इनमें कालप्रियनाथ का पुराणकालीन सूर्यमन्दिर कालपी (उत्तरप्रदेशीय बुन्देलखण्ड) में था। कन्नौज राज्य के अंतर्गत होने के आधार पर चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसी को कन्नौज का सूर्यमन्दिर कहा है। यह विशाल मन्दिर कई कोस की परिधि में यमुना तट पर एक ऊँचे टीले पर बना था। मन्दिर का जो भाग यमुना को जोड़ता था। उसे ‘सूर्यघाट’ कहते थे। अब इस स्थान को स्थानीय लाग ‘सुअरघटा’ कहते हैं। मन्दिर और प्रतिमायें ध् वस्त हो गई हैं। इससे यह कहना कठिन है कि मूलतः यहाँ ‘चक्र’ प्रतिष्ठित था, अथवा प्रतिमा। किन्तु कालान्तर में इसका जीर्णोद्धार हुआ। तब प्रतिमा स्थापित हुई होगी। हर्ष के शासनकाल में इसका वैभव चरमोत्कर्ष पर था। इस मन्दिर के सूर्यकुण्ड (जिसे अब ‘लोध् कुण्ड कहते हैं’) पर कालप्रियनाथ यात्रा’ नामक विशाल मेला लगता था। इस मेले की परंपरा अभी भी विद्यमान है। जिला गजेटियर के अनुसार यह जालौन जिले के सबसे बड़े मेले के रुप में सूरज जात्रा तालाब मेला नाम से अंकित है। गजेटियर में इसका स्थान गुलौली बताया गया है। गुलौली मन्दिर के निकट एक ग्राम है।
इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह मन्दिर गुलौली ग्राम तक विस्तृत रहा होगा। कालप्रियनाथ यात्रा में भवभूति के उत्तररामचरितम् नाटक का प्रथम मंचन होना, उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है। राष्ट्रकूटनरेश इन्द्र तृतीय ने कन्नौज पर आक्रमण करते समय यात्रा पथ में, अपनी वाहिनियों सहित कालप्रियनाथ प्रांगण में विश्राम किया था। राष्ट्रकूट नरेश गोविन्दचतुर्थ के खम्भात में मिले एक अभिलेख के अनुसार उसकी सेना के हाथियों ने अपने दन्त प्रहारों से इस मन्दिर को चौरस (नष्ट) कर दिया था।” बाद में कालपी के अंतिम हिन्दू राजा श्रीचंद्र उर्फ लहरिया राजा की सात रानियों ने इसी सूर्यमन्दिर के प्रांगण में जौहर किया जिनकी स्मृति में सात मठियां बनी होने से, इस स्थान को ‘सतमठिया’ भी कहते हैं। मन्दिर पूरी तरह नष्ट हो गया है। किन्तु प्राचीर की नींव तथा अनेक उत्कीर्ण अलंकृत शिलाखण्ड एवं सूर्य मेले की जन-आस्था यहॉं विशाल मन्दिर होने के परिचायक हैं। पर्यटन विभाग ने कालपी से इस मन्दिरस्थल को पक्की सड़क से जोड़ने के लिये एक करोड़ बयासी लाख रुपया स्वीकृत किया है।
आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।
बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।
डॉ. उषा मिश्र
सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
नाम – डा. उषा मिश्रा पिता – डा.आर.सी अवस्थी पति – स्व. अशोक मिश्रा वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट, कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने, माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश मो.न. – 9827368244 ई मेल – usha.mishra.1953@gmail.com व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन। शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी. शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।
सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित। भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।