह फक्कड़ बन कर घूमना, खाली हाथ फिरना।
— सोने में सुगंध — अच्छे में और अच्छाई।
— सोने में सुहागा — अच्छा संयोग जुटना, सुहागा सोने को और उज्जवल बनाता है।
— सोनों छुएँ माटी होत — अभागे कर्महीन के लिए कहते हैं।
— सोनों बिगरो सुनार घर, बिटिया बिगरी बाप घर — सोना सुनार के घर जाने से बिगड़ जाता है, वह उसमें खोट मिलाये बिना नहीं रहता, उसी प्रकार लड़की भी बाप के घर रहने से बिगड़ती है, क्योंकि मायके में उस पर विशेष नियंत्रण नहीं रह पाता।
— सोरा हात की सारी, आदी जाँग उगारी — फूहड़ स्त्री के लिए।
— सौ डंडी एक बुनदेलखंडी — सौ डंडेवालों अथवा कसरती जवानों की बराबरी एक बुंदेलखंडी करता है, इसमें किसी ने यह पंक्ति भी जोड़ रखी है- सौ बघेलखंडी एक बुंदेलखंडी।
— सौत चून की बुरई होत— सौत आटे की भी बुरी होती है।
— सौ बक्का, एक लिक्खा — सौ बकवादी एक लिखने वाले के बराबर होते हैं।
— सौ बातन की बात — अर्थात् सारांश की बात।
— सौ बेर चोर की एक बेर साव की — चालाक आदमी कई बार अपराध करके भले ही बच जाय, परन्तु कभी न कभी पकड़ा ही जाता है और अपनी चालाकी का दंड पाता है।
— सौ मारें और एक न गिनें — निकम्मे के लिए।
— सौ सौ जूता खायें तमासी घुसके देखें — लड़ाई झगड़ों की परवा न करके जबर्दस्ती तमाशा देखने वालों पर व्यंग्य।
— हंस की चाल टीटरी चली, गोड़े उठाकें भों में परी— दूसरों का अनुकरण करके चलने में हानि उठानी पड़ती है।
— हँसी की हँसी और दुःख कौ दुःख — एक साथ हँसी और दुख की बात।
— हम का गदा चराउत रये — हम क्या गधे चराते रहें अर्थात् हम क्या निरे मूर्ख हैं।
— हम फूटे तुम जाँजरे हरई के भेंट लो — हम फूटे हैं और तुम जर्जर, धीरे से भेंट लो, किसी मामले में परस्पर झगड़ा न करने और आसानी से काम निकाल लेने के लिए कहते हैं।
— हमें कोन तुमसें मूसर बदलवॉवने — हमें तुमसे क्या मतलब, तुम्हारे बिना हमारा कोई काम अटका नहीं रहेगा विवाह में घर से चलते समय वर के सिर पर से मूसल निकालने की प्रथा बुंदेलखण्ड की सभी जातियों में प्रचलित है। कहावत उसी पर आधारित है, एक स्त्री दूल्हा के पीछे खड़ी हुई दूसरी स्त्री को सिर पर से मूसल देती है और वह फिर उसे लौटा देती है, इसप्रकार सात बार मूसल बदला जाता है।
— हर हाँके भॅकन मरें, बाबा लाडू खायँ — जी तोड़ परिश्रम करने वाले तो भूखों मरते हैं और निठल्ले मौज उड़ाते हैं।
— हराम की कमाई हराम में गई — अन्याय का पैसा व्यर्थ ही जाता है। हरी खेती गाभन गाय, तब जानों जब मों में आय, ठाँड़ी खेती।
— हरौ हरौ सूजत — सब काम आसान जान पड़ते हैं, पैसे की केंद्र न करने पर प्रयुक्त।
— हलक से निकरी खलक में गई — बात मुँह से निकली और दुनिया में फैली।
— हवा काै रूख परखबो — समय की गति को देखना।
— हवा से बातें करबो — बातचीत में बहुत चंचलता दिखाना।
— हवा से लड़बी — झगड़ालू प्रवृत्ति का होना।
— हाँसी की साँसी — हँसी में कही हुई बात का सच निकल आना।
— हाकिमी गरम की, दूकानदारी नरम की, दलाली बेसरम की, सराफी भरम की दौरत करम की, बात मरम की, और आढत धरम की — दूकान में कितनी पूँजी लगी है, अथवा कितना पैसा पास में है इस बात का खुल न पाना मर्म सार। हाजिर में हुज्जत नई और गैर की तलाश नई जो वस्तु मौजूद है उसे देने में कोई आपत्ति नहीं और जो नहीं है उसे तलाश करने नहीं जायेंगे, अथवा जो लोग मौजूद हैं उनका स्वागत है जो नहीं है उनकी तलाश क्या करनी।
— हात कंगन को आरसी का — प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण की क्या आवश्यकता।
— हात कों हात नई सूजत — हाथ को हाथ सूझता, ऐसा घोर अंधकार है।
— हात कौ सच्चौ — लेन-देन का सच्चा।
— हातन पै आम जमाउत — हाथों पर आम जमाते हैं, जल्दी मचाते हैं, उतावली करते हैं।
— हात न मुठी, खुरखुरा उठी — गाँठ में तो पैसा नहीं परन्तु चीज खरीदने का शौक।
— हात पाँव के कायले मों में मूँछे जायँ — काहिल आलसी, इतने आलसी हैं कि अपनी मूंछों को भी नहीं सँभाल सकते मूल कहावत इतनी है परन्तु किसी ने इसमें यह पंक्ति भी जोड़ रक्खी हैं मूँछ बिचारी का करे, हात न फेरो जाय।
— हात पाँव सुटुकिया, पेट मटुकिया — जिसका पेट बड़ा हो अथवा जो बहुत दुबला पतला आदमी खाता हो।
— हात भर लड़इया नौ गज पूँछ — सियार, गीदड़, छोटा आदमी बड़ा आडम्बर करे तब कहते हैं।
