
बृहस्पतिवार की कथा
August 1, 2024
शनिवार की कथा
August 1, 2024दो मित्र थे। एक साहूकार था तथा दूसरा कायस्थ था। दोनों का विवाह एक साथ हुआ था। कायस्थ की स्त्री ससुराल में ही थी और साहूकार की पत्नी अपने मायके में थी उसका अभी गौना नहीं हुआ था। दोनों दोस्त दिन भर साथ रहते तथा रात होने पर जब वे अपने घर में जाते तो कायस्थ का लड़का रोज उससे कहता मैं तो घर सोने जा रहा हूँ तुम भी घर जाकर पड़े रहना, एक दिन साहूकार के लड़के ने अपने मित्र से पूछा कि तुम हमसे रोज ऐसा क्यों कहते हो। वह बोला मैं रोज जो कहता हूँ सो ठीक ही है। क्योंकि जब मैं रात को घर लौटता हूँ तो मेरी पत्नी मेरा इन्तजार करती मिलती है।
भोजन की थाली लगाये रहती है, मेरे कमरे की लाइट जलती रहती है। और जब तुम घर पहुँचोगे तो तुम्हारी माँ या बहन या भाभी कोई तुम्हें खाना परोस देगी फिर किसी कोने में पड़ कर तुम सो जाओगे। इससे तुम्हारे और मेरे सोने में बहुत अंतर है। मित्र की यह बात सुनकर उसे बहुत बुरा लगा, घर जाकर वह ससुराल जाने की तैयारी करने लगा। घर वालों ने उसे बहुत समझाया कि अभी गौने का समय नहीं आया है, क्योंकि अभी शुक्र का उदय नहीं हुआ है। शुक्र उदय होने पर जाकर विदा करा लेना, लेकिन उसने मन में पत्नी को लाने की ठान ली, इससे वह ससुराल चला गया।
अचानक दामाद को ससुराल आया देख कर वह लोग भी चकित थे। उन लोगों ने इस प्रकार आने का कारण पूछा तो वह बोला मैं विदा कराने आया हूँ। उन लोगों ने दामाद को बहुत समझाया, इस समय विदा नहीं होती शुक्र डूबा हुआ है आप सगुन से आना तब हम विदा कर देगें लेकिन वह नहीं माना। तब उन लोगों ने विवश होकर लड़की को विदा कर दिया। कुछ दूर चलने पर शुक्र देवता उसके सामने आ गए और बोले पराई स्त्री को चुराकर कहाँ लिए जा रहे हो इस पर उसने कहा कि इसमें चोरी की क्या बात है, यह मेरी पत्नी है और मैं इसे लेकर जा रहा हूँ।
तब शुक्रदेवता ने कहा कि यह तेरी ब्याही नहीं, मेरी ब्याही है। मेरी आज्ञा के बिना तू इसे कैसे ले जा सकता है। इस पर लड़का बहुत नाराज हुआ और दोनों आपस में लड़ने लगे। फिर दोनों इसी तरह लड़ते हुए एक पास के गाँव में गये वहाँ पंडितों को बुलाकर उन दोनों ने अपनी अपनी बात बताई, उनमें एक प्रवीण पंडित थे उन्होंने कहा कि सनातन धर्म के अनुसार हिन्दुओं में एक रिवाज होता है कि देव उठने पर शुक्र का उदय होने के बाद से ही कोई शुभ कार्य होता है। द्विरागमन की विदा तो शुक्र अस्त में नहीं होती, शुक्र देव ने कहा कि इसलिए यह स्त्री अभी मेरी है। वह चुप रह गया सभी पंडितों ने सलाह दी कि इस लड़की को अभी उसके पिता के घर छोड़कर आ जाओ शुक्र उदय होने पर फिर ले आना, विवश होकर वह उसे ससुराल वापस छोड़ आया फिर शुक्र उदय होने पर विधिवत उसकी विदा हुई और दोनों पति पत्नि सुख से रहने लगे।
।। बोलो शुक्र देव की जय ।।