
प्यावल
July 25, 2024
पनिहार
July 25, 2024स्थिति
मध्यप्रदेश का यह ऐतिहासिक नगर, मध्य रेलवे के झाँसी दिल्ली मुख्य मार्ग पर दिल्ली से 317 किलोमीटर और झाँसी से लगभग 96 कि.मी. दूरी पर स्थित है। यह शहर तीन भागों में विभाजित है (1) मुरार (2) लश्कर और (3) ग्वालियर। ग्वालियर में 4, लश्कर में 20 और मुरार में 2 जैन मंदिर हैं। प्राचीन काल में ग्वालियर को दक्षिण भारत के द्वार के रूप में ऐतिहासिक मान्यता प्राप्त थी।
इसको कछवाहा राजा सूरसेन ने सन् 275 ई. में बसाया था। तत्कालीन नाम कदाचित गोपगिरि अथवा गोप दुर्ग रहा होगा। ग्वाल या ग्वाला से इसका नामकरण जुड़ा हुआ है। यहाँ के इतिहास से यह बात प्रमाणित होती है कि राजवंशों में जैन धर्म के प्रति रुचि और नगर में जैन मतावलम्बियों का बाहुल्य सतत् बना रहा है। सन् 1844 में कनिंघम ने ग्वालियर दुर्ग में महत्वपूर्ण जैन मंदिर का पता लगाया था जिसे मुगलकाल में मस्जिद बनाकर जैन मूर्तियाँ एक कमरे में संग्रहीत कर दी गईं थीं।
प्राचीन काल में हूण वंशी तोरमाण ने भी अपनी राजधानी ग्वालियर के दुर्ग में तीर्थंकर चन्द्रप्रभु की मूर्ति स्थापित की थी।
यहाँ के एक अभिलेख में सं. 1093 में पदम् प्रभु को नमन किया-अंकित है जिससे यहाँ विद्यमान जैन मत की प्राचीनता की पुष्टि होती है।
वि.स्. 1455 में तोमर वंश का ग्वालियर-दुर्ग पर कब्जा हो गया था जिसने 105 वर्ष तक शासन किया। इन्हीं नरेशों में महाराज हूँमरसिंह और कीर्तिसिंह ने दुर्ग में जैन मूर्तियों का निर्माण कराया था।
पुरातत्व
जैन मूर्तियों को दुर्ग के भूगोल की दृष्टि से पाँच भागों में विभक्त किया जा सकता है- (1) उरवासी समूह (2) दक्षिण-पश्चिम समूह (3) दक्षिण- पूर्व समूह (4) उत्तर पश्चिम और (5) उत्तर-पूर्व समूह। इनमें दक्षिण-पूर्व समूह के जिन मंदिरों को अलंकरण और उरवाही समूह के मंदिरों को विशालता के कारण रेखांकित किया जाता है। यहाँ मूर्तियों की कुल संख्या लगभग 1500 हैं। इनमें उरवाही दरवाजे के बाहर खड़गासन में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ की 57 फुट ऊँची मूर्ति सर्वाधिक उत्तुंग और पत्थर की बावड़ी स्थित तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की 34 फुट ऊँची और 30 फुट चौड़ी मूर्ति पद्मासन मुद्रा में सर्वाधिक विशाल है।
उरवाही द्वार के बाँयीं ओर के समूह में खड़गासन मूर्तियाँ 40, पद्मासन 24. स्तम्भों और दीवारों में 840, उपाध्याय और साधु मूर्तियाँ 4, यक्ष और शासन देवियाँ 12, चैत्य-स्तम्भ 4 और दस शिलालेख हैं।
दाँयीं ओर से 47 खड़गासन, 31 पद्मासन, 6 यक्ष देवी, 6 चैत्य स्तम्भ और 3 शिलालेख विद्यमान हैं।
दक्षिण-पूर्व समूह पत्थर की बावड़ी पर है जहाँ की जैन मूर्तियाँ उरवाही समूह से अधिक सुन्दर, कलापूर्ण और सौष्ठवयुक्त हैं। विशालता, भव्यता और सुघड़ता यहाँ देखते ही बनती है। विशाल मूर्तियों के अभिषेक करने के लिये सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। वस्तुतः मूर्तियाँ पहाड़ में ही उकेरी गई हैं। 9 मूर्तियों के ऊपर शिखर बनाकर जिनालय जैसा सुन्दर स्वरूप दिया गया है। पीछे भामण्डल, छत पर चन्दोवा और करों में कमल उकेरे गये हैं। दोनों ओर गज लक्ष्मी का अंकन है। यहाँ दुर्ग-प्राचीर के बाहय भाग में एक ही पत्थर की 20×20 फुट की लम्बी गहरी सतत जल-श्रोत वाली बावड़ी है। बावड़ी के दाहिने ओर सुन्दर छत्र युक्त पार्श्वनाथ मूर्ति और आगे 20 में 30 फुट ऊँची खड़गासन मूर्तियाँ आदिनाथ, पद्मप्रभु, बाहुबलि और नेमिनाथ की हैं इनसे आगे 9 मूर्तियाँ शिखरनुमा मंदिरों में कुन्थनाथ, सुपार्श्वनाथ, आदिनाथ, शांतिनाथ और संभवनाथ की विद्यमान हैं।
एक गुफा में 125 प्रतिमायें दीवारों में उकेरी गई हैं। सन् 1557 में बाबर ने जब ग्वालियर पर कब्जा किया तो अत्यन्त निर्ममता से इन मूर्तियों को खण्डित करा दिया था परन्तु केवल 35×30 फुट की विशाल सुपार्श्वनाथ की भव्य प्रतिमा और बावड़ी के पास की एक महावीर स्वामी की मूर्ति ही स्व-सिद्धि प्रभाव से अखण्डित रह सकीं।
संग्रहालय
ग्वालियर दुर्ग के गूजरी महल में स्थित संग्रहालय में जैन मूर्तियों एवं शिलालेखों का महत्वपूर्ण प्रदर्शन किया गया है। यहाँ ग्वालियर, पधावली और भेलसा (विदिशा) से लाई गई मूर्तियाँ ही देखने को मिलती हैं। ग्वालियर की मूर्तियों में 1552 वि.स. की एवं सं. 1476 की पार्श्वनाथ की मूर्ति और एक अन्य पार्श्वनाथ की मूर्ति भी 11वीं-12वीं शताब्दी की उल्लेखनीय है। विदिशा की एक चतुर्मुखी मूर्ति जिसका केश विन्यास अद्भुत है और पधावली की मूर्तियों में 12वीं-14वीं शताब्दी की तीर्थंकर मूर्तियाँ भी दर्शनीय हैं।
संग्रहालय में कुछ जैन शिलालेख ऐतिहासिक महत्व के हैं जैसे उदयगिरि गुफा (विदिशा) से गुप्त संवत् 106 (425 ई.) का प्राप्त लेख यह प्रमाणित करता है कि उक्त गुफा में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति का निर्माता कुरुदेश का शंकर स्वर्णकार था। सन् 1262 के एक अन्य नरवर शिला लेख के अनुसार धार- नरेश भोज के मंत्री भुवनपाल कायस्थ ने जैन मंदिर का निर्माण कराया था।