
पनिहार
July 25, 2024
चन्देरी
July 25, 2024स्थिति
बृज और बुन्देलखण्ड के संधि-स्थल पर ग्वालियर संभाग के मुँरता जिला मुख्यालय से 42 किलोमीटर दूर मध्ययुगीन संस्कृति का वैभवशाली प्रतीक दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र सिहौनिया जी अहसिन नदी के किनारे विद्यमान है।
इतिहास
लगभग 2000 वर्ष पूर्व ग्वालियर के कछवाहा राजवंशीय सूरसेन (सूरजसेन) आदि द्वारा सिहौनिया की स्थापना की गई थी। उन्हीं के नाम पर बसे सिहोनिया का जैन तीर्थ एवं पास ही स्थित उत्तुंग तांत्रिकों का प्रसिद्ध और प्राचीन लगभग 100 फुट उत्तुंग ‘ककन मठ’ यह पुष्ट करते हैं कि कभी यह कलाप्रेमियों के लिये दर्शनीय तीर्थ एवं पुरातात्विक केन्द्र रहा होगा परन्तु अतीत की स्थितियाँ अब परिवर्तित हो चुकी हैं। वर्तमान जैन क्षेत्र कभी भूगर्भ में समाया था। लगभग 80 वर्ष पूर्व एक ब्रह्मचारी श्री गुमानीमल जैन को सपना आया कि यहाँ चट्टान के नीचे खुदाई करने पर तीर्थंकर प्रतिमा मिलेगी। और सचमुच जैन धर्मावलम्बियों को जब तीर्थंकर शान्तिनाथ की यह विशाल और भव्य मूर्ति खुदाई से मिली तो सम्पूर्ण क्षेत्र में आह्लाद छा गया था।
पुरातत्व
ग्यारहवीं सदी की इस त्रिमूर्ति का अब एक ही प्राचीन जिनालय यहाँ दर्शनीय है जिसमें 13 फुट उत्तुंग तीर्थंकर शान्तिनाथ के दोनों ओर लगभग 8-8 फुट ऊँची तीर्थंकर कुन्थनाथ एवं अरहनाथ की मूर्तियाँ खड़गासन मुद्रा में दर्शनीय हैं। एक शिलालेख भी है जिसमें केवल संवत् 141 पठनीय हैं ऊपर का 1 शायद दब गया है अर्थात् यह संवत् 1141 होना चाहिए।
मध्याँचल में अधिकांश तीर्थ क्षेत्रों पर शान्तिनाथ कुन्थनाथ-अरहनाथ की त्रिमूर्तियाँ स्थापित होने का एक कारण यह भी हो सकता है कि इसके निकट स्थित हस्तिनापुर के ही निवासी थे-तीर्थकर शान्तिनाथ, कुन्थनाथ एवं अरहनाथ जो कामदेव और चक्रवर्ती भी थे। हालाँकि भगवान महावीर स्वामी आदि की अनेक मूर्तियाँ भी यहाँ विद्यमान हैं परन्तु वे कहीं न कहीं खण्डित हैं। अन्य विद्यमान शिल्पावशेष भी दर्शनीय हैं।
हाल ही में एक चौबीसी का नवनिर्माण भी किया गया है और समवशरण की सुन्दर रचना भी हो चुकी है। जैन क्षेत्र में धर्मशाला की पर्याप्त व्यवस्था है।