जैतपुर महोबा जिले का चंदेलकालीन कस्‍बा रहा है। इसे चंदेल शासक परमालदेव के पुत्र समरजीत ने जीतपुर नाम से स्‍थापित किया था, जो कि बाद में जैतपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। चंदेल शासक परमालदेव की पुत्री बेला के नाम पर यहाँ बेलाताल नामक विशाल सरोवर का निर्माण हुआ। यह बुन्‍देलखण्‍ड के सबसे विशाल एवं प्राचीन तालाबों में से एक है। जैतपुर को बेलाताल भी कहते हैं और इसी नाम से झाँसी-मानिकपुर रेलवे लाइन पर रेलवे स्‍टेशन भी है। जिला मुख्‍यालय से जैतपुर (बेलाताल) लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर है।

        जैतपुर का किला बेलाताल तालाब के पृष्‍ठ भाग की पहाड़ी पर बुन्‍देला महाराजा छत्रसाल के पुत्र जगतराज ने सत्रहवीं सदी में बनवाया था। किले का मुख्‍य दरवाज़ा पूर्वोत्‍तर दिशा में था। चारों कोणों पर चार बुर्ज, मध्‍य प्राँगण में आवासीय महल, शस्‍त्र भंडारण कक्ष एवं चार कुएं भी थे। सामरिक दृष्टि से जैतपुर का किला बुन्‍देला शासन काल के दौरान इस क्षेत्र का महत्‍वपूर्ण किला था। महाराजा छत्रसाल ने अपने प्रभाव वाला उत्‍तर-पूर्वी बुंदेलखण्‍ड का भू-भाग जगतराज को देकर स्‍वतंत्र राजा बना दिया था। सन् 1729 में छत्रसाल को मुगल साम्राज्‍य के सूबेदार मुहम्‍मद वंगबंगश ने जैतपुर में घेर लिया तथा बंधक बना लिया था। छत्रसाल ने अपनी सुरक्षा के लिए बाजीराव पेशवा प्रथम को बुन्‍देलखण्‍ड का एक तिहाई हिस्‍सा देने की शर्त पर मराठों से सैनिक सहायता प्राप्‍त कर मुगल सूबेदार बंगश को पराजित किया।

        1841-42 ई. में जैतपुर के राजा पारीछत ने अँग्रेजों से विद्रोह कर दिया था तथा उनकी विधवा रानी ने 1857 के संग्राम में सक्रिय भाग लिया था। उनकी कोई संतान नहीं थी, जिस कारण जैतपुर अंग्रेजी राज्‍य में विलय कर लिया गया था।