राज नारायण बोहरे
September 23, 2024दया दीक्षित
September 23, 2024जन्म – 30 नवंबर 1960 ई.
जन्म स्थान – दमोह (म.प्र.)
जीवन परिचय – प्रेमचन्दोत्तर काल में नारी विमर्श का साहित्य में सूत्रपात हुआ। जिनमें महिला कथाकारों का समाज में अत्यधिक योगदान रहा। शिवानी, कृष्णा सोबती, उषा प्रियंवदा, मन्नू भंडारी, चित्रा मुद्गल, ममता कालिया प्रभृति ने नारी विमर्श को अपनी कथा-सृजन में अवदान दिया। जो आज भी अनवरत चल रहा है। डॉ. अनीता ऐसी ही उपन्यास के नवोन्मेष की कथाकार हैं। जिनके उपन्यासों में उत्तर आधुनिक काल के मनाेवैज्ञानिक, आर्थिक; प्रेमालाप के अक्स प्रतिबिंबित हैं। आपने प्रारम्भिक काव्य लेखन के ‘अन्तर्तम’ काव्य संग्रह के बाद दो मौलिक उपन्यासों का सृजन किया है। जिनका विमर्श प्रस्तुत है।
- अंतराल – आपका प्रथम उपन्यास है। यह एक नायिका प्रधान आख्यान है। जिसमें अनुपमा और दीप की प्रेमोत्तर प्रेम गाथा है। इसकी कथावस्तु आधुनिक पारिवारिक संधानों के बिम्बों में बँधा प्रेम की प्रतिबद्धता न्यूनाधिक है। जो कालेज जीवन में जिस प्रकार पनपता है, उसी प्रकार यह पारिवारिक व परिस्थितिवश टूट-बिखर जाता है। अनुपमा और द्वीप दो ध्रुवों में बँटकर जीवन में आगे बढ़ जाते हैं। पुनर्विवाह की दहलीज से गुजरती अतृप्ति की भावना में तरंगित, विलोपित होती कथा के ताने-बाने बनते और बिगड़ते रहते हैं। अपने मनोज्ञ रूपों में जो कभी एकरूप होते तो नायिका के अतिशय वैचारिक धरातल नायक दीप के मनोवैज्ञानिक विचारों से विपरीत ही रहे। इसमें प्रेम की सार्थकता अनुबन्धों में अनुरागी हो सकती है। डॉ. अनीता जी का यही आधुनिक विमोहित व्यक्तित्व समूह व समाज के लिये अनन्य संदेश है। जो वही ‘अन्तराल’ के गर्भ से निकले हैं।
- मोक्ष – डॉ. अनीता का यह दूसरा औपन्यासिक प्रबोध है। जो ‘अन्तराल’ का ही द्वितीय संस्करण सा लगता है जो विचार-विमर्श के बाद इन सूत्रों में प्रगट होता है। • यह एक नायक प्रधान कथा है। • इसमें प्रेमालाप के अन्तर्द्वन्द्व प्रक्षेपित है। • इसका कथानक नायक ‘पुरी’ और प्रौढ़ा नायिका के अन्तर्सम्बन्धों के आधारों पर गठित हैं। इसमें नायिका ‘नयना’ भी प्रेमालापों के टूटते-जुड़ते गठ-बन्धनों में स्वच्छन्द यौन स्वातन्त्र्य के तटबन्धों, अनमेल विवाह की (परी और प्रेमी योगीनाथ) अस्वीकारिता से विलग ही रहते हैं। इसमें नारी-शक्ति के प्रमाण निर्मित हो कर उभरे हैं। अंत में प्रेम में अंधा योगीनाथ हताश, निराश जीवन के संतापों से विमुक्ति की आशा से उन्मुक्ति अर्थात् ‘मोक्ष’ को वरण करता है।
इस प्रकार डॉ. अनीता ने अन्तराल से मोक्ष तक के मनौवैज्ञानिक तटबन्धों के बाँध तोड़कर आधुनिक नारी जीवन के सुलझे-अनसुलझे विवर्तों का प्रकटीकरण किया है। इसमें वैचारिक विरोधाभास भी उभर सकते हैं।
भाषा व शिल्प – डॉ. अनीता के दोनों उपन्यासों की भाषा प्रांजल हिन्दी है। इसकी शैली आत्मालाप की विन्यस्त शैली है। इन उपन्यासों में आधुनिक वितृष्णा व नारी अधिकारों के प्रति प्रगतिशील कथाओं के विवर्त निर्मित हुये हैं।