घरेलू वस्तु संबंधी पहेलियाँ
July 27, 2024प्रकृति संबंधी पहेलियाँ
July 27, 2024
अत्थर फोरा पत्थर फोरा उस पै रख दो पैसा ।
बिन पानी का महल बनाया यह कारीगर कैसा ।।
बिन पानी का महल बनाया यह कारीगर कैसा ।।
मकड़ी और उसका जाल
अंधयारे घर में उर्द डरे।
मक्खियाँ
आरे में गोपालो बैठो।
जीभ
आई गदइया, कूदी गदइया, खुद भीजे न गदइया।
मकड़ी
आस नदी पास नदी, बीच नदी भारी।
मोतिन के गंज लगे राधा पनिहारी ।।
मोतिन के गंज लगे राधा पनिहारी ।।
मधुमक्खी की छाता
आधो घुसे घुसाये से, आधो पूँछ उठाये ।।
पहिनते समय जूते में डाला गया पैर
कारी पौनी सेत तगा, तै न बता पाये तोरो बाप पदा।
गाय या बकरी का थन
कारी विलगायँ, चीथरा लटकायँ।
बकरी के थन में बंधी डोरी
कारौ, कारौ, एक आँख फूटी।
कौवा
एक डूँड में सात कोल।
मनुष्य
ऊँट कैसी बैठक बैठे चीते जैसी खाल।
………………जीके पूँछ न बाल ।
………………जीके पूँछ न बाल ।
मेंढक
ऊँचे ठिकरा झुलनी हलै।
पूँछ
ऊपर पेड़ो नैचे भुट्टिया ।
पूँछ
एक जानवर ऐसा, जी की दुम पै पैसा।
मोर
एक फूल गुलाब का न माली के बाग का।
मुर्ग की कलगी
एक जानवर ऐसा जाकें हुड्डर गुड्डर कछु नइयाँ ।
गोंच
ऐंचक बेंचक काँ जा रये, टेंट कड़ौ तोय का करने ।
मुंह में केकड़ा दावे सर्प
कुल के बड़े डील के हीन कानन दुवीचें बजावे बीन ।
मच्छर
काला है पर कौवा नहीं, वेढब है पर हौवा नहीं।
करे नाक से अपना काम, बतलाओ तुम उसका नाम ।।
करे नाक से अपना काम, बतलाओ तुम उसका नाम ।।
हाथी
तनक सो लरका लये गुटान, दै मारे तो हलै ज्वान ।
विच्छु
चार हते चलते फिरते चार हते बरताई,
दो हते सूके साके इनको अर्थ बताई।
दो हते सूके साके इनको अर्थ बताई।
गाय
चार चक्र चले दो सूप चले, इक नाग चले,
पाछे दो ग्वाल चलें।
पाछे दो ग्वाल चलें।
हाथी
चार अलन - चलन एक राम लटकन, दो सूकी लकरी
दो फटर फटर, दो जुगर जुगर ।
दो फटर फटर, दो जुगर जुगर ।
भैंस
चार पाँव की झावक झब्बो, जीपै बैठी गप्पो।
आई रुप्पो लै गई गप्पो, रैगई झाबक झब्बो ।।
आई रुप्पो लै गई गप्पो, रैगई झाबक झब्बो ।।
भैंस, मेढक, सर्प
छै गोंड़े पतरी करयाई, बनके आ गये बड़े सिपाई।
चींटा
छिरकना दो पूंछरी, दस गोड़े मुख चार।
एक मुख के जीवन नहीं, पंडित करो विचार।
एक मुख के जीवन नहीं, पंडित करो विचार।
गाय, बछड़ा, दुहने वाला ओर वर्तन
नैचें मूँछ, ऊपर ठठेरी।
गाय की पूँछ
नदी किनारे गुलबटरा, आँख दिखावे तिवाई डुकरा।
मेढक
एक फूल गुलाब का न राजा के राज का, न माली के बाग का।
मुर्गा की कलंगी
तनक सा लरका ठूलम ठूल, करया धोती माथे फूल।
मुर्गा
रात को भरी दिन को रीती
ढोरों की सार
एक जानवर अजब, जिनकी दुम पर गजब
बिच्छू
बिना सूज चोली सिली, फुलरी लगी हजार।
छै महीना तक पैन कै, कोरी धरी उतार ।।
छै महीना तक पैन कै, कोरी धरी उतार ।।
सर्प की केंचुल
चार चक्र चलै दो सूप चलें, आँगे नाग चलें पाछें गोह चलें।
हाथी
सँकरी कुइया सींक न जाय, हिन्ना पानी पी पी जाय।
थन
सरग से आये कंगी - मंगा, लाल टोपी सेत झण्डा।
सारस
एक नार की बान दिवानी, लोहू भरवे तजे जब पानी ।।
जौंक
खर आगे और पीछे कान, जो बूझे सो चतुर सुजान ।।
खरगोश