त्रिकालज्ञ महर्षि वेद व्यास
October 7, 2024ऋषिका लोपामुद्रा
October 7, 2024संस्कृत के प्रथम महाकाव्य रामायण की रचना करने वाले महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि कहा जाता है। वाल्मीकि के आरम्भ काल की कथा बड़ी रोचक है। महर्षि वाल्मीकि का पहले का नाम रत्नाकर था। मान्यता है कि इनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। किंतु डाकुओं के संसर्ग में रहने के कारण ये लूटपाट और हत्याएँ करने लगे और यही इनकी आजीविका का साधन हो गया। इन्हें जो भी मार्ग में मिलता वह उनकी संपत्ति लूट लिया करते थे। एक दिन इनकी मुलाकात देवर्षि नारद से हुई। इन्होंने नारदजी से कहा कि तुम्हारे पास जो कुछ है उसे निकाल कर रख दो नहीं तो तुम्हें जीवन से हाथ धोना पड़ेगा।
देवर्षि नारद ने उन्हें धैर्य बँधाते हुए राम-नाम के जप की सलाह दी। लेकिन चूंकि वाल्मीकि ने भयंकर अपराध किये थे इसलिए वह राम-राम का उच्चारण करने में असमर्थ रहे तब नारदजी ने उन्हें मरा मरा उच्चारण करने को कहा। बार बार मरा-मरा कहने से राम-राम का उच्चारण स्वतः ही हो जाता है। नारदजी का आदेश पाकर वाल्मीकि नाम जप में लीन हो गये। हजारों वर्षों तक नाम जप की प्रबल निष्ठा ने उनके संपूर्ण पापों को धो दिया। उनके शरीर पर दीमकों ने बांबी बना दी। दीमकों के घर को वल्मीक कहते हैं। उसमें रहने के कारण ही इनका नाम वाल्मीकि पड़ा।
एक ऐसा वर्णन आता है कि- एक बार वाल्मीकि क्रौंच पक्षी के एक जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि बहेलिये ने प्रेम-मग्र क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया। इस पर मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके विलाप को सुनकर वाल्मीकि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह लोक फूट पड़ा।
“मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम् ।।”
(अर्थ: हे दुष्ट, तुमने प्रेम में मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।)
उसके बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण (जिसे वाल्मीकि रामायण के नाम से भी जाना जाता है) की रचना की। अपने महाकाव्य रामायण में उन्होंने अनेक घटनाओं के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है। इससे ज्ञात होता है कि वे ज्योतिष विद्या एवं खगोल विद्या के भी प्रकाण्ड ज्ञानी थे। वनवास के समय राम ने इन्हें दर्शन देकर कृतार्थ किया। वाल्मीकि रामायण में चौबीस हजार श्लोक हैं जिसके एक हजार श्लोकों के बाद गायत्री मंत्र के एक अक्षर का ‘सम्पुट’ लगा हुआ है, इसके सात कांड, सौ उपाख्यान, पाँच सौ सर्ग हैं जो ‘अनुष्टुप छंद’ में हैं। भगवान वाल्मीकि जी ने जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में हमें रामायण के भिन्न- भिन्न पात्रों के चरित्रों द्वारा अपनी रामायण कथा में साकार करके समझाया है।
रामायण के नायक राम हैं जिनके माध्यम से उन्होंने गृहस्थ धर्म, राज धर्म तथा प्रजाधर्म आदि का जो चित्र खींचा है, वह विलक्षण है। पारिवारिक मर्यादाओं के लिए सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में वाल्मीकि रामायण से बढ़कर श्रेष्ठ ग्रंथ पृथ्वी पर कोई नहीं है। वाल्मीकि ने रामायण में पितृपरायणता, बंधु प्रेम, जैसे सात्विक गुणों उल्लेखित किया है। कारण है कि सदियों से भारत एवं दक्षिण पूर्व एशिया की सभी भाषाओं में की गई रामकथा विषयक सभी रचनाएँ, आमजन के नित्य पाठ का अंग बन चुकी है। चित्त शुद्धि प्रदान करने वाले समस्त हिंदू ग्रंथों में वाल्मीकि रामायण श्रेष्ठ है। उन्होंने सारे संसार के लिए युगों-युगों तक की मानव संस्कृति की स्थापना की है। महाभारत काल में भी वाल्मीकि का वर्णन मिलता है।
जब पांडव कौरवों से युद्ध जीत जाते हैं तो द्रौपदी यज्ञ रखती है, जिसके सफल होने के लिये शंख का बजना जरूरी था परन्तु कृष्ण सहित सभी द्वारा प्रयास करने पर भी पर यज्ञ सफल नहीं होता तो कृष्ण के कहने पर सभी वाल्मीकि से प्रार्थना करते हैं। जब वाल्मीकि वहाँ प्रकट होते हैं तो शंख खुद बज उठता है और द्रौपदी का यज्ञ सम्पूर्ण हो जाता है। इस घटना को कबीर ने भी स्पष्ट किया है “सुपच रूप धार सतगुरु आए। पांडवों के यज्ञ में शंख बजाए।” ऐतिहासिक आर्ष महाकाव्य रामायण में भारत सहित बहुतांश विश्व के भौगोलिक स्थलों के स्पष्ट विवरण भी मिलते हैं। वाल्मीकि रामायण के अलावा आपके वाल्मीकि सूत्र, वाल्मीकि शिक्षा, वाल्मीकि हृदय, गंगाष्टक ग्रंथ भी मिलते हैं।