निवाज
July 17, 2024बक्सी हंस राज
July 17, 2024पृथ्वीसिंह रसनिधि
जन्म – सं. १७४० वि. दतिया (सेहुड़ा) म.प्र.
कविता काल – सं. १७६० वि.
जीवन परिचय
ग्रन्थ – रतन हजारा, स्फुट दोहा, विष्णुपद और कीर्तन, हिंडोरा, रसनिधि के दोहे, रसनिधि सागर, रतन सागर, रामनिधि की कविता, बारह मासी गीत संग्रह
रीतिकालीन काव्य के उत्कर्ष और सतसई परम्परा को बढ़ाने वाले कवि श्रेष्ठ पृथ्वीसिंह रसनिधि ने तत्कालीन श्रृंगारी काव्य की रचना बड़ी सफलता पूर्वक की। आपने दोहा-काव्य में रसप्लावित कर प्रेम, नीति, श्रृंगार का समावेश बड़े सुन्दर ढंग से किया है। आपका काव्य कौशल देखेन योग्य हे।
“अद्भुत गति यहि प्रेम की, बैनन कही न जाय।
दरस भूख लागै दृगन, भूखहि देत भगाय।।
चतुर चितेरे तुम सबी, लिखत न हिय ठहराय।
कलम छुवत कर आंगुरी, कटी कटाछन जाय।
मन गयेद छवि मद छसे तोरि जंजीर भगात।
हिय के झीने तार सो सहजै ही बंध जात।।”