यह किला दतिया जिले के सैहुड़ा क़स्बे में सिंध नदी के मध्य की लंबी ऊँची पहाड़ी पर निर्मित है। सैहुड़ा किलासिंध नदी के दायें तट से क़स्बे तक लगभग एक किलो मीटर लंबा तथा लगभग 3-4 किलोमीटर के घेरे में है। किले के एक तरफ सिंध नदी सुरक्षा बनाती है और तीन ओर से नदी के जल प्रवाह से प्राकृतिक रूप में कटाव से गहरी खाई निर्मित है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ के सनकुआँ प्रपात पर ब्रह्मा जी के पुत्र सनकादि ने तपस्या की थी। प्रपात में कुछ प्राचीन गुफाएं भी निर्मित हैं।
सनकुआँ प्रपात के दक्षिण में सिंध नदी के तट पर ही रतनगढ़ माता के मंदिर के समीप सघन जंगलों से घिरे किन्नर पहाड़ पर भी एक प्राचीन किला है, जिसे किन्नरगढ़ कहा जाता है। बुन्देलखंड स्टेट्स गजैटियर (दतिया 1907)में उल्लेख है कि महमूद गजनवी,चंद राय का पीछा करता हुआ इस किले तक आया था और किले पर अधिकार करने की कोशिश की परन्तु असफल होकर लौट गया था। वर्तमान में यह विशाल किला अत्यधिक निर्जन स्थान में पूरी तरह खंडहर अवस्था में है, आस-पास कई किलोमीटर तक कोई भी बस्ती नहीं है, सिर्फ़ शीतला माता का मंदिर किले के सामने बचा है। वर्तमान सैहुड़ा का किला दतिया के राजा रामचंद्र के भाई राजा पृथ्वीसिंह ने सत्रहवीं सदी में बनवाया था। यह किला बुंदेलखण्ड के सुरक्षित एवं सुदृढ़ किले में से एक है। सिंध नदी की प्राकृतिक सुरक्षा के पश्चात् किला की सुरक्षा के लिए चार परकोटों का निर्माण किया गया। इस किले में लगभग 52 बुर्ज हैं। किले के मुख्य दरवाज़े से इसके भीतरी भाग में पहुँचते है, जहाँ से एक दूसरे दरवाजा़ पार करने के बाद आनंद महल प्राँगण में पहुँचते हैं, जो दो मंजिला है। किले में एक पुरानी बावड़ी भी है, जिसके पास बारूदखाना था। किले के अंदर अनेक सुन्दर इमारतें हैं, जो काफी अच्छी अवस्था में हैं।