कार्तिक पूर्णिमा के दिन दो मुकुट राधा कृष्ण के, मुरली, गेंद, छत्र, पाँवडी पोशाक, राधा जी का सुहाग सिंगार का सब सामान चूड़ी वगैरह सब लगता है। “लोल कुचइया” व तुलसी घरा फटक सिला आदि बनाते है। घर द्वार दो बनाये जाते हैं। एक भगवान का, 1 तुलसी जी का, जिसमें 1 सामने का दरवाजा, 3 दिवारें 1 छत, छप्पर 4,5 भीम गजा, धुनियाँ बगैरह सब बनती हैं। बाकी भगवान का सब भोग प्रसाद छप्पन भोग छत्तीसऊ व्यंजन शैली में सब बनता है। अपनी सुविधा और सामर्थ्य के अनुसार ग्वाल चबेनी का प्रसाद बाँटा जाता है। मियाँबिल्लार के 30 लड्डू, 30 गुझियाँ, 30 अठवाई बना कर ढ़कनियाँ में लाल कपड़े से बाँधकर छुलाते हैं। भोग लगाते हैं।