शनिवार की कथा
August 1, 2024तुलसी जी की आरती
August 1, 2024एक राजा थे। उनके चार रानियाँ थीं। राजा की चारों ही रानियाँ बहुत सुंदर व गुणवान थीं परन्तु छोटी रानी की सुन्दरता देखते ही बनती थी। इतनी रूपवान होने के अलावा उसके साथ दीवाली की रात एक घटना घटती, जिसका सभी को आश्चर्य था हर दिपावली की रात उसका चेहरा सुगरिया का हो जाता और वह दीवाली के सब दिये चाट जाती थी। दूसरे दिन जब लोग राजा से शिकायत करते तो वह चितिंत हो जाता कि ये सब कौन करता है। जब फिर दिवाली आई तो राजा ने देखा कि रात को सब लोग ने इतने उत्साह से दिये जलाये थे पर आधी रात होते-होते सब कहाँ चले गये, कौन चाट गया।
राजा बड़ा परेशान था। उसने बड़ी रानी से पूछा ऐसा कौन होगा, जो हर बार दिये चाट जाता होगा। रानी ने कहा महाराज बुरा न मानो तो एक बात कहें, आप नाराज तो नहीं होगें, राजा ने कहा कहो क्या बात है क्या कहना है रानी ने कहा गल्ती क्षमा हो महाराज ये काम छोटी रानी का है, हर दीपावली की रात उसका चेहरा सुगरिया का हो जाता है वही सब दिये चाट जाती है। राजा को विश्वास नहीं हुआ ऐसा कैसे हो सकता है। उन्होंने कहा अच्छा ठीक है अबकी दीवाली पर हम खुद देखेंगे। और फिर एक साल बाद दीवाली आई आधी रात को पूजन करके चारों तरफ नगर में दिये जलाये गये, उनकी हवेली भी चारों तरफ से दिये की रोशनी से जगमगा रही थी।
राजा हवेली में एक जगह छिपकर बैठ गये आधी रात के बाद उन्होंने देखा छोटी रानी बिस्तर से उठकर धीरे-धीरे बाहर आ रही है। और उन्होंने देखा रानी का पूरा शरीर ऐसा ही है और उनका चेहरा सुगरिया का हो गया है और वह धीरे-धीरे महल से बाहर आ गई। देखते ही देखते उन्होंने चारों तरफ चक्कर लगाकर नगर के सब दिये चाट लिये और जल्दी से अंदर चली गई। राजा बहुत आश्चर्य चकित था कि वो ऐसा क्यों करती है। रानी जब जल्दी-जल्दी अंदर जा रही थी, तो राजा बीच में ही रानी के सामने आकर खड़े हो गये और रानी से पूछा तुम ऐसा क्यों करती हो रानी ने कुछ नहीं कहा और अंदर चली गई। राजा को चिंता होने लगी, सबेरे उठ कर वो एक ज्ञानी साधू के पास गये और उन्होंने साधू को अपनी सब व्यथा बताई।
साधू ज्ञानी तो थे ही उन्होंने ध्यान के द्वारा उसका कारण मालूम किया और राजा को बताया इसने कार्तिक स्नान करने वालों का अपमान करके घोर पाप किया है। कार्तिक व्रती का अनादर किया है। इससे उन्हीं के श्राप से इसकी यह दशा हुई है अगर यह पूरे कार्तिक के महीने कार्तिक व्रती का सत्संग करे, उसके स्नान के छींटे इसके ऊपर पड़े, उसके साथ मिलकर पूजा करे, उसकी टहल करे, तो सब पाप उतर जावेगें। अगले साल जब कार्तिक का महीना आया तो रानी ने व्रत उपवास किये, कार्तिक स्नान करने वालों का सत्संग किया पूजा पाठ किया, उनकी सेवा की, उनके स्नान के छींटे उसके ऊपर पड़े तो रानी के सब पाप उतर गये उसकी काया अच्छी हो गई। हर साल रानी सब सखियों के साथ मिलजुलकर कार्तिक स्नान करने लगी और 12 वर्ष पूरे होने पर रानी ने धूमधाम से कार्तिक का उद्यापन किया। जब उनका अंतिम समय आया तो भगवान ने उनके लिए विमान भेजा और उसमें बैठकर वे स्वर्गधाम को चली गई। भगवान ने जैसा उनको दिया वैसा सबको देना।
।। बोलो कार्तिक भगवान की जय ।।