योगाचार्य विष्णु आर्य, योग निकेतन, भोपाल रोड,

सागर (म.प्र.) बुन्देलखण्ड, मो. 9425452415

डॉ. नितिन कोरपाल, प्रवाचक, योग विज्ञान विभाग, डॉ. हरीसिंह गौर वि.वि. सागर, दूर संचार कालोनी, मकरोनिया, सागर (म.प्र.) बुन्देलखण्ड, मो. 9827269010

योग की परिभाषा – योग ऐसी विधि है जिसमें शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक अभ्यासों के द्वारा चेतना को विकसित एवं अधिक शक्तिशाली बनाया जाता है। योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना, मिलाना, एक करना अथवा एक दूसरे में समाविष्ट करना। दूसरे शब्दों में अगर कहें योग ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति की निम्न चेतना का योग उसके उच्चतम एवं अपेक्षाकृत शक्तिशाली चेतना से करती है। यह मनुष्य की क्रमिक विकास में सहायक होती है। अतः चेतना विकास का एक माध्यम है।

योगाभ्यास क्या है- योग को सामान्यतः आसान, प्राणायाम को ही हम मान लेते है जबकि यह आवश्यक नहीं है, यह प्राथमिक अभ्यास हैं। योग ग्रहण करने के पूर्व इनका ही अभ्यास किया जाता है। इसलिए चिन्ता, निराशा, बैचेनी, अनिद्रा आदि मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक रोगों का निवारण इस योगाभ्यास के द्वारा किये जाते हैं। परन्तु इसका पर्याप्त ज्ञान रखने वाले योगाचार्य से ही योगाभ्यास की शिक्षा लेना चाहिए, गलत योग क्रियाएं करने से शरीर को ह््रास होता है। 

जीवन विज्ञान, प्राण विज्ञान रहा है। यह अत्याधुनिक युग के साथ प्रचलित नहीं था परन्तु यम, नियम, आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि का प्रचलन रहा है। ज्यादातर आसानों के बारे में वृहद ज्ञान उस काल में प्राप्त रहा है। आसन, भोजन, निद्रा के नियमों को दृढ़ता से पालन करने वाला व्यक्ति अमर जाना जाता था। दैनिक उपयोग में जो आसन प्रचलित थे उनमें- सूर्य नमस्कार, धनुरासन, सर्वांगासन, मत्स्यासन, व्रजासन, कपालभांति, प्राणायाम, अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, ऊँकार जप, पद्मासन, भुजंगासन, गोमुखासन, मंडुकासन इत्यादि साधारणतः प्रचलित आसन रहे हैं। इन क्रियाओं को करने के लिए राजाश्रय भी प्राप्त था।

बुन्देलखण्ड में योग विद्वानों, शिक्षकों, योगाचार्यों, वैद्यों व अन्य नामी ग्रामी चिकित्स इसको घर-घर में समाहित किये हुये थे। अपनी शिक्षा एवं चिकित्सा के दौरान समय-समय पर इनके अभ्यास भी कराये जाते रहे। यह मान्य रहा कि योग शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक अभ्यासों के द्वारा चेतना प्रदान करता है। साथ ही अधिक शक्तिशाली भी बनाता है। योग का महत्व किसी चीज को जोड़ना, मिलाना, एक करना अथवा एक-दूसरे में समानिष्ट करना, यह प्रक्रिया निरंतर स्थापित थी। उस काल में मनुष्य की चेतना का विकास का माध्यम योग था।

कुण्डलीय जागरण करना, हठ योग एवं अन्य ऐसी विधाएं लोग अपने में समाहित किये थे जिससे कि वे अनेकों भयवह रोगों से अपने को सुरक्षित भी करते थे। चिंता, निराश, बैचेनी, अनिद्रा, मासिक जैसे अनेकों रोगों का निवारण भी इसी प्रकार किया जाता था। आध्यात्मिक चिंतन के साथ मूलाधार नामक आध्यात्मिक चक्र जिसका संबंध पूर्व मस्तिष्क से था, उसे जाग्रत किया जाता था, इसलिए यह अभ्यास की निरंतरता बुन्देलखण्ड में समाहित थी। अनेकों योगी एवं आध्यात्मिक पुरुषों ने यहाँ वर्षों तपस्या एवं चिकित्सा कार्यों में इन अभ्यासों का भरपूर प्रयोग किया। अतः बुन्देलखण्ड में योग का अभ्यास था।

नवजात शिशु एवं माताओं के स्वस्थ प्रबंधन में योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा की भूमिका

माताओं में गर्भावस्था के साथ नवजात शिशु का गर्भ में अवतरण होता है जो कि प्रजनन तक स्थापित रहता है। अतः यह अवस्था माँ समस्त परिवार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण सर्तकता एवं वैभवशाली होती है। यह स्थिति में माँ शिशु का अलग से प्रबंधन व सुरक्षाजनक करना आवश्यक होता है। यह उपाय संपूर्ण परिवार भी इस हेतु समर्पित रहकर सहयोगी के रूप में करता है। माँ के शारीरिक परिवर्तन में विभिन्न तनाव, चिन्ता व जीवन में नवीन अनुभव भी मिलते हैं। उन्हें उन शारीरिक परिवर्तनों को ज्ञान कराना व स्वस्थ रखना आवश्यक रहता है। ज्ञान के अभाव में बच्चे व माँ के शरीर को हानि पहुँचना भी संभव है। यहाँ सामाजिक, शारीरिक व मानसिक भावों का समन्वय भी होता है।

योग के आसनों का प्राणायामों का योग का महत्व आदिकाल से रहा है। जनमानस अपने बेहतर स्वास्थ्य के लिए प्राणायाम व आसनों को करते आ रहे हैं। सर्वांग आसन, श्वासन, हंसासन, ताड़ासन, पश्चिमोत्तासन, पद्मासन, शीर्षासन, मत्स्यासन, भुजंगासन इत्यादि के प्रयोग पाये गये हैं। प्राणायाम, कवल, स्नेहन, स्वेदन, अभ्यंग की प्रथा भी पौराणिक काल से रही है। ये प्रयोग विभिन्न रोगों अनुसार ही प्रायः तत्कालीन वैद्य परामर्श में सलाह देते थे एवं उपलब्ध योगाचार्य निरंतर अभ्यास कर स्वास्थ्य लाभ दिलाते थे। योग की प्रथा अर्वाचीन काल से बुन्देलखण्ड में समाहित रही है।