
ऋषिका शश्वती
October 7, 2024
दतिया की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
October 8, 2024सम्पादकीय - रुपेश उपाध्याय अपर कलेक्टर एवं नोडल अधिकारी
“झाँसी गले की फाँसी, दतिया गले का हार।
ललितपुर कबहु न छोड़िए, जब तक मिले उधार ।।“
बुन्देलखण्ड में प्रचलित यह कहावत दतिया के प्रति आत्मीय भाव प्रदर्शित करती है। दतिया छोटी रियासत होने के बाद भी अपनी स्थापना से देश की स्वाधीनता तक, अपने अस्तित्व को अक्षुण्य बनाए रखने में सफल रहा। ओरछा के राजा “वीरसिंह जू देव ने दतिया की जागीर अपने मुँझले पुत्र भगवानराव को दी। उनके 20 अक्टूबर 1626 को दतिया आने के बाद दतिया रियासत अस्तितव में आई। आरंभिक स्वरूप इसका एक मामूली गाँव जैसा ही रहा होगा। दतिया के राजा शुभकरण के पुत्र दलपतराव ने इसे नगर के रूप में विकसित किया। दलपतराव ने यहाँ “प्रतापगढ़” नामक एक विशाल दुर्ग का निर्माण कराया। वर्तमान में किला चौक पर स्थित इस दुर्ग के आसपास ही दतिया नगर विकसित हुआ।
20 अक्टूबर 1626 से लेकर देश की स्वतंत्रता तक दतिया में कुल 11 बुन्देला राजाओं ने राज किया। इन्होंने अपने शासनकाल में कला एवं संस्कृति को प्रोत्साहन दिया, इस कारण यहाँ किले और महलों के अलावा बड़ी संख्या में छत्रियाँ, तालाब, बावड़ियाँ और मंदिरों का निर्माण हुआ। दतिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना सन् 1929 ई. में घटित हुई, जब ब्रह्मलीन “पूज्यपाद श्री विभूषित स्वामी जी का दतिया आगमन हुआ। उन्होंने दतिया के दक्षिण में स्थित “वनखण्डेश्वर महादेव” को अपनी साधना स्थली बनाया। कालांतर में यहाँ “माँ भगवती पीताम्बरा” एवं “माँ भगवती धूमावती” की स्थापना हुई। पूज्यपाद स्वामी जी के तप के प्रभाव से दतिया को राष्ट्रव्यापी ख्याति मिली।
देश की स्वाधीनता के बाद लगभग 6 दशक तक दतिया की गणना छोटे, पिछड़े एवं बीमारू जिले में होती थी, पर डॉ. नरोत्तम मिश्र जी द्वारा इसको अपनी कर्मभूमि बनाए जाने के बाद यहाँ तेजी से विकास हुआ। माननीय मंत्री जी के प्रयत्नों के चलते दतिया का नगरीय स्वरूप और परिष्कृत हुआ है। “दतिया में अधोसंरचना, नागरिक सुविधाएं और सौंदर्याकरण के कार्य व्यापक स्तर पर हुए हैं। दतिया में स्कूल शिक्षा एवं उच्च शिक्षा के अनेक सस्थान स्थापित हुए। दतिया में मेडिकल कॉलेज की स्थापना उनकी दूरगामी सोच का परिणाम है। दतिया में चौड़ी एवं चमचमाती सड़कें, भरे लहराते तालाब अब इसकी पहचान हैं।” दतिया सही अर्थों में अब गले का हार बन गया है।
दतिया में “रतनगढ़ की माता”, “सनकुआ”, “उनाव बालाजी”, “पीताम्बरा पीठ”, “सोनागिर” जैसे धार्मिक स्थल हैं, जिनसे देश भर के श्रद्धालु आस्था की डोर से बंधे हैं। यहाँ पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु वर्ष भर आते रहते हैं। 2500 वर्ष प्राचीन धर्म घोषणा करता हुआ “अशोक का शिलालेख गुजर्रा” जिले का सबसे पुरातन स्मारक है। आसमान को चूमता हुआ बुलंद “वीर सिंह जूदेव पैलेस”, जो अपनी अद्भुत स्थापत्य कला के कारण बुन्देलखण्ड के किलों का तो सिरमौर है ही, देशभर के पुरातत्व प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
अपनी राजसी विरासत को संजोए “प्रतापगढ़ एवं गोविंद निवास पैलेस”, दतिया की “बुंदेली कलम चित्रकारी का केंद्र कर्णसागर छत्री समूह, राजसी गंभीरता ओढ़े “कन्हरगढ़ दुर्ग सेवढ़ा”, कलकल निनाद करता हुआ “सनकुँआ का जलप्रपात”, विंध्य पर्वतमाला के शैल शिखर “पंचम कवि की टौरिया”, “उड़नू की टौरिया”, पुरातनता को आधुनिकता से जोड़ने वाले “सीतासागर”, “लाला का ताल”, पुनः वैभव प्राप्त “ठण्डी सड़क” जैसे दर्शनीय स्थल हैं। जिले की इस महती आवश्यकता को देखते हुए दतिया जिले की पर्यटन परिचायिका “दतिया टूरिस्ट गाइड” का प्रकाशन किया गया है। इस हेतु दतिया जिला गजेटियर, दतिया के ऐतिहासिक स्थलों को लेकर प्रकाशित पत्र-पत्रिकायें, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विषयों पर लिखे गये शोध लेख एवं शोध प्रबंध तथा विभिन्न ऐतिहासिक पुस्तकों को आधार बनाया गया है। हम इन सभी लेखकों एवं प्रकाशकों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
दतिया टूरिस्ट गाइड अब आपके हाथों में है। उम्मीद है यह पुस्तक दतिया के पर्यटन स्थलों में रुचि रखने वालों, पर्यटकों, जिज्ञासुओं और शोधार्थियों के लिये उपयोगी सिद्ध होगी। इस टूरिस्ट गाइड में कुछ कमियाँ अथवा त्रुटियाँ रह जाना स्वाभाविक है। ऐसी त्रुटियों और कमियों से सुधीजन अवश्य अवगत करावें, ताकि आगामी संस्करण में इनका परिमार्जन किया जा सके। दतिया टूरिस्ट गाईड के प्रकाशन से दतिया के पर्यटन स्थलों की जानकारी एक बुक फॉर्म में उपलब्ध हो गई है। इससे पर्यटकों दतिया के पर्यटन स्थलों के भ्रमण करने में आसानी होगी। यह टूरिस्ट गाईड पूज्य माँ भगवती पीताम्बरा, माँ भगवती धूमावती एवं पूज्य श्री विभूषित स्वामी जी के श्री चरणों में सादर समर्पित है।