विश्वकोश/इनसाइक्लोपीडिया आशय
इनसाइक्लोपीडिया (Encyclopaedia) ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ज्ञान के भंडार का एकत्रीकरण। विश्वकोश से अभिप्राय ऐसे ग्रंथ से है जिसमें सभी विषयों से संबंधित उपयोगी सूचना या किसी विशिष्ट विषय से संबंधित सूचनाओं का संकलन किया जाता है। विश्वकोश की निर्माण प्रक्रिया में अनेक विद्वानों, लेखकों व सम्पादकों का सामूहिक योगदान निहित रहता है। सभी श्रेणी के पाठकों की सूचना व आवश्यकता को ध्यान में रखकर इसकी रचना की जाती है जो बहुत ही श्रम साध्य कार्य है।
विश्वकोश की परिभाषा
विश्वकोश वह कृति है जो संपूर्ण संग्रहित ज्ञान भंडार को संगठित रूप एवं क्रमबद्ध अवस्था में प्रस्तुत करता है जिससे सभी श्रेणी के पाठक अपनी रूचि के अनुरूप विषय से संबंधित अद्यतन ज्ञान प्राप्त करते हैं।
ए एल ए ग्लोसरी ऑफ लाइब्रेरी टर्म्स के अनुसार – विश्वकोश वह साहित्य है जिसमें ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में संबंधित विषयों पर वर्णानुक्रम या किसी अन्य क्रम में सूचनात्मक लेखों का संग्रह व्यवस्थित रहता है या किसी विशिष्ट विषय से संबंधित उपयोगी सूचनाओं का संग्रह होता है।
मानविकी परिभाषाकोश के अनुसार – विश्वकोश वह कृति है जो विज्ञान की सभी शाखाओं के विषय में सूचना दे। अर्थात जिस ग्रन्थ में किसी एक विषय की संपूर्ण सूचना वर्णानुक्रम में दी हुई रहती है उसे विश्वकोश कहते हैं।
लुइस शोर्स के अनुसार – विश्वकोश संदर्भ स्रोतों की प्रमुख कृति है यह मानव जाति के लिए महत्वपूर्ण ज्ञान का सार रूप ही नहीं बल्कि मौलिक संदर्भ स्रोतों में अनुसृत रचना की परिकल्पना का सर्वस्व है।
भारत और विश्वकोश परम्परा
वैदिक वांग्मय में विश्वकोश की परम्परा अति प्राचीन है। विश्वकोश या ज्ञानकोश की भावना के प्रथम प्रवर्तक नारद ही थे जो वेद, पुराण, कल्प, शास्त्र,विद्या आदि ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में पारंगत थे । भारत में विश्वकोश की परिकल्पना का प्रथम प्रयास महर्षि कश्यप का निघंटु एवं यास्कराचार्य का निरुक्त माना जाता है। आदि शंकराचार्य छान्दोग्य उपनिषद के भाष्य में नारद और सनत कुमार के प्रसंग में नारद द्वारा उल्लिखित अनेक विद्याओं में से एक देव विद्या की व्याख्या करते हुए निरुक्त की संज्ञा दी गयी है। अतः वैदिक वांग्मय में विश्वकोश की अवधारणा अति प्राचीन है परंतु आधुनिक विश्वकोशों के निर्माण का युग 19 वीं सदी से माना जाता है जिसमें विश्व के अनेक देशों में सामान्य एवं विषयगत विश्वकोशों का प्रकाशन तीव्र गति से होना प्रारंभ हुआ जिसमें अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैंड तथा जर्मनी आदि देशों में सक्रिय योगदान देकर अनेक विश्वकोशों का निर्माण किया।
भारत में भी आधुनिक पद्धति पर आधारित विश्वकोश निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। सन् 1823 में वाचस्पत्यम् तथा सन् 1828 में शब्दकल्पद्रुम नामक दो कोश ग्रंथ शब्दकोश और विश्वकोश दोनों तत्वों को साथ लेकर रुपायित हुए। साहित्य, व्याकरण, ज्योतिष, तंत्र, दर्शन ,संगीत, काव्य शास्त्र, इतिहास, चिकित्सा आदि अनेक विषयों का सूचनात्मक लेखों का संग्रह अंग्रेजी में इनसाइक्लोपीडिया 1829 से 1833 विश्वकोश के स्वरूप के अनुरूप भारतीय भाषाओं में साहित्य तथा साहित्येतर विश्वकोश धीरे-धीरे निर्मित होना प्रारंभ हुआ ।भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् सभी भारतीय भाषाओं में आधुनिक ज्ञान विज्ञान से संबंधित विभिन्न विश्वकोशों की रचना हुई ।
