
गुरीलागिरि
July 25, 2024
बूढ़ी चन्देरी
July 25, 2024स्थिति
चंदेरी से दो कि.मी. दक्षिण में खंदारगिरि नाम की पहाड़ी है जहाँ चद्वानों पर और गुफाओं में प्राचीनकाल की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। दरअसल गुफाओं को कन्दरा कहा जाता है और यही कन्दरा शब्द लोक शैली में खन्दरा औरं गिरि जुड़कर खन्दारगिरि कहलाने लगा।
इतिहास
यहाँ वि.स. 1736 की चरणपादुका और वि.स. 1283 के अभिलेख उपलब्ध है। यहाँ का निर्माण कार्य प्राप्त अभिलेखों के अनुसार अनंतशाह लंबकंचुक द्वारा संवत् 1283 में छटी कन्दरा में विद्यमान 10 तीर्थंकरों से किया गया था। अनेक भट्टारकों के स्मारक भी यहाँ उपलब्ध हैं जिससे निर्माण काल की पुष्टि होती है। यहाँ की एक गुफा तेरहवीं शताब्दी की और पाँच सोलहवीं शताब्दी की निर्मित हैं।
पुरातत्व
खंदारगिरि की छै: गुफाओं में उत्कीर्ण जिन मूर्तियाँ सुन्दर और विशाल हैं। यहाँ गुफा क्र. 2 में 35 फुट ऊँची तीर्थकर शान्तिनाथ की काले पाषाण की खड्गासन, एक वृहद प्रतिमा दर्शनीय है। इसके बाँयें और पार्श्वनाथ की लगभग 16 फुट ऊँची और दाँये ओर इतनी ही ऊँची एक तीर्थंकर मूर्ति है। पार्श्वनाथ प्रतिमा निकाल ली गई है। अधोभाग में 6 खड्गासन और नीचे 5 पद्मासन प्रतिमायें हैं। अनेक मूर्तियाँ काल के अंतराल और पानी के कटाव के कारण नष्ट हो चुकी हैं पर अभी भी अनेक मूर्तियाँ अवशिष्ट हैं।
यहाँ भट्टारक पद्मकीर्ति का विशाल स्मारक है जिसमें चरणपादुकाओं पर वि.स. 1736 अंकित है। सकल कीर्ति, यथा कोर्ति आदि भट्टकारकों की छतरियाँ भी विद्यमान हैं। प्राप्य शिलालेखों में सबसे पुराना मूर्तिलेख वि.स. 1283 का महत्वपूर्ण हैं। यहाँ गुफाओं तक पहुँचने के लिये भी सीढ़ियाँ उपलब्ध हैं।
गुफा क्रमांक एक में साढ़े तीन फुट की पद्मासन प्रतिमा तीर्थंकर संभवनाथ के बाँये ओर तीर्थकर अनन्तनाथ, महावीर, पार्श्वनाथ, पद्मप्रभु और सम्भवनाथ की और दाहिने ओर संवत् 1991 की चन्द्रप्रभु शान्तिनाथ, सं. 1990 की कुन्थनाथ वि मं. 1690 की पुष्पदन्त भगवान की है। यहाँ बाहुबलि भगवान की एक अद्भुत खड्गासन प्रतिमा दर्शनीय है जिस पर चूहे, सर्प और छिपकली का एकदम हटकर अंकन है। गुफा क्र. 3 में 16वीं सदी की उकेरी गई तीन प्रतिमाओं में एक श्रेयांसनाथ की 16 फुट और दो 8-8 फुट की हैं। चौथी गुफा में साढ़े तीन फुट की 3 पद्मासन प्रतिमायें एवं पाँचवीं गुफा में चट्टान में ही 2 पद्मासन प्रतिमायें उकेरी हैं।