रामसाह
July 16, 2024रानी गणेश कुंवरि
July 16, 2024मधुकर शाह
जीवन परिचय
ओरछा नरेश महाराज मधुकर शाह बड़े पराक्रमी और कुशल राजनीतिज्ञ थे। अपनी आन-बान-शान बनाये रखते। संस्कृति की रक्षा करते और भगवान श्रीकृष्ण के परम अनुयाई थे। मधुकर शाह धर्मनिष्ठ थे और अपने माथे पर तिलक लगाना कभी नहीं भूलते थे। बुन्देलखण्ड के बलशाली राजा माने जाते। इसी से अकबर के राज्य विस्तार की चाह में रोड़े बने थे।
एक बार अकबर का बसंत दरबार लगा था। इस में विभिन्न राजा दरबार में गुहार करने आते। इस बार अकबर ने मधुकर शाह को नीचा दिखाने के लिये राजाज्ञा निकाली कि कोई नरेश तिलक छाप लगाके दरबार में न जाये किन्तु मधुकर शाह ने इसे अपनी संस्कृति की उपेक्षा समझा और उस दिन बड़ा सा तिलक लगाकर दरबार में पहुंचे। कविन्द्र केशवदास ने इसका बखान इस प्रकार किया है –
“राजाधिराज मधुशाह नृप यह विचार उद्दित भयब।
हिन्दबान धर्म रक्षक समुझि पास अकबर के गयब।
दिल्लीपति दरबार जाय मधुशाह सुहायब।
निमि तारन के माहि इन्दु शोभित छवि छायब।
देखि अकबर साह उच्च आभातिन केरी।
बोले वचन बिचारि कहो कारन यहि केरी।
तब कहत भयब बुन्देल मणि मम सुदेश कंटक अवनि ।”
इसमें केशव ने सुदेश से राष्ट्र प्रेम और ‘कंटक आवनि’ कहकर स्वाभिमान दर्शाया। इस अतुलित साहस को देख अकबर ने उनकी प्रशंसा की और उनके तिलक को ‘मधुकरशाही तिलक’ घोषित किया। इस प्रकार महाराज मधुकरशाह ने धर्म-संस्कृति की रक्षा की।
महाराज मधुकर शाह के शासनकाल में धर्म-संस्कृति की रक्षा के साथ ही बुन्देली भाषा को प्रोत्साहन मिला। कवियों को प्रश्रय और आदर मिला। उन्ही के समय में ‘मधुकर’ के नाम से पत्र का शुभारम्भ हुआ जो धर्म-संस्कृति और काव्य को बढ़ाने में सहायक रहा। इस प्रकार उस काल के साहित्य में मधुकरशाह का बड़ा योगदान रहा।
महाराजा मधुकर शाह परमकृष्ण भक्त थे। किन्तु उनकी रानी श्री कुंवर गणेश रामभक्त थी। जनश्रुति है कि उनमें इस बात पर विवाद होता रहता था। रानी की अपने राम में अटूट श्रद्धा थी। महाराज मधुकर शाह ने तब रानी को अपने भगवान को ओरछा लाने को कहा। रानी अपने श्रीराम को लेने ओरछा से अयोध्या गई और उन्हें मनाने साधना में रत हुई। कहीं यह कहा गया कि जब राम मन्दिर अयोध्या को बाबर ने ध्वस्त किया तो भगवान राम ने रानी कुंवरि गणेश को स्वप्न में उन्हें सरयू से निकाल ओरछा ले जाने को कहा। रानी ने महाराज मधुकर शाह को अपना स्वप्न बताया। महाराज ने उन्हें अपने इष्ट को लाने को अयोध्या भेजा और ओरछा में चतुर्भुज मन्दिर का निर्माण प्रारम्भ कर दिया।
रानी ने अयोध्या में जाकर भगवान की आराधना की। एक दिन जब वह सरयू नदी में स्नान कर रही थी तो भगवान श्रीराम, सीता, लक्ष्मण के विग्रह उन्हें मिले। रानी भगवान को ओरछा पुख्य नक्षत्र में पैदल चलकर लाई।
सौरह सौ इकतीस में, रानी कुँवरि गनेश।
पुक्खन-पुक्खन ल्याती, ओरछे अवध नरेस।
(यह मन्दिर की कर्मग्रह की चौखट पर अंकित है।)
ओरछा में आकर उन्होंने अपने भवन में भगवान को विराजमान कर दिया क्योंकि चतुर्भुज मन्दिर का निर्माण चल रहा था। तभी से श्रीराम की इच्छा से भवन ही मन्दिर बना और ‘राम’ ही ओरछा के राजा माने गये। इसीलिये यहॉं श्रीराम को ‘राजाराम’ कहते है। महाराजा मधुकर शाह ने अपनी राजधानी ओरछा से हटाकर टीकमगढ़ बनाई। इस प्रकार मधुकर शाह महाराज ने प्रभु श्रीराम की महत्ता को स्वीकार कर धर्म-संस्कृति की प्रान-प्रतिष्ठा की। इस घटना का वर्णन नामादास जी कृत ‘भक्तमाल’ में सं. १६३१ वि. मधुकरशाह एवं रानी गणेश कुंवरि को भक्ति और श्रीराम को अयोध्या लाने का किया है।
“प्रणत हित करत सदा रघुराई।
सम्बत् सोलह सौ इकतीस में अवध पुरी को जाई
श्री सरजू असनान करत में आन मिले रघुराई
मधुकर शाह नरेश भक्त मय वत्सल माल में गाई
तिन की महारानी गणेश दे राम ओरछा ल्याई।
प्राणहित करत सदा रघुराई।”