— हात में कौरा, मूंड़ में टोकरा — हाथ का कौर सिर में ले जाना, बेढंगा काम करना।
— हात में नइयाँ कौड़ी गोरी नाक छिदावें — दे0 हात न मुठी।
— हात से पिल्ला छोड़कें कर दूर करत — हाथ से पिल्ला छोड़ कर बुलाते हैं कि आजा आजा, हाथ में आयी हुई वस्तु को जान बूझ कर निकाल देना और बाद में उसे प्राप्त करने की चेष्टा करते फिरना।
— हात हलाउत चले आये — हाथ हिलाते चले आये, अर्थात् जिस काम को करने के लिए भेजा था वह करके नहीं आये, यों ही खाली हाथ वापिस आ गये।
— हाती कड़ गओ, पूँछ रै गई — किसी काम का बहुत सा अंश हो जाना और थोड़े में असमंजस रहना।
— हाती के दाँत दिखाउत के और, खात के और — जब कोई आदमी कहे कुछ और करे कुछ, तब प्रयुक्त।
— हाती के दाँत बायरें कड़े सो कड़े — एक बार कोई आदमी बदनाम हुआ सो हुआ, अथवा एक बार किसी का भेद खुला सौ खुला।
— हाती के पाँव में सब को पाँव समात — बड़ों के साथ छोटों का निर्वाह होता है।
— हाती का बोज हाती (अ) ई उठाउत— हाथी का बोझ हाथी ही उठाता है, बड़ों के काम बड़ों से ही सँभलते हैं।
— हाती डुबकइयाँ खाय, बुकेरू पार पूँछे — हाती घोड़ा बये जायँ।
— हाती फिरै गाँव गाँव, जीको हाती बाको नाव — जिसकी जो वस्तु होती है वह उसकी कहलाती है फिर वह किसी भी जगह रहे।
— हाय हाय करतन जनम बीतो — जन्म भर संसार के झगड़ों में फँसे रहे।
— हारे कौ हरनाम — मनुष्य से जब कुछ और करते धरते नहीं बनता तब भगवान का भजन सूझता है।
— हा – हा लों बिनती सौ लों गिनती — जैसे सौ तक गिनती की सीमा है उसी तरह कोई हा हा खाकर ही बिनती कर सकता है। इससे अधिक क्या करे।
— हिभा के भाई छिकारा, बे जायें दस, तौ बे जायें बारा— हिरन, चीतल, स्वर्णमृग, कोई किसी से कम नहीं।
— हींग घाँई बसात — हींग की तरह बसाते हैं। अर्थात् बुरे लगते हैं, सुहाते नहीं।
— हीरा कों कीरा बिगारत — हीरे के भीतर पड़ी हुई लकीर जिससे हीरे का मोल कम हो जाता है इस साधारण दोष भी बड़े आदमियों की महत्त को कम कर देता है।
— हीरा मुख सें ना कहे लाख हमारी मोल — बड़े आदमी अपने मुँह से अपनी प्रशंसा नहीं करते।
— हुक्का पानी बंद होबो — जातिच्युत होना।
— हुलहुलानी सो घर पलानी — गाय सुहलाते ही पलहा गयी इच्छा होते ही किसी काम को करने के लिए तैयार हो जाना।
— होती की धोती, अनहोती की लॅगोटी — मिल गयी तो धोती पहिन ली, नहीं तो लँगोटी से ही काम चला लिया।
— होती के तीन नाम, परसू, परसा, परसराम — मनुष्य जिस हैसियत का होता है उसी के अनुसार उसकी इज्जत होने लगती है।
— होते कौ बाप, अनहोते की माँ — सम्पत्ति में पिता और विपत्ति में माँ काम आती है।
— होनहार बिरवान के होत चोकने पात — होनहार के लक्षण पहिले से ही दीख पड़ते हैं।
— होनहार होकें रत — जो होना होता है वह टलता नहीं।
— होनी पै कीको बस — होनहार पर किसका वश।
— होम करतन हाथ जरे — भलाई करते बुराई मिली।
— होम न धूप देबी हा हा — झूठा सम्मान करना।
बुंदेलखंडी पहेलियाँ
कृष्णानंद गुप्त
1 | अँधयारे घर में दई कौ छिटका। | (आकाश के तारे) |
2 | अत्थर फोरा पत्थर फोरा उस पै रख दो पैसा। बिन पानी का महल बनाया यह कारीगर कैसा।। | (मकड़ी और उसका जाल) |
3 | अगल बगल तक्का, बीच में भगोले कक्का। | (किवाड़ बन्द करके लगाया जाने वाला बेंड़ा, अर्गला) |
4 | अजगर ताल भुवन मछरी। मौं जरै पै पूँछ सपरी।। | (दीपक की बाती) |
5 | अँधयारे घर में ऊँट बलबलाय। | (आटा पीसने की चक्की) |
6 | अम्म गड़े दो खम्भ गड़े। गढ़ी के राजा कूँद परे।। | (विष्ठा) |
7 | अगल-बगल पतरो, बीच में मोटो। | (बेलन) |
8 | अटक चलीं मटक चलीं पैर चला झँइयाँ। ऐसी खसम की लाड़ली सौ चढ़ चली कइयाँ1।। | (तलवार) |
9 | अठारा बाकी बैनें, अठारा बाके भैय्या। परी-परी मताई रोवे, बैठो रोवे भैय्या।। | (रहँट) |
10 | अदबारे जाँ बरत हैं, बरै उसासें लेत। तुमरे आये पावने उतै हीय सो देत।। | (चूल्हा) |
11 | अंच बैठे पंच बैठे और बैठो कौआ। चार पुरा के माते बैठे होन लगौ चटकौआ।। | (बंदूक) |
12 | अनसट कोट बनसट कोट, कोट वन के गोजा। आई नदी में चौपर खेलें हम हनूमान के चेला।। | (खुरपी) |
13 | अँधयारे घर में दो बहुएँ बैठीं। | (कुठियाँ, मिट्टी के कुठैला) |
14 | अगन कुंड में घर कियो जल से कियो निकास। परदे-परदे जात है अपने पिया के पास।। | (धुआँ) |
15 | अंख हैं पंख नइयाँ, चलत है चुनत नइयाँ। | (रुपया) |
16 | अँधयारे घर में उर्द डरे। | (मक्खियाँ) |
