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दो मित्र थे। एक साहूकार था तथा दूसरा कायस्थ था। दोनों का विवाह एक साथ हुआ था। कायस्थ की स्त्री ससुराल में ही थी और साहूकार की पत्नी अपने मायके में थी उसका अभी गौना नहीं हुआ था। दोनों दोस्त दिन भर साथ रहते तथा रात होने पर जब वे अपने घर में जाते तो कायस्थ का लड़का रोज उससे कहता मैं तो घर सोने जा रहा हूँ तुम भी घर जाकर पड़े रहना, एक दिन साहूकार के लड़के ने अपने मित्र से पूछा कि तुम हमसे रोज ऐसा क्यों कहते हो। वह बोला मैं रोज जो कहता हूँ सो ठीक ही है। क्योंकि जब मैं रात को घर लौटता हूँ तो मेरी पत्नी मेरा इन्तजार करती मिलती है।
भोजन की थाली लगाये रहती है, मेरे कमरे की लाइट जलती रहती है। और जब तुम घर पहुँचोगे तो तुम्हारी माँ या बहन या भाभी कोई तुम्हें खाना परोस देगी फिर किसी कोने में पड़ कर तुम सो जाओगे। इससे तुम्हारे और मेरे सोने में बहुत अंतर है। मित्र की यह बात सुनकर उसे बहुत बुरा लगा, घर जाकर वह ससुराल जाने की तैयारी करने लगा। घर वालों ने उसे बहुत समझाया कि अभी गौने का समय नहीं आया है, क्योंकि अभी शुक्र का उदय नहीं हुआ है। शुक्र उदय होने पर जाकर विदा करा लेना, लेकिन उसने मन में पत्नी को लाने की ठान ली, इससे वह ससुराल चला गया।
अचानक दामाद को ससुराल आया देख कर वह लोग भी चकित थे। उन लोगों ने इस प्रकार आने का कारण पूछा तो वह बोला मैं विदा कराने आया हूँ। उन लोगों ने दामाद को बहुत समझाया, इस समय विदा नहीं होती शुक्र डूबा हुआ है आप सगुन से आना तब हम विदा कर देगें लेकिन वह नहीं माना। तब उन लोगों ने विवश होकर लड़की को विदा कर दिया। कुछ दूर चलने पर शुक्र देवता उसके सामने आ गए और बोले पराई स्त्री को चुराकर कहाँ लिए जा रहे हो इस पर उसने कहा कि इसमें चोरी की क्या बात है, यह मेरी पत्नी है और मैं इसे लेकर जा रहा हूँ।
तब शुक्रदेवता ने कहा कि यह तेरी ब्याही नहीं, मेरी ब्याही है। मेरी आज्ञा के बिना तू इसे कैसे ले जा सकता है। इस पर लड़का बहुत नाराज हुआ और दोनों आपस में लड़ने लगे। फिर दोनों इसी तरह लड़ते हुए एक पास के गाँव में गये वहाँ पंडितों को बुलाकर उन दोनों ने अपनी अपनी बात बताई, उनमें एक प्रवीण पंडित थे उन्होंने कहा कि सनातन धर्म के अनुसार हिन्दुओं में एक रिवाज होता है कि देव उठने पर शुक्र का उदय होने के बाद से ही कोई शुभ कार्य होता है। द्विरागमन की विदा तो शुक्र अस्त में नहीं होती, शुक्र देव ने कहा कि इसलिए यह स्त्री अभी मेरी है। वह चुप रह गया सभी पंडितों ने सलाह दी कि इस लड़की को अभी उसके पिता के घर छोड़कर आ जाओ शुक्र उदय होने पर फिर ले आना, विवश होकर वह उसे ससुराल वापस छोड़ आया फिर शुक्र उदय होने पर विधिवत उसकी विदा हुई और दोनों पति पत्नि सुख से रहने लगे।
।। बोलो शुक्र देव की जय ।।
डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी
आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।
बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।
डॉ. उषा मिश्र
सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
नाम – डा. उषा मिश्रा
पिता – डा.आर.सी अवस्थी
पति – स्व. अशोक मिश्रा
वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट,
कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने,
माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश
मो.न. – 9827368244
ई मेल –
usha.mishra.1953@gmail.com
व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी.
शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।
सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित।
भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।