
बुधवार की कथा
August 1, 2024
शुक्रवार की कथा
August 1, 2024एक बड़ा साहूकार था, उसकी स्त्री बड़ी कंजूस थी। बृहस्पतिवार के दिन एक साधू उसके द्वार पर भिक्षा माँगने आये, उस समय वह घर का आँगन लीप रही थी। उसने कह दिया अभी हाथ खराब हैं कैसे भिक्षा दे। साधू चला गया दूसरे बृहस्पतिवार को फिर वही साधू महराज आये और उन्होंने भिक्षा माँगी, तब वह बालक को गोद में लेकर खिला रही थी उसने कहा अभी फुर्सत नहीं है। जब तीसरे बृहस्पतिवार को साधू आया तो उसने साधू को टाल देना चाहा सो साधू ने कहा कि तुम्हें किसी भी समय फुर्सत नहीं होती तो यदि ऐसा हो जाये कि तुम्हें हमेशा ही फुर्सत रहे तब तो तुम मुझे भिक्षा दिया करोगी।
स्त्री ने कहा महराज यदि ऐसा हो जाये तो आपकी बड़ी कृपा होगी। फिर साधु ने कहा हम जैसा कहेगें वैसा ही करना भगवान ने चाहा तो तुम्हें काफी अवकाश रहेगा। बृहस्पतिवार के दिन तुम अपने घर का सारा कूड़ा करकट झाड़ कर गायों की सार में डाल देना फिर सिर धोकर स्नान कर लेना, अपने घर वालों से कहना कि बृहस्पतिवार के दिन ही अपने बाल बनायें। चौके में रसोई बनाने के बाद चूल्हे के पीछे रख देना तथा शाम को देर से दिया जलाया करना इन सब कामों को लगातार चार बृहस्पतिवार करना फिर तुमको कोई काम करने को नहीं रह जायेगा।
परंतु मुझे दक्षिणा दिया करना स्त्री ने कहा महाराज आपकी बताई तरकीब सफल रही तो हम आपको अवश्य दक्षिणा देगें। बाबा विधि बतलाकर चले गये। उनके कहे अनुसार उसने सब काम वैसे करने शुरू कर दिये। कुछ ही दिनों के बाद उसकी यह हालत हो गई कि पूरा भंडार खाली हो गया, खाने को कुछ भी न रहा। थोड़े दिनों के बाद फिर साधू महराज आये। और उन्होने आवाज लगाई तो साहूकारिन दौड़ी हुई बाहर आई और साधू के चरणों में गिर पड़ी, बोली महराज आपने तो अच्छी विधि बतलाई हमारे यहाँ तो खाने को ही कुछ नहीं रहा तुमको दक्षिणा कहाँ से दें।
साधू ने कहा जब तुम्हारे पास सब कुछ था तब भी तुम कुछ न देती थी अब तुमको फुर्सत है तब भी तुम कुछ नहीं देती हो। अब चाहती क्या हो सो कहो तब स्त्री ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की और कहा कि हमारे पास जैसा पहले था वैसा ही सब कुछ हो जाय आप जैसा कहेगें मैं वैसा ही करूँगीं। तब साधू ने कहा कि अपने घरवालों से कह दें शुक्रवार या बुधवार को बाल बनवाया करें, तुम घर में खूब साफ सफाई रखना, सूर्योदय से पहले सोकर उठना, शाम को ठीक समय पर दिया जलाया करना। रसोई बनाकर चूल्हे के सामने रखना, भूखे को भोजन देना, अतिथियों का स्वागत करना यह कहकर साधू चले गये। थोड़े ही दिनों में उनका घर धन धान्य से फिर परिपूर्ण हो गया।
।। बोलो बृहस्पतिवार देव महराज की जय ।।