17 | अपुन तो कारी केवला सी। बिटियाँ जायँ पठोला सी।। | (कड़ाही की पूड़ी) |
18 | अँधयारे घर में बाबा बँधे ठाँड़े। | (झाड़) |
19 | अम्बई गये बम्बई गये और गये कलकत्ता। एक रूख हम ऐसो देखो फूल के ऊपर पत्ता।। | (धुआँ) |
20 | अधिक गुलगुल अधिक सुकवार। माझे टुकली ढिगढिग2 बार।। | (आँख) |
21 | अस खाने बस खाने, बखत परे पै माँग खाने। | (अजवायन) |
22 | अथफर धार अछंगन पानी, जामें सींक न जाय। गन मुनिजन भोजन करें, जीमें पंछी उड़न न पाय।। | (दूध) |
23 | अटारी में सें उतरीं, मड़ा3 में पेट रै गओ। | (रोटी) |
24 | अक्कल की कोठरी, बक्कल के किवार। जी में हैं सरबत की बहार।। | (तरबूज, कलींदो) |
25 | अदाफल मीठो, सदा फल मीठी, नींबू को फल खाटो। ऐसो फल ल्याइयो कका जू जाके ऊपर काँटो।। | (ककोरा या पड़ोरा) |
26 | आँगें नन्नइयाँ4 लोटे पूँछ मोरे हात में। | (खुरपी) |
27 | आउत रतोंध दिन के सूजत नइयाँ। | (-?) |
28 | आस पास पतरी बीच में कुचइया। न बता पाओ तौ खेंच लेयँ चुटइया। | (चिरौल नामक वृक्ष का बीज) |
29 | आई नदी भर्रात गई, चन्दन चौक पूरत गई। | (चकिया) |
30 | आठ कुलारी नौ तरवारें तोऊ न कटे गजबेल की डारें। | (परछाईं) |
31 | आरे5 में गोपालो बैठीं। | (जीभ) |
32 | आदि कटे तौ प्रान है, मध्य कटे तो सुन। सो ‘जा’ अंत कटे से गुनिया मन से गुन।। | (सुजान) |
33 | आकास बाके अंडा पाताल बाके घोंचुआ। मेरी गा बतैये बच्ची तब जइये कुआ।। | (महुआ) |
34 | आईं हतीं बड़ी धूम सें दये दचक्का चार। अपनो काम निकार के गई लाँगा फटकार।। | (ओखली में अनाज का कूटा जाना) |
35 | आई गदइया, कूदी गदइया, खुर भींजे न गदइया।। | (मकड़ी) |
36 | आँगें आँगें बैन आई, पाछें आओ भइया। कथरी ओढ़ें बाप आओ, टीका लगायें मइया।। | [महुये का फूल, फल, बीज, (गुली)] |
37 | आबक दाना, साबक दाना, दाना है मस्ताना। छज्जे ऊपर मोर नाचे, लाला है दीवाना।। | (अफीम) |
38 | आस नदी पास नदी, वीच नदी भारी। मोतिन के गंज लगे राधा पनिहारी।। | (मधुमक्खी का छत्ता) |
39 | आधो घुसे घुसाये सें। आधो पूँछ उठाये से।। | (पहिनते समय जूते में डाला गया पैर) |
40 | आठ खटाखट नौ पंसारी। सोरा बैनें अठारा नारी।। आओ पाँड़े करो विचार सोरा मों कौ एक द्वार।। | (रहँट और उसकी धरियाँ) |
41 | आठ अठैनी, बारा बैनी। चार चबूकर, दो पर बैनी।। | (आठ, बारह, चार तथा दो थनों वाली) |
42 | आम लगी धनियाँ लगी पाताल लगी डोर। ऐंचो रे बाल गोला, चँगन-मँगन होय।। | (रहँट) |
43 | आँख न देखो मों से खाई। चींखी होय तौ राम दुहाई।। | (खाई) |
44 | आस बँधी, पास बँधी बोच गड़ी खूँटी। सबरी गइयाँ ठीक बँधी पीरी कैं से छूटी।। | (लता से अलग हुई चीमरी खरबूजा) |
45 | आठ पाँव की नारंगी, धरती मिलती जाय। राजा कैबे देखो रानी, कौन जनावर आय।। | (किल्ली) |
46 | आग बरै न जल बहै तौ भी गरई न होय। तीन दिसा में ऊपजे एक दिसा ना होय।। | (छाया) |
47 | आँहाँ आहाँ बाना, पीठ ऊपर पूँछ नाचें, जौ तमासो काँहाँ। | (तराजू) |
48 | आधा भक्तन मुख बसै आधा गुइयन साथ। नहिं पंसारी देत है पुरिया बाँध के हाथ।। | (जहर) |
49 | इतै दई थापर उतें दई थापर, हग ससरी हग। | (चलनी) |
50 | इतै सें आई बे उतै सें आये बे। काढ़ बैठीं बे, घूँस बैठे वे।। | (चूड़ी पहिनना) |
51 | इकसठ खिरकीं बासठ द्वार। हलो खंभ जब गिरे तुसार।। | (चलनी या छन्नी) |
52 | उड़गुड़ सुड़गुड़ हुड़गुड़ नइयाँ। संपट सीमट रोंगट6 नइयाँ।। | (गोंच) |
53 | उल्टे खोवा दही जमाओ। | (कपास की कली (बोंड़ी)) |
54 | उठतीं हौं कै गरौ मसकिये। अथवा उठत हौ कै गरौ मसकिये। | (लुटिया) (लोटा) |
55 | उठौ जिजी, हमें परन दो। | (रोटी, तवे से उतरती हुई) |
56 | ऊमर कैसे झूमर लागे मिर्च कैसे पान। न बता पाओ तो खेंच लेयँ कान।। | (मकोय) |
57 | ऊपर सें है गोल गोल नैंचें है चपटी। बता मोरी कानियाँ नई तोरी मताई नकटी। | (पानी की बूँद) |
58 | ऊँट कैसी बैठक बैठे चीते जैसी खाल। …………….. जीकें पूँछ न बाल॥ | (मेंढक) |
59 | ऊँचे ठिकरा झुलनी हलै। | (पूँछ) |
60 | ऊपर पेड़ो नैंचे भुंट्टिया। | (पूँछ) |
61 | एक लरका के दो पोंद। | (चना) |
62 | एक डुकरिया पुलपुलो हगे, जीको हगो मीठो लगे। | (आम) |
63 | एक पकरना दो लटकन्ना। | (तराजू) |
64 | एक रूख की चार डगारें7। | (चौपर की बिसात) |
65 | एक रूख में हँसिअई हँसिया। | (इमली का वृक्ष) |
