वैसे तो कार्तिक व्रत के उद्यापन व समापन का नियम 12 वर्ष का है। 12 वर्ष तक कार्तिक स्नान व्रत के नियम करने का फल है। उसके बाद भी 1 या 2 वर्ष ब्याज के भी करने का विधान है। लेकिन समयानुसार हर काम में पूर्णता व्यक्ति जल्दी पाना चाहता है। समय का अभाव, सीमित साधन तथा पूरे एक माह तक चलने वाले नियम व्रत में व्रती को तन, मन, धन से जुटना पड़ता है और उनमें कभी-कभी बाधायें भी आ जाती है। इसलिए अपनी सुविधा के अनुसार कई महिलायें व्रत का उद्यापन 3 वर्ष में 5, 7, 11 वर्ष में भी कर लेती हैं, बाद में जब तक जितने साल उनका साधन बने, नहाती रहती है।

कभी-कभी तो श्रद्धा और साधन के होते जीवन पर्यन्त भी महिलायें कार्तिक नहाती हैं। इसमें समय या उम्र का कोई बंधन नहीं है। लड़कियों को भी नहाते देखते हैं व बुढ़ियों को भी। जब मन में श्रद्धा हो इच्छा हो तभी शुरू कर सकती हैं। शरद पूर्णिमा से शुरू होकर यह व्रत अगहन कृष्ण चौथ (गणेश चौथ) तक चलता है। और कार्तिक पूर्णिमा को इसका उद्यापन होता है। जिस वर्ष व्रत की पूर्णाहुति करना है। तो पूर्णिमा को ही उद्यापन के साथ ही हवन होता है।

अपनी इच्छानुसार सवा पाव से लेकर सवा 5 सेर तक का शाकल्य बना कर सब भोग प्रसाद बना कर पंडितों द्वारा हवन करवाते हैं। इसमें इच्छानुसार गऊ दान का भी विधान है। पंडितों को दक्षिणा सहित भोजन कराना चाहिए। अपनी सार्मथ्य के अनुसार ब्राम्हण को वस्त्र भी दे सकते हैं। पूर्णिमा को या एक दिन आगे पीछे जब कृतिका आती है। तब निर्जल व्रत करते हैं। उतरने के बाद स्नान करके ब्राम्हण व मान, दान घर परिवार सहित भोजन कराके व्रत खोलते हैं। पारण होने पर कार्तिक भगवान श्री राधा कृष्ण जी की जै कारा बोल कर उन्हें नमन करते हैं।

“बोलो कार्तिक देव भगवान की जय”