
सामाजिक लोक नृत्य
June 24, 2024
जातिगत लोक नृत्य
June 24, 2024कलश नृत्य
जब कोई बच्चा पैदा होता है तब उस बच्चे की बुआ पालना तथा अन्य बधाई का सामान लेकर आती है तब यह नृत्य होता है। इस नृत्य में बुआ पालने को सिर पर रखकर नृत्य करती है। पालने को बुन्देलखण्ड में चंगेल कहते हैं। अतः इस नृत्य को चंगेल नृत्य भी कहते हैं। इस अवसर पर बधाई के गीत तथा सोहरें गाई जाती हैं। कहीं-कहीं पर बुआ की जगह नाऊन अपने सिर पर कलश सजाकर नृत्य करती है। कुछ स्त्रियां तो इतना सुन्दर नृत्य करती हैं कि कलशों की कतार सिर पर ही सजी रहती है और वे उठ बैठ कर अपने सभी अंगों का सुन्दर संचालन करती हैं जिसे देखकर आश्चर्य होता है। इस अवसर पर स्त्रियां गोपिकाओं के साथ कृष्ण जी की लीला से सरोबार गीत गाती हैं। कृष्ण जी गोपिका का रास्ता रोके खड़े हैं और गोपिका कहती है –
छोड़ो न डगर हमारी कन्हैया,
नाई डरत नन्द बाबा से न जसुदा महतारी कन्हैया।
छोड़ो ऑंचल जान देओ मोहन, फट जे सारी जरतारी कन्हैया,
ओड़े फिरत कमरिया कारी, बने फिरत बटवारी कन्हैया
राजा कंस कहूँ सुन पेहे, के है कसूर तुम्हारो कन्हैया।
बधावा नृत्य
इस नृत्य का आधार भी चंगेल नृत्य का ही आधार है घर में जब बच्चा पैदा होता है तब नवजात शिशु की बुआ, बच्चे के लिये कपड़े व अन्य सामान लेकर आती है। यह एक प्रकार से बधाई सूचक है जिसे बधावा कहा जाने लगा है। इस खुशी के अवसर पर भगवान श्री राम व कृष्ण जी के गीत गाये जाते हैं तथा नवजात शिशु को श्री राम व श्री कृष्ण की संज्ञा दी जाती है क्योंकि प्रत्येक मॉं चाहती है कि उसका पुत्र मर्यादित हो कर श्रीराम व श्रीकृष्ण सा आचरण करें। इस बधाई की मंगलबेला पर बुआ अन्य परिवार एवं नाते रिश्तेदारों के साथ आनन्द विभोर होकर नृत्य करती है और गाती है-
हाय राम जन्मे, आनंद नगरीरानी कौशिल्या ने हथिया बक्सै।
एक रहि गयौ ऐरा पति हाथी,
हाय राम जन्में अनन्द भई नगरी।
बधावा नृत्य
विवाह के अवसर पर लड़के या लड़की की मॉं अपने भाई के यहॉं जाती है तथा उसे विवाह में आकर सहयोग करने का निमंत्रण देती है। इसे बुन्देलखण्ड में भात माँगना भी कहा जाता है। फिर विवाह के समय भाई अपनी बहिन, बहनोई, आदि के लिये कपड़े एवं सामग्री लेकर आता है तथा मंडप के नीचे पंच परमेश्वर को साक्षी मानकर उस सामग्री को अर्पित करता है। प्राचीन समय में विवाह के समस्त कार्य घर पर ही सम्पन्न होते थे अतः कार्य का भार अधिक होने के कारण कपड़े मैल से चिकट जाते थे ऐसी अवस्था में जब भाई नये कपड़े लेकर अर्पित करता है तब सब ओर आनन्द का वातावरण सृजित हो जाता है। यह प्रथा चीकट नाम से जानी जाने लगी। इस आनन्द की अभिव्यक्ति, शारीरिक भाव भंगिमाओं तथा हाथ पैरों की हलचल को एक साथ समाहित करते हुये नृत्य में परिणत होकर हमारे सामने आती है। बुन्देलखण्ड में लाला हरदौल से भात मॉंगने व उनके द्वारा चीकट भेंट करने की प्राचीन परम्परा आज भी चली आ रही है। जब बहिन भाई के यहॉं जाकर भात मॉंगती है तब भाई के घर की महिलायें लाला हरदौल की बहिन कुंजावती को आधार मानकर उल्लसित होते हुये गाती हैं-
कपिला तारी रही रक डिढ़कार, काहे सोये हो सूरत बिसार,
जागो जागो विरनंवा हो, भात मॉंगने आई तोरे द्वार।
बालापन के लाढ़ लड़ैते, ना मइया को पाओ दुलार,
होत बहनियां पराये घर की, परदेश आवै सिधार।
पालो पालो बिरनवां हो, भौजी ने गुदिया बिठार,
होनी के पांव लगे कछु ऐसे, बैरी हो गये भइया जुझार।
कासे कहूँ कछू कहत बनै ना, बहिनां पै टूटो पहार।
जोगिया नृत्य
विवाह के समय यह नृत्य केवल वर पक्ष के यहॉं उस समय खेला जाता है जब बारात विदा हो जाती है। बारात में सभी पुरुष चले जाते हैं तथा घर में केवल स्त्रियां ही रह जाती हैं। उस समय स्त्रियां पुरुष का वेश धारण कर पुरुषों की भूमिका का निर्वाह करती है। इसे स्वांग भी कहते हैं इस स्वांग नृत्य में काफी चुटीले व्यंग वाणों का प्रहार भी होता है। जैसे वर के पिता जब कन्या के यहॉं पहुँचते हैं तो वहां पर उनकी क्या स्थिति होती है इसी को कल्पना करके वर पक्ष की स्त्रियां एक दूसरे के साथ चुहल करती हुयीं झूमते हुये गाती हैं –
लक्ष्मीनिधि को दीजिये,
सुख पाबहु मन भाये।
कुल के जोग काज नहीं कीनो,
नाहक दोष लगाये बनाजी।
नागर अली अवध की खबरी,
निजपति नहीं मन भाये।
देउ पठाय जनक जू की नगरी,
पूरन काम सुहाये।
बिंग बचन सुन राजकुँअर सब,
ताकत मृदु मुस्कयात्।
हास विलास महल में माच्यो
कहत कौन परगाये।
देखत बन कहो कित सजनी,
अद्भूत सुख बरसाये।
बनाजी कैसे नर जनक पुर आये,
कौशल्या जी मातुन ल्याये।
पितु करतूत की साचा लाल जी,
खीर खाय सुत जाये।
निज भगनी तपसन सुत जाये,
सुवश तिहूं पर छाये।
बहु उतराई नृत्य
यह नृत्य परिवार में सास, बड़ी भाभी तथा नन्द द्वारा उस समय किया जाता है जब घर में विवाह के पश्चात् लड़का नई बहू को लेकर जाता है। बुन्देलखण्ड में बहू तो घर के लिये साक्षात् लक्ष्मी स्वरूपा होती है। एक ओर जहॉं वह कुलवर्द्धिनी होती है वहीं दूसरी ओर वह घर के संताप हरिणी होती है। इसी कारण उसके सम्मान में यह नृत्य होता है तथा हास परिहास करते हुये
बन्ना छज्जे छज्जे डोले, पर बन्नी नॉई बोले,
बन्ना लिये बतासा डोले, पर बन्नी नॉई बोले,
बन्ना मीठो मीठो बोले, पर बन्नी नॉई बोले।