66 | एक रूख में खसखसदाने। | (सफेद घुँघची) |
67 | एक जानवर ऐसा, जीकी दुम पै पैसा। | (मोर) |
68 | एक चिरैया दुर्गारानी बोले बाराबानी। भरे कुआ में चौपर खेले और मँगावे पानी।। | (मथानी) |
69 | एक रूख सर्रउआ, जापे बैठे चील न कउवा। | (धुआँ) |
70 | एक पाग दो भैय्या बाँधे। | (बैलों की रस्सी) |
71 | एक रूख अगड़वत्ता जीकें जड़ न पत्ता। | (अमर बेल) |
72 | एक रूख अगड़धत्ता, फूल के ऊपर पत्ता। | (धुआँ) |
73 | एक ईंट के दो दरवाजे। | (नाक) |
74 | एक हते ते लुच्च, जिनकों करिए दुच्च। | (जुआँ) |
75 | एक लोग के दो लुगाईं, पूँछ पकर के दै उठाई। | (पनैयाँ) |
76 | एक लईं दो फेंक दई। | (दातुन) |
77 | एक डूँड में सात कोल8। | (मनुष्य) |
78 | एक बिचत्तर ऐसी आई, रातन आई बिटिया जाई। भोर भुन्सरा होन न पायो, बा बिटिया ने बेटा जायो।। | (महुआ) |
79 | एक मढ़ी में दो दुआरे, हनुमन्त कों जे भारे। | (नाक) |
80 | एक मोरो मामा सौ सात मोरी माई। मामा रे मामा तेने सबरी न्योराईं 9।। | (कुआँ) |
81 | एक लरका के हजारन बाप। | (छन्नी) |
82 | एक नार नरबर सें आई पाँच पूत दस नाती ल्याई। जाके पंती कहिये बीस, औ कन्या हैं चालीस।। | (पंसेरी) |
83 | एक जनावर ऐसा सो सबई जनावर खाय। पानी देखें मर रहे, कौन जनावर आय।। | (आग) |
84 | एक रूख में पथरई पथरा। | (कैथा का वृक्ष) |
85 | एक रूख में लठिअई लठियाँ। | (सहजन, या मुनगा) |
86 | एक फूल गुलाब का न माली के बाग का। | (मुर्ग की कलगी) |
87 | एक अचंभा हम सुना, कुआ में लागी आग। पानी पानी जल गया मछली खेले फाग।। | (दीपक) |
88 | एक जनावर ऐसा जाकें हुड्डर गुड्डर कछू नइयाँ। | (गोंच) |
89 | एक कारीगर ऐसो आयो खंभा ऊपर बंगला छायो। भोर भयें दै बोलो बंब, नैचें बंगला ऊपर खंभ।। | (मथानी) |
90 | एक रूख ऐसो बरयानो10, तरें सेत ऊपर हरयानो। | (मूली) |
91 | एक चिरइया अजुद्या बासी, जीके अँड़ा सौ पचासी। | (भुट्टा) |
92 | एक गाँव आग लगी एक गाँव कुआँ। एक गाँव बाँस गड़ो एक गाँव धुआँ।। | (हुक्का) |
93 | एक चिरइया आटक नाटक नदी किनारे चरती थी। चोंच सुनहरी थी उसकी पर दुम से पानी पीती थी।। | (दीपक) |
94 | एक नार नौ जाँगा बीदी11 जग में सती कहावे। बोलत नइयाँ गर्ब गबीली भूलों को समझावे।। | (तराजू) |
95 | एक भुजा धारन किये बैठी गद्दी डार। सब जग बस में कर लियो नहीं आँग पर खाल। | (चक्की) |
96 | एक नार बहुरंगी, घर से निकरे नंगी। बानारी कौ जौ सिंगार सिर पै नथुनी मों पे वार। | (तलवार) |
97 | एक नार बड़ी चतुरंग जो खेले मरदों के संग। पानी मरन पवन आधार इस तिरिया कौ कौन हवाल। | (पतंग) |
98 | एक नकरिया अँगुरा चार, दोऊ बगल सें डारी फार। | (कंघी) |
99 | एक खबइया सौ परसइया। | (रहँट) |
100 | एक रूख में बत्तीस बिलगइयाँ12। बाकी छावन पर दरियाँ।। | (चौक) |
101 | एक रूख सर्रौआ, लरकन की किलर-बिलर पत्तन को दुखिया। | (करील) |
102 | एक चिरइया रंग बिरंगी बैठी बन की डार। कासी जू कौ जोरौ13 पैरें काजर की झनकार।। | (घुँघचू) |
103 | एक गाँव में तीन पुरा, एक में पानी भरो, एक में सूखा परो, एक में आग लगी। | (हुक्का) |
104 | ऐंचक बेंचक काँ जा रये, टेंट कड़ौ तोय का करने। | (मुँह में केंकड़ा दाबे सर्प) |
105 | एक छोड़ पन्द्रह करे पतिव्रता कहलाय। अपने पति के साथ में पिता भवन को जाय।। | ? |
106 | एक घर के दो दुआरे, दोऊ तरफन हैं प्यारे। | (नाक) |
107 | एक चीज पानी के ऊपर जा में हो रिपट परे। | (काई) |
108 | एक मढ़ी में दो दुआरे। | (नाक) |
109 | एक पेड़ है ऐसा कौन कहे है कैसा। शिव को चढ़े इसी का पत्ता, फल का बनता सुनो मुरब्बा। | (बेल) |
110 | एक राँड दक्खिन से आई। सोरा बिटियाँ तीन जमाई।। | (चौपर) |
111 | एक रूख में क्योलई क्योला। | (जामुन का वृक्ष) |
112 | एक सखी तो आय जाय, एक सखी बैठी मों बाँयँ। एक सखी मिल पकरी गोड़ी, तिरिया नाचे मर्द पै ठाड़ी। | (कलम-दावात से लिखना) |
113 | एक बटुवा रैन14 भरो। | (अँगीठा नामक वृक्ष का फल) |
114 | एक कुआँ, बत्तीस किनारे। जी में झूलें नौ बनजारे।। | (तरसा) |
115 | एक चिरइया चौड़ेदार, जी के बच्चा नौ हजार। | (मछली पकड़ने का जाल) |
116 | एक रूख झलरा, तीके तरें बिलरा, ऊके तरें सुनकू, तीके तरै हप्पू। | (सिर, नेत्र, नाक और मुँह) |
117 | ओंधे बेला15 दही जमायो, जौ बेला दक्खिन सें आयो। | (कपास) |
