चंदेरी से दो कि.मी. दक्षिण में खंदारगिरि नाम की पहाड़ी है जहाँ चद्वानों पर और गुफाओं में प्राचीनकाल की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। दरअसल गुफाओं को कन्दरा कहा जाता है और यही कन्दरा शब्द लोक शैली में खन्दरा औरं गिरि जुड़कर खन्दारगिरि कहलाने लगा।
इतिहास
यहाँ वि.स. 1736 की चरणपादुका और वि.स. 1283 के अभिलेख उपलब्ध है। यहाँ का निर्माण कार्य प्राप्त अभिलेखों के अनुसार अनंतशाह लंबकंचुक द्वारा संवत् 1283 में छटी कन्दरा में विद्यमान 10 तीर्थंकरों से किया गया था। अनेक भट्टारकों के स्मारक भी यहाँ उपलब्ध हैं जिससे निर्माण काल की पुष्टि होती है। यहाँ की एक गुफा तेरहवीं शताब्दी की और पाँच सोलहवीं शताब्दी की निर्मित हैं।
पुरातत्व
खंदारगिरि की छै: गुफाओं में उत्कीर्ण जिन मूर्तियाँ सुन्दर और विशाल हैं। यहाँ गुफा क्र. 2 में 35 फुट ऊँची तीर्थकर शान्तिनाथ की काले पाषाण की खड्गासन, एक वृहद प्रतिमा दर्शनीय है। इसके बाँयें और पार्श्वनाथ की लगभग 16 फुट ऊँची और दाँये ओर इतनी ही ऊँची एक तीर्थंकर मूर्ति है। पार्श्वनाथ प्रतिमा निकाल ली गई है। अधोभाग में 6 खड्गासन और नीचे 5 पद्मासन प्रतिमायें हैं। अनेक मूर्तियाँ काल के अंतराल और पानी के कटाव के कारण नष्ट हो चुकी हैं पर अभी भी अनेक मूर्तियाँ अवशिष्ट हैं।
यहाँ भट्टारक पद्मकीर्ति का विशाल स्मारक है जिसमें चरणपादुकाओं पर वि.स. 1736 अंकित है। सकल कीर्ति, यथा कोर्ति आदि भट्टकारकों की छतरियाँ भी विद्यमान हैं। प्राप्य शिलालेखों में सबसे पुराना मूर्तिलेख वि.स. 1283 का महत्वपूर्ण हैं। यहाँ गुफाओं तक पहुँचने के लिये भी सीढ़ियाँ उपलब्ध हैं।
गुफा क्रमांक एक में साढ़े तीन फुट की पद्मासन प्रतिमा तीर्थंकर संभवनाथ के बाँये ओर तीर्थकर अनन्तनाथ, महावीर, पार्श्वनाथ, पद्मप्रभु और सम्भवनाथ की और दाहिने ओर संवत् 1991 की चन्द्रप्रभु शान्तिनाथ, सं. 1990 की कुन्थनाथ वि मं. 1690 की पुष्पदन्त भगवान की है। यहाँ बाहुबलि भगवान की एक अद्भुत खड्गासन प्रतिमा दर्शनीय है जिस पर चूहे, सर्प और छिपकली का एकदम हटकर अंकन है। गुफा क्र. 3 में 16वीं सदी की उकेरी गई तीन प्रतिमाओं में एक श्रेयांसनाथ की 16 फुट और दो 8-8 फुट की हैं। चौथी गुफा में साढ़े तीन फुट की 3 पद्मासन प्रतिमायें एवं पाँचवीं गुफा में चट्टान में ही 2 पद्मासन प्रतिमायें उकेरी हैं।
आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।
बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।
डॉ. उषा मिश्र
सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
नाम – डा. उषा मिश्रा पिता – डा.आर.सी अवस्थी पति – स्व. अशोक मिश्रा वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट, कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने, माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश मो.न. – 9827368244 ई मेल – usha.mishra.1953@gmail.com व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन। शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी. शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।
सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित। भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।