बरूआ-सागर,झाँसी से लगभग 20 किलोमीटर दूर राष्‍ट्रीय राजमार्ग 175 के किनारे पर स्थित है। झाँसी मानिकपुर रेल लाइन का बरूआ-सागर एक प्रमुख स्‍टेशन है। बरूआ-सागर को बुन्‍देलखण्‍ड का नैनीताल कहा जाता है। बरूआ-सागर नगर अपने प्राचीन जराय का मठ, भव्‍य किला, विशाल झील, स्‍वर्गाश्रम के मंदिर, खूबसूरत झरनों एवं प्राकृतिक दृश्‍यों के कारण बुन्‍देलखण्‍ड का प्रमुख पर्यटन स्‍थल है। कहा जाता है कि बरूआ-सागर का नाम बरूआ नदी एवं तत्‍कालीन डाकू सागर के नाम पर पड़ा जनश्रुतियोंके अनुसार सागर डाकू को पकड़ने के लिए झाँसी की रानी लक्ष्‍मीबाई इस किले में कई दिनों तक रहीं।

        बरूआ-सागर का किला बरूआ नदी पर बनाये झील के किनारे पर निर्मित है। ऊँची पहाड़ी पर स्थित होने के कारण इसके गिरि दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता है। यह बाँध एवं किले को ओरछा के बुन्‍देला शासक उद्योत सिंह ने 1702 में बनवाया। किले के अंदर प्रवेश करने के लिए दो विशाल दरवाज़ों से गुजरना पड़ता है। किले के अंदरूनी भाग में पाँच मंजिला महल एवं अनेक कक्ष हैं। महल के ऊपरी भाग में निर्मित प्राँगण तथा आवासीय भवनों से किले के दक्षिण भाग में स्थित विशाल झील एवं पार्श्‍ववर्ती वन्‍य क्षेत्र का मनोहारी दृश्‍य दिखाई पड़ता है। किले के पूर्वी छोर पर एक शिव मंदिर है, जिसका शिखर हाथी की पीठ की तरह गोल है।

        बरूआ-सागर किले एवं झील को उ.प्र. शासन के पर्यटन विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है। आज यह किला, झील एवं यहाँ के प्रमुख झरने बेहतर स्थिति में हैं तथा बुन्‍देलखण्‍ड के प्रमुख पर्यटक स्‍थलों में से एक है।