118 | एक ईंट की बाखरी16, नौं सौ गाय समाय। दुहनी केरी सैंट17 न फूटे मक्खन हाट बिकाय।। | (शहद) |
119 | कानी कनबूतरी लम्पो की डोर। देबी परमेसुरी दूसरी फोर। | ? |
120 | कबका कहें लगे नही, दद्दा कहें लग जाये। | (होंठ) |
121 | कक्का कहैं लगे नहीं, बिन कहें लग जाये। | (होंठ) |
122 | क्यारी उपजे हाट बिकाय। गूदो छोड़ कें बकला खाय।। | (छुहारा) |
123 | कऊँ नाक पै मैं चढ़ पाऊँ। कान पकर के खूब पढ़ाऊँ।। | (चश्मा) |
124 | कारी पौनी सेत तगा, तैं न बता पाये तोरो बाप पदा। | (गाय या बकरी का थन) |
125 | कारी गइया कोदों खाय, दै पादे तौ जी से जाय। | (बंदूक) |
126 | कटोरा के भीतर कटोरा बेटा बाप से भी गोरा। | (नारियल) |
127 | कारे पहार पै रकत कौ बूँदा। | (घुँघची) |
128 | कँदा पै धरो टका, सो न तें उठा पाय न तोरो कका। | (बिच्छू) |
129 | कच्ची टूटें पकी बिकायँ, गाँव की गोरीं लै लै जाय। | (गगरी) |
130 | कारो करकचुवा कारो कर खाय। पत्थर से मूड़ घिसे कोंची में घुस जाय।। | (छुरा) |
131 | कितेक सन सूतरी, कितेक मूड़ बार। कितेक मोड़ी मर गई कितेक होनहार।। | (रहँट) |
132 | कारे पहार पै धोती सूखे। | (नाड़े ?) |
133 | काकी कें कान, कका कें कानई नइयाँ। काकी चतुर सुजान कका कछु जानतई नइयाँ। | (तवा, कड़ाही) |
134 | कारी थैलिया मैदा भरी। | (उरदा) |
135 | कुंभ रास गानों बनो, पैरत है बिजनार18। पैरे सें उतरे नहीं लाखन करौ उपाय। | (गुदना) |
136 | कारे कौवा लाल पखउवा। राज करे दरबार करे। बादसाह सों न्याव करे। | (कागज, कलम) |
137 | कारौ, कारौ, एक आँख फूटी। | (कौवा) |
138 | काजर की कजरौटी ऊधौ कौ सिंगार। हरी डार पै मुंइयाँ बेठी, कोऊ नई जाननहार। | (जामुन) |
139 | कारी बिलगायँ, चींथरा लटकायँ। | (बकरी के थन में बंधी डोरी (चिरी) |
140 | कारो खेत कवर की मांटी, जीमें ठाँड़े हिन्ना हाती। राजा रोवे सिया पुकारे, ऐसो है कोऊ आन बिड़ारे। | (सूरज) |
141 | कल्लू कल्लू कल्लरिया, जी में लाल दमोदरिया। लंबी लंबी लपकेगा तब रस का बूँदा टपकेगा। | (ढाक का फूल) |
142 | काठ की कठेलिया अर लोहे की चकील। बैठ मेरे ब्याहता चल घर की पछीत। | (चरखा) |
143 | कुल के बड़े डील के हीन, कानन दुबीचे बजावें बीन। | (मच्छर) |
144 | काली थी कलियारी थी, कारे बन में रहती थी। लाल पानी पीती थी, मर्दों के झोंके लेती थी।। | (बन्दूक) |
145 | काली थी किलकारी थी, कारे बन में रहती थी। काला पानी पीती थी, सरकार का घर ना धरती थी, | (रेलगाड़ी) |
146 | काला मुख बन्दर नहिं होय, दो जीभें नागिन नहिं होय। पाँच पती द्रोपदी नहिं होय, जो जाने सो पंडित होय। | (कलम) |
47 | काला है पर कौवा नहीं, बेढब है पर हौवा नहीं। करे नाक से अपना काम, बतलाओ तुम उसका नाम। | (हाथी) |
148 | कासी में चले बिरतिया19, बुनी चौपरा खाट। बुनतन तौ बुन लई, झोले कौन लिवाय। | (गुदना) |
149 | कारो खेत रतन कौ पारौ20, ऐंचें डोर तौ चमके तारौ। | (सिर का एक आभूषण) |
150 | कल्लू और गोल, दप्पू और हाय हाय। | (काली मिर्च) |
151 | किसी में तीन किसी में दो किसी में एक अकेला है, पूँछ पकरकर घर में लाये इनका नाम पहेला है। | (हरा चना, बूँट) |
152 | खाने की न पीने की हात में के लेने की। | (तलवार) |
153 | खाई है चींखी नइयाँ। | (बाई) |
154 | खेती के सामान में अक्षर बाके तीन। आदि कौ अक्षर छाँड के वियाय राय को तीन। | (हँसिया) |
155 | गड़ा में पड़ा लौटे। | (आटे की पींड़) |
156 | गोल गोल सात कोल। | (सिर) |
157 | गली में डरो अंगरा जर मरो सुंदरा। | (बिच्छू) |
158 | गइया ठाँड़ी मेंड़ पै, बच्छा ठाँड़ो खेत में, गइया ने हींस करी बच्छा गओ पेट में। | (हँड़िया, चमचा) |
159 | गोऊँ काट घर में धर लये, मुतकें भर दओ खेत। देखन गये तो खूब जमो है, कुरा न फूटो एक। | (दही) |
160 | गये ते ससरारे खाव तो भर पेट, देरी चड़न लगे कै फट गओ पेट। | (गुझिया) |
161 | गट्टा के गट्टा बो उगले, घरर घरर चल्ला चलरे। | (रँहटा) |
162 | गोला मों पथरा कों चाटे, हात चढ़ी दसबीस कों काटे। | (नहन्नी) |
163 | गेल चलत इक देखी बात, मर्द जोड़े नारी के हात। | (चिलम) |
164 | गगन नहीं तारा प्रकट बिन बादर झिर लाग। हे सखा मैं तुमसे पूछूँ सब दुनिया के पास ! | (ताला) |
165 | घाम में सर्राय हवा में मुरझाय, छाया में बिल्कुल मर जाय। | (पसीना) |
