विष्णुदास
July 16, 2024कृपाराम
July 16, 2024हरीराम व्यास
जन्म – सं. १५६७ वि.
कविता काल – सं.१५८७ वि.
ग्रन्थ – कवि प्रवर व्यास जी की अनेक रचनाऍं है, उनमें से प्रमुख है-
नवरत्न, राग माला, संगीत शास्त्र, व्यास वाणी, रसपँचाष्यायी आदि।
जीवन परिचय – कविवर हरीराम व्यास का जन्म ओरछा में हुआ था। इनके पिता समोरवन शुक्ल सखी-भाव के उपासक थे। इनकी माता का नाम देविका था। हरिराम जी जन्मन: शुक्ल थे। किन्तु भगवत पुराण वक्ता होने से व्यास उपाधि से विभूषित हुये और व्यास उपनाम से ही विख्यात रहे। वे वेदान्त, शास्त्रोज्ञान के पंडित थे। भागवत पुराण के परम भक्त थे। उनका रास साहित्य वृन्दावन रास से भिन्न था। उनका सखी भाव गोपी-भाव से भिन्न था। व्यास जी सदगृहस्थ थे। किन्तु वृन्दावन आने के बाद वह यही जीवन पर्यंत रहे। उन्हें मधुकर शाह ओरछा ले जाने को आये भी किन्तु व्यास जी वृन्दावन में ही रमे रहे। उनके काव्य में रस सिद्ध, श्रृंगार, लीला भक्ति देखने को मिलती है। उनकी, रस पंचाध्यायी में समाज सुधार के दर्शन मिलते है। दलितोद्धार जो समय की मांग थी व्यास ने दृढ़ता से अपने काव्य में बखान किया है। ये सब उनके काव्य में मुखरित हुये है। व्यास जी रास के अनन्य रसिक थे। ओरछा में वे रास के लिये विख्यात हो गये थे। उनके राग मलार का दूगदर्शन इस छन्द में कितना सुन्दर बन पड़ा है जिसमें बुन्देली शब्दों का समावेश भी देखने को मिलता है।
राग मलार –
“आज कछु कुंजनि में बरषासी।
बादल दल में देखि सखी की,
चमकति है चपला री।”
कुछ दोहों का अवलोकन कीजिये
“अति अंत अक्ष मध्य में, गहि रसकनि की रीति।”
उपदेश –
“संत सबै गुरुदेव है, व्यासहि यह परतीति ।
व्यास भागवत जो सुनै जा के तन मन स्याम्।
वक्ता सोई जानिये, जाके लोभ न काम।”
वृन्दावन के प्रति अपने भाव व्यास जी ने इस प्रकार व्यक्त किये है-
(१) “रुचत मोहि वृन्दावन कौसाग कंदमूल फल फूल जीविका मै पाई बड़ भाग।
घृत, मधु, मिश्री, मेवा। मेदा, मेरे या यै छाग। एक गाय पै वारौ,
कोटिक ऐरावति से नाग। जमुना जल पर वारौ।” आदि
यह व्यास जी की भक्तिभाव की अभिव्यक्ति है। व्यास जी ने हरिजन वर्ग के प्रति कितने सुन्दर भाव व्यक्त किये है –
(२) “व्यास दास हरिजन बड़े जिनकौ हृदय गम्भीर।
अपनौ सुख चाहत नहीं, हरत पराई पीर।
व्यास जाति तज भक्ति कर कहत भागवत टेरि।
जातिहि भक्तिहि ना बनै, ज्यों केरा ढिंग बेरि।
व्यास बढ़ाई छांडि के हरि चरनन चित चोर।”
इस प्रकार व्यास जी ने समयानुसार भक्ति भावना के ध्रुव धरातल से उपदेश देकर जन मानस को कर्तव्योन्मुख किया। उनके हरिजनों के प्रति सच्ची सहृदयता कालानुकूल थी जब जबरन धर्मान्तरण हो रहा था। ऐसे में हिन्दू धर्म में त्याज्य जनों को अपना श्रेष्ठ जन बताकर सच्चे साहित्यकार की व्यास जी ने भूमिका निभाई है। जिसे आगे के भक्त कवियों ने और सच्चे भाव से प्रेषित किया है।