दूधई
July 26, 2024बालाबेहट
July 26, 2024वर्तमान छतरपुर जिले में स्थित नैनागिरि जैन तीर्थ क्षेत्र वस्तुतः सागर- कानपुर मार्ग पर सागर से लगभग 40 कि.मी. दूर स्थित दलपतपुर ग्राम से, पूर्व दिशा में मात्र 12 किलो मीटर पर दर्शनीय है।
निर्वाण काण्ड की पौराणिक गाथा-
‘पासस्य समवसरणे सहिया वरदत्ता मुणिवरा पंच,
रिस्सिंदेगिरिसिहरे णिव्वाण गया णमो तेसिं ।‘
अर्थात् तेइसवें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ का समोशरण इस तीर्थ पर आया था। वरदत्त आदि पाँच ऋषियों ने यहाँ से मुक्ति प्राप्त की थी। इससे यह सिद्ध तीर्थ की कोटि में आता है।
निर्वाण काण्ड की रचना प्रथम शताब्दी की मानी जाती है और पार्श्वनाथ का काल तीर्थंकर महावीर से 250 वर्ष पूर्व का है। इन तथ्यों को दृष्टि में रखने से यह तीर्थ 3000 वर्ष से अधिक प्राचीन होना चाहिये।
तीर्थ के रेशंदीगिरि और नैनागिरि नामों में काल-बोध का भाष नहीं होता। देखने पर रेशंदीगिरि आधुनिक प्रतीत होता है परंतु निर्वाण काण्ड में ही इस तीर्थ का नाम रेशंदीगिरि तीर्थ वर्णित है। कदाचित नैनागिरि नाम पन्ना रियासत के समय ग्रामीण जनों का दिया हुआ होना चाहिये क्योंकि यह पर्वत नयनाभिराम तो है ही, इससे लोग संभवतः नैनागिरि कहने लगे होंगे। रेशंदीगिरि का नामार्थ तो ऋषि व इन्द्र के गिरि होने से सार्थक होता है।
मंदिरों की प्राचीनता
रेशंदीगिरि में कुल 52 मंदिर हैं। पर्वत पर 38 और तलहटी में 14 जैन मंदिर हैं। पर्वत पर स्थित मंदिर संख्या 6 ही सबसे अधिक प्राचीन माना जाता है। इसमें स्थित मूर्तियों में एक पर निर्माण काल संवत् 1109 अंकित है अर्थात् ईस्वी 1052 यह 11वीं सदी के चंदेलों के निर्माण का प्रारंभिक काल माना जाता है। इसी से यह प्रमाणित होता है कि यहाँ का अधिकांश शिल्प संसार भी चंदेल कालीन है।
जिनालयों की स्थिति निम्नानुसार है
पार्श्वनाथ जिनालय
यह बीसवीं शताब्दी का प्रथम क्रम पर नव निर्मित मंदिर है जिसमें सन् 1051 में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की साढ़े तेरह फुट ऊँची खड़गासन प्रतिमा स्थापित की गई थी। मंदिर विशाल एवं भव्य है जिसकी भित्तियों पर 24 तीर्थंकरों की स्थापना है और गर्भ गृह के द्वार पर बाहुबलि स्वामी की साढ़ पाँच फुट ऊँची प्रतिमा स्थित है।
वरदत्तादि पाँचों मुनिवरों की मूर्तियाँ भी यहाँ निर्मित की गई हैं।
अन्य मंदिर – इनमें मुख्य मूर्तियाँ निम्नानुसार हैं-
मंदिर संख्या 2 संवत् 1498 में प्रतिष्ठित तीर्थंकर आदिनाथ की मूर्ति।
मंदिर संख्या 3-संवत् 1943 की तीर्थंकर मुनि सुव्रतनाथ तीर्थंकर।
मंदिर संख्या 4 संवत् 1943 की शांतिनाथ की प्रतिमा स्थापित है।
मंदिर संख्या 5-संवत् 1942 की चंदाप्रभु प्रतिमा।
मंदिर संख्या 6-संवत् 1709 की देशी पाषाड़ की पार्श्वनाथ प्रतिमा।
मंदिर संख्या 7 संवत् 1943 की चंदाप्रभु भगवान की मूर्ति।
मंदिर संख्या 8 संवत् 1943 की महावीर स्वामी की मूर्ति।
मंदिर संख्या 9-संवत् 1548 मुनि सुव्रतनाथ तीर्थकर की प्रतिमा।
मंदिर संख्या 10, 1943 की मुनिसुव्रतनाथ प्रतिमा आदि स्थापित हैं।
इसी तरह छत्तीस मंदिरों में विविध तीर्थंकरों की मूर्तियाँ दर्शनीय हैं।
पैतीसवें जिनालय में भगवान पार्श्वनाथ के चरण विद्यमान हैं।
जल मंदिर
38वाँ जिनालय पहाड़ की तलहटी में स्थित सरोवर के बीच में है। इस सुन्दर संरचना को ‘जल मंदिर’ के नाम से ख्याति उपलब्ध है। इसमें 1521 से लेकर संवत् 1967 तक की मूर्तियाँ विद्यमान हैं। जल मंदिर से आगे एक परकोटे में तेरह जनालय हैं। 40वाँ तीर्थंकर नेमिनाथ संवत् 1966, 41 वाँ नेमिनाथ संवत् 1979, 42वाँ पार्श्वनाथ (सं. 1548), 43वां पार्श्वनाथ (सं. 1548), 43वां चन्द्रप्रभु (सं. 1967), 44वां नेमिनाथ (सं. 1964 एवं सं. संवत् 1817), 45वां चंद्रप्रभु (सं. 1955), 46वां नेमिनाथ (सं. 1948), 47वां पार्श्वनाथ (सं. 1948), 48वां पार्श्वनाथ, 50वां शांतिनाथ (सं. 1948), 51वां ऋषभनाथ (सं. 1948) और 52वां मंदिर अटारी का मंदिर कहलाता था जिसकी सं. 1557 से सं. 2008 तक की मूर्तियाँ अन्यत्र स्थानांतरित कर दी गई हैं। नवनिर्मित समवशरण जिनालय जल मंदिर के रूप में शोभायमान है।
मंदिरों की वंदना करने के अतिरिक्त नैनागिरि में संतों के लिये उदासीन आश्रम, महिला आश्रम और संस्कृत विद्यालय आदि जैन तीर्थ कमेटी द्वारा संचालित किये जा रहे हैं। वर्तमान में संस्कृत विद्यालय की जगह स. के. सिंघई उच्चतर माध्यमिक विद्यालय संचालित है। इन संस्थानों में संस्कार और साधना दोनों फलीभूत होते हैं। धर्मशाला एवं समस्त वांछनीय सुविधायें दर्शनार्थियों को सतत् निःशुल्क उपलब्ध कराई जातीं हैं।