166 | घर बारा पाँसे चौबीस गिनकें लगीं कुरइयाँ तीस, आओ पंडित करो विचार, बारा घर को एकई द्वार। | (वर्ष) |
167 | घर है द्वार नइयाँ बैठे हैं बोलत नइयाँ। | (अंडा) |
168 | चार खूँट को चोंतरा नब्बे गज की डोर राजा गये सिकार को ऊपर नाचे मोर। | (पतंग) |
169 | चलते जोगी चलते जायँ नौ मन फूल बिखरते जायँ। | (बकरी की लेंड़ी) |
170 | चूले पाछें खरगइया फूली। | (चूल्हे में सिकती रोटी) |
171 | चार मुंडी चँगेर भरी गोद। | (चारपाई) |
172 | चार पड़ा अँदुआ21, चारऊ देसे जायँ। बादसाह से ज्बाब करें, पानी देख डरायँ।। | (कागज) |
173 | चार हते चलते फिरते चार हते बरताई, दो हते सूके साके इनको अर्थ बताई। | (गाय) |
174 | चढ़ाये में चढ़ गई भाँवर में उतर गई। | (?) |
175 | चार चरन, आधी भुजा, नहीं उदर नहिं सीस। मेरी गा बता दो पाँड़े तब उठइयो भींत। | रेजा (चोली की तरह का वस्त्र) |
176 | चौ गुड़ पौंचे ती गुड़ नौं दो गुड़ काँ गओ रे। नौ से कान, बहत्तर मूँछें, बाकों खाबे गओ रे। | (?) |
177 | चार खूँट खुस छ्यावने तीन सींग रंग चार। सोभा है दरबार की पंडित करौ विचार। | (चौपर की बिसात, गोटें, और पाँसे) |
178 | चार पावने चार लुचईं, एक एक के मो में दो-दो दईं। | (चारपाई) |
179 | चार खूँट कौ चौपाला, जी में बैठे आठ लाला। | (आठ सींकचे लगी खिड़की) |
180 | बिन्नू ने काट खाओ, मिन्नू ने बचा लओ। | (मिर्च) |
181 | चार चिरइयाँ ऐंड़क बेड़ी चारऊ कूटें धान। एक को मूसर टूट परो सो भजलो सीताराम।। | (चारपाई) |
182 | चलो मिठुवा हारे चलें, ऊँहूँ ददा कँइयाँ ले लो। | (तलवार) |
183 | चंदा कैसी चाँदनी, सूरज कैसी जोत, तोरें होय तौ दे सखी, मोरें आये संत। | (आग) |
184 | चार चक्र चलें, दो सूप चलें, इक नाग चले, पाछे दो ग्वाल चलें। | (हाथी) |
185 | चंदा सूरज की भई लड़ाई, गोकलिया बचावन आई। | (कुंजी-ताला) |
186 | चार अलन-चलन, एक राम लटकन, दो सूकी लकरी दो फटर फटर, दो जुगर जुगर। | (भैंस) |
187 | चंग सी डोर, पतंग सो भइया। फूल सी बैन, मगद सी मइया। | (कुम्हड़ा) |
188 | चार खूँट को चौतरा, जी पे लाल बिकायँ। चतुर चतुर सौदा करे, मूरख फिर फिर जायँ।। | (चौपर) |
189 | चार हात चौंतरा, पच्चीस हात डोर, खेंच रचे बालगोला, चेंक रई मोर। | (रहँट) |
190 | चार पाँव की झाबक झब्बो, जीपे बैठीं गप्पो। आईं रुप्पो लै गई गप्पो, रंगई झाबक झब्बो। | (भैंस, मेंढक, सर्प) |
191 | चिकनी कुइया चिकनो घाट। कद परे रमचरना भाट।। | (लुचई) |
192 | चार बा अंगुल की लकड़ी चारई बाके खुट्ट, बता न पाओ तो यहाँ से उट्ठ।। | (कंघी) |
193 | चाँद सी चौंड़ी फूल सी हरई। पिया परदेस चले, नीम सी करई।। | (टिकुली) |
194 | चाकर ऐसो चाहिए खाबे कों ना खाय। सेवा में हाजिर रहे भोजन में भग जाय।। | (जूता) |
195 | चरी बिलइया चेंरी पूँछ। तें न बता पाय मताई से पूँछ।। | (झाडू) |
196 | चार खूँट की चाँदनी, चारउ देसन जाय। राजा जोरे हात कों, पानी देख डराय।। | (पुस्तक) |
197 | चार चौंतरा, आठ बजार, चौंसठ घोड़ा, एक सवार। | (चवन्नी, दुवन्नी, पैसा और रुपया (पुराने हिसाब से) |
198 | छिकरकना22 दो पूँछरी, दस गोड़े मुख चार। एक मुख के जीवन नहीं, पंडित करो विचार। | (गाय, बछड़ा, दुहने वाला और बर्तन) |
199 | छेरी कड़ गई, छिड़ोरी23 दो लई। | (मधुमक्खी का छत्ता) |
200 | छै गोड़े पतरी करयाई24, बनकें आ गये बड़े सिपाई। | (चींटा) |
201 | छोटो सो लरका तिलक धारी। पैठ करै मंगलवारी।। | (रुपया) |
202 | छोटो सो लरका लयें गुटान। दे टोके तौ हले ज्वान।। | (बिच्छू) |
203 | जान कानियाँ मोरी, मुंडी मताई तोरी।। | (सुपारी) |
204 | जब तौ हती मैं भोरी भारी तब सही ती मार। अब तौ पैरी लाल घँघरिया, अब ना सैहों मार।। | (गगरी) |
205 | जल थम्मन अरु कर गहन, रैन प्यारी होय। सो हमकों पठवाइयो, देस तुमारे होय। | (हाथ में लेने की लकड़ी) |
206 | जोतो न बखरो करो न बिरवाई25। तनक सो कस26 करलो, जनम की हरयाई। | (गुदना) |
207 | जल पीवे और जल भरो रहता जल के पास। हे सखी मैं तुमसे पूछूँ फल के ऊपर बाल।। | (नारियल) |
208 | जोत-जेल कें चना बै दये चौका27 करदई बारी। बिना मूँड कौ उजरा पिंड़28 गओ कर दई होरी बारी। | (तुषार) |
209 | जोगी एक मड़ी29 में सोवे मद पीवे अरु मस्त न होवे। जब ही बाला कान में लागे, जोगी छोड़ मड़ी को भागे। | (बन्दूक की गोली) |
