
द्रोणगिरि
July 26, 2024
नैनागिरि (रेशंदीगिरि)
July 26, 2024स्थिति
अतिशय दिगम्बर जैन क्षेत्र दूधई, देवगढ़ से 30 कि.मी., ललितपुर से 50 कि.मी. और शाहपुरा से 16 कि.मी. दूर पड़ता है। इसका पुराना नाम माहौली था। चंदेलकाल में यह प्रान्तीय केन्द्र था। यहाँ भी अधिकांश जिनालय नष्ट हो चुके हैं पर भग्नावशेष भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं।
पुरातत्व
आदिनाथ मंदिर में नागर शैली की संरचना यथा मण्डप में ऊपरी शिलापट्टों पर गजारूढ़ तीर्थंकर, नाग बल्लिकाओं की सुंदर मूर्तियाँ और संगीत, नृत्यादि की विविध मुद्रायें शोभित हैं। गर्भगृह के केन्द्र द्वार में आदिनाथ तीर्थंकर, कटिहस्त मुद्रा में पुरुषाकृति एवं पादपीठ पर ध्वज चिन्ह वृषभ तथा दोनों ओर शासन देव-देवियाँ उत्कीर्ण हैं।
मुख्य प्रतिमा तीर्थंकर आदिनाथ की 13 फुट कायोत्सर्ग, वृषभ चिन्ह व हिरण अंकित, सिर के चारों ओर कमलदल युक्त प्रभामण्डल शोभायमान है। बांयी ओर तीर्थंकर आदिनाथ एवं पार्श्वनाथ की सुन्दर चंवरधारियों सहित सिंह व्याल, वृषभ आदि अलंकृत हैं पार्श्वनाथ आदि तीर्थंकरों की सुन्दर मूर्तियाँ हैं।
अन्य विद्यमान तीर्थकरों के अधोभाग नहीं हैं इससे पहचान नहीं हो पाती। युगलिया की एक अत्यंत कलात्मक प्रतिमा भी यहाँ दर्शनीय है।
शांतिनाथ मंदिर
वर्तमान में इस मंदिर का गर्भगृह ही शेष है इसमें 13 फीट ऊँची तीर्थंकर शांतिनाथ की विशालकाय प्रतिमा अवस्थित है, इसके भुजाओं वाला भाग नष्ट हो चुका है। पर पाद पीठ के केन्द्र में कीर्ति मुख तथा शार्दूल, हिरण एवं आराधक का चित्रांकन दर्शनीय है। इस मूर्ति के दोनों ओर 10-10 फुट ऊँची पार्श्वनाथ प्रतिमायें, चैवरधारियों, कटिहस्त मुद्रा युक्त पुरुषाकृतियों, फणावलियों और विद्याधरों आदि से सुसज्जित हैं।
बड़ी एवं छोटी बारात
दूधई के पश्चिमी समूह के मंदिरों में, पूर्व समूह से कुछ फासले पर ही दो प्राचीन जैन मंदिरों के भग्नावशेष, आमने सामने बड़ी एवं छोटी बरात के नाम से जाने जाते हैं। इसके पीछे पवा से मिलती जुलती जनश्रुति चर्चित है कि कभी देवपत, खेवपत नाम के दो वणिकों ने इनका निर्माण कराया था। कनिंघम (प्रसिद्ध विदेशी यात्री लेखक) ने इन्हें श्रेष्ठ कलाकृतियाँ बताया था। बड़ी बरात में बड़ी संख्या में मूर्तियाँ हैं, जिनमें अखंडित ही अधिक हैं। तीन पूर्ण (अखंडित) मूर्तियाँ तीर्थकर सुपार्श्वनाथ, आदिनाथ और शीतलनाथ की उत्कृष्ट कलाकृतियाँ हैं। छोटी बारात में अवश्य अधिकांश मूर्तियाँ खण्डित हैं।
यहाँ की उत्कृष्ठ कलाकृतियाँ झाँसी के रानी महल के संग्रहालय में प्रदर्शित की गई हैं, जिनमें चौबीसी, युगलिया, अम्बिका, पार्श्वनाथ आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है।