महोबा उत्‍तर प्रदेश के उन स्‍थलों में से एक है, जो वर्तमान में अपनी ऐतिहासिक गाथाओं व जीवंत विरासत का एक अद्भुत उदाहरण प्रस्‍तुत करता है। झाँसी-मानिकपुर रेलवे लाइन पर स्थित यह स्‍थल राजपूत काल में चंदेलों की राजधानी था। लोक गायकी में यहाँ के आल्‍हा-ऊदल की वीरता एवं सामरिक साहस का गायन आल्‍हा के रूप में हर चौपाल पर सुनने को मिलता है। महोबा में शैव, शाक्‍त, बौद्ध एवं जिन संस्‍कृतियाँ पुष्पित एवं पल्‍लवित हुई। लोक-संस्‍कृति का प्रसून कजलिया समारोह महोबा की भूमि से ही जन्‍मा था। कालिंजर, मड़फा, अजयगढ़ जैसे सामरिक महत्‍व के किले, खजुराहो के कलात्‍मक मंदिर चंदेल नरेशों के शिल्‍पकला के ही नमूने हैं। बुंदेल भूमि को तालाबों का जनपद होने का गौरव महोबा के चंदेल नरेशों के द्वारा ही प्राप्‍त हुआ।

        महोबा में गाखर पहाड़ की तलहटी में एवं मदन सागर तालाब के उत्‍तरी छोर पर एक किला है, जिसकी बुर्ज आदि मात्र पहचान के लिए खड़ी हैं, जिसे मिसमार किला कहा जाता है। यह मदन वर्मा चंदेल का बनवाया हुआ था। किले का दरवाज़ा भैंस दरवाजा़ कहलाता है। बाद में परमाल देव ने किले के अंदर महल बनवाया था, जो ध्‍वस्‍त हो चुका है। यहाँ ककरामठ, शिवमंदिर एवं चंदेलों की बैठक भी दर्शनीय है। छोटी चंडिका देवी, 24 तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ, काल भैरव, बाल महावीर जैसे महत्‍वपूर्ण दर्शनीय स्‍थल किले के समीप ही हैं।