210 | टेरे सें बोले नहीं, मारे सें चिल्लाय | (ढोल) |
211 | टीले पै टौनइयाँ नाचे। | (छुरा) |
212 | टाठी30 भर राई, सबरे गाँव बगराई। | (तारे) |
213 | ठाँड़े हिन्ना किट किट करें, अन्न खायँ ना पानी पियें। | (किवाड़) |
214 | ठाड़ें जाय, न बैठें जाय, गोड़े उठा कें सबरो जाय। | (पाजामा) |
215 | ठाड़े तो ठाँड़े बैठे तो ठाँड़े। | (सींग) |
216 | डाँग में खटाक बोली पूँछ मोरे हाथ में। | (कुल्हाड़ी) |
217 | डरी ती मैं परी ती टोला के मैदान, काऊ जवान ने आन जगायो छै मों बारा कान। | (पटेला) |
218 | डार न पात, सघन घन छाया। | (कुकुरमुत्ता) |
219 | डोर चली गई बैला रै गओ। | (कुम्हड़ा) |
220 | तनक सी हरदी, घर भर मल दी। | (प्रकाश) |
221 | तनक सो लरका लयें गुटान, दे मारे तो हले ज्वान। | (बिच्छू) |
222 | तनक सो लरका थूल मथूल। करयन धोती, माथें फूल। | (मुर्गा) |
223 | तनक सी चिमनी चिंग करे, लाख टका को बंज करे। | (दीपक) |
224 | तनक सो सोनो सब घर नोनो। | (दीपक) |
225 | तनक सो लरका हालई31 भओ, फेंट बाँध के ठाँडौ भओ। | (घास का पूरा) |
226 | तनक सो लरका बम्मन को, तिलक लगाये चंदन को। | (उर्द) |
227 | तालो में गोपालो लोटें। | (कड़ाही में सिकती पूरी) |
228 | तक तक तकली, मूरा कैसी बकली, खात की न पियत की हात में के लेत की। | (दर्पण) |
229 | तनक सी मनक सी, फोरें फारें ईगुर सी। | (मसूर की दाल) |
230 | तनक सी मनक सी, हरदी कैसी गाँठ। चटाक चूमा लै गई तौ हाय मोरे राम।। | (बर्र) |
231 | तनक सी धनियाँ32 पैरें खुसनियाँ, ऊँहूँ दद्दा लै ले कइयाँ। | (तलवार) |
232 | तनक सो दबका दबकत जाय, पचास नौ अंडा छोड़त जाय। | (सुई) |
233 | तनक सी हड्डी किले सें बड्डी। | (तारा) |
234 | तीन चरन धरनी धरे, एक धरे आकास। बिन बादर बिन बीजरी, बरसे मूसरधार।। | (मूत्र त्याग करता हुआ कुत्ता) |
235 | तीन बैल हरवारे चार, सब दिन जोतें बाँह पनार। जोत-जात कें घरै चले, बैल मार घर में धरे।। | (चौपर) |
236 | तरें बस्ती, ऊपर मैदान। | (ऊमर का वृक्ष) |
237 | तनक सी कुइया सींकन छाई। ठुमुक ठुमुक जल भर लै आई।। | (नेत्र) |
238 | तनक सी डबिया में रामबाई बोले। | (जीभ) |
239 | तें भगत जाय, मैं लेत जाऊँ। | (सुई धागा) |
240 | तनक सी चकई, बड़ौ सो पेट। राजा सुन पैय तो फोर खाय पेट।। | (रोटी) |
241 | तरें दौरिया ऊपर दौरिया33, बीच में बैठी लाल गौरिया। | (मसूर) |
242 | तन गोरो मुख साँवरो बसे समुन्दर तीर। पैलें रन में बो लड़े एक काम दो वीर।। | (कलम) |
243 | तनक सी मटकुल तनक सौ पेट, राजा है बेईमान फोर खाओ पेट। | (इलायची) |
244 | तोरी मताई को करया टेड़ो। | (खुरपी) |
245 | तनक सी अकना लाल पैरें ककना। | (?) |
246 | तनक तनक सबकों दई। | (नजर) |
247 | तनक सी बाल गुट्टो काँ गई तीं ? राजा के देस में, राजा है बेईमान फोर खाओ पेट। | (सुपारी) |
248 | तनक सो लरका चाँउर न खाय, ठुमक ठुमक दरबारे जाय। | (रुपया) |
249 | तर मेंड़ी, ऊपर खरयान, तापर खेती करै किसान। | (कुम्हार का चाक) |
250 | तनक सी चिरइया गुटेटा सो पेट। चढ़ बैठो रामजी फटा डारो पेट।। | (सुपारी काटना) |
251 | तनक सी मोंड़ी लंबे बार। मोरे ससुर को कतरा34 डार।। | (गेहूँ की बाल) |
252 | तूस कौ लाँगा, अमउया35 की तोई36। बरै तोरो लाँगा मैं रात भर रोई।। | (मिर्च) |
253 | दल्ला37 उखर गओ, खूँटा गड़ो रओ। | (महुआ) |
254 | दब्बी आय दब्बी जाय, दब्बी बिचारी कछू ना खाय। | (कुँड़री) |
255 | दिया भर राई सबरे गाँव बिर्राई38। | (तारे) |
256 | देखी एक अनोखी नारी, गुन उसमें इक सबसे भारी। पढ़ी नहीं यह अचरज लागे, मरना जीना तुरन्त बतावे। | (नाड़ी) |
257 | दिन की लाज रात की व्यारी, दै राखो भौजाई हमारी। | (?) |
258 | दुम्मी दादा मुठी भर भुस खायँ, भरे ताल में कूद परें तौ कंडी से उतरायँ। | (गूझा) |
259 | दो नसें और हाड़ई हाड़। | (रहँटा) |
260 | देख सखी देख सखी मैं बड़ी भोरी, हात छुअत की लग गई चोरी। इतै होय न हाट बिकाय, ताके लानें पिया रिसायँ। | (ओला) |
261 | दिन कें आड़ो, रात में ठाड़ो | (ढोर बाँधने की रस्सी, गिरमा) |
262 | नैचें बगला, ऊपर सुआ, एक खेत में ऐसा हुआ। | (मूली) |
263 | नायँ39 गई माँय40 गई, चौखरों लटकायँ गई। | (ताला) |
264 | नायँ गई मायँ गई, पइसा भर जाँगा में बैठ गई। | (लाठी) |
