ऋषिका रोमशा
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October 8, 2024ऋषिका शश्वती महर्षि अंगिरा और ऋषिका विश्ववारा की पुत्री ऋषिका शश्वती मध्यप्रदेश के चेदि गणराज्य चन्देरी अशोकनगर के प्रधान आसंग की पत्नी थी। ऋषि कण्व के गोत्र में उत्पन्न मेधातिथि के अनुशासन में दीक्षित होकर इन्द्र की महान तपस्या कर शश्वती अपना जीवन सुखद व सफल बनाती है। ज्ञान के क्षेत्र में लम्बी छलांग लगाने वाली बुंदेलखंड की वैदिक महिला दृष्टा का उद्घोष कि मनुष्य इसी जीवन में सत्य की प्राप्ति कर सकता है।
“अन्वस्य स्थुरं दद्दशे पुरस्तादनस्थ ऊरूरवरम्बमाणः ।
शश्वती नार्यभिचक्ष्याह सुभद्रमर्य भोजनं विभर्षि ॥॥”
ऋषिका शश्वती –
आत्मविश्वास से ओतप्रोत, अपराजेयता की प्रतिमूर्ति, साधना की सिद्धि, ब्रह्मसौन्दर्य दृष्टा ऋषिका शश्वती।
प्रज्ञा प्रकाश से आलोकित, शक्तिमती दृढ आत्मविश्वासी, आस्तिक निष्ठा निष्काम कर्म, सत्यप्रेम की अभिलाषी।
अंगिरस कुल की ऋषिकन्या, दृष्टा विश्ववारा की बेटी श्रेष्ठता की है पराकाष्ठा, द्वन्द्वों, संघर्षों में अविजित रहती।
चेदि गणराज्य भारत में है, उन्नत शक्तिशाली समृद्ध, वर्तमान में चन्देरी मध्यप्रदेश, वैदिक काल से ही वर्चस्व ।
शूरवीर, यशस्वी चेदि राज्य में, प्लायोगि थे राजा महान. स्वनामधन्य पुत्र उनके दानवीर योद्धा थे ऋषि आसंग ।
जिनका पाणिग्रहण हुआ संगसाथ ऋषिका शश्वती—
दिव्य ज्ञानमयी प्रतिभा का हुआ, सुगन्धि-स्वर्ण से संयोग, मानवता की प्रबल समर्थिका, सहेजती जीवन के रंग।
गृहस्थ जीवन में खुश रहती ऐसे, ज्यों फूलों में मकरंद, धरती पर आत्मसौन्दर्य बिखेरती, करती उन्मुक्त चिंतन।
कालचक्र का घूमा पहिया, बढ़ी मुसीबत जीवन उलझन, वीर, दानी, योद्धा पति को जब देखा पुरुषत्वविहीन ।
शान्त, शश्वती के जीवन में, दबे पाँव लगे मृत्यु के पंख, नपुंसकत्व के लक्षण देख लोग कसे फब्तियाँ रह गये दंग।
पति के दुख से दुखी सहृदया ऋषिका शश्वती—
अज्ञात अपराध से अभिशप्त, राशिराशि संवेदन, गूढ़ मौन, पहले तू ब्रह्मा, अब तू स्त्री, परोक्ष में खूब फुसफुसाते लोग।
सत्-रज-तम की ऐसी चुप्पी, मूक हृदय में उठती हिलोर, मुश्किल घड़ी में हिम्मत से जीवट, पाती ऊष्मा का स्पर्श।
ये कैसी छलना जीवन धारा में, अति अकुलाती उन्मना, विधि के बंधनों से, संवेदनशून्य विषादिता अन्यमना।
ज्योति के प्रकाश से, धड़कनों में भरती फौलादी ताकत, दीर्घतमा ऋषि के अनुत्तरित प्रश्न को सुलझाती साहसी।
हतभाग्य झेलती करती मुकाबला ऋषिका शश्वती—
मन में बैचेनी, उठते गिरते झंझावात, बिजलियाँ तूफान, अनहद आत्मा की नीरवता से उपजाअंतर्मन का संवाद।
आँसुओं को पोंछ चिरन्तन प्राणधारा को करती ऊर्जस्वित, मंगलकामना साधती, आराध्य की तपस्या हेतु संकल्पित ।
साधना में हुई लीन, क्षमता पर रख अटूट निष्ठा विश्वास, हृदय की रहस्यमयी गुफा से प्रकटी ज्योति और प्रकाश।
दान से होते ऋषि मेधातिथि और अग्निरुप इन्द्र सन्तुष्ट, चेदि गणराज्य की नारी शक्तिमती शौर्य की शाश्वत प्रतीक।
आत्मानुभूति से आप्लावित, तापसी ऋषिका शश्वती—
अनुभवित ज्ञान के क्षेत्र में शश्वती ने किया कठोर तप, तप के बल, प्रफुल्लित, अटल सत्य से किया साक्षात्कार।
अग्निपथ की पथिक की मनवांछित साधना हुई फलीभूत, साधना से सिद्धि फल प्राप्ति, अनुभव से हुई परिपूर्ण।
ज्ञान का उद्घोष करआसंग को ऋषित्व दिला पाती शांति वैदिक काल की विजयी,
श्रेयस्करी नारी दृष्टि की प्रतीक अपनी क्षमता से नारीत्व, आत्मबोध का करती शंखनाद ।
प्रणय पथ की पंथिनी, व्यापिनी, हुई प्रियसुख से संतुष्ट।
संकल्पशील आत्मविश्वासी शश्वती ऋषिका चेदि गणराज्य की साधनामयी को प्राप्त हुआ आत्मबोध,
चहुँओर विकीर्ण कर दृष्टि और सत्य का किया उद्घोष।
अविराम जीवन क्रम में सुख-दुख के मन में खिले सुमन, वैदिककाल प्रतिष्ठित चेदि गणराज्य है बुंदेलखंड।
प्रियतम आसंग के पथरथ पर सुखमय करती पदार्पण, मधुर सुख भोग की लालसा और करती आत्म उत्सर्ग।
आठ पहर चौसठ घड़ी, पति आत्मीय का करती ध्यान, मृदु वचनों से मोहती, मणिकांचन संयोग और मधुर तान।
आशा आकांक्षाओं की साधिका ऋषिका शश्वती।