बालाबेहट
July 26, 2024मदनपुर
July 26, 2024स्थिति
उत्तर प्रदेश में ही ललितपुर जिले की महरौनी तहसील में सोजना ग्राम से लगभग 4-5 किलो मीटर दूर स्थित ग्राम नावर्ड को ही अतिशय दिगम्बर जैन क्षेत्र नवागढ़ कहते हैं। मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिलान्तर्गत ककरवाहा ग्राम से भी यह निकट पड़ता है। वस्तुतः मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश की मंधि पर नवागढ़ दि. जैन क्षेत्र विद्यमान है।
इतिहास
बुन्देलखण्ड के इस अंचल की पृष्ठ भूमि लगभग एक समान ही रही है। विभाजित बुंदेला राजाओं ने टुकड़े टुकड़े राज्य किया और फिर अंग्रेजी सल्तनत में पद दलित हुये। अतः कला के नाम पर नवमी से बारहवीं सदी में जो निर्माण हुआ वही धरोहर अवशिष्ट है।
पुरातत्व
सदियों से जंगलों के उदर में लुप्त यहाँ के मंदिर और कलाकृतियाँ आजादी के पश्चात भी अज्ञानता के गर्त में पड़े रहे। 19वीं सदी के पाँचवें दशक के पश्चात ही लोगों की नजर यहाँ के भोंहरे (भूगृह) पर पड़ी। पहले यहाँ एक बड़ा टीला और उस पर एक विशाल इमली का वृक्ष सघन रूप से आच्छादित था। भूगृह में तीर्थंकर अरहनाथ की विशेष मूर्ति के साथ कुछ अन्य जिनदेवों की प्रतिमायें भी थीं। पर जैनतर गाँव वासी इस टीले पर एक मूर्ति स्थापित कर ‘दूल्हाजू’ नाम से पूजन करने लगे। जैनियों ने इस भृगृह की प्रतिमायें अन्य मंदिरों में सुरक्षित करनी चाही तो गाँव वासियों ने विरोध कर कहा कि जो भी पूजन अर्चन करना हो यहीं करें। फलतः जैन परिवारों ने यहीं मंदिर स्थापित कर लिया और इसे विकसित किया। खनन से यहाँ अनेक तीर्थकर मूर्तियाँ और रचनात्मक शिलाखण्ड उपलब्ध हुये। 1960 में इस अतिशय क्षेत्र पर मेला प्रारंभ किया गया।
वर्तमान में 80x 125 फुट के एक चबूतरे के नीचे स्थित भूगृह एक सुन्दर जिनालय है जिसमें सम्वत् 1202 की नीले पाषाण की तीर्थकर अरहनाथ-प्रतिमा दर्शनीय है। पार्श्व में शासन देवियाँ तथा इन्द्रादि हैं। उपलब्ध अवशेषों में तीर्थकर शान्तिनाथ एवं अरहनाथ के खण्ड प्रतीक भी हैं।
नवागढ़ के कलावशेषों में भव्य तोरण खण्ड, युगादि देव महत्वपूर्ण हैं। नव मंदिरों की स्थापना के साथ ही यहाँ प्राप्त कलावशेषों को सुरक्षित रखने हेतु एक संग्रहालय बनाया गया है। दर्शनार्थियों को ठहरने के लिये क्षेत्र में धर्मशालायें भी निर्मित की गई हैं। बाद में एक तिमंजिले भवन पर एक चैत्यालय का निर्माण भी किया गया है।
पुरातत्ववेत्ताओं के दृष्टिकोण से यहाँ उपलब्ध अद्भुत सुन्दर तोरण किसी देवी पर मूल नायक की मूर्ति के ऊपर लगे वृहद तोरण का उपशेष है। इस पर दो मस्त गजराज महाप्रभु को पुष्पार्पित कर रहे हैं, सुन्दर अलंकृत देव- देवांगनायें अर्चना को जाते हुये चित्रांकित हैं। गजों के पश्चात दौनों और पाँच- पाँच अरिहंतों की प्रतिमायें हैं। ऊपर चक्र, आमलक और कलष शोभायमान हैं । यह रचना यहाँ के मंदिर की नगर शैली वास्तु की पुष्टि करती है।
इसी तरह सात फुट छः इंच ऊँची खड़गासन युगादि देव का केश विन्यास और अलंकरण उत्कृष्ट स्तर का है। साढ़े तीन फुट ऊंची पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा का आसन, उसके शासन प्रतीक नाग की पूँछ और कुण्डली से ही बनना मनोहारी है।
नवागढ़ के पास स्थित सोजना और ऊमरी ग्राम में भी अनेक मूर्तियाँ और कला खण्ड इस क्षेत्र के, कभी सम्पन्न जैन तीर्थ होने के संकेत देते हैं। सोजना की बाबड़ी के मानस्तम्भ पर लगा शिलालेख ‘सं. 1202 गोलापूर्वान्वये’ इसकी प्राचीनता और ऊमरी के पार्श्वनाथ की भव्य प्रतिमा यहाँ की पुरातन सम्पदा की कहानी कहते हैं।
इस क्षेत्र में उत्खनन और पुरातात्विक ‘सर्वे’ कर, खोज बहुत आवश्यक है तभी सारे रहस्य स्पष्ट हो सकेंगे।