महर्षि वाल्मीकि
October 7, 2024ऋषिका रोमशा
October 7, 2024ऋषिका लोपामुद्रा विदर्भराज की कन्या, जिन्होंने स्वेच्छा से ऋषि अगस्त्य को पति रुप में वरण कर ऋषिपत्नी जीवन जिया। लोपामुद्रा महर्षि दुर्वासा की शिष्या, श्रीविद्या से दीक्षित होकर अपने पति ऋषि अगस्त्य की दीक्षा गुरु बनी। बुन्देलखण्ड के विंध्य पर्वत पर ऋषि अगस्त्य का प्रथम आश्रम कालिंजर (दुर्ग) आज भी स्थित है। बुंदेलखंड की अद्वितीय वैदिक महिला दृष्टा जिनका बखान त्रिपुरा रहस्य में गुरु सुमेधा ने किया। सम्पूर्ण प्राणीजगत को सुखी जीवन जीने के लिए प्राणाग्नि की साधना का दिव्य संदेश ऋषिका लोपामुद्रा ने दिया है।
“पूर्वरिहं शरदः शश्रमाणा दोषा वस्तोरुषसो जरयन्तीः।
मनाति॒ श्रियं जरमा तनूनामप्यू नु पत्नीर्वृषणो जगम्युः ॥॥”
ऋषिका अगस्त्यप्रिया लोपामुद्रा –
यज्ञ-पूजन करते करते मन की आँखों ने, अगस्त्यप्रिया लोपामुद्रा का दर्शन किया। हम सबकी आराध्या, पूजनीया, प्रातः स्मरणीय, भारतीय वैदिक नारी की अलौकिक छवि लिए। असाधारण व्यक्तित्व की धनी, तेजस्वी मनस्वी, निजत्व का लोप करने वाली अनुपम सृजन शक्ति। बालापन में गुरु महर्षि दुर्वासा से दीक्षित, श्रीविद्या को साधने वाली, पराशक्ति स्वयंसिद्धा। विश्वासमयी ऋषिका लोपामुद्रा का दर्शन किया।
विदर्भराज की पुत्री, वैदर्भी, वरप्रदा, कौशीतकी, निमि, क्रथपुत्र भीम द्वारा पालिता अयोनिजा। ऋषि अगस्त्य पतिसंग, अनुराग प्रेममयी, राजसीबस्त्र, आभूषणत्याग, बल्कल मृगचर्मधारिणी, जन्मजन्मान्तरों की पूर्व एषणा संप्रेषणा सदृश, तप बल से साधना से अगणित रवि तेज प्रकाशिनी। कालिंजर पर्वत पर वर्षों तपस्या साधनारत। पति के साथ कन्धे से कन्धा मिला प्रार्थनारत, ज्योतिष्मती ऋषिका लोपामुद्रा का दर्शन किया।
यज्ञमय जीवन में, अग्नि से अंतरंग सख्यभाव रख, अग्नि के पार्थिव, आन्तरिक्ष्य और दिव्य रुपों को। चेतना केंद्र प्राण, मन, बुद्धि में अधिष्ठित कर, पृथिवी, अन्तरिक्ष और द्युलोक में विद्यमान। निर्मल उज्ज्वल विकसित जागृत अन्तर्मन, सुख-दुख से परे, कर्मधर्म से दीपित रोमांचित पिण्ड एवं ब्रह्माण्ड में व्याप्त अग्निदेवता का, साक्षात्कार करने वाली नारी जगत की पूर्वजा। अगस्त्यप्रिया ऋषिका लोपामुद्रा का दर्शन किया। महर्षि अगस्त्य की गुरु, भुक्ति, मुक्ति और योग के, आनन्द के अमृत से चेतना कमल खिलाती, प्रेमप्राण से गंधगान तक मन सुमन बिकसाती, सामंजस्य से प्राणाग्नि की साधना का सन्देश देती। मधु बासन्ती पवनक्रीडत नैसर्गिक अठखेलियाँ करती, मानस पर दिव्य चमचमाते नक्षत्रों की लड़ियों से, जगमग जगमग उजियारा अन्तस् में धारती। खिलखिलाते हृदय से चिंताओं का बोझ उतारती, पथप्रशस्त करती ऋषिका लोपामुद्रा का दर्शन किया।
जीवन परिपूर्ण बनाने, दिव्य रुपान्तरण हेतु , गृहस्थ जीवन में भी ब्रह्मचारी जीवन जीने। जीवन की ऊर्जा, काम-शक्ति के विनियोग से, सुख सामंजस्य पूर्ण गहन चिंतनदृष्टि लिए। अरुणोदय की अरुणिम छटा बिखेरती सी, उन्मुक्त प्राण, पूर्ण कृतकृत्य हृदय आह्लादित। मन के तार झंकृत कर, अमृत की भव्य बरसाकर, निजत्व को बिसरा कर, सेवा दया प्रेम करुणामयी। अध्यात्मविज्ञान सम्पन्न ऋषिका लोपामुद्रा का दर्शन किया।
चिंतनमय तपस्यारत दिग्दिगंत के बँध खोल, मोहिता नर्तन करती सी, मूर्त रूप जागृत सी, आदेशात्मक प्राणाग्नि का उच्च शब्दस्वर-सुन। जानो, समझो, देवों का देवत्व करो अर्जित, इसी शरीर में, समस्त इन्द्रियों में वह है विराजमान, श्रेष्ठ कर्म के छंद रचित सी शांतिमयी लयलीन। सतरंगी जीवन में आशा के दीप जला, तल्लीन आध्यात्मिक ऊध्र्वोन्मुखी चेतना को जागृत कर, नारी अस्मिता की रक्षक ऋषिका लोपामुद्रा का दर्शन किया।
यह अग्नि है, यह प्राण है, यह शक्ति है, यह ज्योति है, यही मन में इच्छाशक्ति है, प्राणाग्नि का साक्षात्कार कर। दिव्यजीवन हेतु, प्राणशक्तिधारा का आह्वान कर, निर्मल सुधामय प्लावित झरझर निर्झर सी झरती। अगस्त्य की गुरु बन महाशक्ति का आह्वान करती, जीवन सर्वस्व न्यौछावर कर पतिसंग बिहार करती। गृहस्थ जीवन में भी सत्य प्राप्ति का उद्घोष कर, साधना से सिद्धि प्राप्त नारीजगत की स्मरणीया। पतिपरायणा ऋषिका लोपामुद्रा का दर्शन किया।
लोपामुद्रा अगस्त्य का आशीष श्रीरामजी को मिला, उपहार में अक्षय तूणीर, खड्ग विजयी वरदान मिला। ऋषिमुनि परशुराम, गुरु सुमेधा ने किया महिमा गान, जीवन्तमूल्य साधिका, गार्हस्थ्य जीवन में बढ़ी शान। खनखनाती ध्वनिमधुर, स्वर्गिक पाखी कलगान छेड़ती, चाँदनी की चाह लिए अंबर से भावभूमि उतारती। अभिलाषाएं पूर्णकर, छविमान उज्ज्वला दिव्यकीर्ति, सत् चित् आनन्दमयी, हृदयकमल बिकसाती विश्वजीत। मातृस्वरुपा, पूजनीया ऋषिका लोपामुद्रा का दर्शन किया।