डॉ. महेन्द्र वर्मा
September 21, 2024भगवतनारायण शर्मा
September 21, 2024जन्म – 4 अप्रैल 1930 ई.
जन्म स्थान – बाँदा (उ.प्र.)
जीवन परिचय –
पति – स्व. डी.डी. श्रीवास्तव रिटायर्ड डिप्टी कलेक्टर राजीव सदन, नायक मोहल्ला टीकमगढ़ (म.प्र.)
निधन – 18.11.2008 ई.
शिक्षा – एम.ए. (हिन्दी) साहित्य रत्न (प्रयाग) एम.डी.बी.एच.
पेशा – चिकित्सा
काव्य – तापसी
उपन्यास – परित्यक्ता तथा अपराजिता
कहानी संग्रह – जीवन पथ, आकांक्षा
डॉ. छाया श्रीवास्तव के साहित्य पर बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल से पी.एच. डी. 2017
विषय – छाया श्रीवास्तव का “साहित्य एक विश्लेषण” 2017
साठोत्तरी काल नारी विमर्श, नारी संवेदना, की दृष्टि से गुणात्मक परिवर्तन के लिये अभिज्ञात है। इस में देश, समाज में उभरते प्रश्न, विरोधों विरुपताओं के घेरों में घिरी नारी की अस्मिता के विवर्त परिलक्षित होते हैं। जिसने संवेदनशील लेखकों द्वारा उसकी दशा के बिम्बों को उकेर कर एक नई दिशा देने के प्रयत्न किए हैं। डॉ. छाया श्रीवास्तव द्वारा लिखा साहित्य इस का प्रमाण है। आप का लिखा ‘परित्यकत्ता उपन्यास सन् 1981 ई. में प्रकाशित हुआ। जिसके विषय में उसके तथ्य और कथ्य यहाँ प्रस्तुत हैं।
डॉ. छाया श्रीवास्तव द्वारा लिखा ‘परित्यक्त्ता’
- एक सामाजिक उपन्यास है।
- इसकी नायिका रजनी है
- इसका नायक उदात्त चरित्र का रमेश है।
- इसकी कथावस्तु में नारी के जीवन के विघटित कथासूत्रों में अवगुंठित है। अपने पति द्वारा परित्यक्त हो कर भी वह अदम्य धैर्य व साहस के साथ संघर्ष करती है। वह समाज के बनाये बन्धनों व प्रतिकारों के विरूद्ध लड़ाई में अन्ततोगत्वा विजयी होती है। और परित्यक्ता के दूषण को समाप्त कर पुनर्विवाह कर समाज को एक नई दिशा प्रदान करती है।
उपन्यास की भाषा कथानुरूप व पात्रानुरूप सम्वादों से अवगुंठित है। बुन्देली भाषा के शब्दों का प्रयोग और लोक-संस्कृति के उकेरे अक्स इस उपन्यास को विशिष्टता प्रदान करते हैं।
- समाज के दूषण और संकीर्ण रीति-रिवाजों को ध्वस्त कर नई दिशा प्रदान इस उपन्यास में की गई है। यही इसका प्रदेय है।
अपराजिता – डॉ. छाया श्रीवास्तव का अन्य उपन्यास है। जिसमें नारी स्वत्व, स्वाभिमान और संघर्ष की कहानी है।
- यह एक सामाजिक उपन्यास है।
- नायिका प्रधान कथा है।
- इसके पात्र – नायक सतीश , नायिका लक्ष्मी , अन्य पार्वती तथा नलिनी है।
- कथावस्तु ‘बाल-विवाह’ के दूषण और समाज की सोच के इर्द-गिर्द नायक व नायिका के बीच पनपते शारीरिक तथा मानसिक अवरोधों के कारण, कारण, सम्बन्धों में पड़ती दरारों से उत्पन्न विघटन सतीश व लक्ष्मी को विलग होने को विवश करते हैं। दोनों अपने जीवन-यापन में व्यस्त होते हुये भी अतीत के सम्बन्धों से जुड़े रहते हैं। जिससे अन्त में सम्बन्धों की दूरियाँ समाप्त होती हैं और उन दोनों का पुनर्मिलन हो जाता है। लक्ष्मी अपराजिता बनती है।
5. उपन्यास की भाषा व संवाद कथानक के अनुरूप सरल हिन्दी के साथ बुन्देली के शब्दों से अवगुंठित है। इस प्रकार डॉ. छाया श्रीवास्तव ने अतीत में व्याप्त सामाजिक दूषण (बाल विवाह) को समाप्त कर एक नवीन संजीवनी प्रदान की है।