
एकादशी का अरग
August 6, 2024
भागवत् श्लोक
August 7, 2024“हाथ जोड़ कर बिलसे नार, त्रिया जनम जिन देव हमारो
कैसे के परहों चरण तुम्हार, तुम्हारो पटका हमको चीर।
नित उठ अइयो जमुना तीर, जमुना तीर बेनी गंगा तीर,
आरत करिये जैसे तैसे, जनम सुफल कर लीजै
काशी में विश्वनाथ विराजे, झारखंड में भोला।
चंदर चाउर बेल की पाती, जनम जनम गोरा अहिबाती।
* * *
ऐरी फेरी आये राम, हम छोड़े जब घर के काम
काम धाम सब छोड़न दो, राम संगाती होने दो
आगे देखे जल भरे, पीछे देखे घट भरे
जल जलइ भरे घर घरइ भरे, जल में ब्यानी मांछली
घर में ब्यानी बॉछरी, ताती रोटी लापसी
और बफा तो दूध, कृष्णा की माई, कृष्णा को दें
हमारी माई हमें दें।
खड़ी रहूँ ठाकुर के द्वारे, दर्शन करके जाऊँगी,
गंगाजी से जल भर लाई
-अमृत जल बरसाऊँगी,
जहाँ पड़े हैं लाल लाडले-
-ओं ही जाय जगाऊँगी,
बाहर की सब बाहर रह गई-
– मैं तो अंदर जाऊँगी ।।”
स्तुति
श्री रामचंद्र कृपालु भजु भन, हरणं भव भय दांरूणं।
नव कंज लोचन कंज मुख कर, कंज पद कंजारूणम।
कंदर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरद सुन्दरम।
पटपीत मानहुँ तड़ित रूचि सुचि नौभि जनक सुतावरम।
भुजदीन बंधु दिनेश दानव, दलन दुष्ट निकन्दनम्।
रघुनंद आनन्द कंद कौशलचंद दशरथ नंदनम्।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू, उदार अंग विभूषणम।
आजानुभुज शरचाप धर, संग्राम जित खरदूषणम।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं।
मम हृदय कंज निवास करू, कामादि खल दल गंजनं।
मन जाहिराच्यौ, मिलही सो वर सहज सुन्दर सावरो।
करूणा निधान सुजान शील, सनेह जानत रावरो।
यहि भांति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।
जानि गौरि अनुकूल, सिय हिय हरष न जाहि कहि।
श्री मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।
मो समदीन न दीन हित, तुम्ह समान रघुवीर,
अस बिचारि रघुवंश मणि, हरहु विषम भव भीव।
कामिहिं नारि पियारि जिमि, लोभिहि के प्रिय दाम,
तिमि रघुनाथ निरन्तरहिं, प्रिय लागेहु मोहिं राम।