265 | नायँ गई मायँ गई, लाल बीजा गाड़ गई। | (आग) |
266 | नदी किनारें बुक्को चरें, नदी सूके बुक्को मरें। | (दीपक) |
267 | नैचैं मूँछ, ऊपर ठठेरी। | (गाय की पूँछ) |
268 | न्योर कें उठाओ न्योर के धर दओ। | (गिरमा, रस्सा) |
269 | नन्नों41 गई मन्नों42 गई कुजाने दारी कन्नों43 गई। | (सड़क) |
270 | नदी किनारें हर चलै ठक्का-ठौरी होय, धौरी44 कक्का की गइया सो रो रो दइया होय। | (बिच्छू) |
271 | नौ गज पेड़ सवा गज डाँड़ी, बिना कुम्हार के बन गई हाँड़ी। बिना जमायें जम गओ दई, मर्द की देह जनी45 भई। | (नारियल) |
272 | नदी किनारे केर46 कौ पेड़ो, तोरी मताई कौ करया टेड़ो। | (खुरपी) |
273 | नारी एक पुरुष हैं ढेर, सबसे मिले एक ही बेर। दिना चार को अतर होय, लिपड़ै पुरुष छुड़ावे सोय। | (कंघी और बाल) |
274 | नायँ टटिया मायँ टटिया, बीच में बैठी गोरी बिटिया। | (जीभ) |
275 | नायँ से आई नटनी, मायँ से आओ नटना, नटनी कौ गिरौ पंइसा, दोऊअन की भई खट्ट पट्ट। | (किवाड़) |
276 | नाजुक नारी पिया संग सोवे अंग मिलाय। जब जागे तब जानकें अपने पति को खाय।। | (तेल-बत्ती) |
277 | ना, ना, ना, मोय, मोय छुयें दुख हुइये तोय। जो कजात47 तें मोय छुये, ऊपर बारो लै जैय तोय। | (मछली पकड़ने की बंसी) |
278 | नदी किनारें गुलबटरा, आँख दिखावे तिवाई48 डुकरा। | (मेंढक) |
279 | नर बत्तीस एक है नारी, जग में सबने देखी भालीं। मन में करिये सोच विचार, पुरुष मरे, पर जीवे नार। | (दाँत और जीभ) |
280 | नदी किनारे पोलो बाँस, गिरदोना49 कौ मीठो माँस। | (केला) |
281 | नन्नी जनी, बड़ी जनी, उर मजली जनी, मजली जनी की खोली तनीं, हलन लगी वे तीनऊ जनी। | (दही बिलौना) |
282 | नैंचें बार, ऊपर बार, बीच में बैठे मोती लाल। | (नेत्र) |
283 | नारी के पेट में नारी बसे, पकर हिलायें खिलखिल हँसे। पेट फूट जब धरती पै गिरै, मोय खरी प्यारी लगै। | (नारियल की गिरी) |
284 | पाँच पंडवा घने खजूर, तुम लौटो हम जैहें दूर। | (कौर, रोटी का) |
285 | पैलें हते हम मर्द फटे सें नार कहाये, कर गंगा स्नान जटा सब दूर बहाये। कर पत्थर से चोट अगन के ताव सहाये, कर मक्खन से मेल मर्द के मर्द कहाये। | (बरा या बड़ा उर्द के बने) |
286 | पैले डारो कारो कारो फिर डारो सटकारो, लाल मुड़ी कौ दै टिकाओ, होओ न्यारो न्यारो। | (बंदूक) |
287 | पिया बजारे जात हौ लइयो चीजें चार, सुवा, परेवा, किलकिला, बगला कैसी नार। | (पान, सुपारी, कत्था, चूना) |
288 | पेड़ नाम, पत्र नाम, फल नाम और, मोरी गा बतैयो पाँडे तब उठइयो कौर। | (महुआ) |
289 | पाँच पंच भीतरे, पाँच पंच बाहरे, पत्थर दै भीतरे और कठवा बाहरे। | (कुम्हार द्वारा घट निर्माण) |
290 | परी मतारी ठाँड़ो बाप, आठऊ भैय्या करें मिलाप। | (रहँट) |
291 | पंद्रा आये पावनें, बरा पकाओ एक, पंद्रा कों दओ थोरो-थोरो एक कों दओ एक। | (चन्द्रमा) |
292 | पाँच जनी बाँधी गठरिया, देरी लों सरकाई, एक उचक्कू ऐसी आईं, चूले नों पौंचाई। | (रोटी खाना) |
293 | पाँचऊ पोता पोतत ते, बत्तीसऊ रोंथा रोंथत ते, जब बैल मुसीका नाथत ते, तब खुरदे बाबा जीमत ते। | (रोटी खाना)
|
294 | पैलें लाल, पाछे हरा, फिर से लाल जो होय, पिया पठौनी भेजियो देस तुम्हारे होय। | (अनार) |
295 | पानी में सब दिन रहे, जाके हाड़ न माँस, काम करै तरवार कौ, फिर पानी में बास। | (घट निर्माण के समय काम आने वाली कुम्हार की बोरी) |
296 | पाँच गये, नौ उठा ल्याये, तापै धरके कुच्च उठाये। | (जुआँ) |
297 | पीरी पोखर पीरौ अंडा, भेद बता नई दैहों डंडा। | (पकौड़ीदार कढ़ी) |
298 | पैलें बांटी दच्च दच्च, फिर वाँटी सरकउआँ। | (चटनी) |
1. गोद 2. किनारे-किनारे 3. अटारी के नीचे का कोठा, मढ़ा 4. नन्हा लड़का 5. ताक, आला 6. रोयाँ 7. डगारें, डालें 8. छेद 9. झुकाई 10. बेहद फूला-फला 11. फँसी 12. टेढ़ें 13 लहँगा 14. बेसन 15 फूल का कटोरा 160 घर 17. दूध की धार 18. बृजनारी 19. नाई 20. मिट्टी का छोटा सकोरा 21. अंधे 22. छे कान का 23. बकरी बाँधने की जगह 24. कमर 25 बेरी की बाड़ लगाना 26. कष्ट 27. चारों ओर 28. घुस 29. मठ 30. थाली 31. अभी, तुरन्त 32. स्त्री के लिए सम्बोधन 33 टोकरी 34. कटवा 35. हरा रंग 36. गोट 37. छेद 38. बिखराई 39. इधर 40. उधर 41. यहाँ तक 42. वहाँ तक 43. कहाँ तक 44. दौड़ी 45. स्त्री 46. केला 47. कदाचित् 48. तिवारी 46. गिरगिट