
बूढ़ी चन्देरी
July 25, 2024
आमनचार
July 25, 2024स्थिति
मध्य रेल्वे के ललितपुर स्टेशन से, चुन्देरी होकर 58 कि.मी., बीना जंक्शन से मुंगावली होकर 58 कि.मी. एवं अशोकनगर स्टेशन से भी 58 कि.मी. की समान दूरियों पर यह अतिशय क्षेत्र विद्यमान है।
विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं में अवस्थित थुवौन जी उर्वशी और लीलट सरिताओं से परिवेष्ठित, प्राकृतिक सुषमामयी पुरातात्विक तीर्थ है। दरअसल थूवौन या थोवन शब्द प्राचीन नाम तपोवन का वर्तमान में विकृत रूप है।
इतिहास
थूवौन जी की मूर्तियों का निर्माण काल अन्य निकटतम तीर्थों की भाँति अनुमानतः बारहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के मध्य का रहा है। यहाँ प्रतिष्ठापक के रूप में सेठ पाणाशाह का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
पुरातत्व
इस तीर्थ पर पच्चीस जिनालय एवं एक मानस्तम्भ है। मंदिरों में 3 फुट की अवगाहना से लेकर 30 फुट की अवगाहनायुक्त पद्मासन एवं खड्गासन जिन बिम्ब वन्दनीय हैं। इसके अतिरिक्त भी चारों ओर अगणित मूर्तियाँ बिखरी पड़ी हैं। धर्मशाला और संग्रहालय भी यहाँ निर्मित किया गया है।
थूवौन जी में अधिकांश मूर्तियाँ तीर्थंकर पार्श्वनाथ की हैं जो 15 फीट से लेकर 30 फुट उत्तुंग और भव्याकर्षक हैं।
भगवान शांतिनाथ और एक चर्तुमुखी प्रतिमा चन्द्रप्रभु की अति मनोरम है। मंदिर संख्या 4 के सामने की मढ़िया में एक विशाल यक्ष मानभद्र की मूर्ति है जो जिन बिम्ब को अपने मस्तक पर धारण किये हुए भावविभोर होकर नृत्य में लीन है। इसी प्रकार एक हनुमान जी की भव्य प्रतिमा जो दो मुनिवरों को अपने कंधों पर विराजमान किये है, विशेष पौराणिक महत्व की है। विभिन्न देवियाँ अपने माथे पर चतुर्भुज जिन प्रतिमायें रखे हुए यथा मानभद्र की नृत्यरत मूर्तियाँ और सम्वत् 1200 की निर्मित मण्डप में संग्रहित विभिन्न मूर्तियाँ भी ऐतिहासिक महत्व की हैं।