श्रीपति
July 17, 2024पृथ्वीसिंह रसनिधि
July 17, 2024निवाज
जन्म – सं. १७३९ वि.
कविता काल – सं. १७६० वि.
जीवन परिचय
ग्रन्थ – शकुन्तला नाटक का रूपान्तर रचना है।
निवाज महाराज छत्रसाल के दरबारी कवि थे। आपने अपने कविताकाल में शकुन्तला नाटक का सफल अनुवाद किया और छत्रसाल विरुदावलि मे उत्कृष्ट रचनाएं रची। राष्ट्र बोध का काव्य रचना की।
“डाढ़ी के रखैयन की दाढी सी रहति छाती,
वाढ़ी मरजाद अब हद हिन्दुआने की।
मिट गई रैयत के मन की कसक अरु
कढ़ गई ठसक तमाम तुरकाने की।
भनत नेवाज दिल्लपतिदल धकधक
हाँक सुनि राजा छत्रसाल मरदाने की।
मोटी भई चण्डी बिन चोटी के सिरन खाय,
खोटी भई सम्पत्ति चकत्ता के घराने की।”
श्रृंगार पक्ष –
“देखि हमै सब आपुस में जो कछू मन भावै सोई कहती है।
ये घरहाई लुगाई सबै निसि धौस नेवाज हमें दहती है।
बातें बचाव भरी सुनके रिस आवति, चुप है रहती है।
कान्ह पियारे तिहारे लिये सिगरे ब्रज कौ हसिबो सहती है।”
कविवर निवाज ने अपने कालानुरूप काव्य की वृद्धि में सुन्दर योगदान दिया है।