ये वे वाद्य यन्त्र होते हैं जिनमें तार अपनी झंकार से स्वरों की उत्पत्ति करते हुये गीतों को लय प्रदान करते हैं। इन वाद्य यन्त्रों में एक दण्ड होता है जो कि किसी गोल बड़े पात्र से जुड़ा रहता है और इस पर तार खिचें रहते हैं। बुन्देली लोक जीवन में एक अथवा चार तार वाले तत् वाद्य यन्त्रों का ही प्रयोग अधिकाशंतः प्रचलन में है। इन वाद्य यन्त्रों को तन्त्री या तार वाद्य भी कहते हैं। यहाँ मुख्यतः तीन प्रकार के वाद्य यन्त्र प्रचलन में हैं।
तम्बूरा
ब्रह्मा जी के मानस पुत्र नारद जी सदैव अपने हाथों में वीणा लिये रहते हैं। जिसमें चार तार होते हैं। इसे नारद वीणा भी कहते हैं। तम्बूरे में आमतौर पर एक तार ही होता है। परन्तु कहीं-कहीं पर चार तार वाले तम्बूरे का भी प्रयोग होता देखा जा सकता है। तम्बूरे में तो तूमा होता है वह इकतारे की अपेक्षाकृत बड़ा होता है। तुम्बुर नाम के ऋषि द्वारा तूमा की सहायता से इसे निर्मित करके सर्वप्रथम इसका प्रयोग किया गया था। अतः इस कारण इसे तम्बूरा कहते हैं।
चौपालों में जब ग्राम के लोग एकत्रित होकर भजन करते हैं आम तौर पर उसी समय इस तम्बूरे का प्रयोग होता है। कबीर दास जी के भजन या पदों के साथ-साथ अन्य भजनों की गायिकी में इसका प्रयोग किया जाता है। इस विश्व को माया का जंजाल मानते हुये इससे पार जाने के लिये श्रीहरि के नाम का स्मरण ही तम्बूरा के झनझनाते तारों से निकलता है-
झन झन झनझना रहे हैं तम्बूरा के तार,
मुरलीवाले के चरनन में राधा जू को प्यार।
तू ही श्रीहरि सच्चा केवल, झूठौं सब संसार,
छौड़ के आया मोह बन्धन को भजले तू करतार।
भजत भजत तू हो जायेगा वैतरणी के पार।
एकतारा
इसमें केवल एक तार होता है तथा इसे भी एक अंगुलि से बजाया जाता है। यहाँ पर आमतौर से भिक्षा मॉंगने वाले लोग भजन गाते हुये इसके तार को बजाते जाते हैं जिससे स्वर व लय का सामन्जस्य बना रहता है। देखिये साधु का इकतारा क्या बोल रहा है?
साधु का बोल रहा इकतारा
यह जग है माया का फेरा, तू ही सच्चा प्यारा,
राम नाम के लेत देत से, तू वैतरणी पाराा
रेकड़ी
इसकी बनावट तो इकतारे जैसी ही होता है परन्तु इसका आकार अपेक्षा कृत काफी छोटा होता है इसे हाथ की अंगुलि से नहीं बजाया जाता है। बल्कि इसको बजाने के लिये बांस की एक धनुषाकृति ली जाती है जिसमें डोरी के स्थान पर घोड़े बाल बँधा होता है। एक हाथ में रेकड़ी को पकड़ कर दूसरे हाथ से धनुषाकृति के बाल वाले भाग को तार पर रगड़ पर स्वरों की उत्पत्ति की जाती है। इसे रूं रूं अथवा किंगारी भी कहते हैं। वैसे तो यह ढ़िमरयाऊ नृत्य का प्रमुख वाद्य यन्त्र भी है लेकिन कथा गायिकी में भी इसका प्रयोग खूब किया जाता है। सती सावित्री की कथा का तो यहाँ के लोग भरपूर आनन्द लेते हैं।
आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।
बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।
डॉ. उषा मिश्र
सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
नाम – डा. उषा मिश्रा पिता – डा.आर.सी अवस्थी पति – स्व. अशोक मिश्रा वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट, कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने, माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश मो.न. – 9827368244 ई मेल – usha.mishra.1953@gmail.com व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन। शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी. शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।
सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित। भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।