विश्वकोश के प्रकार
संग्रह सूचनाओं के आधार पर विश्वकोश को दो भागों में विभाजित किया जाता है।
- सामान्य विश्वकोश
- विशिष्ट या विषयगत विश्वकोश
विश्वकोश निर्माण के प्रमुख आधार
विश्वकोश में जानकारियों को लिपिबद्ध करने के लिए कुछ आधार निर्धारित किए गए हैं।इन नियमों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए बुंदेलखंड विश्वकोश तैयार करना होगा।
- प्रोपीडिया – जिसमें आउटलाइन आफ नालेज का वर्णन, पहले सूची बनायें।
- माइक्रोपीडिया – सूची के अनुसार विषय का संक्षिप्त विवरण
- मैक्रोपीडिया -सूची के अनुसार जिसमें विषय का विस्तृत वर्णन , इसमें जितनी जानकारी सम्भव हो सके।
वर्तमान मध्यप्रदेश के दतिया जिले में झाँसी आगरा मुख्य रेल लाइन पर, सोनगिरि नाम से ही रेलवे स्टेशन है। स्टेशन से लगभग 4-5 किलोमीटर की दूरी पर यह जैन तीर्थ अवस्थित है। सोनगिरि में प्राकृतिक रमणीयता से परिपूर्ण पहाड़ पर प्राचीन सतत्तर (77) शिखर युक्त जैन मंदिर हैं, तलहटी में आबादी भी है जिसे ‘सनावल’ गाँव के नाम से जानते हैं। पर्वत के अतिरिक्त तलहटी में अठारह जैन मंदिर और पन्द्रह धर्मशालायें भी तीर्थ यात्रियों की सुविधा हेतु निर्मित हैं। आधुनिक निर्माण जारी है।
विश्वकोश मूल्यांकन का आधार
मूल्यांकन सामान्य एवं विशिष्ट विश्व कोशो का निम्नलिखित जांच बिंदुओं के आधार पर किया जाता है
- प्रमाणिकता
- विषय क्षेत्र
- प्रणाम
- व्यवस्थापन
- भौतिक स्वरूप
- संशोधन
- सीमाएं
- विशिष्ट विशेषताएं
विश्वकोश की विशेषताएं
विश्वकोश ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित सूचना सामग्रियों का प्रामाणिक एवं अद्यतन शोध है। इसका क्षेत्र राष्ट्र विशेष तक सीमित न होकर सम्पूर्ण विश्व होता है। इसमें ज्ञान से संबंधित सभी शाखाओं की सूचनाओं को व्यवस्थित तथा सार रूप में संकलित करके पाठकों की श्रेणी एवं विषय से संबंधित विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विश्वकोश द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। विश्वकोश सूचनाएं लंबे-लंबे लेखों के रूप में कुछ में छोटे-छोटे लेखों द्वारा सूचना संकलित रहती है। महत्वपूर्ण व्यक्तित्व का जीवन परिचय तथा महत्वपूर्ण आंकड़े प्रस्तुत किए जाते हैं।
विश्वकोश की उपयोगिता
बुन्देलखण्ड क्षेत्र के संबंध में सभी तरह की आवश्यक जानकारी प्रदान करना है। विभिन्न विषय के सामान्य ज्ञान के अतिरिक्त अन्य आवश्यक सूचनाओं जैसे आंकड़ों, वर्ष, नामों की जानकारी विश्वकोश के माध्यम से दर्ज की जायेगी।प्रमुख व्यक्तियों के जीवन चरित्र के विषय में ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। विश्वकोश में जो जानकारी लेखों के संग्रह के रुप में दी जायेगी उनके प्रमाण हेतु लेख के अंत में संदर्भ ग्रंथ या पुस्तक सूची दी जायेगी जो पाठकों के लिए मार्ग निर्देशन का कार्य करेगी । विश्वकोश में वांछित सूचनाओं के साथ संदर्भ प्रश्नों के उत्तर भी आसानी से प्राप्त किए जा सकते हैं।
विश्वकोश निर्माण एवं समस्याएं
समय के साथ-साथ विश्वकोश पुराने हो जाते हैं इनको अद्यतन बनाए रखने के लिए नए नए संस्करण निकालने पड़ते हैं जिसमें अधिक संपादन की आवश्यकता होती है विश्वकोश को अद्यतन रखने के लिए वार्षिकी भी प्रकाशित करनी पड़ती है ।
सन्दर्भ ग्रन्थ
संस्कृत एवं प्राच्यविद्या के प्रमुख सन्दर्भ एवं सूचना स्रोत-लेखक दिनेश कुमार तिवारी