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August 1, 2024श्री कृष्ण की श्रेष्ठ पटरानी का नाम रुक्मणी था। रूक्मणी की बड़ी बहन बड़ी ही कृर्कशा व क्रोधी थी। इसलिए कोई भी उसके साथ विवाह करने के लिए तैयार नहीं था। सब परेशान थे। एक दिन उसके विवाह के लिए श्री कृष्ण भगवान से रूक्मणी ने प्रार्थना की कुछ समय बाद कुलक्ष्मी का विवाह श्री कृष्ण ने एक मुनि से करवा दिया। मुनिवर ज्ञानी, ध्यानी तो थे ही दिन रात भगवान की पूजापाठ में लगे रहते थे। इस कारण कुलक्ष्मी को उनके साथ झगड़ने का मौका नहीं मिलता था परंतु जब मुनिवर पूजा के बाद अपना शंख बजाते, तो उनकी स्त्री दहाड़ मारकर रोने लगती थी, तो उनको बहुत बुरा लगता था। वे बहुत दुखी थे।
एक दिन मुनि महराज ने अपनी स्त्री से पूछा कि तुम्हें क्या अच्छा लगता है। जिस बात में तुम्हारा मन लगे और जो तुम्हें अच्छा लगता हो वैसा हम प्रबंध कर देंगें। उसने कहा जितने काम तुम करते हो धर्म, कर्म, व्रत, होम, दान पुण्य, वह सब मुझे अच्छे नहीं लगते मुझे तो ऐसी जगह अच्छी लगती है जहाँ पर खूब कलह हो, जीवों को सताते हों, कोई धर्म पुण्य न हो तो मुझे तो वहीं शांति मिलती है। तब मुनि ने कहा अच्छा तो तुम मेरे साथ चलो मैं तुम्हें वही लेकर चलता हूँ तब वह मुनि के साथ चल पड़ी मुनि उसे एक घने जंगल में ले गये, वहाँ उन्होंने पीपल का एक बहुत बड़ा वृक्ष देखा। उस वृक्ष के नीचे उसे बिठा कर मुनि वापस लौट आये।
आधी रात होने पर कुलक्ष्मी डर से रोने लगी उसके रोने की आवाज रुक्मणी ने सुनी तथा भगवान से कहा आपने अच्छी जगह मेरी बहन की शादी कराई है वह वनवासी तो उसे घने जंगल में छोड़ गया। कैसे रो रही है, वह तब श्री कृष्ण ने कहा तुम्हारी बहन बहुत कृकशा है उनके पूजा पाठ में बाधा डालती होगी इसलिए वह उसे वहाँ छोड़ गये होंगे। संसार में भले के साथी सब कोई होते हैं बुरे का कोई नहीं होता। तब रुक्मणी ने भगवान से प्रार्थना की कि उसका निर्वाह कैसे हो इसका कोई उपाय करिये। रुक्मणी की बात सुनकर भगवान तुरंत उसके पास गये जहाँ पेड़ के नीचे बैठी वह रो रही थी। भगवान ने उससे पूछा इस समय यहाँ बैठी क्यों रो रही हो। उसने कहाकि मुनिवर मुझे यहाँ बैठा कर चले गए, मेरा जी घबरा रहा है इसलिए रो रही हूँ।
भगवान बोले तुम मुनिवर को परेशान करती होगी, उनके पूजन में बाधा डालती होगी इसलिए उन्होंने तुम्हें त्याग दिया। अगर मेरी यह बात मानो कि अब कभी तुम उनके विरूद्ध नहीं चलोगी, उनकी बात मानेगी तो कुछ उपाय करें। यह सुनकर वह बोली कि मैं आपकी आज्ञा मानूँगी पर क्या करूँ अपने स्वभाव से मजबूर हूँ। श्रीकृष्ण भगवान ने कहा तो ऐसी कलहकारिणी के लिए एकांतवास से अच्छा कोई उपाय नहीं है। इसलिए मेरी आज्ञा से तुम अब सदैव इस वृक्ष पर रहो, इसमें संपूर्ण देवता निवास करते हैं। मेरी अधोगामिनी लक्ष्मी जी भी इसी में निवास करती हैं। शनिवार के दिन जो व्यक्ति सूरज निकलने से पहले पीपल के वृक्ष की पूजा करेगा वह पूजा लक्ष्मी जी के अलावा भी सभी देवताओं को मिलेगी और जो सूरज निकलने के बाद करेगा वह पूजा तुम्हें मिलेगी। पुनः जिसकी पूजा तुम्हें मिलेगी उसके घर में तुम्हारा वास रहेगा।
।।बोलो शनिदेव भगवान की जय।।